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Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:34


hCG Levels and Twins: जानिए hCG लेवल और ट्विंस प्रेग्नेंसी से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी!


प्रेग्नेंसी … हर गर्भवती महिला की अपनी अलग-अलग कहानी होती है। कुछ महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान ज्यादा परेशानी महसूस होती है, तो कुछ महिलाओं को कम। हालांकि इन सभी बातों के बीच एक बात सभी गर्भवती महिलाओं के लिए सामान्य है डायट। क्या प्रेग्नेंसी के दौरान बहुत ज्यादा खाना ट्विंस प्रेग्नेंसी की ओर इशारा करता है? आज इसे समझने के लिए hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins) से जुड़े सवालों का जवाब जानेंगे।


hCG लेवल और ट्विंस से जुड़ी क्या है महत्वपूर्ण जानकारी?
प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल क्या होनी चाहिए?
ट्विंस प्रेग्नेंसी क्या है?
क्या सामान्य से ज्यादा hCG लेवल ट्विंस प्रेग्नेंसी की ओर इशारा करता है?
hCG लेवल बढ़ने के क्या हो सकते हैं कारण?
हाय hCG लेवल के लक्षण क्या हैं?



चलिए अब hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins) से जुड़े इन सवालों का जवाब जानते हैं।



hCG लेवल और ट्विंस से जुड़ी क्या है महत्वपूर्ण जानकारी?


hCG लेवल और ट्विंस के बारे में यहां एक-एक कर समझते हैं।

hCG और hCG लेवल क्या है?


hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins)


hCG जिसे ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रापिन (Human Chorionic Gonadotropin) कहते हैं। यह एक तरह का हॉर्मोन है, जो गर्भधारण के तकरीबन 10 दिनों के बाद यूरिन एवं ब्लड मौजूद होता है। hCG हॉर्मोन की वजह से ही प्रेग्नेंसी किट से घर पर ही चेक करने से गर्भावस्था की जानकारी मिल सकती है। नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार hCG हॉर्मोन (hCG Hormone) महिलाओं के शरीर में तभी विकसित होता है, जब महिला के गर्भ में फीटस का निर्माण होता है और उसके बाद गर्भनाल से ही hCG हॉर्मोन ब्लड एवं यूरिन में फैल जाता है। इसलिए प्रेग्नेंसी की जानकारी के लिए सबसे पहले यूरिन टेस्ट (Urine Test) और ब्लड टेस्ट (Blood Test) की जाती है। हालांकि कभी-कभी मिसकैरिज के बाद भी कुछ दिनों तक महिला के ब्लड एवं यूरिन में hCG हॉर्मोन मौजूद रहता है, जिससे प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट पॉसिटिव हो सकती है। वैसे प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लड टेस्ट (Blood Test) एवं यूरिन टेस्ट (Urine Test) के अलावा अन्य टेस्ट से भी प्रेग्नेंसी की कन्फर्म जानकारी मिल सकती है। अब ऐसे में hCG लेवल (hCG Level) को समझना जरूरी है।




हेल्थ डायरेक्ट (Healthdirect) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल इस प्रकार हो सकते हैं-

प्रेग्नेंसी के सप्ताह (Pregnancy Week) प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल (hCG Level during Pregnancy)
3 सप्ताह 6 – 70 IU/L
4 सप्ताह 10 – 750 IU/L
5 सप्ताह 200 – 7,100 IU/L
6 सप्ताह 160 – 32,000 IU/L
7 सप्ताह 3,700 – 160,000 IU/L
8 सप्ताह 32,000 – 150,000 IU/L
9 सप्ताह 64,000 – 150,000 IU/L
10 सप्ताह 47,000 – 190,000 IU/L
12 सप्ताह 28,000 – 210,000 IU/L
14 सप्ताह 14,000 – 63,000 IU/L
15 सप्ताह 12,000 – 71,000 IU/L
16 सप्ताह 9,000 – 56,000 IU/L
16 से 29 सप्ताह (सेकेंड ट्राइमेस्टर) 1,400 – 53,000 IUL
29 से 41 सप्ताह (थर्ड ट्राइमेस्टर) 940 – 60,000 IU/L



ये हैं नॉर्मल प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल, लेकिन hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins) से जुड़ी जानकारी शेयर करते हैं, लेकिन पहले hCG लेवल और ट्विंस प्रेग्नेंसी से जुड़ी रिसर्च रिपोर्ट्स के बारे में समझ लेते हैं।

hCG लेवल और ट्विंस: ट्विंस प्रेग्नेंसी (Twins Pregnancy) क्या है?


hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins)


ट्विंस प्रेग्नेंसी को अगर सामान्य शब्दों में समझें, तो जब गर्भ में दो शिशु एक साथ विकसित होने लगे तो इसे ट्विंस प्रेग्नेंसी कहते हैं। ट्विंस प्रेग्नेंसी के कई कारण हो सकते हैं जैसे जेनेटिकल, गर्भवती महिला की उम्र 35 वर्ष (Woman’s age) से ज्यादा होना, फर्टिलिटी ट्रीटमेंट (Fertility treatments) करवाना या फिर परिवार में जुड़वां बच्चों (Family history of twins) का जन्म होना। वहीं hCG लेवल से प्रेग्नेंसी की जानकारी मिल सकती है, लेकिन hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins) का आपस में संबंध क्या है, इसे समझने की कोशिश करेंगे।



hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins): क्या सामान्य से ज्यादा hCG लेवल ट्विंस प्रेग्नेंसी की ओर इशारा करता है?


प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल ज्यादा या कम होना कई बातों की ओर इशारा करता है जैसे-


hCG लेवल सामान्य से ज्यादा होने पर मल्टिपल प्रेग्नेंसी (Multiple pregnancies) यानी ट्विंस (Twins) या ट्रिप्लेट्स (Triplets) की संभावना हो सकती है। इसके अलावा यूटरस का एब्नॉर्मल ग्रोथ होना भी इस ओर इशारा करता है।
hCG लेवल सामान्य से कम होने पर मिसकैरिज (Miscarriage) की संभावना हो सकती है।
hCG लेवल अगर अत्यधिक धीरे-धीरे सामान्य लेवल से बढ़े, तो ऐसी स्थिति में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (Ectopic pregnancy) यानी फेक प्रेग्नेंसी (Fake Pregnancy) की संभावना बढ़ सकती है।




hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins): hCG लेवल बढ़ने के क्या हो सकते हैं कारण?


hCG लेवल बढ़ने का कारण प्लासेंटल ट्यूमर (Placental tumor) या मोलर प्रेग्नेंसी (Molar pregnancy) की स्थिति में hCG लेवल बढ़ सकता है। वहीं नैशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (National Center for Biotechnology Information) में पब्लिश्ड रिपोर्ट के अनुसार स्ट्रेस-रिलेटेड हॉर्मोन्स भी hCG लेवल को बढ़ाने (Stress-related hormones affect placental HCG secretion in vitro) में मदद कर सकते हैं। इसलिए गायनोकोलॉजिस्ट एवं रिसर्च रिपोर्ट्स हमेशा गर्भावस्था के दौरान तनाव से दूर रहने की सलाह देते हैं। तनाव (Stress) एक नहीं, बल्कि कई तरह की शारीरिक परेशानी या मानसिक परेशानियों को दावत देने में सक्षम माना जाता है।


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hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins): हाय hCG लेवल के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of High hCG Level)


hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins)


हाय hCG लेवल के लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे:


निप्पल (Nipples) का रंग डार्क होना।
अत्यधिक थकान (Fatigue) महसूस होना।
फूड क्रेविंग (Food cravings) बढ़ना।
बार-बार भूख (Increased hunger) लगना।
बार-बार टॉयलेट (Toilet) जाना।
क्रैम्प (Cramp) महसूस होना।
डायरिया (Diarrhea) की समस्या होना।



ऐसे लक्षण हाय hCG लेवल के लक्षण की ओर इशारा करते हैं। इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान अगर ऐसे लक्षण महसूस हो रहें हैं, तो इसकी जानकारी डॉक्टर को दें।


hCG लेवल कम होना हमेशा चिंता का कारण नहीं होता हैं। hCG लेवल सभी गर्भवती महिलाओं में अलग-अलग भी हो सकते हैं। hCG लेवल की जानकारी के लिए टेस्ट की जाती है, जिससे गर्भ में पल रहे शिशु की जानकारी मिलती है।


नोट: प्रेग्नेंसी के दौरान इम्बैलेंस hCG लेवल होने पर तनाव ना लें, क्योंकि डॉक्टर गर्भवती महिला की हेल्थ कंडिशन एवं प्रेग्नेंसी को ध्यान में रखकर आवश्यक जानकारी दे सकते हैं जिससे लाभ मिल सकता है। इसलिए परेशान ना हों और प्रेग्नेंसी के दौरान अपना पूरा ध्यान रखें।




hCG लेवल और ट्विंस प्रेग्नेंसी से जुड़ी किसी भी जानकारी के लिए आप हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। वहीं अगर प्रेग्नेंसी के दौरान hCG लेवल और ट्विंस (hCG Levels and Twins) की जानकारी मिलती है, तो अपने डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह का ठीक तरह से पालन करें। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1000 बच्चों के जन्म में 9 ट्विंस बच्चे पैदा होते हैं। हालांकि भारत की तुलना में अन्य देशों में ट्विंस बच्चे या मल्टिपल बच्चों का जन्म ज्यादा होता है। इसलिए hCG लेवल और ट्विंस दोनों की जानकारी रखें और समय-समय पर डॉक्टर द्वारा बताये आवश्यक टेस्ट को जरूर करवाएं।






ड्यू डेट कैलक्युलेटर

अपनी नियत तारीख का पता लगाने के लिए इस कैलक्युलेटर का उपयोग करें। यह सिर्फ एक अनुमान है - इसकी गैरेंटी नहीं है! अधिकांश महिलाएं, लेकिन सभी नहीं, इस तिथि सीमा से पहले या बाद में एक सप्ताह के भीतर अपने शिशुओं को डिलीवर करेंगी।



लड़कियों और महिलाओं के शरीर में हॉर्मोनल बदलाव के कारण हर महीने पीरियड होते हैं। पीरियड का मतलब है कि लड़किया या महिलाएं रिप्रोडक्शन कर सकती हैं। ओव्युलेशन के बाद पीरियड शुरू होते हैं। एक बार स्पर्म से फर्टिलाइजेशन हो जाने के बाद प्रेग्नेंसी शुरू हो जाती है। प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding During Pregnancy) के बारे में जानकारी होना जरूरी है। प्रेग्नेंसी के बाद पीरियड्स नहीं होते हैं। करीब 25 परसेंट महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जिन्हें प्रेग्नेंसी के बाद स्पॉटिंग या हल्की ब्लीडिंग हो सकती है। प्रेग्नेंसी के बाद ब्लीडिंग या स्पॉटिंग हमेशा खतरनाक हो, यह जरूरी नहीं है। लेकिन कुछ मामलों में यह खतरनाक भी साबित हो सकती है। इसे मिसकैरेज का संकेत माना जा सकता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding During Pregnancy) के बारे में जानकारी देंगे और साथ ही ये भी बताएंगे कि ये महिलाओं के लिए खतरनाक हो सकती है या फिर नहीं।



प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding During Pregnancy)


प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग


गर्भावस्था में कुछ प्रकार की ब्लीडिंग एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आती हैं जबकि अन्य खतरनाक नहीं होती हैं।प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding During Pregnancy) सिर्फ एक प्रकार का ब्लीडिंग है। प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने पर डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर जांच के बाद ही बता सकते हैं कि ब्लीडिंग खतरनाक है या फिर नहीं। सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding) तब होती है, जब प्लासेंटा अपनी मूल जगह से अलग हो जाता है। इसे सबकॉरिऑनिक हमेरेज के नाम से भी जाना जाता है। इस कारण से कोरियोनिक मेंबरेन (Chorionic membranes) पर असर होता है। कोरियोनिक मेंबरेन अलग होकर प्लासेंटा और यूट्रस के बीच एक सैक या थैले जैसी संरचना का निर्माण करती है। इस कारण से ब्लीडिंग की समस्या पैदा हो जाती है। ब्लीडिंग कम या फिर ज्यादा भी हो सकती है।


अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स की मानें तो फस्ट ट्राइमेस्टर के दौरान लगभग 15 से 25 प्रतिशत महिलाओं में स्पॉटिंग की समस्या हो सकती है। गर्भावस्था की किसी भी स्टेज में स्पॉटिंग हो सकती है, लेकिन यह फस्ट ट्राइमेस्टर (First trimester) में सबसे आम होती है। स्पॉटिंग के कारणों में इम्प्लांटेशन, यूरेराइन एक्सपेंशन, इंटरकोर्स, हॉर्मोनल लेवल का बढ़ जाना, सर्वाइकल पॉलीप्स या सर्वाइकल चेंज या फिर वजाइनल एक्जाम आदि कारणों से प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है। जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग की समस्या किसी को भी हो सकती है, जो कुछ केसेज में सामान्य ही मानी जाती है। फिर भी स्पॉटिंग या फिर ब्लीडिंग की समस्या होने पर डॉक्टर से जांच कराना बहुत जरूरी हो जाता है।



प्रेग्नेंसी में हैवी ब्लीडिंग किन कारणों से जुड़ी हो सकती है?


प्रेग्नेंसी में हैवी ब्लीडिंग एक नहीं बल्कि कई कारणों से जुड़ी हो सकती है। जब यूट्रस के बाहर एग फर्टिलाइज हो जाता है, तो उसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी (ectopic pregnancy) के नाम से जानते हैं। इस कारण से भी हैवी ब्लीडिंग हो सकती है। वहीं मिसकैरेज भी हैवी ब्लीडिंग का मुख्य कारण हो सकता है। कई बार मोलर प्रेग्नेंसी, जो कि एक कंडीशन होती है, वह भी हैवी ब्लीडिंग का कारण बन सकती है। यूरेराइन रप्चर के कारण भी ब्लडिंग की समस्या हो सकती है। समय से पहले लेबर का होना भी कहीं ना कहीं ब्लीडिंग का कारण बन जाता है। यूट्रस से प्लासेंटा का सेपरेशन भी हैवी ब्लीडिंग का कारण बनता है। प्रेग्नेंसी के दौरान हैवी ब्लीडिंग किन कारणों से हो सकती है, आपको इसके बारे में डॉक्टर से जानकारी जरूर लेनी चाहिए।




प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग क्या हो सकती है खतरनाक?


सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding) लम्बे समय के लिए हार्मफुल नहीं होता है। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) के बाद ही बता सकते हैं कि क्या करना चाहिए। जरूरी नहीं सभी सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग से नुकसान पहुंचे, कुछ केसेज में ये खतरनाक भी साबित हो सकती है। अगर समय पर इस समस्या का निदान हो जाए, तो खतरा काफी हद तक कम हो सकता है। समय पर ट्रीटमेंट मां और बच्चे दोनों को खतरे से बचा सकता है।

प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग का उपचार है जरूरी!


अगर डॉक्टर वजायनल ब्लीडिंग को सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding) के तौर पर डायग्नोज करते हैं, तो ऐसे में समय पर ट्रीटमेंट हो जाना बहुत जरूरी होता है। विकल्प के तौर पर प्रोजेस्टेरॉन या डाइड्रोजेस्टेरोन को अपनाया जा सकता है। अगर हीमाटोमस ( hematomas) बड़े हैं, तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है। ऐसे में आपको अधिक रेस्ट करना चाहिए और साथ ही लंबे समय तक खड़े होने से बचना चाहिए। साथ ही ऐसे में सेक्स करने से भी बचना चाहिए। आपको ऐसी सिचुएशन में एक्सरसाइज (Excercise) करने से भी बचना चाहिए। कुछ बातों का ध्यान रख आप इस समस्या से निजात पा सकते हैं और स्वस्थ्य बच्चे को जन्म दे सकते हैं।




अगर आपमें 20 सप्ताह की गर्भवती होने के बाद सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding) होना शुरू होता है, तो ऐसे में डॉक्टर आपको अर्ली लेबर के बारे में जानकारी देना शुरू कर देते हैं, साथ ही उन लक्षणों के बारे में भी बता सकते हैं, तो आपको प्रेग्नेंसी के दौरान महसूस हो सकते हैं। यदि आप Rh-negative हैं और आपका शिशु Rh-पॉजिटिव (Rh-Positive) है,तो आपके बच्चे की सही से विकास की जांच के लिए महीने में एक बार सोनोग्राम कराने की सलाह दी जा सकती है। अगर ब्लीडिंग की समस्या 24 सप्ताह के बाद शुरू होती है, तो प्रीटर्म लेबर ट्रीटमेंट की शुरुआत की जा सकती है। यानी डॉक्टर महिला के लक्षणों के आधार पर ही उसका ट्रीटमेंट करते हैं।


प्रेग्नेंसी में सबकॉरिऑनिक ब्लीडिंग (Subchorionic Bleeding During Pregnancy) ज्यादातर मामलों में होने वाले बच्चे को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती है। छोटे और मध्यम हेमटॉमस अक्सर अपने आप चले जाते हैं। बड़े हेमटॉमस से समस्या होने की संभावना अधिक रहती है। आपको डॉक्टर से प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली ब्लीडिंग के कारणों के बारे में जानकारी लेनी चाहिए। आपकी जरा सी सावधानी प्रेग्नेंसी के दौरान आने वाली समस्याओं को दूर कर सकती है।




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