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इस बात में दोराय नहीं है कि बच्चे के जन्म के बाद के शुरुआती कुछ माह आपके लिए चुनौती भरे होने वाले हैं। नवजात शिशु को हर दो घंटे में आपको दूध पिलाना होगा, नियमित अंतराल पर उसका डायपर बदलना...
इस बात में दोराय नहीं है कि बच्चे के जन्म के बाद के शुरुआती कुछ माह आपके लिए चुनौती भरे होने वाले हैं। नवजात शिशु को हर दो घंटे में आपको दूध पिलाना होगा, नियमित अंतराल पर उसका डायपर बदलना होगा, उसके शरीर के तापमान पर आपको नजर रखनी होगी और साथ ही उसे वह माहौल भी देना होगा, जिसमें वह चैन से सो सके। यह पूरी प्रक्रिया किसी भी नए अभिभावक के लिए आसान नहीं होती। पर, विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे की देखभाल को लेकर ज्यादा तनाव पाले बिना भी सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया जा सकता है, कैसे? आइए जानें:
बच्चे को बार-बार लगाएं गले
क्या आप जानती हैं कि नवजात शिशु को भी इस भरोसे की जरूरत होती है कि वह पूरी तरह से सुरक्षित हाथों में है? बोलकर नन्हे से बच्चे को आप यह जता नहीं सकतीं कि आप उससे कितना प्यार करती हैं, इसलिए इस काम को करने के लिए उसे गले लगाएं और बार-बार गले लगाएं। गले लगाने पर या गोद में लेने पर बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है। आपके ऐसा करने से वह रोएगा भी कम और ज्यादा लंबी नींद भी ले पाएगा। ऐसा करने से बच्चे के शरीर में ऑक्सिटोसिन नाम का हार्मोन निकलता है, जिसे बॉन्डिंग हार्मोन के नाम से भी जाना जाता है। यह हार्मोन न सिर्फ सेहत दुरुस्त रखता है बल्कि उसके शारीरिक तापमान को नियंत्रित रखने में मदद करता है।मां का दूध है जरूरी नवजात को सबसे ज्यादा ताकत देने वाला और हर बीमारी से बचाने वाला मां का दूध ही होता है। इसमें बच्चे के लिए सभी जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। दूध पिलाने के बाद बच्चे को बर्पिंग यानी डकार दिलाना ना भूलेंं। ऐसे नहलाएं बच्चे को हर दिन नहलाएं। इस गलतफहमी में न रहें कि बच्चे को ठंड के मौसम में नहीं नहलाना चाहिए। नियंत्रित तापमान में और गुगनुने पानी से आप नवजात बच्चे को भी हर दिन नहला सकती हैं। जब तक बच्चे का गर्भनाल सूखकर निकल न जाए, तब तक बच्चे की सफाई स्पंज से ही करें। बच्चे को स्पंज बाथ देना बेहद आसान है। एक छोटे-से टब में गुनगुना पानी लें और उसमें बेबी लिक्विड सोप डालकर मिलाएं। साफ-सूती कपड़े या फिर स्पंज को उस पानी में डुबोएं और उससे बच्चे को स्पंज करें। ध्यान रहे, बच्चे की त्वचा की सफाई बेहद हल्के हाथों से करनी है, क्योंकि उसकी त्वचा बहुत नाजुक होती है। आंख, नाक और कान आदि पर साबुन का इस्तेमाल नहीं करें। इन हिस्सों की सफाई सिर्फ गुनगुने पानी से करें। सबसे अंत में साफ पानी से साबुन का झाग साफ करें और मुलायम तौलिये से बच्चे की त्वचा को पोंछ दें। साफ-सफाई में न हो अनदेखी नवजात शिशु की साफ-सफाई का बहुत ध्यान रखना चाहिए। शिशु के पास हाथ धोकर ही आएं। उसका बिस्तर, तकिया, तौलिया, यहां तक कि पहनाए जाने वाले कपडे़ भी धोने के बाद भी एक बार डेटॉल वाले पानी में जरूर डुबोएं। नवजात बच्चे की रोग प्रतिरोधी क्षमता बहुत कमजोर होती है और उन्हें इंफेक्शन पकड़ने का खतरा भी जल्दी होता है। नवजात को किसी भी तरह की बीमारी के खतरे से बचाने के लिए खासतौर पर शुरुआती तीन-चार माह तक सतर्कता बरतें। डायपर का चुनाव हो ठीक बच्चे के लिए न सिर्फ अच्छी क्वालिटी का डायपर का चुनाव करें, बल्कि उसे पहनाते वक्त भी इस बात का ध्यान रखें कि उसे रैशेज होने की आशंका न हो। इस मामले में डिस्पोजेबल डायपर का इस्तेमाल सबसे उपयुक्त रहता है, क्योंकि इसमें नमी इकट्ठा नहीं होती। बच्चों में रैशेज के लिए मुख्य रूप से नमी जिम्मेदार होती है। डायपर बदलने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोने की आदत डालें। साथ ही एक बात गांठ बांध लें। पुराना डायपर हटाने के बाद इस बात का ध्यान रखें कि वह हिस्सा पूरी तरह से सूख जाए, उसके बाद ही दूसरा डायपर पहनाएं। अगर डायपर वाले हिस्से में हल्की-सी भी लाली नजर आए तो वहां हर बार नया डायपर पहनाने से पहले पेट्रोलियम जेली या बेबी पाउडर लगाएं।सोने का हो तय समय इस गलतफहमी में न रहें कि छोटे बच्चे को कोई आदत नहीं डाली जा सकती है। नवजात बच्चे शुरुआत में 16 से 17 घंटे तक सोते हैं। पर, वो अपनी यह नींद एक तय पैटर्न के मुताबिक पूरा करते हैं। शुरुआत में बच्चे के सोने और जगने के पैटर्न की नब्ज पकड़ने में आपको परेशानी हो सकती है, पर धीरे-धीरे आपको यह अंदाजा हो जाएगा कि बच्चा एक बार में कितने घंटे की नींद लेता है। बच्चे को धीरे-धीरे दिन और रात का फर्क महसूस करवाना शुरू करें। जब वह थोड़ा-बहुत खेलना शुरू कर दे तो दिन के वक्त उससे ज्यादा-से-ज्यादा खेलने की कोशिश करें, वहीं रात में कमरे की रोशनी कम कर दें और इस बात का ध्यान रखें कि शोर कम हो, ताकि बच्चा ज्यादा देर तक सो सके।
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