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मां बनना हर औरत का सपना होता है। गर्भधारण के बाद का अनुभव किसी भी महिला की जिंदगी का सबसे अच्छा अनुभव होता है। गर्भावस्था के नौ महीनों में उसकी जिंदगी में हर रोज एक नया बदलाव आता है। उसके पहनने-ओढ़ने के तरीके से लेकर खान-पान, उठना-बैठना सब कुछ बदल जाता है। उसे वो सब खाने की तलब होने लगती है जो शायद उसने पहले कभी ना खाया हो। आधी रात हो या सुबह, जिस समय जिस चीज की तलब हुई, बस उसी वक्त वो चीज हाजिर होनी चाहिए। आखिर ऐसा क्यों होता है? क्या दुनियाभर की महिलाएं गर्भावस्था में इसी दौर से गुजरती हैं?
अक्सर अनुमान ये लगाया जाता है कि गर्भावस्था में होने वाली तलब महिला या भ्रूण की कुछ पोषण संबंधी जरूरतें पूरी कर रही हैं। गर्भावस्था यूं भी एक लंबी, थकाऊ और असुविधाजनक प्रक्रिया है। ऐसे में अगर कुछ मन चाहा खाने से मन को शांति मिलती है तो कोई हर्ज नहीं है। रिसर्च से पता चलता है कि गर्भावस्था में होने वाली तलब हरेक संस्कृति में भिन्न है। उदाहरण के लिए, गैर-अंग्रेज संस्कृति में अमेरिका और ब्रिटेन की महिलाओं जैसी तलब नहीं होती। इसी तरह जापान में गर्भवती महिलाओं को चावल की तलब ज्यादा होती है तो भारत में अक्सर प्रेगनेंट महिलाएं खट्टा खाने की मांग करती हैं।
जिस देश में जैसे खान-पान का चलन होता है, ललक भी उन्हीं चीजों की होती है। मिसाल के लिए जिसने कभी गोल-गप्पे न खाए हों, उसे कभी भी गोल-गप्पे खाने का बड़ा तेज मन नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि बहुत मन होने पर, खाने से शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं बल्कि गैर जरूरी वजन बढ़ जाता है और कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो जाती हैं।
रिसर्च बताती हैं कि कुछ महिलाओं को माहवारी शुरू होने से हफ्ते पहले चॉकलेट की क्रेविंग होने लगती है। अब ये पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि चॉकलेट खाने का मन होने से, क्या माहवारी से पहले किसी तरह के पोषक तत्व की कमी पूरी होती है या सिर्फ हार्मोन की वजह से ऐसा मन होता है।
एक प्रयोग के दौरान किसी मनोवैज्ञानिक ने एक महिला को चॉकलेट खाने को कहा। अगली मर्तबा उस महिला को चॉकलेट की तलब होने लगी। वहीं दूसरी ओर उसे सफेद चॉकलेट खाने को दी गई, जिसे खाने के बाद उसकी चॉकलेट खाने की तलब शांत पड़ गई। इससे साफ जाहिर है कि डार्क चॉकलेट में शामिल कोकोआ चॉकलेट की तलब बढ़ाता है। ऐसा कोई पोषक तत्व नहीं है, जिसकी कमी पूरी करने के लिए शरीर उसकी मांग करता हो। रिसर्च में चॉकलेट और हार्मोन का भी कोई संबंध सामने नहीं आया है।
ये साबित हो चुका है कि किसी चीज को खाने की अचानक बहुत तेज इच्छा होना, पूरी तरह से मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया है। शुरुआत धीरे-धीरे होती है। फिर वो तलब बन जाती है। किसी चीज को खाने का मन होना सामान्य बात है और उसे नियंत्रित करना भी थोड़ा मुश्किल है। अगर हम अपने दिल को समझा लें कि फलां खाना हमारी सेहत के लिए अच्छा नहीं है, तो हम खुद को रोक भी सकते हैं। अगर तब भी मुश्किल हो तो सिर्फ इतना ही खाएं कि उसकी तेज इच्छा शांत हो जाए।
किसी चीज के लिए तलब बढ़ना सिर्फ समझ का फेर है। एक आम धारणा है कि गर्भावस्था में तरह-तरह की चीजें खाने का मन होता है। इसीलिए महिलाएं हर तरह की चीज खाना अपना अधिकार समझने लगती हैं। भारत में गर्भावस्था में खट्टा खाना सामान्य माना जाता है जबकि ऐसा सभी महिलाओं के साथ नहीं होता। अगर डॉक्टर ऐसा करने से मना करते हैं, तो महिलाएं खुद को रोकती भी हैं।
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