आईवीएफ का पूरा नाम क्या है?pregnancytips.in

Posted on Tue 26th Mar 2019 : 03:14

डॉक्‍टर ने बताया कैसे होती है आईवीएफ की प्रक्रिया, कितना दर्द पड़ता है सहना

आईवीएफ को इन विट्रो फर्टिलाइजेशन और टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है। मेल पार्टनर में शुक्राणुओं की कमी, पीसीओडी की वजह से ओव्यूलेशन में समस्या, फैलोपियन ट्यूब में समस्या, एंडोमेट्रिओसिस या अन्य फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के फेल हो जाने पर डॉक्टर IVF की सलाह देते हैं।

डॉक्‍टर ने बताया कैसे होती है आईवीएफ की प्रक्रिया, कितना दर्द पड़ता है सहना


हर महिला के लिए मां बनने का अहसास बेहद खास होता है। कहते हैं कि एक बच्चे के साथ मां का भी नया जन्म होता है लेकिन किसी वजह से अगर कोई औरत मां नहीं बन पाती, तो यह किसी कमी की ओर संकेत करता है। यदि शादी के 5 साल तक तमाम कोशिशों के बाद भी कपल्स को गर्भधारण करने में दिक्कत आती है, तो उन्‍हें आईवीएफ की सलाह दी जाती है।

अगर फैलोपियन ट्यूब्स पूरी तरह से ब्लॉक हैं, तो आईवीएफ ही एक ऐसा विकल्‍प है, जिसकी मदद से गर्भधारण किया जा सकता है। इसके अलावा मेल पार्टनर में शुक्राणुओं की कमी, महिला में पीसीओडी की वजह से ओव्यूलेयशन में समस्या, एंडोमेट्रियोसिस या अन्य फर्टिलिटी ट्रीटमेंट के फेल हो जाने पर डॉक्टर IVF की सलाह देते हैं। मदर्स लैप आईवीएफ सेंटर की मेडिकल डायरेक्टर और आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्‍टर शोभा गुप्ता बताती हैं कि कई मामलों में सारी रिपोटर्स ठीक आती हैं, लेकिन इलाज करने के बाद भी बेबी कंसीव नहीं हो पाता, तो आईवीएफ ही सहारा होता है।


60 से 70 प्रतिशत मामलों में कपल्स को पहली बार में ही गर्भधारण हो जाता है, जबकि कुछ मामलों में दूसरी या तीसरी बार में यह प्रक्रिया सफल होती है। तो आइए डॉक्‍टर शोभा गुप्ता से जानते हैं कि क्या होता है IVF और इसकी प्रक्रिया क्‍या है।
​क्या होता है IVF
-ivf

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को IVF कहा जाता है। पहले इसे टेस्ट ट्यूब बेबी के नाम से जाना जाता था। बता दें कि इस प्रक्रिया का प्रयोग सबसे पहले इंग्लैंड में 1978 में किया गया था। इस ट्रीटमेंट में महिला के अंडों और पुरूष के शुक्राणुओं को मिलाया जाता है। जब इसके संयोजन से भ्रूण बन जाता है, तब उसे वापस महिला के गर्भ में रख दिया जाता है। कहने को यह प्रक्रिया काफी जटिल और महंगी है, लेकिन यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए वरदान है, जो कई सालों से गर्भधारण की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं।

डॉक्‍टर शोभा गुप्ता कहती हैं कि यह बहुत सरल तकनीक है। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है, जिनमें ओवेरियन स्टिमुलेशन, महिला की ओवरी से एग निकालना, पुरूष से स्पर्म लेना, फर्टिलाइजेशन और महिला के गर्भ में भ्रूण को रखना शामिल है। IVF के एक साइकल में दो से तीन सप्ताह लग सकते हैं।

​IVF प्रक्रिया किस प्रकार की जाती है


डॉ. शोभा गुप्ता ने बहुत सरल तरीके से आईवीएफ प्रक्रिया को समझाते हुए बताया है कि इसमें महिला की ओवरी में बनने वाले एक अंडे की जगह कई अंडे विकसित किए जाते हैं। इसके लिए कुछ इंजेक्शन दिए जाते हैं, जो पीरियड्स के दूसरे दिन से शुरू होते हैं। इन इंजेक्शनों को लगातार 10 से 12 दिनों तक बारीक सुई के जरिए लगाया जाता है। अच्छी बात है कि इस इंजेक्शन से दर्द नहीं होता है और इनके कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होते हैं।

महिला की बॉडी एंग बनाने के लिए जो हार्मोन रिलीज करती है, उन्हीं हार्मोन्स को थोड़ी ज्यादा मात्रा में आईवीएफ में बाहर से दिया जाता है। अल्ट्रासाउंड के जरिए देखा जाता है कि अंडे ठीक से तैयार हो रहे हैं या नहीं, कितने अंडे तैयार हो रहे हैं आदि। इस पूरी प्रक्रिया को एग स्टिमुलेशन कहते हैं।


​ओवरी से एग निकालना

डॉक्‍टर शोभा गुप्ता कहती हैं कि जब सारे अंडे एक ही साइज के हो जाते हैं, तो महिला को बेहोश करके अंडे निकाल लिए जाते हैं। ओवरी से एग निकालने वाली प्रक्रिया महिला के ओव्यूलेशनन प्रक्रिया के ठीक 34 से 36 घंटों बाद की जाती है। अंडे निकालने की तकनीक के दौरान बस एक सुई का इस्तेमाल होता है। इसलिए कोई कट या ऑपरेशन होने का डर नहीं है।


​स्पर्म लेना

यदि किसी और पुरुष की बजाय पति का स्पर्म यूज किया जा रहा है, तो उसी दिन उनके भी स्पर्म लिए जाते हैं। टेस्टीक्यूलर एस्पिरेशन की मदद से भी शुक्राणु या स्पर्म लिए जा सकते हैं। स्पर्म देने के बाद डॉक्टर लैब में स्पर्म को स्पर्म फ्लूइड से अलग करते हैं।


यह प्रक्रिया एग लेने के 3 से 5 दिन बाद होती है। 3 से 5 दिन बाद 5 दिन के भ्रूण को महिला के गर्भ में रख दिया जाता है। आमतौर पर यह प्रक्रिया दर्द रहित होती है। हालांकि, थोड़ी ऐंठन महसूस हो सकती है। भूण रखने के बाद आप नॉर्मल लाइफ जी सकती हैं। हालांकि, अभी ओवरी का आकार पहले से बढ़ा हो जाता है, ऐसे में किसी भी असामान्य गतिविधि से बचने की कोशिश करें।

​आईवीएफ से जुड़ी जटिलताएं

मल्टीपल प्रेग्नेंसी यानि एक से ज्‍यादा बच्‍चे होना। इसमें जन्म के समय शिशु के लो बर्थ वेट और प्रीमैच्‍योर डिलीवरी का जोखिम बढ़ जाता है।

गर्भपात हो सकता है।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी,की संभावना बढ़ जाती है। इसमें अंडे गर्भाशय के बाहर इंप्लांट होते हैं।
ओवेरियन हाइपरस्टीमूलेशन सिंड्रोम हो जाता है। यह एक दुलर्भ स्थिति है जब पेट और छाती में ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ शामिल होता है।
ब्लीडिंग, इंफेक्शन या मूत्राशय को नुकसान हो सकता है।

solved 5
wordpress 5 years ago 5 Answer
--------------------------- ---------------------------
+22

Author -> Poster Name

Short info