बच्चे का रंग गोरा कैसे होता है?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:26

मेरे शिशु का रंग गहरा होता जा रहा है। रंगत में निखार के लिए मैं क्या कर सकती हूं?

आपके शिशु का रंग, गहरा या गोरा, गर्भाधान के समय उसके वंशाणुओं से निर्धारित होता है। गर्भावस्था के दौरान या शिशु के जन्म बाद कोई तरीका उसकी प्राकृतिक रंगत में बदलाव नहीं ला सकता।

वंशाणु आपके शिशु की त्वचा में मेलानिन की मात्रा को निर्धारित करते हैं। मेलानिन वह रंजकता (पिग्मेंटेशन) है जो त्वचा को रंग देती है। आपके शिशु की त्वचा में जितना अधिक मेलानिन होगा, उसकी रंगत उतनी ही गहरी होगी। मेलानिन सूरज की हानिकारक किरणों से त्वचा को सुरक्षित रखता है। ये किरणें धूप से झुलसने (सनबर्न) और त्वचा के कैंसर का कारण बनती हैं।

सूरज की किरणों के संपर्क में आने से त्वचा में मेलानिन का उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए, यदि आपका शिशु नियमित तौर पर धूप में रहता हो, तो उसकी त्वचा का रंग गहरा होगा। वहीं, अगर शिशु कभी-कभार ही लंबे समय के लिए धूप में रहता हो, तो उसकी त्वचा साफ दिख सकती है। मगर, शिशु अपनी त्वचा के प्राकृतिक रंग से अधिक गोरा नहीं हो सकता और यह प्राकृतिक रंगत जन्म के तुरंत बाद बन जाती है।

नवजात शिशु जन्म के समय अक्सर गोरे लगते हैं, और कभी-कभी त्वचा में गुलाबी रंगत भी होती है। यह गुलाबी रंगत लाल रक्त वाहिकाओं से मिलती है, जो कि शिशुओं की पतली त्वचा में से दिखाई देती हैं। अधिकांश माता-पिता इसे बच्चे की त्वचा का वास्तविक रंग मान लेते हैं। मगर नवजात की त्वचा का रंग थोड़ा गहरा होने लगता है, क्योंकि त्वचा को रंग देने वाला प्राकृतिक रंजक (पिग्मेंट)-मेलानिन- का उत्पादन शुरु हो जाता है। इसलिए शुरुआत में शिशु की रंगत में बदलाव आना सामान्य है।

नवजात शिशु की त्वचा दिखने में अलग-अलग होती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे के जन्म के समय आप कितने सप्ताह की गर्भवती थी। समय से पहले जन्मे (प्रीमैच्योर) शिशुओं की त्वचा पतली और पारदर्शी होती है और हो सकता है यह गर्भलोम (लेनुगो) यानि कि पतले एवं रोमिल बालों से ढकी हो। ऐसे शिशु अभी तक वर्निक्स से भी ढके हो सकते हैं। यह चिपचिपा सफेद पदार्थ होता है, जो शिशु की त्वचा को एमनियोटिक द्रव से सुरक्षित रखता है।

पूर्ण अवधि पर और देर से जन्मे शिशुओं में केवल त्वचा की सिलवटों में ही वर्निक्स के कुछ अवशेष मिलते हैं। देर से हुए बच्चे थोड़े झुर्रीदार भी दिख सकते है, और उनमें थोड़ा बहुत लेनुगो लगा हो सकता है।

जिस तरह शिशु की रंगत को गोरा बनाने के लिए उसे धूप से दूर रखना स्वास्थ्यकर नहीं है, उसी तरह उसे बहुत ज्यादा समय तक धूप में रखना भी हानिकारक ही है।

यदि आपके नवजात शिशु को पीलिया है, तो डॉक्टर उसे सुबह 10 से 15 मिनट तक धूप में रखने की सलाह दे सकते हैं। यह पीलिया के उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और शिशु की रंगत की चिंता में ऐसा न करना सही नहीं है। धूप की वजह से शिशु की रंगत में आने वाला बदलाव अस्थाई होता है।

जब आपका शिशु बड़ा होता है, तो बाहर खेल-कूद करना उसकी विकसित हो रही दृष्टि और संपूर्ण स्वास्थ्य व शारीरिक विकास के लिए बहुत जरुरी है। आपके बच्चे को विटामिन डी के उत्पादन के लिए धूप में समय बिताना व खेल-कूद करना जरुरी है। स्वस्थ हड्डियों के लिए विटामिन डी महत्वपूर्ण है।

जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है, समय के साथ उसकी त्वचा के रंग में भी बदलाव आता है। जब आपका बच्चा बाहर धूप में खेल-कूद में ज्यादा समय बिताता है, तो उसकी त्वचा हल्की सी गहरी हो जाती है। साल के जिन महीनों में बाहर खेलना संभव नहीं होता, तो उन दिनों उसकी त्वचा थोड़ी गोरी लग सकती है। मगर, चाहे शिशु की त्वचा का रंग कुछ भी हो, आपको और जो भी उसे प्यार करते हैं, वह उन्हें उतना ही प्यारा और आकर्षक लगेगा। इसलिए, शिशु की रंगत को लेकर चिंतित न हों, गोरी त्वचा का मतलब अधिक सुंदर त्वचा होना नहीं है।

कई माँएं घर में बने लेप, उबटन या क्रीम के इस्तेमाल से अपने शिशु का रंग बदलने की कोशिश करती हैं। इनका आपके बच्चे के रंग पर कोई असर नहीं होगा, और ये सब आपके शिशु के लिए हानिकारक भी साबित हो सकते है।

घर के बने लेप या उबटन
कच्चे दूध, ताजा मलाई, बेसन और हल्दी का लेप अक्सर मालिश के दौरान शिशु को लगाया जाता है। कच्चे दूध में ऐसे जीवाणु हो सकते हैं, जो दस्त (डायरिया) या फिर टी.बी. जैसे इनफेक्शन पैदा कर सकते हैं। ताजा मलाई त्वचा को चिकना बनाती है और गर्मी में इसके कारण शिशु की त्वचा में चकत्ते (रैश) हो सकते हैं। अगर इसे उचित ढंग से धोकर साफ न किया जाए, तो सर्दियों में भी चकत्ते हो सकते हैं। इसके अलावा, बेसन और हल्दी के खुरदरेपन से शिशु की नाजुक त्वचा पर मामूली खरोंच या चकत्ते भी हो सकते हैं।

टैल्कम पाउडर
कुछ माताएं अपने बच्चों को गोरा बनाने के लिए उन्हें बहुत सारा टैल्कम पाउडर लगाती हैं। इससे शिशु की रंगत पर कोई असर नहीं पड़ेगा, बल्कि पाउडर को चेहरे पर न लगाने की सलाह दी जाती, क्योंकि शिशु पाउडर के छोटे कणों को सांस के जरिये अंदर ले सकता है। और अधिक पढ़ें कि टैल्कम पाउडर का सुरक्षित इस्तेमाल कैसे किया जाए।

गोरेपन की क्रीम
शिशु की त्वचा पर गोरा बनाने वाली किसी भी क्रीम का इस्तेमाल उचित नहीं है। ऐसी क्रीम महंगी होती हैं, और ये शायद ही असर दिखाएं। यदि इनसे कुछ फर्क पड़ता भी है, तो भी शिशु की नाजुक त्वचा पर इनका इस्तेमाल सुरक्षित नहीं है।

इनमें स्टेरॉयड और अन्य रसायन (कैमिकल) जैसे कि पारा (मर्क्यरी) और हाइड्रोक्विनॉन हो सकते हैं, जो सुरक्षित नहीं हैं। हो सकता है इन रसायनों का नाम पैक पर अंकित सामग्रियों की सूची में न दिया गया हो। स्टेरॉइड युक्त क्रीम का इस्तेमाल चेहरे पर कभी नहीं किया जाना चाहिए। गोरा बनाने वाली इन क्रीम के इस्तेमाल से शिशु की नाजुक त्वचा पर चकत्ते, एलर्जी हो सकती है और यहां तक कि त्वचा जल भी सकती है।

कुछ लोग त्वचा की रंगत को हल्का करने के लिए आयुर्वेदिक या प्राकृतिक क्रीम का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, ये क्रीम कितनी सुरक्षित व प्रभावी हैं, इस बारे में पर्याप्त अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं। इनमें से कुछ क्रीम में ऐसी सामग्रियां हो सकती हैं, जो कि अप्रिय साइड इफेक्ट पैदा कर सकती हैं।

भविष्य में शिशु के आत्म-सम्मान के लिए यह जरुरी है कि वह जैसा है, आप उसे वैसे ही स्वीकार करें। जब आप ऐसा करेंगी, तो महसूस करेंगी कि आपका लाडला शिशु कितना सुन्दर है, फिर चाहे उसका रंग कैसा भी है।

इन सबके अलावा शिशु की त्वचा या रंगत में बदलाव के अन्य कारणों को भी जानना अच्छा है। शिशु को तेज बुखार होने पर भी उसकी त्वचा लाल दिख सकती है। या फिर ठंड की वजह से उसके हाथों और पैरों में हल्की सी नीली रंगत आ सकती है। कुछ बच्चे अत्याधिक रोने के कारण भी लाल या बैंगनी रंग के हो जाते हैं। रंग में ये सभी विविधताएं सामान्य और अस्थाई हैं।

वहीं दूसरी तरफ, त्वचा की रंगत में कुछ बदलाव किसी स्वास्थ्य समस्या की तरफ इशारा कर सकते हैं और ऐसे में चिकित्सकीय सहायता की जरुरत हो सकती है। रोने का दौर पूरा होने के बाद भी अगर नीला रंग नहीं जाता है, या शिशु की त्वचा, होंठ और नाखूनों पर भी नीली रंगत हो, तो यह सांस या रक्त परिसंचरण की समस्याओं का संकेत हो सकता है।

कुछ शिशुओं में हृदय विकार की वजह से त्वचा के रंग में बदलाव (साइनोसिस) हो सकता है। क्योंकि उनके रक्त् में आॅक्सीजन का स्तर सामान्य से कम होता है। हल्की त्वचा वाले शिशुओं में नीली रंगत विकसित हो जाती है। गहरी रंगत वाले शिशुओं में मुंह के आसपास स्लेटी या सफेद रंगत और माथे, नाक और होंठ पर नीले रंग का तिकोना आकार दिखाई दे सकता है।

यदि आपको शिशु की त्वचा में ऐसे कोई लक्षण दिखें या फिर त्वचा की रंगत में बदलाव का कारण आप समझ न पा रही हों, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

solved 5
wordpress 1 year ago 5 Answer
--------------------------- ---------------------------
+22

Author -> Poster Name

Short info