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कितने बच्चे पैदा हों ये कौन तय करे, सरकार या औरत?
देश की ज़्यादा आबादी को कम करने के लिए जब सरकार फ़ैसले लेना चाहती है, तब उससे मची उथल-पुथल में बच्चे पैदा करनेवाली और गर्भनिरोध के तरीके अपनानेवाली औरतें सबसे ज़्यादा प्रभावित होती है.
ये पहली बार नहीं है कि जनसंख्या के नियंत्रण के लिए भारत में प्रलोभन और दंड की नीति अपनाई गई हो. यानी परिवार छोटा रखने पर सरकार इनाम दे और ज़्यादा बच्चे पैदा करने पर सरकारी नीतियों और मदद से वंचित करे.
पहले 1970 के दशक में देश में लगी इमरजेंसी के दौरान नसबंदी के कार्यक्रम से और फिर 1990 के दशक में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए कई राज्यों में बाध्यकारी की गई 'टू-चाइल्ड' पॉलिसी के ज़रिए ऐसा किया जा चुका है.
कुछ सबक़ 'वन-चाइल्ड' और 'टू-चाइल्ड' पॉलिसी लागू करनेवाले पड़ोसी देश चीन से भी लिए जा सकते हैं और कुछ जापान और दक्षिण कोरिया से.
अब असम और उत्तर प्रदेश की सरकारें ऐसी ही नीति अपनाना चाहती हैं. ऐसे में ये समझना ज़रूरी है कि इनसे पहले चलाई गई ऐसी मुहिम का भारत की आबादी पर और औरतों की ज़िंदगी पर कैसा असर पड़ा था?
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