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गर्भावस्था के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव बिल्कुल नए होते हैं, खासकर पहली बार मां बन रही महिला के लिए। जहां कुछ महिलाओं के लिए गर्भावस्था का समय सुखद रहता है, तो कुछ को गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में डॉक्टर गर्भवती को बेड रेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं। ऐसा सिर्फ गंभीर परिस्थितियों में ही किया जाता है.
प्रेगनेंसी के दौरान बेड रेस्ट की जरूरत कब पड़ती है-
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों से ही डॉक्टर कुछ सावधानियां बरतने की सलाह देते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियों में गर्भवती के स्वास्थ्य को देखते हुए डॉक्टर पूरी तरह बेड रेस्ट करने की सलाह दे सकते हैं। वो परिस्थितियां कुछ इस प्रकार हो सकती हैं:
1. प्लेसेंटा प्रिविया : इस समस्या में जरायु या खराई जिसे प्लेसेंटा भी कहते हैं, गर्भाशय के निचले हिस्से की तरफ बढ़ने लगता है और गर्भाशय ग्रीवा (cervix) को कवर कर लेता है। इसे प्लेसेंटा प्रिविया कहा जाता है। गर्भाशय ग्रीवा के पूरी तरह ढक जाने से गर्भवती को नॉर्मल प्रसव में समस्या आ सकती है और सी-सेक्शन प्रसव करने की जरूरत पड़ सकती है। साथ ही यह गर्भावस्था में दर्द व रक्तस्राव का भी कारण बन सकता है (4)।
2. प्रीएक्लेम्पसिया : गर्भावस्था के लगभग 20वें हफ्ते के आसपास होने वाले उच्च रक्तचाप को प्रीएक्लेम्पसिया कहा जाता है। इस दौरान गर्भवती की यूरिन में प्रोटीन आने लगता है और इससे महिला का लिवर व किडनी प्रभावित हो सकते हैं। प्रीएक्लेम्पसिया के कारण महिला का समय से पहले प्रसव (प्रीमैच्योर डिलीवरी) भी हो सकता है ।
3. गर्भाशय ग्रीवा की अपर्याप्तता (Cervical Insufficiency) : इस समस्या में प्रसव के निर्धारित समय से पहले ही गर्भाशय ग्रीवा अपने आप खुलने लगती है, जिस वजह से गर्भपात हो सकता है। यह गर्भावस्था के 13वें से 24वें हफ्ते के बीच हो सकता है। ऐसे में बिस्तर पर आराम करने की सलाह दी जा सकती है ताकि अतिरिक्त भार से गर्भाशय ग्रीवा को बचाया जा सके ।
4. योनी से रक्तस्राव: गर्भावस्था के शुरुआती लक्षण में योनी से हल्का रक्तस्राव होना आम है, लेकिन बाद में यह गर्भपात का कारण बन सकता है। ऐसे में गर्भवती को बेड रेस्ट करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि बेड रेस्ट योनी से रक्तस्राव कम करने में मदद कर सकता है ।
5. ओलिगोहीदृम्निओस (Oligohydramnios): गर्भाशय में भ्रूण के आसपास एक पीला तरल पदार्थ होता है, जिसे एमनियोटिक द्रव कहा जाता है। यह भ्रूण को सुरक्षित रखता है और उसके शारीरिक विकास में मदद करता है। गर्भाशय में इस एमनियोटिक द्रव की कमी को ओलिगोहीदृम्निओस कहा जाता है। इस स्थिति में डॉक्टर बेड रेस्ट की सलाह दे सकते हैं।
6. एक से ज्यादा गर्भ : जिन महिलाओं के गर्भ में जुड़वां या उससे ज्यादा भ्रूण होते हैं, उन्हें सामान्य से ज्यादा जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में उन्हें ज्यादा बेड रेस्ट करने की सलाह दी जा सकती है। हालांकि, बेड रेस्ट इन जटिलताओं को कम करने में कितना लाभकारी हो सकता है, इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ कहना मुश्किल है। इसलिए, उन्हें एंटीपार्टम बेड रेस्ट की जगह सामान्य बेड रेस्ट करने का सुझाव दिया जा सकता है।
7. प्रीमेच्योर डिलीवरी : जब महिला का प्रसव समय से पूर्व हो जाता है, तो उसे प्रीमेच्योर डिलीवरी कहते हैं। जिन महिलाओं को प्रसव समय से पहले हो जाता है, उन्हें भविष्य में कई प्रकार की जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में, प्रीमेच्योर डिलीवरी के खतरे को कम करने के लिए सबसे पहले बेड रेस्ट करने का सुझाव दिया जा सकता है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि यह कितना लाभकारी होगा।
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