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प्रसूति रोग के लक्षण और प्रसूति रोग के घरेलु इलाज
प्रसव के बाद स्त्री का शरीर निसत्व-सा हो जाता है। प्रसव पीड़ा, रक्त के निकलने से, प्रसूता में दुर्बलता, अंगों में टूटन, प्यास, खाने की इच्छा न होना, शरीर में भारीपन, सूजन, अफारा, बुखार, दस्त आदि लक्षण हो जाते हैं। ये लक्षण प्रसूता स्त्री में उसकी प्रकृति, रहन-सहन और बल के अनुसार कम या अधिक मात्रा में उत्पन्न होते हैं। विकार अधिक बढ़कर गंभीर रोग का रूप धारण कर लेते हैं जिन्हें प्रसूता के रोग कहते हैं।
प्रसूति रोग में घरेलु इलाज
प्रसव के बाद स्त्री का शरीर निसत्व-सा हो जाता है। अतः प्रसूता को स्निग्ध, बल देने वाले अन्नपान एवं वायुनाशक तेलों की मालिश करनी चाहिए। ठंडे वातावरण, परिश्रम, चिंता, शोक तथा अनियमित भोजन से बचना चाहिए। पहले 15 दिन तक पीने के लिए दशमूल अर्क देना उत्तम होता है।
1। वृहत सौभाग्य शृंठी पाक 15 ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
2। दशमूल क्वाथ 35-50 मि.लि।
घी मिलाकर दिन में दो बार दें।
3। दशमूलारिष्ट 20 मि.लि। भोजनोत्तर बराबर उष्ण जल मिलाकर दें।
4। प्रताप लंकेश्वर रस 240 मि.ग्राम दिन में दो बार मधु के साथ दें।
5। संजीवनी वटी 1-2 वटी दिन में दो बार उष्ण जल के साथ दें।
6। सौभाग्य वटी 240 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
7। ज्वर की तीव्रता में -- पुटपक्व विषम ज्वरांतक लौह का प्रयोग करें।
8। जीर्ण प्रसूता रोग में - पुटपक्व विषम ज्वरांतक लौह 250 मि.ग्राम, स्वर्ण बसंतमालती रस या वृहत सर्व ज्वर हर लौह का प्रयोग करें।
9। कफ के रोग में वृहत सूतिका विनोद रस शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार दें।
10। सूजन एवं दस्त में - सूतिकाहर रस 120-250 मि.लि। दिन में दो बार दें। 11। दशमूलारिष्ट, जीरकाधारिष्ट अति उत्तम योग है।
12। प्रलाप की दशा में सूतिकाहर रस, हिंगुलादि योग 120-240 मि.ग्राम शहद में दिन में दो बार दें।
13। देवदादि क्वाथ 50 मि.लि। दिन में दो बार उष्ण जल से दें।
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