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प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के मामलों में शुरुआती दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में रखा जाता है। लेकिन गृह प्रसव के मामलों में पहले दिन से ही नवजात को बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। शिशु जन्म के शुरुआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान उचित देखभाल के अभाव में शिशु के मृत्यु की संभावना अधिक होती है। इसको ध्यान में रखते हुए होम बेस्ड न्यू बॉर्न केयर एचबीएनसी यानि गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम की शुरुआत की गई है। इस कार्यक्रम के तहत संस्थागत प्रसव एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में आशा घर जाकर 42 दिनों तक नवजात की खास देखभाल करती है।
संस्थागत प्रसव में छह एवं
गृह प्रसव में सात भ्रमण
केयर इंडिया गया के डीटीएल शशिरंजन ने बताया कि आशाएं गृह भ्रमण के दौरान ना सिर्फ बच्चों में खतरे के संकेतों की पहचान करती है बल्कि माताओं को नवजात देखभाल के विषय में आवश्यक जानकारी भी देती हैं। एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत आशाएं संस्थागत एवं गृह प्रसव दोनों स्थितियों में गृह भ्रमण कर नवजात शिशु की देखभाल करती है। संस्थागत प्रसव की स्थिति में 6 बार गृह भ्रमण करती है। जन्म के 3, 7,14, 21,28 एवं 42 वें दिवस पर गृह प्रसव की स्थिति में 7 बार गृह भ्रमण करती है। जन्म के 1, 3, 7,14, 21, 28 एवं 42 वें दिवस पर
कार्यक्रम का उद्देश्य
सभी नवजात की आवश्यक देखभाल सुविधाएं उपलब्ध कराना एवं जटिलताओं से बचाना। समय पूर्व जन्म लेने वाले नवजातों एवं जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की शीघ्र पहचान कर उनकी विशेष देखभाल करना। नवजात की बीमारी का शीघ्र पता कर समुचित देखभाल करना एवं रेफर परिवार को आदर्श स्वास्थ्य व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करना एवं सहयोग करना। मां के अंदर अपने नवजात स्वास्थ्य की सुरक्षा करने का आत्मविश्वास एवं दक्षता को विकसित करना।
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इन लक्षणों को नहीं करें अनदेखा सही समय पर नवजात की बीमारी का पता लगाकर उसकी जान बचाई जा सकती है। इसके लिए खतरे के संकेतों को समझना जरूरी होता है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जाए। शिशु को सास लेने में तकलीफ हो। शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो। शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो। शरीर सुस्त हो जाए। शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए।
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इसलिए गृह आधारित
देखभाल है जरूरी
लेंसेट 2 शिशु मृत्यु दर के अनेक कारण है। जिनमें समय से पहले जन्म एवं कम वजन का होना प्रमुख कारण है। इसकी वजह से 35 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इसी तरह 20 प्रतिशत निमोनिया, नवजात की सास अवरुद्ध होने से मृत्यु होती है। वहीं 16 प्रतिशत घाव का सड़ना या सेप्सिस एवं 9 प्रतिशत विकलागता से मृत्यु हो जाती है। इस दशा में शिशु के बीमारी की सही समय पर पहचान कर उसकी जान बचाई जा सकती है। इस दिशा में एचबीएनसी कार्यक्रम मील का पत्थर साबित हो रहा है।
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