डिलीवरी के कितने महीने बाद पीरियड शुरू होता है?pregnancytips.in

Posted on Wed 12th Oct 2022 : 09:39

डिलीवरी के बाद पहली बार कैसे आते हैं पीरियड्स

डिलीवरी के बाद पहले पीरियड को लेकर महिलाएं बहुत असमंजस में रहती हैं। वहीं, उनके मन में यह सवाल भी आता है कि डिलीवरी के कितने दिनों बाद पीरियड्स आते हैं।
periods after delievry.
प्रेगनेंसी के नौ महीनों तक माहवारी नहीं आती है और यही वजह है कि अक्‍सर महिलाओं को डिलीवरी के बाद पीरियड्स आने को लेकर मन में कुछ सवाल रहते हैं।

डिलीवरी के बाद पीरियड्स आना अक्‍सर इस बात पर निर्भर करता है कि आप स्‍तनपान करवा रही हैं या नहीं। तो आइए जानते हैं कि प्रसव के बाद महिलाओं का मासिक चक्र कब शुरू होता है और इसमें क्‍या बदलाव आते हैं।


कब आते हैं पीरियड्स
डिलीवरी के लगभग छह से आठ सप्‍ताह के बाद पीरियड्स आते हैं, वो भी अगर आप स्‍तनपान नहीं करवा रही हों तो। स्‍तनपान करवाने की स्थिति में पीरियड आने का समय हर महिला में अलग हो सकता है। वहीं, कुछ महिलाओं को तो तब तक पीरियड्स नहीं आते, जब तक कि वो शिशु को दूध पिलाती हैं।

पीरियड्स प्रॉब्लम और मिसकैरेज की वजह हो सकती है रसौली, ये है आसान इलाज

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रसौली या फाइब्रॉड्स एक तरह की गांठ होती है, जो यूट्रस या बच्चेदानी में फाइब्रस टिश्यूज से बनती है। महिलाओं का यूट्रस तीन भागों में बंटा होता है और यह यूट्रस के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इसका साइज भी अलग-अलग हो सकता है। रसौली स्टोन्स से अलग होती है और यह केवल महिलाओं की सेहत से जुड़ी समस्या है।
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रसौली के कारण महिलाओं को प्रेग्नेंसी में समस्या आती है और पीरियड्स के दौरान हेवी ब्लीडिंग या बहुत अधिक दर्द सहन करना पड़ सकता है। कई बार महिलाओं को बार-बार मिसकैरेज भी झेलना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी इन समस्याओं के प्रति जागरूक रहें। खासतौर पर पीरियड्स के दौरान होनेवाली ब्लीडिंग और अनियमितता को हल्के में ना लें।
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आमतौर पर हॉर्मोनल डिसबैलंस के कारण यूट्रस में रसौली बनती है लेकिन सेहत संबंधी अन्य समस्याएं भी इसकी वजह हो सकती हैं। हॉर्मोन्स बिगड़ने की वजह हर किसी के साथ अलग-अलग हो सकती है। कभी लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण तो कभी किसी दवाई के साइडइफेक्ट के कारण। लेकिन रसौली की समस्या हेरिडिटी की वजह से अधिक देखने को मिलती है।
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-रसौली के कारण पीरियड्स के समय क्लोटिंग बहुत अधिक बढ़ सकती है। यानी ब्लीडिंग के साथ रक्त के थक्के आना।

- पेट के निचले हिस्से में बहुत अधिक दर्द होना और ब्लीडिंग अधिक होना।

-पेट के निचले हिस्से में भारीपन लगना और इंटरकोर्स के वक्त दर्द होना।

- बार-बार यूरिन पास होना और वजाइना से बदबूदार डिस्चार्ज होना।

-हर समय वीकनेस रहना, पैरों में दर्द होना और कब्ज की शिकायत रहना।
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लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर सोनिया चावला का कहना है कि रसौली की समस्या हॉर्मोन्स से संबंधित होती है। रसौली की समस्या 16 से 50 साल की उम्र में देखने को मिलती है। इस कारण महिलाओं को मिसकैरेज या प्रिग्नेंसी ना होने जैसी समस्याएं होती हैं। अगर किसी पेशेंट की उम्र मेनॉपॉज के पास होती है तो हम उसे सर्जरी सजेस्ट नहीं करते। बल्कि दवाइयों से ही उनकी बीमारी को कंट्रोल करते हैं। क्योंकि मेनॉपॉज के बाद फाइब्रॉइड्स के टिश्यूज की ग्रोथ खुद-ब-खुद बंद हो जाती है।
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कुछ साल पहले तक रसौली का एकमात्र इलाज यूट्रस निकालने को माना जाता था। लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। पेशंट की कंडीशन और रसौली के साइज के आधार पर एक्सपर्ट्स ट्रीटमेंट देते हैं। कई बार सिर्फ दवाइयों से भी इस समस्या को खत्म किया जा सकता है। वहीं ऑपरेट करने की स्थिति में भी यूट्रस निकालने की जरूरत नहीं है। क्योंकि लेप्रोस्कोपी के जरिए बहुत छोटे-छोटे कट्स लगाकर भी रसौली को निकाला जा सकता है।
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आज भी हमारे देश में लोगों के बीच ना केवल मेडिकल फैसिलिटीज को लेकर जागरुकता की कमी है बल्कि हेल्थ से जुड़ी बहुत सारी बातें उन्हें पता ही नहीं होती। इस कारण सबसे अधिक शारीरिक और मानसिक दर्द महिलाओं को सहन करना पड़ता है। खासतौर पर गांव और कस्बों में। लेप्रोस्कोपी से लाखों महिलाओं की प्रेग्नेंसी से संबंधित समस्या दूर हो सकती है और वे मां बनने की खुशी पा सकती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरत है जागरूकता की।
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लेप्रोस्कोपी और ओपन सर्जरी के बारे में बात करते हुए डॉक्टर सोनिया कहती हैं कि ओपन सर्जरी के बाद जहां पेशंट्स को 3 से 4 दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ता था वहीं लेप्रोस्कोपी के बाद मात्र एक दिन में आपको डिसचार्ज कर दिया जाता है। साथ ही पेशंट को चलने, वॉशरूम जाने के लिए लंबे समय तक किसी के सहारे की जरूरत नहीं होती है। वे अपने सभी काम आराम से कर सकते हैं, यहां तक कि सीढ़ियां चढ़ना भी।
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि लेप्रोस्कोपी और ओपन सर्जरी की अगर तुलना की जाए तो यह बिल्कुल भी महंगी नहीं पड़ती है। क्योंकि जितना खर्च पेशंट को ओपन सर्जरी के बाद पेशंट के हॉस्पिट स्टे और अटेंडेंट के खर्च पर आता है, लगभग उतने में ही लेप्रोस्कोपी के बाद पेशंट पूरी तरह ठीक होकर दिन बाद ही घर जा सकता है। ऐसे में उस पर होनेवाले बाकी खर्च बच जाते हैं।

एक्सपर्ट: यह आर्टिकल डॉक्टर सोनिया चावला से बातचीत पर आधारित है। ये गाइनोकॉलजिक लेप्रोस्कोपिक सर्जन हैं और पिछले 8 साल से इस फील्ड में अपनी सेवाएं दे रही हैं। ये रेजॉइस गाइनी लेप्रोस्कोपिक सेंटर, दिल्ली में कार्यरत हैं और आप इनसे मिलने के लिए 011-26261352 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।


अगर नॉर्मल डिलीवरी के बाद पीरियड जल्‍दी वापस आ गए तो डॉक्‍टर आपको पोस्‍ट डिलीवरी के पहले पीरियड में टेंपन का इस्‍तेमाल करने से मना कर सकते हैं।
ऐसा इसलिए कहा जाता है कि क्‍योंकि शरीर अभी भी डिलीवरी के घावों से उभर रहा होता है और टेंपन की वजह से योनि में चोट लग सकती है।

स्‍तनपान के दौरान क्‍यों नहीं आते हैं पीरियड्स
आमतौर पर स्‍तनपान करवाने वाली महिलाओं को हार्मोंस की वजह से डिलीवरी के बाद जल्‍दी पीरियड्स नहीं आते हैं। ब्रेस्‍ट मिल्‍क बनाने के लिए प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन बनता है जो कि प्रजनन हार्मोंस को दबा सकता है। इसके कारण ओवुलेशन नहीं होता है या फर्टिलाइजेशन के लिए एग रिलीज नहीं होते हैं। इस प्रक्रिया के बिना पीरियड्स नहीं आते हैं।


पीरियड्स का ब्रेस्‍ट मिल्‍क पर असर
पीरियड आने पर आपको ब्रेस्‍ट मिल्‍क में या दूध पीते समय बच्‍चे की प्रतिक्रिया में कुछ बदलाव नजर आ सकते हैं। पीरियड लाने वाले हार्मोनल बदलाव का असर ब्रेस्‍ट मिल्‍क पर भी पड़ सकता है। जैसे कि अगर दूध की सप्‍लाई कम लग रही है या बच्‍चा कम दूध पी रहा है तो समझ लें कि पीरियड का असर आपके ब्रेस्‍ट मिल्‍क पर भी पड़ाहै।
पीरियड्स प्रॉब्लम और मिसकैरेज की वजह हो सकती है रसौली, ये है आसान इलाज

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रसौली या फाइब्रॉड्स एक तरह की गांठ होती है, जो यूट्रस या बच्चेदानी में फाइब्रस टिश्यूज से बनती है। महिलाओं का यूट्रस तीन भागों में बंटा होता है और यह यूट्रस के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इसका साइज भी अलग-अलग हो सकता है। रसौली स्टोन्स से अलग होती है और यह केवल महिलाओं की सेहत से जुड़ी समस्या है।
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रसौली के कारण महिलाओं को प्रेग्नेंसी में समस्या आती है और पीरियड्स के दौरान हेवी ब्लीडिंग या बहुत अधिक दर्द सहन करना पड़ सकता है। कई बार महिलाओं को बार-बार मिसकैरेज भी झेलना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी इन समस्याओं के प्रति जागरूक रहें। खासतौर पर पीरियड्स के दौरान होनेवाली ब्लीडिंग और अनियमितता को हल्के में ना लें।
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आमतौर पर हॉर्मोनल डिसबैलंस के कारण यूट्रस में रसौली बनती है लेकिन सेहत संबंधी अन्य समस्याएं भी इसकी वजह हो सकती हैं। हॉर्मोन्स बिगड़ने की वजह हर किसी के साथ अलग-अलग हो सकती है। कभी लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण तो कभी किसी दवाई के साइडइफेक्ट के कारण। लेकिन रसौली की समस्या हेरिडिटी की वजह से अधिक देखने को मिलती है।
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-रसौली के कारण पीरियड्स के समय क्लोटिंग बहुत अधिक बढ़ सकती है। यानी ब्लीडिंग के साथ रक्त के थक्के आना।

- पेट के निचले हिस्से में बहुत अधिक दर्द होना और ब्लीडिंग अधिक होना।

-पेट के निचले हिस्से में भारीपन लगना और इंटरकोर्स के वक्त दर्द होना।

- बार-बार यूरिन पास होना और वजाइना से बदबूदार डिस्चार्ज होना।

-हर समय वीकनेस रहना, पैरों में दर्द होना और कब्ज की शिकायत रहना।
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लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉक्टर सोनिया चावला का कहना है कि रसौली की समस्या हॉर्मोन्स से संबंधित होती है। रसौली की समस्या 16 से 50 साल की उम्र में देखने को मिलती है। इस कारण महिलाओं को मिसकैरेज या प्रिग्नेंसी ना होने जैसी समस्याएं होती हैं। अगर किसी पेशेंट की उम्र मेनॉपॉज के पास होती है तो हम उसे सर्जरी सजेस्ट नहीं करते। बल्कि दवाइयों से ही उनकी बीमारी को कंट्रोल करते हैं। क्योंकि मेनॉपॉज के बाद फाइब्रॉइड्स के टिश्यूज की ग्रोथ खुद-ब-खुद बंद हो जाती है।
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कुछ साल पहले तक रसौली का एकमात्र इलाज यूट्रस निकालने को माना जाता था। लेकिन अब ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। पेशंट की कंडीशन और रसौली के साइज के आधार पर एक्सपर्ट्स ट्रीटमेंट देते हैं। कई बार सिर्फ दवाइयों से भी इस समस्या को खत्म किया जा सकता है। वहीं ऑपरेट करने की स्थिति में भी यूट्रस निकालने की जरूरत नहीं है। क्योंकि लेप्रोस्कोपी के जरिए बहुत छोटे-छोटे कट्स लगाकर भी रसौली को निकाला जा सकता है।
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आज भी हमारे देश में लोगों के बीच ना केवल मेडिकल फैसिलिटीज को लेकर जागरुकता की कमी है बल्कि हेल्थ से जुड़ी बहुत सारी बातें उन्हें पता ही नहीं होती। इस कारण सबसे अधिक शारीरिक और मानसिक दर्द महिलाओं को सहन करना पड़ता है। खासतौर पर गांव और कस्बों में। लेप्रोस्कोपी से लाखों महिलाओं की प्रेग्नेंसी से संबंधित समस्या दूर हो सकती है और वे मां बनने की खुशी पा सकती हैं। लेकिन इसके लिए जरूरत है जागरूकता की।
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लेप्रोस्कोपी और ओपन सर्जरी के बारे में बात करते हुए डॉक्टर सोनिया कहती हैं कि ओपन सर्जरी के बाद जहां पेशंट्स को 3 से 4 दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ता था वहीं लेप्रोस्कोपी के बाद मात्र एक दिन में आपको डिसचार्ज कर दिया जाता है। साथ ही पेशंट को चलने, वॉशरूम जाने के लिए लंबे समय तक किसी के सहारे की जरूरत नहीं होती है। वे अपने सभी काम आराम से कर सकते हैं, यहां तक कि सीढ़ियां चढ़ना भी।
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एक्सपर्ट्स का कहना है कि लेप्रोस्कोपी और ओपन सर्जरी की अगर तुलना की जाए तो यह बिल्कुल भी महंगी नहीं पड़ती है। क्योंकि जितना खर्च पेशंट को ओपन सर्जरी के बाद पेशंट के हॉस्पिट स्टे और अटेंडेंट के खर्च पर आता है, लगभग उतने में ही लेप्रोस्कोपी के बाद पेशंट पूरी तरह ठीक होकर दिन बाद ही घर जा सकता है। ऐसे में उस पर होनेवाले बाकी खर्च बच जाते हैं।

एक्सपर्ट: यह आर्टिकल डॉक्टर सोनिया चावला से बातचीत पर आधारित है। ये गाइनोकॉलजिक लेप्रोस्कोपिक सर्जन हैं और पिछले 8 साल से इस फील्ड में अपनी सेवाएं दे रही हैं। ये रेजॉइस गाइनी लेप्रोस्कोपिक सेंटर, दिल्ली में कार्यरत हैं और आप इनसे मिलने के लिए 011-26261352 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।


कैसे अलग होते हैं पोस्‍टपार्टम पीरियड
डिलीवरी के बाद जब पहली बार पीरियड शुरू होते हैं तो ये प्रेगनेंसी से पहले आने वाले मासिक चक्र की तरह नहीं होते हैं। डिलीवरी के बाद शरीर मासिक धर्म के लिए दोबारा एडजस्‍ट हो रहा होता है और प्रसव के बाद पहले पीरियड में आपको कुछ बदलाव नजर आ सकते हैं, जैसे कि तेज या कम ऐंठन महसूस होना, छोटे खून के थक्‍के आना, अधिक ब्‍लीडिंग होना, तेज दर्द और अनियमित मासिक धर्म।

प्रेगनेंसी के बाद पहले पीरियड में आपको ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो सकता है।
इसमें आपको यूट्राइन लाइनिंग के गिरने की वजह से तेज ऐंठन महसूस हो सकती है। हर महीने के साथ इन लक्षणों में कमी आने लगती है। कुछ दुर्लभ मामलों में थायराइड जैसी स्थितियों के कारण भी डिलीवरी के बाद पहले पीरियड में ज्‍यादा ब्‍लीडिंग होती है।
जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी से पहले एंडोमेट्रियोसिस रहा हो, उन्‍हें डिलीवरी के बाद पहले पीरियड में हल्‍की ब्‍लीडिंग हो सकती है। इस तरह प्रेगनेंसी और डिलीवरी के बाद महिलाओं के पीरियड्स में बदलाव आता है।

solved 5
wordpress 1 year ago 5 Answer
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