नार्मल डिलीवरी कैसे होता है?pregnancytips.in

Posted on Fri 14th Oct 2022 : 09:13

नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है? | Normal Delivery Kaise Hoti Hai
नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया को कुल तीन चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

नॉर्मल डिलीवरी का पहला चरण :
1. लेटेंट प्रक्रिया : नॉर्मल डिलीवरी में लेटेंट की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है। इसमें गर्भाशय ग्रीवा 3 सेंटीमीटर तक खुल सकती है। यह प्रक्रिया डिलीवरी के एक सप्ताह पहले या डिलीवरी के कुछ घंटों पहले शुरू हो सकती है। इस दौरान गर्भवती महिला को बीच-बीच में संकुचन भी हो सकते हैं।
लेटेंट प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :
आराम करें और अपना पूरा ध्यान रखें।
बीच-बीच में चलती-फिरती रहें और खूब पानी पिएं।
अकेली न रहें, अपने साथ किसी न किसी को जरूर रखें।
अस्पताल जाने के लिए तैयारी शुरू कर दें।

2. एक्टिव प्रक्रिया : एक्टिव प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 3-7 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन की वजह से तेज दर्द होता है। एक्टिव प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :
अगर संकुचन तेज होने लगे, तो खुद को रिलैक्स रखें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।
किसी से अपने कंधों व कमरे की मालिश कराएं। इससे आपको आराम मिलेगा।
ऐसी अवस्था में आपको अस्पताल में होना चाहिए, ताकि आपकी व भ्रूण की धड़कन चेक की जा सके।

3. ट्रांजिशन प्रक्रिया : ट्रांजिशन प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 8-10 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन लगातार होते रहते हैं और दर्द भी बढ़ जाता है। ट्रांजिशन प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :
अगर योनि से द्रव आ रहा है, तो इसकी गंध व रंग के डिटेल को एक जगह नोट कर लें।
शांत रहें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।
ऐसे समय में डॉक्टर आपकी व होने वाले शिशु की धड़कन को चेक कर सकते हैं।

नॉर्मल डिलीवरी का दूसरा चरण – बच्चे का बाहर आना
इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुल जाती है और संकुचन की गति तेज हो जाती है। इस चरण में शिशु का सिर पूरी तरह से नीचे आ जाता है। इस समय डॉक्टर गर्भवती महिला से खुद से जोर लगाने के लिए कहते हैं। ऐसा करने पर पहले शिशु का सिर बाहर आता है। इसके बाद डॉक्टर शिशु के बाकी शरीर को बाहर निकाल लेते हैं।
दूसरे चरण से गुजर रहीं गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :
संकुचन के दौरान आप बीच-बीच में अपनी पॉजिशन बदलती रहें।
नियमित रूप से सांस लेती रहें।
बच्चे को पुश करने की कोशिश बराबर करती रहें।

नॉर्मल डिलीवरी का तीसरा चरण – गर्भनाल का बाहर आना

शिशु के बाहर आते ही डॉक्टर गर्भनाल को काट कर अलग कर देते हैं। तीसरे चरण में गर्भवती महिला के गर्भाशय में मौजूद ‘प्लेसेंटा (अपरा)’ बाहर निकलती है। शिशु के जन्म के बाद, प्लेसेंटा भी गर्भाशय की दीवार से अलग होने लगती है। प्लेसेंटा के अलग होने के दौरान भी गर्भवती महिला को हल्के संकुचन होते हैं। ये संकुचन शिशु के जन्म के पांच मिनट बाद शुरू हो सकते हैं। प्लेसेंटा के बाहर आने की प्रक्रिया लगभग आधे घंटे तक चल सकती है। इसके लिए भी डॉक्टर गर्भवती महिला को खुद से जोर लगाने के लिए कहते हैं (4)।

नॉर्मल डिलीवरी के संबंध में आगे और भी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं।

नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?

आमतौर पर नॉर्मल डिलीवरी में लगने वाला समय गर्भवती महिला की शारीरिक अवस्था पर निर्भर करता है। अगर गर्भवती महिला की पहली बार नॉर्मल डिलीवरी होने जा रही है, तो इस प्रक्रिया में 7-8 घंटे तक का समय लग सकता है। वहीं, अगर यह गर्भवती महिला की दूसरी डिलीवरी है, तो इस प्रक्रिया में थोड़ा कम समय लग सकता है (5)।

नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ाने के लिए 11 टिप्स | Normal Delivery Ke Upay

नीचे दिए गए इन टिप्स को अपनाकर कोई भी गर्भवती महिला नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ा सकती है :

1. तनाव से दूर रहें : नॉर्मल डिलीवरी की इच्छा रखने वाली गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान तनाव से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए वे चाहें तो ध्यान लगा सकती हैं, संगीत सुन सकती हैं या फिर किताबें पढ़ सकती हैं।

2. नकारात्मक बातें न सोचें : गर्भावस्था के दौरान नकारात्मक बातों से दूर रहें। डिलीवरी से जुड़ी सुनी-सुनाई नकारात्मक बातों और किस्सों पर बिल्कुल भी ध्यान न दें। याद रखें कि हर महिला का अनुभव अलग हो सकता है। इसलिए, दूसरों के बुरे अनुभवों की वजह से अपने भीतर डर पैदा न करें।

3. प्रसव के बारे में सही जानकारी लें : सही जानकारियां डर को दूर करती हैं। इसलिए, प्रसव के बारे में ज्यादा से ज्यादा सही जानकारी पाने की कोशिश करें। इससे गर्भवती महिला को प्रसव की प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझने में मदद मिलती है।

4. अपनों के साथ रहें : अपनों का साथ गर्भवती महिला को भावनात्मक रूप में मजबूत बनाता है। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान हमेशा अपनों के साथ रहने की कोशिश करें।

5. सही डॉक्टर चुनें : गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए डॉक्टर का चुनाव काफी सोच-समझकर करना चाहिए। नॉर्मल डिलीवरी के लिए ऐसा डॉक्टर चुनना जरूरी है, जो गर्भवती महिला के शरीर की स्थिति के बारे में सही जानकारी देता रहे और नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश करे।

6. मदद के लिए एक अनुभवी दाई रखें : नॉर्मल डिलीवरी की चाहत रखने वाली महिलाओं को अपने पास अनुभवी दाई को रखने की सलाह दी जाती है। ऐसी दाइयों के पास नॉर्मल डिलीवरी कराने का अच्छा अनुभव होता है, इसलिए वे डिलीवरी के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है। इसके अलावा, दाइयों को शिशु के जन्म के बाद की जाने वाली देखभाल की भी अच्छी जानकारी होती है।

7. शरीर के निचले हिस्से की नियमित रूप से मालिश करें : गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद, गर्भवती महिलाएं अपने शरीर के निचले हिस्से की मालिश शुरू कर सकती हैं। इससे प्रसव में आसानी होती है और तनाव भी दूर होता है (6)।

8. खुद को हाइड्रेट रखें : गर्भवती महिलाओं को हमेशा खुद को हाइड्रेट रखना चाहिए। उन्हें खूब पानी या जूस पीना चाहिए। लेबर पेन में पानी की कमी हो सकती है, इसलिए थोड़ा-थोड़ा करके पानी पीते रहें।

9. उठने-बैठने की सही स्थिति का ध्यान रखें : गर्भवती महिला की उठने-बैठने से लेकर लेटने तक की स्थिति गर्भ में पल रहे शिशु पर असर डालती है। इसलिए, उन्हें हमेशा अपने शरीर को सही स्थिति में रखने की कोशिश करनी चाहिए। जैसे कि बैठते समय उन्हें अपनी पीठ को ठीक से सहारा देकर बैठना चाहिए।

10. वजन नियंत्रित रखें : गर्भावस्था में वजन बढ़ना सामान्य बात है, लेकिन गर्भवती महिला का वजन बहुत ज्यादा भी नहीं बढ़ना चाहिए। ज्यादा वजन होने से प्रसव के समय परेशानी हो सकती है। दरअसल, मां अगर ज्यादा मोटी हो, तो शिशु को बाहर आने में कठिनाई होती है।

11. व्यायाम करें : गर्भावस्था में नियमित रूप से व्यायाम करने से नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, डॉक्टर की सलाह लेकर नियमित रूप से व्यायाम जरूर करें। साथ ही डॉक्टर की सलाह पर घर के रोजमर्रा के काम भी करते रहें (7)।





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