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गर्भवती महिलाएं इस जांच पर आंख मूंद कर न करें भरोसा, जानिए किस वजह से खा सकती हैं धोखा
गर्भस्थ शिशु की शारीरिक संरचना का पता लगाने के लिए लेवल-टू की कराई जा रही जांच केवल 55 फीसदी ही सही होती है। 45 फीसदी रिपोर्ट पर अगर आप भरोसा कर रहे हैं तो धोखा खा सकते हैं। अमेरिका में हुए शोध में यह बातें सामने आ चुकी हैं। इसके बाद भी गोरखपुर शहर की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ इस जांच को लिख रही हैं। साथ ही निजी अल्ट्रासाउंड संचालक प्रतिदिन 200 से ज्यादा गर्भवतियों की लेवल-टू की जांच कर रहे हैं।
जानकारी के मुताबिक, गर्भावस्था में तीन तरह का अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह आमतौर पर डॉक्टर देती हैं। पहला अल्ट्रासाउंड तीन महीने के बाद होता है, जिसे फीटल वेलवीन कहते हैं। इस अल्ट्रासाउंड से शिशु की धड़कन सहित अन्य मेजरमेंट देखे जाते हैं। इसके बाद 21 से 25 सप्ताह के बीच लेवल-टू अल्ट्रासाउंड की जांच की जाती है। इसमें बच्चे की शारीरिक संरचना (हाथ-पैर, किडनी, हृदय) देखे जाते हैं कि उनका विकास सही तरीके से हो रहा है या नहीं। लेकिन लेवल-टू के अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट हाथ-पैर (लिंब) 18 फीसदी ही सही होते हैं।
82 प्रतिशत रिपोर्ट पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, जबकि पूरी जांच की रिपोर्ट केवल 55 फीसदी सही होती है। आईएमए अध्यक्ष और पैथालॉजिस्ट डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव ने बताया कि शोध में यह बात सामने आ चुकी है कि गर्भस्थ शिशु के लिंब को अल्ट्रासाउंड मशीन 18 फीसदी ही पकड़ पाती है। 82 प्रतिशत मामले पकड़ में नहीं आते हैं। इसके अलावा अलग-अलग अंगों की जांच रिपोर्ट भी अलग-अलग है।
महीने में 6000 से अधिक जांच
शहर की बात करें तो लेवल-टू की 6000 से अधिक जांच हर माह होती है। प्रतिदिन औसतन करीब 200 गर्भवती महिलाएं यह जांच कराती हैं। जबकि लेवल-टू की जांच रिपोर्ट सौ प्रतिशत सही नहीं पाई जाती है। चूंकि डॉक्टर इस जांच के लिए कहते हैं तो गर्भवती जांच को कराती हैं। जबकि यह जांच बहुत ज्यादा भरोसे के लायक नहीं है। इस तरह का मामला जिले में आ भी चुका है। एक युवक ने चार अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर गर्भवती पत्नी की जांच कराई। सभी स्थानों पर रिपोर्ट नॉर्मल आई जबकि बच्चा दिव्यांग पैदा हुआ।
हर डॉक्टर लिखती हैं जांच
लेवल टू की जांच तीन से चार साल पहले इक्का-दुक्का ही कराई जाती थी, लेकिन अब हर महिला डॉक्टर इस जांच को लिख रही हैं। ऐसी स्थिति में गर्भवती किस जांच पर भरोसा करें। वहीं, सरकारी अस्पतालों में लेवल-टू जांच की सुविधा नहीं है।
हर अंग की मिलती है रिपोर्ट
लेवल-टू के अल्ट्रासाउंड में किडनी, हार्ट, आंख, नाक, हाथ, पैर की संरचना की जांच की जाती है। पता लगाया जाता है कि इन अंगों में कोई बड़ी परेशानी तो नहीं है। जबकि डॉक्टरों का कहना है कि छोटी परेशानियां जैसे हार्ट में दिक्कत, किडनी में मेजर दिक्कत का पता नहीं लग पाता है।
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