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हर स्त्री यही चाहती है कि उसका आने वाला शिशु पूरी तरह स्वस्थ और सुरक्षित हो, लेकिन कभी-कभी ऐसा नहीं हो पाता। कई बार गर्भावस्था के दौरान कुछ ऐसी जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जिसका परिणाम मिसकैरेज के रूप में सामने आता है।
गर्भपात होने के बाद महिला को 15 से 30 दिन तक पूरा आराम करना चाहिए। एक महीने तक शारीरिक संबंध न बनाए।
क्यों होता है ऐसा
आमतौर पर प्रेग्नेंसी के शुरुआती तीन महीनों में मिसकैरेज की आशंका सबसे ज्यादा होती है। स्त्री की कमजोर शारीरिक अवस्था, एनीमिया, दुर्घटना, अत्यधिक शारीरिक श्रम, खास तौर पर कोई भी ऐसा कार्य जिससे पेट के निचले हिस्से पर अत्यधिक दबाव पडता हो, दवाओं के साइड इफेक्ट आदि कई ऐसी वजहें हैं, जिससे गर्भस्थ शिशु को खतरा हो सकता है। ..लेकिन मिसकैरेज प्रकृति द्वारा बनाया गया स्वाभाविक डिफेंस मेकैनिज्म है। जीव विज्ञान की सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट की थ्योरी यहां भी लागू होती है। कई बार जब स्पर्म या एग की क्वॉलिटी अच्छी नहीं होती तो शुरुआती तीन महीने के भीतर स्त्री का शरीर उसे रिजेक्ट कर देता है, जिससे गर्भपात हो जाता है। इसके अलावा अगर गर्भवती स्त्री के खून में कोई इन्फेक्शन या बुखार हो तो भी मिसकैरेज की आशंका बढ जाती है। इसके बाद प्रग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में गर्भाशय की अंदरूनी संरचना में गडबडी की वजह से मिसकैरेज की आशंका बढ जाती है। मसलन यूट्रस का आकार असामान्य रूप से छोटा होना, ओपनिंग ऑफ यूट्रस की समस्या यानी गर्भाशय का मुंह पहले से ही खुला होना, कैविटी (गर्भाशय का वह हिस्सा जहां शिशु को नौ महीने तक ठहरना होता है) का तैयार न होना आदि कई ऐसी प्रमुख वजहें हैं, जिनसे प्रेग्नेंसी के तेरहवें से सत्ताइसवें सप्ताह तक मिसकैरेज का खतरा बना रहता है। कंसीव करने के 28 सप्ताह बाद अगर गर्भस्थ शिशु को कोई क्षति पहुंचती है तो इसे प्री-मैच्योर लेबर या अबॉर्शन कहा जाता है। इसके अलावा चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में आजकल जांच की कई ऐसी तकनीकें विकसित हो चुकी हैं, जिनसे गर्भावस्था के दूसरे चरण में गर्भस्थ शिशु के विकास के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है। ऐसे में कई बार अल्ट्रासाउंड के दौरान गर्भस्थ शिशु में पनप रही जन्मजात विकलांगता या कुछ गंभीर बीमारियों के बारे में सही जानकारी मिल जाती है। ऐसे में जन्म के बाद शिशु सामान्य जीवन जीने में असमर्थ होता है। उसे ऐसी समस्याओं से बचाने के लिए कई बार डॉक्टर एमटीपी यानी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कराने की सलाह देते हैं। किसी भी दंपती के लिए यह बडे इमोशनल क्राइसिस का दौर होता है, लेकिन ऐसी स्थिति में दिल मजबूत करके सही निर्णय लेने की जरूरत होती है। ऐसे में खुद को दोषी मानने के बजाय व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि ऐसे शिशु को दुनिया में लाकर उसे कष्टप्रद जीवन देना कहां तक उचित होगा?
कैसे करें पहचान
शुरुआती तीन महीने में पेट के निचले हिस्से में दर्द, स्पॉटिंग या ब्लीडिंग जैसी समस्या हो तो बिना देर किए डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर सही समय पर ट्रीटमेंट मिल जाए तो ऐसी स्थिति में मिसकैरेज के खतरे को टाला जा सकता है। प्रेग्नेंसी के दूसरे ट्राइमेस्टर में भी कमरदर्द, स्पॉटिंग या ब्लीडिंग जैसी स्थिति में तत्काल डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। इस दौरान कई बार बिना दर्द के वॉटर बैग बर्स्ट कर जाता है और इस फ्लूइड के साथ शिशु के बाहर निकलने का ख्ातरा बढ जाता है। प्रेग्नेंसी के इस चरण में डॉक्टर गर्भस्थ शिशु को बचाने की पूरी कोशिश करते हैं। अगर किसी कारण से ऐसा संभव नहीं होता तो गर्भवती स्त्री की शारीरिक अवस्था को देखते हुए दवाओं या सर्जिकल मेथड के इस्तेमाल से एमटीपी करवाना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। दूसरे ट्राइमेस्टर में मिसकैरेज के बाद कुछ स्त्रियों को ब्रेस्ट में दर्द महसूस होता है क्योंकि इस समय तक लैक्टेशन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन इसकी वजह से चिंतित न हों। ट्रीटमेंट के दौरान दी जाने वाली दवाओं से यह समस्या जल्द ही दूर हो जाती है।
इन बातों का रखें ध्यान
- मिस कैरेज या एमटीपी के बाद शरीर में खून की कमी हो जाती है। इसलिए आयरन युक्त फलों और सब्जियों जैसे, सेब, केला, अनार, चुकंदर, पालक, मेथी आदि का भरपूर मात्रा में सेवन करना चाहिए। इसके साथ विटमिन सी युक्त फलों जैसे संतरा, नीबू, मौसमी, अंगूर आदि का सेवन भी जरूरी है, तभी आपके शरीर को आयरन का पर्याप्त पोषण मिल पाएगा।
-कम से कम पंद्रह दिनों तक आराम करें और कोई भारी सामान न उठाएं।
-अपने भोजन में दाल, दूध और पनीर जैसी प्रोटीन और कैल्शियम युक्त चीजों की मात्रा बढा दें, क्योंकि इनसे टूटी-फूटी कोशिकाओं की मरम्मत होती है। अगर आप नॉन-वेजटेरियन हैं तो अंडा, चिकेन और मछली का सेवन भी फायदेमंद साबित होगा।
-कम से कम 4 सप्ताह तक सहवास से दूर रहें क्योंकि इस दौरान स्त्री का शरीर कमजोर होता है और यूट्रस में इन्फेक्शन का खतरा बना रहता है।
। -चार सप्ताह बाद अगर शारीरिक संबंध की शुरुआत करनी हो तो इन्फेक्शन से बचने के लिए कॉण्डम जैसे किसी बैरियर मेथड का इस्तेमाल जरूर करें।
कब हो दूसरी प्रेग्नेंसी
हर दंपती के मन में यह सवाल होता है कि मिसकैरेज या एमटीपी के कितने दिनों बाद दूसरी प्रेग्नेंसी की तैयारी शुरू करनी चाहिए और उससे पहले उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। मिसकैरेज और दूसरी प्रेग्नेंसी में कम से कम तीन या चार महीने का अंतर रखने की सलाह दी जाती है। आदर्श स्थिति तो यही होती है कि तीन महीने बाद जब स्त्री का मासिक चक्र सामान्य अवस्था में लौट आए तभी उसे दूसरी बार कंसीव करना चाहिए, लेकिन इससे पहले इन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:
-अगर पति-पत्नी दोनों में से किसी एक को भी एल्कोहॉल या सिगरेट के सेवन की आदत है तो उसे इससे दूर रहना चाहिए क्योंकि ये दोनों चीजें मिसकैरेज के खतरे को कई गुना बढा देती हैं।
-दूसरी प्रेग्नेंसी की शुरुआत से पहले पति-पत्नी दोनों को केस हिस्ट्री के साथ स्त्री रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लेनी चाहिए, ताकि पिछले मिसकैरज के कारणों का विश्लेषण करके इस बार वैसे खतरों को पहले से ही रोकने की कोशिश की जाए।
-कंसीव करने से पहले पति-पत्नी दोनों को सीबीसी, थेलेसीमिया, आरएच फैक्टर, ब्लड शुगर, एचआइवी, हेपेटाइटिस और थायरॉयड की जांच करवा लेनी चाहिए।
-शोध से प्रमाणित हो चुका है कि पपीते के बीज में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो मिसकैरेज के खतरे को बढा देते हैं। इसलिए एहतियात के तौर पर पपीते का सेवन न करें।
-जंक फूड खास तौर से रेस्तरां में मिलने वाले चाइनीज फूड का सेवन बिलकुल न करें। इसमें अजीनोमोटो होता है, जो गर्भस्थ शिशु के मस्तिष्क के लिए बेहद नुकसानदेह होता है और इसकी वजह से मिसकैरेज का खतरा बढ जाता है।
-पति-पत्नी दोनों के लिए स्पर्म और एग की क्वॉलिटी की जांच बहुत जरूरी है क्योंकि इनकी खराब क्वॉलिटी मिसकैरेज का सबसे बडा कारण होती है।
-अंत में, जब प्रेग्नेंसी टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आए तो तुरंत अपनी स्त्री रोग विशेषज्ञ को इसकी जानकारी दें और उसके सभी निर्देशों का पालन करते हुए अपनी प्रेग्नेंसी को स्वस्थ और खुशनुमा बनाएं।
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