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शिशु जन्म के बाद हर महीने कुछ न कुछ नया सीखता हैं और उनका न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक तरीके से भी विकास होता है। आपको जानकारी देंगे 4 महीने के शिशु के विकास के माइल्सटोन के बारे में :-
मानसिक विकास
1. चीजों को समझना – शिशु तीसरे महीने से ही थोड़ा-बहुत चीजों को समझने लगते हैं। जब वो 4 महीने के होते हैं, तो अपने माता-पिता को और अपने करीबी लोगों को, जो उनके साथ हमेशा रहते हैं, उन्हें पहचानने लगते हैं। कई बार तो उन्हें दूर से ही देखकर पहचान जाते हैं। साथ ही अपने माता-पिता की आवाज और स्पर्श को भी अच्छे से समझने लगते हैं।
2. चीजों को याद रखना – 4 महीने के शिशु की याददाश्त भी धीरे-धीरे मजबूत होने लगती है। अगर उनके सामने कोई चीज रखी जाए और फिर उसे हटा दी जाए, तो वो उसे ढूंढने लगते हैं। इसके अलावा, उन्हें आकर्षित करने वाली कुछ खास चीजों को याद रखते हैं और उनके नजर आते ही प्रतिक्रिया देते हैं ।
3. प्यार जताना – 4 महीने के शिशु प्यार जताना भी सीखने लगते हैं। अगर उनसे कोई प्यार से बात करे, उन्हें दुलार करे या पुचकारे, तो वो भी हंसकर या सामने वाले के गाल पर अपने मुंह को सटाकर प्रतिक्रिया देते हैं। अगर कोई उनके प्रति स्नेह व्यक्त करता है, तो वो भी बदले में खिलखिलाकर अपना प्यार जताते हैं।
4. खुशी और दुख को समझाना – जहां वो हंसकर या खिलखिलाकर अपनी खुशी व्यक्त करते हैं, तो वहीं रो कर या चिड़चिड़े होकर अपनी तकलीफ या दुख को व्यक्त करते हैं। कई बार वो माता-पिता का ध्यान खींचने के लिए भी बेवजह रोने और चिड़चिड़ाने लगते हैं।
5. ध्यान देना – अगर उनके सामने कोई चलती हुई चीज या खिलौने रखे जाएं, तो उसे दूर तक देखते हैं। जिधर-जिधर खिलौना जाएगा, वहां-वहां देखेंगे। यहां तक कि वो खिलौने और अन्य चीजों तक पहुंचने की भी कोशिश करते हैं।
शारीरिक विकास
1. सिर को स्थिर रखना – जन्म के बाद शिशु का सिर और गर्दन बहुत नाजुक होते हैं और उसे सहारे की जरूरत होती है। फिर महीने-दर-महीने शिशु का सिर मजबूत होने लगता है। चौथे महीने में शिशु बिना सहारे के अपने सिर को सीधा रखना सीखने लगते हैं।
2. सहारे से बैठना – 4 महीने का शिशु बैठना भी सीखने लगते हैं। अगर उन्हें सहारे के साथ बैठाया जाए, तो वो थोड़ी देर तक बैठ भी सकते हैं। हालांकि, ध्यान रहे कि उन्हें ज्यादा देर तक नहीं बैठाया जाए, वरना उनके कमर में दर्द भी हो सकता है।
3. चीजों को पकड़ना – इस महीने में शिशु चीजों को पकड़ना सीखने लगते हैं। साथ ही चीजों को हाथ में लेकर उन्हें फेंकना या झटकना शुरू कर देते हैं।
4. पलटी मारना – अगर शिशु को पेट के बल सुलाया या लेटाया जाए, तो वो पलटना सीख जाते हैं। साथ ही पेट के बल लेटने पर अपना सिर बिना किसी सहारे के सीधा उठा सकते हैं। इसलिए, अगर आप शिशु को बेड पर या किसी ऊंची जगह पर सुलाते हैं या खेलने के लिए छोड़ते हैं, तो उन पर ध्यान रखें। साथ ही उनके आसपास तकिया रख दें, ताकि वो गिरे नहीं। जैसे-जैसे शिशु की उम्र बढ़ती है, वो चंचल होने लगते हैं (2)।
5. पैरों को धकेलना – 4 महीने के शिशु लेटे-लेटे अपने पैरों से खूब खेलते हैं। अगर उनके पैर किसी मजबूत चीज पर लगते हैं, तो वो अपने पैरों को उस पर सटाकर अपने शरीर को पीछे की तरफ धकेल सकते हैं। कई बार अपने पैरों को साइकिल चलाने की मुद्रा में भी चलाते हैं (2)।
6. नींद में सुधार – इस महीने में शिशु के नींद में भी काफी सुधार आ जाता है। 4 महीने के शिशु 24 घंटे में 14 से 16 घंटे सोते हैं। रात में 9 से 10 घंटे और दिनभर में दो बार थोड़ी-थोड़ी देर की झपकी ले लेते हैं।
7. चीजों को मुंह में डालना – 4 महीने का शिशु न सिर्फ उंगली मुंह में डालना सीखता है, बल्कि अन्य सामने पड़ी चीजों को भी मुंह में डालने लगता है। इसलिए, इस दौरान शिशु पर खास ध्यान रखना जरूरी है। ऐसी स्थिति में शिशु को संक्रमण का खतरा लगा रहता है।
8. आवाजों को सुनना – शिशु न सिर्फ आवाजों को सुनते हैं, बल्कि उनकी नकल करने कोशिश भी करते हैं। इतना ही नहीं जब लोग आपस में बात करते हैं, तो वो भी उस वार्तालाप का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं। इस दौरान, वो तरह-तरह की आवाजें निकालते हैं और अपने तरीके से बड़बड़ाने लगते हैं। साथ ही अगर उन्हें कुछ पसंद हो, तो इशारों और अपने ही तरीके से उसकी मांग भी करते हैं।
सामाजिक और भावनात्मक विकास
1. हंसना-मुस्कुराना – 4 महीने के शिशु अपने माता-पिता और जो उनके साथ ज्यादा देर तक रहते हैं, उन्हें पहचानने लगते हैं। वो जब भी उन्हें आसपास देखते हैं, तो उन्हें देखकर हंसने, मुस्कुराने और खिलखिलाने लगते हैं। उनके पास जाना चाहते हैं और अपना स्नेह व्यक्त करना चाहते हैं।
2. खेलना पसंद करते हैं – हर रोज अगर किसी एक निर्धारित वक्त पर शिशु को खेलने या घुमाने के लिए ले जाया जाए, तो शिशु इस महीने में अपने खेलने का वक्त समझने लगते हैं। ऐसे में अगर शिशु को उस वक्त खेलने के लिए न ले जाया जाए, तो वो रोने और चिड़चिड़ाने लग सकते हैं। शिशु को खेलना पसंद आने लगता है और अगर ऐसे में उनके साथ खेलना बंद कर दिया जाए, तो वो रोने भी लग सकते हैं। यहां तक कि वो आईने में खुद को देखकर खेलते और हंसते हैं।
3. नकल करना – ऊपर हमने बताया कि 4 महीने के शिशु आवाजों की नकल करने की कोशिश करने लगते हैं, लेकिन इतना ही नहीं वो अन्य व्यक्तियों के चेहरे के हाव-भाव की भी नकल करने लगते हैं। बड़े जैसे हंसते हैं या जैसा अन्य शिशुओं के हाव-भाव होते हैं, वो भी वैसे ही करने लगते हैं।
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