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क्या होता है, जब शरीर से निकल जाता है यूट्रस
महाराष्ट्र का गुमनामी में खोया एक जिला बीड इन दिनों सुर्खियों में है. यहां पर 4 हजार से भी ज्यादा महिलाएं बच्चेदानी (यूट्रस) निकलवा चुकी हैं, वो भी 25 से 30 साल की उम्र में. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार जहां पूरे देश में यूट्रस निकालने की दर 3 प्रतिशत है, वहीं अकेले बीड में ये 36 प्रतिशत है. इसके बाद से पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है. स्वास्थ्य मंत्रालय निर्देश जारी कर रहा है ताकि गैरजरूरी होने पर आगे इस तरह के मामले न हों. जानिए, यूट्रस रिमूवल का शरीर पर क्या असर होता है.यूटरस रिमूवल को मेडिकल भाषा में हिस्टरेक्टॉमी (hysterectomy) कहते हैं.
मेजर सर्जरी के तहत आने वाली ये सर्जरी ये कुछ खास हालातों में निकाली जाती है. विशेषज्ञ के पास जाने पर कई जांचों के बाद ये पक्का होता है कि यूट्रस निकाला जाना है या फिर दवाओं के जरिए ही हालात पर काबू पाया जा सकता है. कई बार गांठें तेजी से फैलती हैं और कैंसर की वजह भी बन सकती हैं, ऐसे में यूट्रस निकलना एकमात्र विकल्प रहता है.
यूट्रस वो संरचना है, जिसमें प्रेगनेंसी के दौरान बच्चा पलता-बढ़ता है. यह ब्लेडर और पेल्विक एरिया की हड्डियों को भी सपोर्ट करता है. हालांकि कुछ वजहों से इसे हटाना यानी वजाइनल हिस्टरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है.
क्या है वो वजहें
फाइब्रॉइड- इसमें गर्भाशय के आसपास गांठें हो जाती है. इनके कारण पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा रक्तस्त्राव और दर्द होता है. इससे ब्लेडर पर भी दबाव रहता है और बार-बार टॉयलेट जाना होता है. फाइब्रॉइड आकार में बड़े हों तो सर्जरी जरूरी हो जाती है.
एंडोमेट्रिओसिस- यूट्रस के आसपास की लाइनिंग ज्यादा फैल जाने पर ये ओवरीज, फेलोपियन ट्यूब और दूसरे अंगों पर असर डालने लगती है. इस कंडीशन को एंडोमेट्रिओसिस कहते हैं. इस तकलीफ से जूझ रहे मरीज की रोबोटिक हिस्टरेक्टॉमी की जाती है और यूट्रस निकाला जाता है.
कैंसर- यूट्रस, सर्विक्स, ओवरीज का कैंसर होने या ऐसी गांठें होने पर जो आगे चलकर कैंसर में बदल सकती हैं, हिस्टरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है.
यूटेराइन ब्लीडिंग- पीरियड्स के दौरान कई महिलाओं को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है जो दवाओं से किसी भी तरह कंट्रोल नहीं होती. ऐसे में एनीमिया और दूसरी तकलीफों का खतरा बढ़ जाता है. इस स्थिति में भी हिस्टरेक्टॉमी एक ऑप्शन है. हालांकि ये सबसे आखिरी ऑप्शन है.
हिस्टरेक्टॉमी के बाद प्रेगनेंसी मुमकिन नहीं
हालांकि इसका मतलब ये कतई नहीं कि मां बन चुकी महिलाएं अगर किसी तकलीफ में हैं तो उन्हें यूट्रस निकलवा लेना चाहिए. लगभग सभी डॉक्टर इसे आखिरी विकल्प मानते हैं और सर्जरी की सलाह तभी देते हैं, जब दवाओं से हालात न संभले. बीते साल अमेरिकन एक्ट्रेस लीना डनहम ने यूट्रस रिमूवल सर्जरी करवाई और सोशल मीडिया पर इसपर लंबी पोस्ट भी लिखी. वे एंडोमेट्रिओसिस से पीड़ित थीं. हिस्टरेक्टॉमी से पहले उनकी कई-कई बार काउंसलिंग हुई और उनकी हां के बाद ही प्रक्रिया की गई. हालांकि हमारे देश में खासकर ग्रामीण हिस्सों में हिस्टरेक्टॉमी जैसी मेजर सर्जरी के लिए जांचें और काउंसलिंग जैसी कोई व्यवस्था नहीं.
इस तरह से होती है हिस्टरेक्टॉमी
यूट्रस हटाने की प्रक्रिया मेजर सर्जरी के तहत आती है. ये कई तरीकों से परफॉर्म की जाती है. इनमें जनरल या लोकल एनस्थीशिया की जरूरत होती है. जनरल एनस्थीशिया यानी बेहोश करने का वो मेडिकल तरीका, जिसमें पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज बेहोश रहता है. वहीं लोकल एनस्थीशिया में केवल उसी हिस्से और उसके नीचे का कुछ एरिया सुन्न किया जाता है, जहां सर्जिकल प्रक्रिया होनी है. हिस्टरेक्टॉमी एबडॉमिनल, वजाइनल और लेप्रोस्कोपिक 3 तरह की होती है. पहली दो प्रक्रियाओं में क्रमशः पेट और वजाइन में चीरा लगता है, वहीं तीसरी सर्जरी में लेप्रोस्कोप यानी कैमरे की मदद से सर्जरी होती है.
यूटरस रिमूवल के साइड इफेक्ट
शॉर्ट टर्म इफेक्ट में सर्जरी वाले हिस्से में दर्द, सूजन, जलन के अलावा पैर सुन्न होना, एनेस्थिशिया की वजह से सांस लेने में तकलीफ होती है. हिस्टरेक्टॉमी करा चुकी महिला का मेनोपॉज कम उम्र में ही आ जाता है यानी पीरियड बंद हो जाते हैं. यानी प्रि-मेनोपॉजल लक्षण भी पहले ही झेलने होते हैं. जैसे हॉट फ्लैशेज यानी चेहरा और तलवे तपना और लाल हो जाना, पसीना ज्यादा आना, नींद न आना और वजाइना में सूखापन.
इनके अलावा कई लॉन्गटर्म असर भी हैं. इसमें मनोवैज्ञानिक बदलाव भी हैं. जैसे हिस्टरेक्टॉमी के बाद औरत मां नहीं बन सकती. पीरियड नहीं आता. ये रिलीफ तो है लेकिन इसमें सेंस ऑफ लॉस भी है जो कई महिलाओं को इतना परेशान करता है कि वे अवसाद में चली जाती हैं. यूट्रस हटाने के बाद organ prolapse भी हो सकता है.
स्टडी की जरूरत
साल 2014 में अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है कि हिस्टरेक्टॉमी के बाद लगभग 12 प्रतिशत महिलाओं को पेल्विक ऑर्गन सर्जरी की भी जरूरत पड़ी. भारत में इस तरह का कोई शोध सामने नहीं आया है लेकिन नतीजे इससे मिलते-जुलते ही होंगे. सर्जरी के बाद शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का प्रतिशत एकदम से गिर जाता है, इसकी वजह से मूड में बदलाव भी आम है. कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी की जरूरत पड़ जाती है. हॉर्मोन्स का स्तर कम होने के कारण दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. पीरियड्स और प्रेगनेंसी की वजह से ज्यादातर महिलाओं के शरीर में कैल्शियम औसत से भी कम होता है, ऐसे में यूट्रस हटाए जाने पर एस्ट्रोजन की कमी से हड्डियां और कमजोर हो जाती हैं.
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