40 दिन के बच्चे को कितना सोना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Wed 19th Oct 2022 : 13:51

शिशु के लिए कितने घंटों की नींद जरुरी है?
नए माता-पिता का यह जानने के लिए उत्सुक होना स्वाभाविक है कि उनके शिशु को पर्याप्त नींद मिल रही है या नहीं।

यहां बताया गया है कि एक महीने से लेकर 12 महीने की उम्र के बीच आपके शिशु को कितने घंटों की नींद की आवश्यता हो सकती है। मगर, यह ध्यान रखें कि हर शिशु अलग होता है और हो सकता है आपके लाडले को यहां दिए गए घंटों से कम या ज्यादा नींद चाहिए हो।

नवजात
दिन की नींद: आठ घंटे (3 बार झपकियां)
रात की नींद: आठ घंटे 30 मिनट
कुल नींद: 16 घंटे 30 मिनट

एक महीना
दिन की नींद: छह से सात घंटे (3 बार झपकियां)
रात की नींद: आठ से नौ घंटे
कुल नींद: 14 घंटे से 16 घंटे

तीन महीने
दिन की नींद: चार से पांच घंटे (3 बार झपकियां)
रात की नींद: 10 से 11 घंटे
कुल नींद: 14 घंटे से 16 घंटे

छह महीने
दिन की नींद: तीन घंटे (3 बार झपकियां)
रात की नींद: 11 घंटे
कुल नींद: 14 घंटे

नौ महीने
दिन की नींद: दो घंटे 30 मिनट (2 बार झपकियां)
रात की नींद: 11 घंटे
कुल नींद: 13 घंटे 30 मिनट

12 महीने
दिन की नींद: दो घंटे 30 मिनट (2 बार झपकियां)
रात की नींद: 11 घंटे
कुल नींद: 13 घंटे 30 मिनट

शिशु की नींद का पैटर्न कैसा होगा?
जैसे-जैसे आपका शिशु बढ़ता है आप उसके नींद के पैटर्न में भी उतार-चढ़ाव पाएंगी।

जन्म के बाद शुरुआती कुछ महीनों में संभव है कि आपका शिशु एक बार में एक से तीन घंटों से ज्यादा के लिए न सोए। उसे बार-बार दूध पीने के लिए उठना पड़ता है, क्योंकि उसका पेट बहुत छोटा होता है और ज्यादा दूध संग्रहित करके नहीं रख सकता। इसलिए आप रातों को बीच-बीच में उठने और अपनी नींद में खलल के लिए तैयार रहें। शिशु को रात में स्तनपान करवाने के बारे में यहां और अधिक जानें।

जब आपका शिशु लगभग तीन महीने का हो जाता है, तो वह एक बार में करीब पांच घंटों तक सोना शुरु कर सकता है। हालांकि, ऐसा हर बच्चे के साथ नहीं होता! यह भी याद रखें कि जरुरी नहीं है आपके शिशु की नींद का पैटर्न आपके जैसा हो, इसलिए अगर संभव हो तो जब भी शिशु सोए आप भी तब सो जाएं।

नौ महीने की उम्र से वह ज्यादा लंबे समय तक सोना शुरु कर देगा। 12 महीने का होने पर आपका शिशु शायद एक बार में आठ से नौ घंटे तक सोने लगेगा, और इस तरह शायद आप भी अपनी नींद पूरी कर सकेंगी!

अगर आपका शिशु पूरी रात सोना शुरु करने के बाद फिर से कभी-कभार रात में जागने लगे या फिर एक रात में बहुत बार उठने लगे, तो इसमें कुछ असामान्य बात नहीं है। करीब नौ महीने के शिशुओं के लिए रातों में ज्यादा बार उठना काफी आम है। इस समय पर, आपका शिशु जुदाई की चिंता (सैपरेशन एंक्जाइटी) पहली बार महसूस करने लगता है, जिससे उसकी नींद टूट सकती है।

दांत निकलने, पलटने, घुटनों के बल चलने और पकड़कर खड़े होने जैसे नए शारीरिक कौशल सीखने से भी शिशु की नींद का पैटर्न बाधित हो सकता है। क्योंकि उसके दिमाग में ये नए रोमांचक कौशल चल रहे होते हैं। विकास में तेजी (ग्रोथ स्पर्ट) के दौरान भी शिशु की नींद के पैटर्न में बदलाव आ सकता है।

रात में सोने के समय के आसपास खेलने और दोपहर के बाद झपकी लेने की वजह से शिशु को नींद आने में मुश्किल हो सकती है। टीवी, मोबाइल, स्क्रीन टाइम की वजह से या डिजिटल गेम्स खेलने के कारण बच्चे की नींद की दिनचर्या प्रभावित हो सकती है। इसीलिए दुनियाभर के अधिकांश विशेषज्ञ दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम की सलाह नहीं देते।

शिशु को भरपूर नींद लेने में मदद के लिए आपको उसके सोने की एक समान और पूर्वानुमानित दिनचर्या विकसित करनी होगी। इसमें आप सोने से पहले शिशु को नहलाना या मालिश करना, सोने से पहले कपड़े बदलना, लोरी सुनाना या फिर उसे सीने से लगाकर कोई पसंदीदा कहानी सुनाना शामिल कर सकती हैं।

शिशु को जब पता होगा कि हर रात सोने से पहले कब और क्या होगा, तो उसे नींद की आदतों को सीखने में मदद मिलेगी। यह चीज भविष्य में आप दोनों के लिए ही फायदेमंद साबित होगी। साथ ही यह दिन के अंत में आप और आपके पति के लिए शिशु के साथ समय बिताने एक अच्छा तरीका होगा।

ध्यान रखें कि शिशु को सुलाने का सबसे अच्छा समय शाम को 7.30 बजे से नौ बजे के बीच होता है, इसलिए नींद की दिनचर्या इसी अनुसार तय करने की कोशिश करें। कुछ नौकरीपेशा माता-पिता अक्सर शिशु को थोड़ा देर से सुलाना चाहते हैं, ताकि उन्हें शिशु के साथ बिताने का थोड़ा और समय मिल सके। कुछ परिवारों में शिशु रात करीब 11 बजे के आसपास सोते हैं।

रात में सोने में देरी होने पर हो सकता है आपका शिशु थका हुआ होने की बजाय चुस्त और उत्साहपूर्ण लगे। मगर, अक्सर उसका यह उत्साह इस बात का संकेत होता है कि उसका सोने का समय गुजर चुका है। उनींदा शिशु थका हुआ और चिड़चिड़ा हो जाता है। ऐसे में सुलाने के समय उन्हें शांत करवाना काफी मुश्किल होता है, इसलिए बेहतर है कि शिशु का सोने का समय जल्दी का रखें।

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