गर्भवती होने पर आपको कितने स्कैन मिलते हैं?pregnancytips.in

Posted on Fri 21st Oct 2022 : 13:37

अल्ट्रासाउंड स्कैन में ध्वनि तरंगों को गर्भाशय तक भेजा जाता है। आप इन उच्च आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) वाली ध्वनि तरंगों को सुन नहीं सकतीं, मगर ये शिशु को छू कर प्रतिध्वनि के तौर पर वापिस आती हैं।

कम्प्यूटर इन तरंगों को विडियो तस्वीरों के रूप में परिवर्तित कर देता है, जिनसे शिशु के आकार, स्थिति और हलचल का पता चलता है।

तस्वीर में हड्डी जैसे ठोस उत्तक ध्वनि तरंगों को सबसे ज्यादा परवर्तित करते हैं इसलिए इनसे सबसे ज्यादा प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। ये तस्वीर में सफेद दिखाई देते हैं और सौम्य उत्तक स्लेटी (ग्रे) दिखाई देते हैं। तरल पदार्थ, जैसे कि शिशु के चारों तरफ मौजूद एमनियोटिक द्रव, काला प्रतीत होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि तरल ध्वनि तरंगों के प्रति कोई प्रतिध्वनि नहीं करता।

स्कैन करने वाले अल्ट्रासाउंड डॉक्टर इन विभिन्न रंगत वाली छवियों को देखकर ही तस्वीर की व्याख्या करेंगे।

आपका पहला स्कैन काफी अविस्मरणीय अनुभव हो सकता है, क्योंकि इसमें आपको पहली बार अपने शिशु की झलक देखने को मिलती है।

3डी और 4डी रंगीन अल्ट्रासाउंड भी काफी लोकप्रिय हो रहे हैं क्योंकि इनसे शिशु की काफी जीवंत तस्वीरें प्राप्त होती हैं।

रिपोर्ट के अलवा अल्ट्रासाउंड डॉक्टर शिशु की तस्वीरें भी आपको दे सकते हैं, ताकि आप इन्हें यादगार के तौर पर रख सकें। यदि आप भी ये तस्वीरें चाहती हैं, तो अपनी डॉक्टर से बात करें।

हालांकि, शिशु की पहली तस्वीर को अपने पास रखना और दूसरों से साझा करना बहुत अच्छा है। मगर, इस अल्ट्रासाउंड का उद्देश्य आपके शिशु की पहली तस्वीरें प्रदान करना नहीं है। स्कैन का मुख्य मकसद यह जानना होता है कि आपके गर्भ में कितने शिशु पल रहे हैं और क्या वे सामान्य तौर पर विकसित हो रहे हैं या नहीं।

पहली तिमाही के स्कैन में शिशु के दिल की धड़कन की जांच की जाएगी और शिशु के सिर, पेट की दीवार और अंगों की मूल रचना को देखा जाएगा।

ध्यान रखें कि भारत में गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड के जरिये शिशु के लिंग के बारे में बताना गैरकानूनी और दंडनीय अपराध है। इसलिए स्कैन से आपको यह पता नहीं चल सकेगा कि आपके गर्भ में बेटा है या बेटी। शिशु का लिंग चाहे कुछ भी हो, उसकी पहली तस्वीर देखकर ही आप उससे काफी जुड़ाव महसूस करेंगी!
क्या गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड करवाना सुरक्षित है?
गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड स्कैन का इस्तेमाल कई दशकों से किया जा रहा है और इन्हें सही ढंग से किए जाने पर अभी तक इनके कोई दुष्प्रभाव सामने नहीं आए हैं। अल्ट्रासाउंड में रेडिएशन का प्रयोग नहीं होता, जैसा कि एक्स-रे में होता है।

अल्ट्रासाउंड स्कैन से निम्नांकित स्वास्थ्य स्थितियों का कोई संबंध नहीं हैः

शिशु का कम जन्म वजन
जन्मजात ​कैंसर
डिस्लेक्सिया
दृष्टि संबंधी विकार
सुनने में दिक्कत
शिशु का ​मा​नसिक विकास
शिशु में संरचनात्मक विकार


आप चिंता न करें। गर्भावस्था में स्कैन करने को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश हैं और आपके अल्ट्रासाउंड डॉक्टर इनका पालन करेंगे।

इसके बावजूद, स्कैन करने की सलाह तब ही ​दी जाती है जब कोई चिकित्सकीय कारण हो, जैसे कि गर्भस्थ शिशु के विकास के बारे में जानना। इसलिए गर्भावस्था में शायद आपके कुछ ही स्कैन होंगे।
अल्ट्रासाउंड किस लिए किए जाते हैं?
गर्भावस्था के चरण के आधार पर, अल्ट्रासाउंड से निम्न बातें पता चल सकती हैं:

शिशु के दिल की धड़कन।
आपके गर्भ में एक या जुड़वा या इससे ज्यादा शिशु पल रहे हैं।
अस्थानिक (एक्टोपिक) गर्भावस्था का, जिसमें भ्रूण गर्भ से बाहर, आमतौर पर फेलोपियन ट्यूब में विकसित होने लगता है।
मोलर गर्भावस्था का, जिसमें असामान्य अपरा होती है और आमतौर पर शिशु जीवनक्षम नहीं होता।
आपको हो रहे रक्तस्त्राव के कारण पता लगाना
शिशु को माप कर आपकी गर्भावस्था की सही तिथि बताना
शिशु की गर्दन के पीछे तरल को मापकर (न्यूकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन) डाउंस सिंड्रोम के खतरे को मापना
ब्लड स्क्रीनिंग टेस्ट में आई अनियमितताओं का कारण पता लगाना
शिशु और अपरा की स्थिति को दर्शा कर डायग्नोस्टिक टेस्ट जैसे कि कॉरियोनिक विलस सैम्पलिंग (सीवीएस) या एमनियो​सेंटेसिस आदि सुरक्षित तरीके से करने में मदद करना
आपके शिशु की जांच करके पता लगाना कि उसके सभी अंग सामान्य रुप से विकसित हो रहे हैं या नहीं।
विशिष्ट जन्मजात असामान्यताओं जैसे कि स्पाइना बिफिडा आदि का पता लगाना
एमनियोटिक द्रव की मात्रा मापना और अपरा की स्थिति को जांचना।
यह देखना कि हर बार स्कैन में आपका शिशु कैसे बढ़ रहा है।
अपरा और शिशु के बीच रक्त के प्रवाह को जांचना
अपरा का काल प्रभावन या कैल्सीकरण (ऐजिंग या कैल्सिफिकेशन) को जांचना
ग्रीवा के मुख और लंबाई को जांचना
पहले हुए सीजेरियन ऑपरेशन के चीरे की जगह की जांच करना
गर्भनाल को जांचना

अल्ट्रासाउंड स्कैन कौन करता है?
गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 (पीसीपीएनडीटी एक्ट) भारत में जिले की उपयुक्त प्राधिकरण के साथ पंजीकृत प्रशिक्षित अल्ट्रासाउंड डॉक्टर को ही अल्ट्रासाउंड करने की अनुमति देता है। डॉक्टर पीसीपीएनडीटी कानून के तहत रजिस्टर्ड क्लिनिक में ही स्कैन कर सकते हैं।

अल्ट्रसाउंड करवाने के लिए आपको अपने फोटो पहचान पत्र के साथ-साथ प्रशिक्षित डॉक्टर की पर्ची भी चाहिए होगी, जिसमें लिखा गया हो कि किस तरह का स्कैन करवाया जाना है।

जन्म से पहले शिशु के लिंग का पता लगाना भारत में गैरकानूनी व दंडनीय अपराध है। अल्ट्रासाउंड डॉक्टर ए​क निर्धारित फॉर्म पर आपकी लिखित स​हमति लेकर आपसे हस्ताक्षर करवाएंगी। इसमें आप यह सहमति देती हैं कि अल्ट्रासाउंड स्कैन आप शिशु का लिंग जानने के लिए नहीं करवा रही हैं।
अल्ट्रासाउंड कैसे किए जाते हैं?
आपके स्कैन या तो डायग्नोस्टिक सेंटर में होंगे या फिर मेटरनिटी हॉस्पिटल के अल्ट्रासाउंड विभाग में किए जाएंगे। अल्ट्रसाउंड स्कैन आमतौर एक कमरे में किए जाते हैं और कमरे में रोशनी बहुत कम रखी जाती है, ताकि डॉक्टर को स्क्रीन पर तस्वीरें बेहतर ढंग से दिख सकें।

आप कौन सा स्कैन करवा रही हैं, ​इसे देखते हुए आपको शायद अपनी सलवार या पैंट उतारनी पड़ सकती है या कपड़े बदलकर गाउन पहनना पड़ सकता है। आपको स्कैन के लिए परीक्षण टेबल पर लेटने के लिए कहा जाएगा।

अधिकांश मामलों में पति या साथ में आए परिवार के सदस्य या मित्र को स्कैन के दौरान कमरे में रहने की अनुमति दी जाती है। हालांकि, बेहतर ​है इस बारे में एप्वाइंटमेंट लेते समय आप पूछ लें।

एब्डोमिनल स्कैन
पहली तिमाही में, एब्डोमिनल स्कैन (पेट पर से स्कैन) आमतौर पर भरे हुए मूत्राशय के साथ किए जाते हैं। आपको अपने अप्वाइंटमेंट से पहले कई गिलास पानी पीना होगा, ताकि स्कैन के दौरान आपका ​मूत्राशय भरा हुआ हो। इससे आपको काफी असहजता हो सकती है, मगर मूत्राशय के भरे होने से गर्भाशय पेट में उपर की तरफ खिसकता है और आंतें भी उपर की ओर चढ़ती हुए रास्ते से हट जाती हैं।

पेट पर से स्कैन के लिए आपको पीठ के बल लेटना होता है। डॉक्टर आपके पेट पर ठंडा जैल लगाएंगी ताकि ध्वनि तरंगों का प्रवाह बेहतर हो सके। फिर वे ट्रांसड्यूसर को आपके पेट पर आगे-पीछे घुमाती हैं, ताकि ध्वनि तरंगे संचारित हो सकें।

ट्रांसवेजाइनल स्कैन
अगर, आपका शिशु अभी भी श्रोणि में काफी गहराई पर है या फिर आपका वजन सामान्य से ज्यादा है, तो तस्वीरें ज्यादा स्पष्ट दिखाई नहीं देंगी। इस स्थिति में, आपको योनि के जरिये स्कैन यानि ट्रांसवेजाइनल स्कैन (टीवीएस) करवाना होगा।

ट्रांसवेजाइनल स्कैन से शिशु की काफी स्पष्ट तस्वीरें मिलेंगी, खासकर य​दि आप गर्भावस्था के एकदम शुरुआती चरण में हैं। इस तरह के स्कैन में मूत्राशय भरा हुआ रखने की जरुरत नहीं होती।

टीवीएस स्कैन के लिए आपको कमर से नीचे के कपड़े उतारने होंगे और परीक्षण टेबल पर लेटना होगा। नर्स आपकी टांगों को चादर से ढक देंगी और आपको अपने घुटने मोड़ने होंगे और तलवे बिस्तर पर समतल रखे होने चाहिए। आपको अपनी टांगे थोड़ी खोलनी होंगी ताकि डॉक्टर प्रोब को अंदर डाल सकें और स्कैन करने के लिए उन्हें पर्याप्त जगह मिल सके। यह अवस्था लगभग वैसी ही होती है जैसे कि आंतरिक जांच करवाते समय रखनी होती है।

वेजाइनल ट्रांसड्यूयसर लंबा और संकरा होता है और आपकी योनि में आसानी से फिट हो जाता है। ट्रांसवेजाइनल स्कैन में डॉक्टर आपकी योनि के भीतर नए और कीटाणुमुक्त (स्टेराइल) आवरण (शीथ) से ढका हुआ संकरा सा प्रोब डालेंगी। यह आवरण कोंडोम जैसा दिखता है। वे काफी सारा जैल लगाकर इसे चिकना कर लेंगी, ताकि यह आसानी से अंदर प्रवेश कर जाए। प्रोब को बहुत ज्यादा अंदर तक डालने की जरुरत नहीं होती, इसलिए यह आपको और आपके शिशु को किसी भी प्रकार से नुकसान नहीं पहुंचाता।

सामान्य अल्ट्रासाउंड में कुछ मिनटों से लेकर आधे घंटे तक का समय लगता है। हालांकि, कभी-कभार इससे भी ज्यादा समय लग सकता है।

अल्ट्रासाउंड की अवधि बहुत से कारणों पर निर्भर करती है, जैसे कि:

किस तरह का अल्ट्रासाउंड किया जा रहा है
अल्ट्रासाउंड करने वाले डॉक्टर का अनुभव
स्कैन के लिए इस्तेमाल किए जा रहे उपकरण
गर्भस्थ शिशु के आसपास तरल की मात्रा
शिशु की अवस्था और आपकी शारीरिक संरचना

ध्यान रखें कि अल्ट्रासाउंड डॉक्टर महिला या पुरुष कोई भी हो सकता है। यदि आपको पुरुष डॉक्टर से टीवीएस स्कैन करवाने में संकोच या असहजता महसूस हो, तो अपनी डॉक्टर से बात करें। वे आपकी सहजता के लिए महिला अल्ट्रासाउंड डॉक्टर के पास भेज सकती हैं।
प्रेगनेंसी में मेरे अल्ट्रासाउंड स्कैन कब-कब होंगे?
गर्भावस्था में किए जाने वाले नियमित स्कैन निम्नांकित हैं:

डेटिंग एंड वायबिलिटी स्कैन, छह से नौ सप्ताह के बीच। इस स्कैन से सही ड्यू डेट का पता चलता है। आप शिशु के दिल की धड़कन भी इस स्कैन में सुन सकती हैं।
न्यूकल ट्रांसलुसेंसी (एनटी) स्कैन गर्भावस्था में एक विशेष समय पर किया जाता है। इसे अर्ली मोर्फोलॉजी स्कैन भी कहा जाता है। यह 11 हफ्ते व दो दिन और 13 हफ्ते व छह दिन की गर्भावस्था के बीच किया जाता है। यह स्कैन करवाने का सबसे बेहतर समय 12 सप्ताह की गर्भावस्था है। अधिक सटीक परिणाम के लिए इस स्कैन के साथ खून की जांच (डबल मार्कर टेस्ट) करवाने के लिए भी कहा जा सकता है। आपके गर्भाशय में रक्त के प्रवाह की जांज भी इसी चरण पर की जाती है।
एनॉमली स्कैन (टिफ्फा या अल्ट्रासाउंड लेवल II स्कैन) 18 से 20 हफ्ते की प्रेगनेंसी में कराया जाता है। इसमें देखा जाता है कि शिशु का विकास उचित ढंग से हो रहा है और उसमें कोई संरचनात्मक विकार तो नहीं हैं।
ग्रोथ स्कैन या फीटल वेलबींग स्कैन 28 से 32 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच कराया जाता है। इस स्कैन में शिशु के ग्रोथ पैटर्न का पता चलता है, जिसके आधार पर डॉक्टर आपको आहार योजना संबंधी सलाह दे सकते हैं। यदि ब्लड टेस्ट करवाना हो, तो भी डॉक्टर बात सकेंगे।
ग्रोथ स्कैन और कलर डॉप्लर अध्ययन, 36 से 40 सप्ताह की गर्भावस्था के बीच कराया जाता है। इस अंतिम स्कैन में शिशु की अवस्था और वजन को देखा जाता है। इसमें शिशु के चारों तरफ मौजूद तरल की जांच की जाती है और देखा जाता है कि गर्भनाल कहीं शिशु की गर्दन में लिपटी तो नहीं है। डॉप्लर अध्ययन में शिशु के महत्वपूर्ण अंगों में रक्त के प्रवाह को दर्शाया जाता है।


आपको इससे भी ज्यादा स्कैन की जरुरत करवाने की जरुरत पड़ सकती है, यदि:

आपने पहले कम जन्म वजन शिशु को जन्म दिया था
आपकी उम्र 35 साल या इससे ज्यादा है
आपने प्रजनन उपचारों की मदद से गर्भधारण किया है।
आपके गर्भ में जुड़वा या इससे ज्यादा शिशु पल रहे हैं।
आपको अन्य स्वास्थ्य जटिलताएं जैसे कि मधुमेह और उच्च रक्तचाप भी है।
आपका शिशु अपने चरण से छोटा या बड़ा मापा गया है।
गर्भावस्था में कोई अनियमितता या जटिलता होना जैसे कि ऐजिंग प्लेसेंटा, एमनियोटिक द्रव का स्तर कम या ज्यादा होना, गर्भनाल में रक्त संचरण में अनियमितता आदि।
गर्भस्थ शिशु में किसी असामान्यता का पता चलना, जिसमें नजदीकी निगरानी रखने की जरुरत हो।

क्या स्कैन करवाते समय तकलीफ होती है?
पेट पर किए जाने वाले स्कैन में दर्द नहीं होता, मगर जब अल्ट्रासाउंड डॉक्टर ट्रांसड्यूसर को आपके पेट पर दबाती हैं, तो आपको कुछ असहज लग सकता है, विशेषकर यदि आपका मूत्राशय अधिक भरा हुआ है तो।

कई महिलाएं पेट पर होने वाले स्कैन की तुलना में योनि स्कैन को अधिक आरामदायक मानती हैं, क्योंकि यह खाली मूत्राशय में ज्यादा अच्छे से किया जाता है।

इसमें आपको संकोच व शर्म सी महसूस हो सकती है, मगर यह बात सोचें कि आपकी अल्ट्रासाउंड डॉक्टर हर दिन ऐसे बहुत से स्कैन करती हैं। वह आपको एक चादर से ढक देंगी और यदि आप अपनी मांसपेशियों को ढीला छोड़ेंगी, तो चिकना ट्रांसड्यूसर आसानी से अंदर जा सकेगा। यह आपके लिए असहज भी नहीं होगा।

नौ सप्ताह की गर्भावस्था के बाद स्कैन करवाने के लिए मूत्राशय का भरा होना जरुरी नहीं है। इस चरण पर आपका शिशु काफी बड़ा हो जाता है और उसके चारों तरफ मौजूद एमनियोटिक द्रव प्रतिध्वनि करने में मदद करते हैं, जिससे स्क्रीन पर तस्वीर बनती है।

बहरहाल, अल्ट्रासाउंड के दौरान यदि कभी भी आपको दर्द या असहजता हो, तो इस बारे में डॉक्टर को अवश्य बताएं।
क्या मुझे अल्ट्रासाउंड करवाना जरुरी है?
अल्ट्रासाउंड स्कैन आपकी गर्भावस्था के बारे में जरुरी और विश्वसनीय सूचना दे सकते हैं। ये डॉक्टर की यह जानने में मदद करते हैं कि आपकी गर्भावस्था कैसी चल रही है और जरुरी हुआ तो वह उपचार की योजना बना सकती हैं। इस बात में भी कोई शक नहीं कि अधिकांश महिलाएं स्कैन के जरिये आश्वस्त हो जाती हैं और वे स्क्रीन पर अपने शिशु को देखकर आनंदित होती हैं।

बहरहाल, यह बात भी है कि अल्ट्रासाउंड में बहुत सी असामान्यताओं का पता नहीं चल सकता और कई बार स्कैन के परिणाम अनिश्चितता और चिंता पैदा कर सकते हैं।

अगर, आपकी डॉक्टर आपको स्कैन कराने की सलाह देती है और आप वह नहीं कराना चाहें, तो डॉक्टर से स्कैन कराने के कारण पूछ सकती हैं।

अगर आप अपनी डॉक्टर के स्पष्टिकरण से संतुष्ट नहीं है, तो आप दूसरी डॉक्टर की भी सलाह ले सकती हैं। अगर आपको लगे कि आपकी डॉक्टर काफी ज्यादा स्कैन कराने के लिए कह रही हैं, तो भी आप दूसरी डॉक्टर से सलाह कर सकती हैं।

स्कैन कराने या न कराने का अंतिम निर्णय आपका है।
अगर मेरे स्कैन में कोई समस्या आए तो क्या होगा?
अगर आपके स्कैन से शिशु में कुछ समस्या होने का पता चलता है, तो आपका चिंतित होना स्वाभाविक है। कई बार स्पाइना बिफिडा जैसी समस्याओं का पक्का पता स्कैन के जरिये चल सकता है।

कुछ मामलों में, स्कैन छोटे बदलाव (वैरिएंट) दिखा सकता है, जो कि आमतौर पर कोई चिंता का कारण नहीं होते। हालांकि, कभी-कभार ये किसी गंभीर स्थिति जैसे कि डाउंस सिंड्रोम आदि का संकेत हो सकते हैं।

यदि आपके स्कैन की रिपोर्ट में कुछ भी आसामान्य लगे, तो डॉक्टर आपको नॉन-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग (एनआईपीटी), या सीवीएस और एमनियो​सेंटेसिस जैसे डायग्नोस्टिक टेस्ट करवाने के लिए कह सकती हैं।

इन जांचों से काफी हद तक पता चल सकेगा कि शिशु को डाउंस सिंड्रोम जैसी गुणसूत्रीय असामान्यताएं हैं या नहीं। हालांकि, सीवीएस और एमनियोसेंटेसिस से इस बारे में स्पष्ट जानकारी मिल सकती है, मगर इन जांचों में ​गर्भपात होने का थोड़ा जोखिम रहता है। इसीलिए पहले अल्ट्रासाउंड स्कैन किया जाता है।

यदि स्कैन में किसी गंभीर समस्या का पता चले, तो अल्ट्रासाउंड डॉक्टर से मिली सूचना के आधार पर डॉक्टर निर्णय करेंगी कि शिशु के लिए अच्छे से अच्छा क्या हो सकता है। हालांकि, गंभीर समस्याएं होना दुर्लभ है, मगर कई बार परिवारों को यह मुश्किल निर्णय लेना पड़ता है कि वे यह गर्भावस्था जारी रखना चाहते हैं या नहीं।

अन्य समस्याओं में शिशु का ऑपरेशन करने की जरुरत हो सकती है, चाहे जन्म के बाद या भी गर्भ के भीतर। या फिर आपको इस संभावना के लिए भी तैयार होना पड़ सकता है कि आपके शिशु को जन्म के बाद विशेष देखभाल की जरुरत होगी। हालांकि, आपका सहयोग करने के लिए प्रसूती विशेषज्ञ, शिशु रोग विशेषज्ञ और फिजियोथेरेपिस्ट समेत बहुत से लोग उपलब्ध होंगे।

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