गर्भाशय प्रत्यारोपण में कितना खर्च आता है?pregnancytips.in

Posted on Fri 27th Jul 2018 : 15:00

खुशखबरी:यहां हुआ था पहला गर्भाशय ट्रांसप्लांट,आज भारत का इम्तिहान
आज स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव होने जा रहा है। पुणे में भारत का पहला गर्भाशय का ट्रांसप्लांट होने जा रहा है। पुणे के एक अस्पताल में एक मां का यूट्रस उसकी ही 21 साल की बेटी को
आज स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बड़ा बदलाव होने जा रहा है। पुणे में भारत का पहला गर्भाशय का ट्रांसप्लांट होने जा रहा है। पुणे के एक अस्पताल में एक मां का यूट्रस उसकी ही 21 साल की बेटी को ट्रांसफर किया जा रहा है ।दरअसल, 21 साल की ये महिला मां नहीं बन सकती है।

पुणे के गेलेक्सी केयर लेप्रोस्कोपी इंस्टीट्यूट में यूट्रस ट्रांसप्लांट का सबसे बडा़ ऑपरेशन होने जा रहा है।
इंस्टीट्यूट के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर सैलेश पुनतंबेकर ने कहा, हम पहले डोनर से उसका यूट्रस लेंगे और फिर उसे दूसरे मरीज को ट्रांसफर करेंगे। इस पूरे ऑपरेशन में 8 घंटे लगेंगे।

इस पूरी प्रक्रिया के पीछे 8 लोगों की टीम काम कर रही है। लेप्रोस्कॉपिक टेक्निक की मदद से ये सर्जरी की जाएगी। इस टेक्निक की वजह से इस सर्जरी में वक्त कम लग रहा है। आज के सफल ट्रांसप्लांट के बाद अस्पताल कल 24 साल की बरोदा की एक महिला का ट्रांसप्लांट करेंगे। वो भी अपने मां का ही गर्भायश ले रही है। पिछले कुछ महीनों से अस्पताल इस प्रक्रिया पर काम कर रहा था, आखिरकार इसे लागू करने का वक्त आ गया है।

स्वीडन में पहली बार हुआ था ट्रांसप्लांट

पहले दो गर्भाशय ट्रांसप्लांट मुफ्त में होंगे, लेकिन बाद में इसके लिए शुल्क लिया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया में 7 से आठ लाख रुपए लगते हैं। पुनतंबेकर कहते हैं कि इससे बच्चे को कोई नुकसान नहीं होता है। उन्होंने किडनी ट्रांसप्लांट करने वाले लोगों की डिलीवरी के उदाहरण देते हुए कहा कि उन्हें किसी तरह की कोई समस्या नहीं आती है। जबकि उनका इम्यून सिस्टम बहुत वीक है। उन्होंने कहा कि ये सर्जरी अगर सफल हो जाती है तो आईवीएफ के जरिए वे बच्चे पैदा कर सकती हैं। अगर यूट्रस लेने वाली मरीज बच्चा पैदा करने की स्थिति में होती है तो उसकी डिलिवरी नॉर्मल नहीं बल्कि सिजेरियन होगी।

महाराष्ट्र सरकार की मंजूरी के बाद ही इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया है। इस ट्रांसप्लांट के एक महीने के बाद सोनोग्राफी कराकार दोनों की स्थिति का जायजा लिया जाता है।

आपको बता दें कि बाकी शहरों के अस्पतालों में भी इसे प्रयोग करने पर विचार हो रहा है। हालांकि स्वीडन में ही इसका प्रयोग हो गया था।

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