Login
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi adipiscing gravdio, sit amet suscipit risus ultrices eu. Fusce viverra neque at purus laoreet consequa. Vivamus vulputate posuere nisl quis consequat.
Create an accountLost your password? Please enter your username and email address. You will receive a link to create a new password via email.
प्रेग्नेंसी के दौरान क्यों होती है ब्लीडिंग? एक्सपर्ट से जानें कारण और बचाव के उपाय
Bleeding during Pregnancy: कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की समस्या नजर आती है, जिसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. यदि आपको भी ब्लड स्पॉट या ब्लीडिंग (Bleeding) हो, तो इसे डॉक्टर से तुरंत बताएं. कई बार गर्भपात (Miscarriage) होने पर भी यह समस्या हो सकती है. प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने के कारण और बचाव के क्या उपाय हो सकते हैं, जानें यहां.
Bleeding during Pregnancy: गर्भावस्था (Pregnancy) के पूरे नौ महीने बेहद नाजुक होते हैं. इसमें हर गर्भवती महिला को अपना एक-एक कदम बहुत सावधानी पूर्वक बढ़ाना होता है. अपने खानपान, घर-ऑफिस के काम, जीवनशैली को फॉलो करने के तरीके में बहुत सतर्कता बरतने की जरूरत होती है. ऐसा नहीं करने पर महिला के साथ गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है. कई बार कुछ महिलाएं प्रेग्नेंसी की पहली तिमाही में उल्टी, मतली, सिरदर्द, थकान, चक्कर आना, चिड़चिड़ापन, पेट, कमर में दर्द आदि समस्याओं से परेशान रहती हैं. लेकिन, कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की समस्या नजर आती है. ब्लीडिंग आने की समस्या को हल्के में नहीं लेना चाहिए. यदि आपको भी ब्लड स्पॉट या ब्लीडिंग (Bleeding) नजर आए, तो इसे डॉक्टर से तुरंत बताएं. कई बार गर्भपात (Miscarriage) होने पर भी यह समस्या हो सकती है. प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने के कारण और बचाव के क्या उपाय हो सकते हैं, बता रही हैं क्लाउडनाइन हॉस्पिटल (गुरुग्राम) की सीनियर कंसलटेंट, गाइनोकोलॉजी डॉ. रितु सेठी.
विज्ञापन
प्रेग्नेंसी में क्यों होती है ब्लीडिंग
प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की संभावना कभी भी हो सकती है. ब्लीडिंग के चांसेज और कारण प्रेग्नेंसी की तिमाही में अलग-अलग होते हैं. किसी को पहले तीन महीने में ब्लीडिंग होती है, तो उसका मतलब है कि इंटरनल कोई ब्लड क्लॉटिंग हो रही है, प्रेग्नेंसी कमजोर हो या फिर नाल अच्छी तरह से बच्चेदानी के साथ ना जुड़ी या चिपकी हो, जिसके कारण कोई जमाव होने के कारण शुरुआत में ब्लीडिंग हो सकती है. इसे थ्रेटेंड अबॉर्शन (threatened abortion) कहा जाता है. फिर मिड ट्राइमेस्टर (4-6 महीना) में भी ब्लीडिंग होने के अलग कारण हो सकते हैं. पहली तिमाही में जो क्लॉटिंग हुई, वो सही नहीं हुई या बढ़ गई है, तो इससे दूसरी तिमाही में भी ब्लीडिंग हो सकती है. यदि किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, ट्विन प्रेग्नेंसी है, तो ऐसे मामलों में भी ब्लीडिंग किसी भी दौरान हो सकती है. ऐसे में प्रेग्नेंट महिलाओं का अपना खास ध्यान रखना चाहिए.
यदि 6-7 महीने में ब्लीडिंग हो रही है, तो हो सकता है प्लेसेंटा या नाल बहुत नीचे (Low line) हो. ऐसे मामलों में मरीज की जान भी जा सकती है. प्लेसेंटा लो है, तो काफी सर्तक रहना होगा. डॉक्टर के बताए दिशानिर्देशों का पालन करना होगा. प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीने में यदि नाल सेपरेट हो जाए, तो भी रक्तस्राव हो सकता है. इसे अब्रप्शियो प्लेसेंटा (abruptio placenta) कहा जाता है. यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है, इससे शिशु की जान भी जा सकती है. कुछ मरीजों में हल्की-फुल्की ब्लीडिंग, डिस्चार्ज होना नॉर्मल है, लेकिन डॉक्टर से एक बार कंसल्ट जरूर कर लें, ताकि आगे कोई खतरा ना बढ़ जाए.
प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग की समस्या से कैसे राहत पाएं
यदि किसी गर्भवती महिला के अंदर हार्मोंस की कमी है या हार्मोंस कमजोर हैं, तो हार्मोन सप्लीमेंट इंजेक्शन के जरिए देकर ब्लीडिंग को रोका जाता है. ब्लीडिंग किसी भी समय आपको अधिक हो, तो अलर्ट रहें, क्योंकि यह मां-बच्चे दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है.
अगर नाल नीचे है, तो तुरंत ऑपरेशन के जरिए डिलीवरी की जाती है. अगर नाल बच्चेदानी से अलग हो गई है, तो भी यह मां तथा बच्चे के लिए जानलेवा हो सकता है. ऐसे मामलों में भी डिलीवरी करनी पड़ सकती है.
प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को अपना ब्लड प्रेशर चेक कराते रहना चाहिए, ताकि यह पता चल सके कि इंटरनल ब्लीडिंग हो रही है या नहीं. अगर किसी मरीज को किसी तरह के इंजेक्शन या ब्लड थिनर्स दिया जा रहा होता है, तो उन्हें ब्लीडिंग के प्रति बहुत सचेत रहना चाहिए और अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए.
--------------------------- | --------------------------- |