क्या मम्सनेट के शुरुआती होने पर बच्चे ज्यादा सोते हैं?pregnancytips.in

Posted on Wed 19th Oct 2022 : 13:45

शिशु पूरी रात कब सोने लगेगा?
यह आपके शिशु पर निर्भर करता है। आमतौर पर पूरी रात सोने का मतलब है कि शिशु कम से कम छह घंटे बिना किसी व्यवधान के लगातार सो सके।

हर शिशु अलग होते हैं और आपके शिशु की नींद को प्रभावित करने वाले कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

आपके शिशु की उम्र
क्या वह समय से पहले जन्मा है (प्रीमैच्योर)
वह स्तनपान करता है या फॉर्मूला दूध पीता है
आपके शिशु की झपकी लेने और सोने की दिनचर्या
आपके शिशु की रात में दूध पीने की दिनचर्या

जब शिशु छह से आठ हफ्ते का होता है तो उसका सोने-जागने का प्राकृतिक चक्र (सर्केडियन रिदम) विकसित होना शुरु होता है। इसका मतलब है कि वह रात में ज्यादा सोना शुरु करेगा और दिन में कम सोएगा।

जब शिशु करीब छह महीने का होता है तो उसकी सर्केडियन रिदम आपके जैसी हो जाएगी। वह रात मे सोएगा और दिन में अधिकांश समय जगा रहेगा। कुछ शिशु तो कई बार लगातार आठ घंटे तक सोते हैं।

बहरहाल, अगर आपका शिशु रातभर नहीं सोता है, तो कुछ महीनों में आपको उसकी नींद के तरीके का पूर्वनुमान लग जाएगा। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह रात में ज्यादा समय तक सोना शुरु कर देगा। हालांकि, ध्यान रखें कि अधिकांश शिशु एक साल का होने से पहले हर रात पूरे समय सोएं, ऐसा मुश्किल ही है।
मेरे शिशु की रात की नींद बार-बार क्यों टूटती है?
शिशु के रात में जागने के बहुत से कारण होते हैं, उदाहरण के तौर पर:

हो सकता है वह भूखा हो। नवजात और छोटे शिशुओं का पेट बहुत छोटा होता है, जिसमें ज्यादा दूूध इकट्ठा नहीं हो सकता। नवजात शिशु का दूध पीकर सोने के बाद दो या तीन घंटे में फिर से भूख लगने पर उठना सामान्य है। कुछ शिशु छह महीने का होने पर रातभर बिना दूध पीए सोना शुरु कर सकते हैं। वहीं कुछ अन्य कई महीनों तक रात में दूध पीने के लिए उठते हैं।
हो सकता है उसकी नैपी या लंगोट बदलने की जरुरत है।
उसे सोने के लिए कुछ मदद की जरुरत है। हर रात सोने की एक समान दिनचर्या होना अच्छा रहता है।
हो सकता है वह बीमार हो, उसके दांत आ रहे हों, वह विकास का नया कौशल सीख रहा हो या विकास में तेजी (ग्रोथ स्पर्ट) पकड़ रहा हो।
मौसम में बदलाव की वजह से शिशु के कमरे का तापमान प्रभावित हो सकता है, जिससे शिशु को रात में असहजता महसूस हो सकती है।

और वयस्कों की ही तरह बच्चे के लिए भी रात को स्ट्रेचिंग या गहरी सांस लेने के लिए कई बार थोड़ी देर के लिए उठना सामान्य है।
कौन से उपाय शिशु को रात भर पूरी नींद लेने में मदद कर सकते हैं?
यहां दिए गए उपाय शिशु को आराम से सोने और आंख खुलने पर खुद दोबारा सोने में मदद करेंगे। शिशु को अकेले रोकर सोने देने से लेकर उसके साथ सोने तक बहुत अलग-अलग तरह की रणनीतियां हैं। यह आपको देखना है कि कौन सी रणनीति आपके और आपके परिवार के हिसाब से सही है।

शुरुआत से ही शिशु की नींद का एक नियमित पैटर्न बनाना और उसे शुरु से ही सोने की अच्छी आदतें सिखाना फायदेमंद है। निम्नांकित उपाय शिशु को छह हफ्ते से ही आरामदायक नींद पाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि ध्यान रखें कि आप कोई भी तरीका अपनाएं, यह सफल तभी होगा जब आप लगातार इसका पालन करें:

दैनिक दिनचर्या बनाएं: अगर आप सारे दिन शिशु की दिनचर्या एक समान रखें तो रात को शिशु के सोने का समय तय करने और उसे सुलाने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। वह आराम से सो जाएगा। अगर शिशु हर दिन समान समय पर सोए, खाए-पीए, खेले और रात में भी उसे समान समय पर सुलाया जाए, तो पूरी संभावना रहती है कि शिशु बिना किसी परेशानी के आसानी से सो जाएगा।

शिशु के बेडटाइम का सही समय चुनें। ध्यान रखें कि शिशु को सुलाने का सही समय रात को 7.30 बजे से 9 बजे के बीच होता है, इसलिए कोशिश करें कि आप शिशु की नींद की दिनचर्या इसी हिसाब से बनाएं। अक्सर कामकाजी माता-पिता दफ्तर से आने के बाद अपने शिशु के साथ समय बिताने के लिए उसके सोने के समय में देरी कर देते हैं। कुछ परिवारों में तो शिशु को रात 11 बजे तक सुलाया जाता है। हो सकता है कि आपको शिशु चुस्त और खेलने के लिए तैयार लगे मगर यह संकेत है कि उसका सोने का समय निकल गया है। इसके बाद जब आप उसे सुलाना चाहें, तो शायद वह उस समय सोना न चाहे और आपको परेशानी हो।

आराम देने वाला बेडटाइम रुटीन बनाएं। जब शिशु करीब तीन महीने का हो, तो आप उसके लिए आराम देने वाला बेडटाइम रुटीन शुरु कर सकती हैं। जिस समय आप शिशु को सुलाना चाहे, उससे एक घंटा पहले से उसका बेडटाइम रुटीन शुरु कर दें। टीवी या कोई अन्य उपकरण बंद कर दें, क्योंकि इनसे शिशु की सोने की दिनचर्या प्रभावित हो सकती है। कमरे में रोशनी कम कर दें और शिशु को आरामदायक स्नान कराएं या उसकी मालिश करें। उसे लोरी सुनाएं, कहानी पढ़कर सुनाएं और खूब प्यार-दुलार करें। इन सभी से शिशु को आराम पाने और नींद आने में मदद मिल सकती है।

शिशु को नींद में ही दूध पिलाएं। यदि आपके शिशु बहुत मुश्किल से सोता है, तो उसे देर रात जगाकर दूध पिलाने से वह और लंबे समय तक सोता रहेगा। कमरे की रोशनी को कम ही रखें और अपने सोते हुए शिशु को गोद में उठाएं। उसे स्तनपान करवाएं या बोतल से दूध पिलाएं। शिशु नींद से हल्का सा जागकर दूध पीना शुरु कर सकता है, मगर यदि ऐसा न हो तो निप्पल को हल्के से उसके होंठो पर तब तक फिराएं जब तक वह इसे मुंह में न ले ले। जब शिशु दूध पी ले, तो उसे फिर से बिस्तर पर लिटा दें।

शिशु को अपने आप सोने दें। जब शिशु ​तीन महीने का हो जाए, तो आप उसे खुद से सोने के लिए प्रोत्साहित करना शुरु कर सकती हैं, हालांकि सभी बच्चे खुद से नहीं सोते है। शिशु को दूध पिलाने के बाद जब वह उनींदा सा हो मगर सोया न हो, तब आप उसे पीठ के बल बिस्तर पर लेटा दें और देखें कि आपके पास होने से अपने आप सोता है या नहीं। उसे सुलाने के लिए आप कोई आवाज या शब्द भी बोल सकती हैं। जब शिशु को नींद आए तो यही दोहराएं, ताकि शिशु इसे सोने के समय और उनींदा होने से जोड़ सके। नींद के कुछ विशेषज्ञ शिशु को गोद में हिलोरे देते हुए या फिर दूध पिलाते हुए सुलाना सही नहीं समझते। बहरहाल, बहुत से लोग इस बात को नहीं मानते, इसलिए आपके परिवार के लिए जो सही हो आप वह करें।

नींद का प्रशिक्षण दें। बहुत से शिशुओं को रात में जागने के बाद फिर से सुलाना मुश्किल हो जाता है। अगर आपका बच्चा छह महीने का है तो आप उसे अपने आप फिर से सोना सिखा सकती हैं। इसे नींद का प्रशिक्षण (स्लीप ट्रेनिंग) कहा जाता है। इसके बहुत से तरीके हैं, और कई तरीकों में शिशु को अपने आप रोते हुए सोने नहीं दिया जाता।

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