गर्भावस्था के दौरान दवाएं बच्चे के विकास को कैसे प्रभावित करती हैं?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:30

स्वस्थ गर्भावस्था के लिए 11 सुझाव

जब आपको पता हो कि आप गर्भवती हैं, तो शारीरिक और मानसिक तौर पर अपना ख्याल रखना और भी ज्यादा जरुरी हो जाता है। यदि आप इन कुछ आसान दिशा-निर्देशों का पालन करें, तो समस्यामुक्त गर्भावस्था के साथ एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकतीं हैं:
1. जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें
अच्छी प्रसवपूर्व देखभाल आपके और गर्भस्थ शिशु के लिए बहुत जरुरी है। इसलिए डॉक्टर को तुरंत फोन करें और अपना पहला प्रसवपूर्व अप्वाइंटमेंट तय करें।

गर्भावस्था की शुरुआत में जल्दी डॉक्टरी चेक-अप करवाने के निम्न फायदे हैं:

आपको शुरुआत से ही स्वस्थ गर्भावस्था के लिए अच्छी सलाह मिल जाएगी।

आपके पास कोई भी जरुरी अल्ट्रासाउंड स्कैन या टेस्ट करवाने का पर्याप्त समय होगा।

कुछ विशेष स्वास्थ्य परिस्थितियों के लिए जांच हो सकेगी, जिनमें अतिरिक्त देखभाल की जरुरत हो या फिर जिनसे जटिलताएं हो सकती हों।

डॉक्टर के साथ पहले अप्वाइंटमेंट में क्या होता है, यहां जानें।

यदि आपने अभी डॉक्टर का चयन नहीं किया है, तो यह अब शुरु कर दें। इस​के लिए दोस्तों और परिवारजनों से सुझाव लें या फिर आप हमारी कम्युनिटी में गर्भावस्था ग्रुप में या अपने बर्थ क्लब में अन्य गर्भवती महिलाओं से भी पूछ सकती हैं। एक अच्छी डॉक्टर वही है, जो आपकी व्यक्तिगत देखभाल कर सके, आपको सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित करे, आपको पूरी अहमियत देते हुए आपके सवालों का जवाब धैर्यता से दे।

आदर्श रूप में, ऐसी डॉक्टर का चयन करें, जिनका क्लिनिक या अस्पताल आपके घर के पास हो। आपको किसी आपात स्थिति में उन तक जल्दी पहुंचने की जरुरत हो सकती है, इसलिए यह अच्छा होगा कि उनका मोबाइल नंबर अपने पास ही रखें।

सही डॉक्टर और अस्पताल ढूंढ़ने में समय लग सकता है। इस बीच आप अपनी वर्तमान डॉक्टर को अपनी गर्भावस्था के बारे में बताएं। यदि आप कोई दवाएं ले रही हैं या कोई चिकित्सकीय समस्या है, तो यह भी उन्हें बताएं। वे भी आपको किसी डॉक्टर या अस्पताल के बारे में सुझाव दे सकती हैं।
2. अच्छा खाएं
कोशिश करें कि जब भी संभव हो आप स्वस्थ, संतुलित आहार ही खाएं। इसमें निम्न चीजों का सेवन शामिल है:

रोजाना कम से कम पांच हिस्से फल और सब्जियां
स्टार्चयुक्त भोजन (कार्बोहाइड्रेट्स) जैसे चावल, रोटी, ब्रेड और पास्ता। आप जो भी खाती हैं, उनमें एक तिहाई से थोड़ा ज्यादा हिस्सा कार्बोहाइड्रेट्स का होना चाहिए। सफेद की बजाय संपूर्ण अनाज वाली वैरायटी चुनें, ताकि आपको पर्याप्त फाइबर मिल सके।
रोजाना प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन जैसे मछली, कम वसा वाला मांस, अंडे, बीन्स जैसे राजमा, लोबिया, मूंग और साबुत मूंग, मेवे, सोया और दाल-दलहन। शाकाहारियों के लिए प्रोटीन के बेहतरीन स्त्रोतों के बारे में यहां जानें।
प्रतिदिन दूध और डेयरी उत्पादों का सेवन करें, जैसे दूध, दही, चीज़, छाछ व पनीर। अगर आपको दूध नहीं पचता है या लैक्टोस असहिष्णुता है, तो कैल्शियम युक्त अन्य विकल्प जैसे छोले, राजमा, जई (ओट्स), बादाम, सोया दूध और सोया पनीर (टोफू) का चयन कर सकते हैं।
सप्ताह में दो हिस्से मछली, जिनमें से एक हिस्सा तैलीय मछली जैसे कि रावस, पेड़वे या बांगड़ा का होना चाहिए। मछली में प्रोटीन, विटामिन डी, खनिज और ओमेगा-3 फैटी एसिड होते हैं, जो आपके शिशु के तंत्रिका तंत्र के विकास के लिए जरुरी होते हैं।

यदि आपको मछली पसंद नहीं है या आप शाकाहारी हैं, तो आप ओमेगा-3 फैटी एसिड अन्य खाद्य पदार्थों से पा सकती हैं जैसे कि मेवे, बीज, सोया उत्पाद और हरी पत्तेदार सब्जियां।

आपको गर्भावस्था में दो लोगों के लिए खाने की जरुरत नहीं है। भारत में अधिकांश डॉक्टर दूसरी और तीसरी तिमाही में 300 अतिरिक्त कैलोरी के सेवन की सलाह देते हैं। फिर भी यह ध्यान रखें कि गर्भ में एक नन्हा शिशु पल रहा है जिसके लिए आपको खाना है, न कि किसी बड़े व्यक्ति ​के लिए। स्वस्थ तरीके से जरुरी कैलोरी पाने के तरीके यहां जानें।

जलनियोजित रहें। गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है ताकि आपका ब्लड प्रेशर स्वस्थ स्तर पर बना रहे।

हर दिन करीब आठ से 12 गिलास पानी पीने की कोशिश करें। आप मलाई रहित (डबल टोन्ड) या कम मलाई वाला (टोन्ड) दूध या इन पौष्टिक और ताजगीपूर्ण पेयों को भी तरल के सेवन में शामिल कर सकती हैं। कैफीनयुक्त और कृत्रिम स्वाद वाले पेयों का सेवन न करें और फलों का ताजा जूस और सूप पीएं।

हर तिमाही के लिए हमारी आहार योजना देखें।
3. खाने की स्वच्छता पर ध्यान दें
गर्भावस्था में भोजन स्वच्छता विशेषतौर पर जरुरी होती है। ध्यान दें कि आप क्या खा रही हैं। कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन गर्भावस्था में सुरक्षित नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि इनमें जीवाणु (बैक्टीरिया) या परजीवी (पैरासाइट) हो सकते हैं, जिनसे आपके शिशु के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। नीचे और अधिक जानें।

लिस्टिरिया

लिस्टिरियोसिस, लिस्टिरिया बैक्टीरिया से होने वाला इनफेक्शन है। हालांकि गर्भवती महिला का इससे प्रभावित होना दुर्लभ है, मगर यदि यह हो जाए तो इसका गंभीर प्रभाव हो सकता है। ​लिस्टिरियोसिस की वजह से गर्भपात, जन्म के बाद शिशु गंभीर रूप से बीमार या यहां तक कि मृत शिशु का जन्म (स्टिलबर्थ) हो सकता है।

निम्नांकित खाद्य पदार्थों में लिस्टिरिया हो सकता है, इसलिए इनका सेवन न करना ही बेहतर है:

कच्चा दूध
अपाश्च्युरीकृत दूध
अधपके भोजन जैसे कि रेडीमेड भोजन
कॉन्टिनेंटल खाने में किसी भी तरह का पाटे- वेजिटेबल या मांस से बना हुआ
मुलायम, फंगस से पकाई गई चीज़ जैसे ब्रेई
ब्लू-वेन्ड चीज़

जहां फंफूदी को भोजन पर लगा देखा जा सकता है, वहीं लिस्टिरिया को आमतौर पर भोजन पर लगा देखा नहीं जा सकता। यह भोजन की सतह पर चिपचिपा सा स्लाइम जैसी परत के तौर पर लग जाता है। भोजन को फ्रीज करने पर भी लिस्टिरिया बना रहता है और यह कम तापमान पर भी धीरे-धीरे बढ़ना जारी रखता है, जैस कि फ्रिज आदि में।

टोक्सोप्लासमोसिस

टोक्सोप्लासमोसिस एक परजीवी से होने वाला इनफेक्शन है। यह दुर्लभ है, मगर अजन्मे शिशु को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है और दृष्टि से जुड़ी व तंत्रिका संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। आप निम्न उपाय आजमाकर टोक्सोप्लासमोसिस होने का खतरा कम कर सकती हैं:

मांस और रेडिमेड भोजनों को अच्छी तरह पकाएं और कोल्ड क्योर्ड मांस जैसे कि सलामी आदि का सेवन न करें।
फलों और सब्जियों को अच्छे से धोएं ताकि मिट्टी या गंदगी हट जाए।
बिल्ली का मल या बाग-बगीचे की मिट्टी छूनें से पहले दस्ताने पहने या फिर किसी और से यह काम करने को कहें।

साल्मोनेला
साल्मोनेला बैक्टीरिया की वजह से भोजन विषाक्तता हो सकती है। इससे आपके शिशु को तो शायद नुकसान न पहुंचे मगर आपको बहुत ज्यादा उल्टी और दस्त (डायरिया), पेट दर्द, सिरदर्द और तेज बुखार हो सकता है। आपको निम्नांकित खाद्य पदार्थों के सेवन से यह इनफेक्शन हो सकता है:

कच्चे या हल्के पके अंडे या कच्चे अंडो से बने खाद्य पदार्थ जैसे मैयोनीज़
कच्च या अधपका मांस
कच्ची सीपदार मछली


हमेशा अंडों को सफेदी और जर्दी ठोस होने तक पकाएं। ग्रिल किए, तंदूरी या बार्बेक्यू किए मांस के सेवन में सावधानी बरतें। ये बाहर से चाहे अच्छी तरह पके ​हुए लग सकते हैं, मगर हो सकता है अंदर से पूरी तरह पके हुए न हों। मांस का सबसे मोटा हिस्सा चाकू से काटकर देखें। इसमें गुलाबी अंश नहीं होना चाहिए और साफ रस निकलना चाहिए।

कच्चे मांस का काम करने के बाद बर्तन, चॉपिंग बोर्ड और अपने हाथों को अच्छी तरह धोएं। कच्चे भोजनों को रेडी-टू-ईट भोजनों से अलग रखें।

खाना छूने से पहले अपने हाथ धोएं, विशेषतौर पर यदि आपने अभी शौचालय इस्तेमाल किया है, बच्चे की नैपी बदली है या फिर पालतू या किसी अन्य जानवर को छुआ है।

गर्भावस्था में भोजन स्वच्छता और बाहर खाना खाते समय की सावधानियों के बारे में और अधिक पढ़ें ।
4. आयरन का स्तर ऊंचा रखें
भारतीय महिलाओं में आयरन की कमी वाला एनीमिया दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। इसका मतलब यह है कि हमारे देश में बहुत सी महिलाओं में गर्भवती होने से पहले से ही आयरन की कमी होती है। आपको हीमोग्लोबिन बनाने के लिए आयरन की जरुरत होती है। हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो शरीर के विभिन्न अंगों तथा ऊतकों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है।

डॉक्टर द्वारा बताए गए अनुपूरकों (सप्लीमेंट्स) के अलावा पर्याप्त मात्रा में आयरन से भरपूर भोजन खाएं, ताकि आपका आयरन स्तर ऊंचा रहे। शाकाहारी आहार में आमतौर पर आयरन की मात्रा कम होती है। इसलिए अगर आप शाकाहारी हैं, तो आपको अपने आयरन के सेवन पर ध्यान देना बहुत जरुरी है।

अपने आयरन के स्तर को बढ़ाने के लिए इन आसान तरीकों को आजमाएं। आयरन का स्तर ऊंचा रखने में मददगार हमारी इस गाइड का प्रिंट भी ले सकती हैं।
5. प्रसवपूर्व सप्लीमेंट्स लें
प्रेगनेंसी के पहले तीन महीनों में आपको फॉलिक एसिड अनुपूरक लेना होगा। फॉलिक एसिड लेने से शिशु में न्यूरल ट्यूब दोष जैसे कि स्पाइना बिफिडा विकसित होने का खतरा कम होता है।

दूसरी तिमाही की शुरुआत से आपको आयरन अनुपूरक और विटामिन डी से फोर्टिफाइड कैल्शियम अनुपूरक रोजाना लेना होगा। शिशु के अस्थि-पंजर के विकास और भविष्य में स्वस्थ हड्डियों के लिए विटामिन डी लेना बहुत जरुरी है।

आपको आयरन, कैल्शियम और विटामिन डी अनुपूरक गर्भावस्था के अंत तक और स्तनपान के दौरान लेने होंगे। इनकी खुराक आपके स्वास्थ्य और आहार पर निर्भर करेगी, जैसे कि आप शाकाहारी है, वीगन हैं या मांसाहारी हैं।

मछली का तेल (फिश ऑयल) का शिशु के जन्म वजन पर और गर्भावस्था के अंत में शिशु के मस्तिष्क और नसों के विकास में सकारात्मक असर देखा गया है।

कोशिश करें कि तैलीय मछलियों जैसे कि भिंग, बांगड़ा, रावस और पेड़वे आदि का सेवन सप्ताह में दो बार करें।

ओमेगा-3 फैटी एसिड के शाकाहारी स्त्रोत भी हैं जैसे कि सोयाबीन, अखरोट, अल्सी, कद्दू के बीज और अंकुरित दाल-दलहन।

यदि आपको लगे कि आपको अपने आहार से पर्याप्त मात्रा में ओमेगा-3 नहीं मिल रहा है, तो डॉक्टर से इसके सप्लीमेंट के बारे में बात करें।

ऐसा सप्लीमेंट चुने जिसपर फिश लीवर ऑयल की बजाय ओमेगा-3 ऑयल लिखा हो। ऐसा इसलिए क्योंकि फिश लीवर ऑयल जैसे कि कॉड लीवर ऑयल आदि में रेटिनॉल हो सकता है। यह विटामिन ए का ही एक प्रकार है, जो आपके गर्भस्थ शिशु के लिए नुकसानदेह हो सकता है। बाजार में शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के विकल्प उपलब्ध हैं।

याद रखें कि गर्भावस्था में लिए जाने वाले विटामिन अनुपूरक संतुलि​त आहार का विकल्प नहीं हैं। मगर यदि आपको लगे कि आप सही ढंग से खा-पी नहीं रही हैं या फिर मिचली की वजह से ज्यादा नहीं खा पा रही हैं, तो ये आपकी मदद कर सकते हैं।

किसी भी तरह के सप्लीमेंट, हर्बल उपचार या बिना डॉक्टरी पर्ची के दवा लेने से पहले हमेशा डॉक्टर से बात करें। इनमें कुछ ऐसी सामग्रियां हो सकती हैं, जो गर्भ में पल रहे शिशु को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
6. नियमित व्यायाम करें
नियमित रूप से व्यायाम करने के आपके लिए बहुत से फायदे हैं और आपके जरिये शिशु को भी इसका लाभ मिलेगा। हल्के व्यायाम करने के निम्नांकित फायदे हैं:

गर्भावस्था के दौरान आपकी अवस्था (पोस्चर) में हो रहे बदलाव और जोड़ों पर पड़ रहे जोर का सामना करने में मदद
स्वस्थ वजन बनाए रखने में मदद, हालांकि, गर्भावस्था के दौरान कुछ वजन बढ़ना सामान्य है।
आपको गर्भावस्था में हाई ब्लड प्रेशर जैसी जटिलताओं से बचाने में मदद करता है।
बिना किसी जटिलता के डिलीवरी की संभावना बढ़ाता है।
शिशु के जन्म के बाद आपका पहले वाले आकार में आना आसान बनाता है।
यदि आप उदास महसूस कर रही हों, तो यह आपके मूड को बेहतर करने में मदद कर सकता है।


गर्भावस्था के लिए उचित व्यायामों में शामिल हैं:

टहलना और ब्रिस्क वॉक
प्रसवपूर्व योग
पिलाटे
स्विमिंग या एक्वानेटल क्लास


गर्भावस्था के लिए बेहतरीन व्यायामों पर हमारा यह स्लाइडशो देखें।

याद रखें कि क्षमता से ज्यादा व्यायाम न करें। साथ ही शरीर का तापमान ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए और आपको निर्जलित (डिहाइड्रेशन) भी महसूस नहीं होना चाहिए। ध्यान रहे कि हर व्यक्ति अलग है और हर गर्भावस्था भी अलग होती है। किसी भी तरह की एक्सरसाइज शुरु करने या जारी रखने से पहले डॉक्टर की अनुमति ले लें।

अपने व्यायाम प्रशिक्षक को अपनी गर्भावस्था के बारे में अवश्य बताएं या फिर विशेषतौर पर गर्भवती महिलाओं के लिए चल रहीं एक्सरसाइज क्लास में जाएं।

यदि आप कोई खेल खेलती हैं, तो इसे जारी रखने के बारे में डॉक्टर से पूछें। आप जो स्पोर्ट खेलती हैं या एक्टिविटी करती है, यदि उसमें गिरने या धक्का लगने का खतरा हो या फिर जोड़ो पर जोर पड़ता हो, तो बेहतर है कि इसे गर्भावस्था में बंद कर दें।
7. कीगल्स (पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइज) शुरु करें
आपकी श्रोणि मंजिल (पेल्विक फ्लोर) श्रोणि के तले पर मांसपेशियों के झूले के समान होती हैं। ये मांसपेशियां आपके मूत्राशय, योनि और गुदा को सहारा देती हैं। गर्भावस्था के दौरान पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव के कारण ये सामान्य से कमजोर हो सकती हैं। गर्भावस्था के हॉर्मोन भी आपकी श्रोणि मांसपेशियों को थोड़ा शिथिल कर सकते हैं।

कमजोर श्रोणि मांसपेशियों के कारण मूत्र असंयमितता (स्ट्रेस इन्कन्टिनेन्स) पैदा होने का जोखिम रहता है। जिससे जब आप छींकती, हंसती या एक्सरसाइज करती हैं, तो थोड़ी मात्रा में पेशाब निकल जाता है।

गर्भावस्था के दौरान नियमित श्रोणि मांसपेशीय व्यायाम या कीगल्स करने से मांसपेशियों को मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है। दिन में तीन बार आठ-आठ बार श्रोणि मंजिल की मांसपेशियों को भींचने से आपको इसका फायदा मिलेगा।
8. शराब का सेवन सीमित मात्रा में करें
आप कोई भी शराब पीएं, वह तुरंत आपके शिशु तक रक्तप्रवाह और अपरा के जरिए पहुंचती है।

यह जानने का कोई सटीक तरीका नहीं है कि गर्भावस्था में कितनी मात्रा में शराब का सेवन सुरक्षित है। इसलिए बहुत से विशेषज्ञ गर्भावस्था के दौरान शराब का सेवन कम या पूरी तरह बंद करने की सलाह देते हैं।

पहली तिमाही और तीसरी तिमाही में शराब न पीना विशेषतौर पर जरुरी है।

पहली तिमाही में शराब पीने से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है, वहीं तीसरी तिमाही में यह शिशु के मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है।

इसलिए सलाह यह दी जाती है कि आप पहली तिमाही में शराब का सेवन पूरी तरह बंद कर दें। यदि आप इसके बाद शराब पीना चाहें, तो एक या दो यूनिट से ज्यादा न पीएं वह भी हफ्ते में केवल एक या दो बार।

गर्भावस्था के दौरान बहुत ज्यादा शराब पीना आपके शिशु के लिए खतरनाक हो सकता है।

नियमित तौर पर बहुत ज्यादा शराब पीने वाली गर्भवती महिलाओं में फीटल एल्कोहॉल स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (एफएएसडी) से ग्रसित बच्चे को जन्म देने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे शिशुओं में पढ़ना-लिखना सीखने की अक्षमता से लेकर गंभीर जन्म दोष तक हो सकते हैं।
9. कैफीन का सेवन कम करें
अत्याधिक कैफीन के सेवन से गर्भपात का खतरा बढ़ सकता है। कैफीन कॉफी, चाय, कोला, चॉकलेट और कुछ एनर्जी पेयों में पाई जाती है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अत्याधिक कैफीन के सेवन से कम जन्म ​वजन शिशु का जोखिम बढ़ सकता है, हालांकि, इस पर अभी और अधिक शोध की जरुरत है।

वर्तमान निर्देशों के अनुसार एक दिन में 200 मि.ग्रा. कैफीन से आपके गर्भस्थ शिशु को नुकसान नहीं पहुंचेगा। यह मात्रा दो बड़े कप इंस्टेंट कॉफी के बराबर है।

जैसा कि शराब के लिए कहा जाता है, वैसे ही आप चाहे तो कैफीन का सेवन पूरी तरह बंद कर सकती हैं। विशेषकर की पहली तिमाही में। कैफीन मुक्त चाय व कॉफी सुरक्षित विकल्प हैं। या​ ​फिर आप कैफीन की बजाय इन सेहतमंद और पौष्टिक पेयों को आजमा सकती हैं।
10. धूम्रपान नहीं करें
गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करना आपके और आपके शिशु के लिए गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकता है। धूम्रपान से इन जोखिमों का खतरा बढ़ जाता है:

समय से पहले जन्म
जन्म के समय कम वजन (लो बर्थ वेट)
मृत शिशु का जन्म (स्टिलबर्थ)
कॉट डेथ (एसआईडीएस)


धूम्रपान से निम्नलिखित गर्भावस्था जटिलताएं होने की संभावना अधिक होती है:

गर्भपात
अस्थानिक गर्भावस्था (एक्टोपिक)
अपरा का खंडन, जहां अपरा शिशु के जन्म से पहले ही गर्भाशय की दीवार से टूट कर अलग हो जाती है।

अगर आप धूम्रपान करती हैं, तो बेहतर है कि अपनी और शिशु की सेहत के लिए इसे बंद कर दें। जितना जल्दी आप धूम्रपान छोड़े, उतना जल्दी अच्छा होगा।

अपने पति और परिवार के सदस्यों को धूम्रपान छोड़ने के लिए प्रोत्साहित करें या कम से कम घर के अंदर धूम्रपान करने से बचने के लिए कहें।

यदि आपको धूम्रपान छोड़ने में मुश्किल हो रही है, तो आप अपनी डॉक्टर से भी मदद ले सकती हैं। वे शायद आपको इसके कुछ मददगार विकल्प बता सकें।
11. आराम जरूर करें
गर्भावस्था के शुरुआती म​हीनों में आप जो थकान महसूस करती हैं, वह आपके शरीर में संचारित हो रहे गर्भावस्था हॉर्मोनों के उच्च स्तर की वजह से होता है।

बाद में यह थकान रात में बार-बार पेशाब के लिए उठने या फिर बढ़े पेट की वजह से आराम से न सो पाने के कारण हो सकता है।

करवट लेकर सोने की आदत डालें। तीसरी तिमाही में करवट लेकर सोने से शिशु तक रक्त का प्रवाह बेहतर रहता है। करवट लेकर सोने से मृत शिशु के जन्म का खतरा पीठ के बल सोने की तुलना में कम होता है।

यदि रात में आपकी नींद में खलल पड़ता है, तो दिन में झपकी ले लें या फिर रात में जल्दी सो जाएं। यदि यह कर पाना भी संभव न हो तो कम से कम आधे घंटे या अधिक के लिए अपने पांवों को आराम देते हुए थोड़ा विश्राम करें।

यदि पीठ दर्द की वजह से आप सो नहीं पा रही हैं, तो करवट लेकर घुटने मोड़कर सोने से मदद मिल सकती है। वेज आकार के तकिये को अपने कूल्हों के नीचे लगाए, इससे पीठ पर जोर कम पड़ेगा।

दोपहर में एक झपकी आपके और आपके शिशु दोनों के लिए लाभकारी है। कामकाज में किसी और की मदद लें। स्वयं को पर्याप्त आराम मिले यह सुनिश्चित करने के लिए अपने काम के घंटे कम कर सकती हैं और जहां तक संभव हो सामाजिक कार्यक्रमों या पार्टी में जाना कम कर सकती हैं। अच्छी नींद पाने के ये उपाय आप आजमा सकती हैं।

एक्सरसाइज से भी आपको पीठ दर्द से कुछ राहत मिल सकती है। य​ह नींद से जुड़ी समस्याओं में भी मदद कर सकता है। बस आप सोने के समय के आसपास व्यायाम न करें।

चिंतामुक्त होकर सोने या रात में आंख खुलने के बाद फिर से सोने के लिए आप ये रिलैक्सेशन तकनीक आजमा सकती हैं:

प्रसवपूर्व योग
​स्ट्रेचिंग
गहन श्वसन क्रिया और प्राणायाम
मानसिक चित्रण, गहन रिलैक्सेशन (योग निद्रा)
मालिश

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