बच्चे की त्वचा के लिए कौन सा तेल अच्छा है?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:30

शिशु की मालिश के लिए सबसे अच्छे तेल

अधिकांश माँएं हर रोज शिशु को नहलाने से पहले या फिर इसके बाद तेल से उसकी मालिश करती हैं। यह एक पारंपरिक प्रचलन है, जिसे जारी रखना अच्छा है क्योंकि इस बात के प्रमाण भी हैं कि मालिश से आप और आपके शिशु दोनों को फायदा होता है। और तेल से मालिश करना आपके लिए आसान होगा और शिशु को भी इससे अधिक आराम मिलेगा।
शिशु की मालिश के लिए कौन सा तेल सुरक्षित है?
आप शिशु की मालिश के लिए वनस्पती तेल या मिनरल बेबी आॅयल इस्तेमाल कर सकती हैं। यदि आपके शिशु की त्वचा पर चकत्ते हैं या फिर उसकी त्वचा शुष्क या संवेदनशील है, तो आपको तेल के विकल्पों पर ध्यान देना होगा। वैसे इस बात के कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि कोई एक तेल दूसरे से बेहतर है। कुछ तेल त्वचा में आसानी से अवशोषित हो जाते हैं, मगर शोध दर्शाते हैं कि उनमें अन्यों की तुलना में बहुत ज्यादा अंतर नहीं हैं।

कुछ विशेषज्ञ वनस्पती या पौधों पर आधारित तेल लगाने की सलाह देते हैं, क्योंकि वे आसानी से अवशोषित हो जाते हैं। यदि शिशु तेल से चिकनी अपनी उंगलियों को चूस भी ले, तो भी परेशानी की बात नहीं होती, क्योंकि यह तेल आसानी से पचने वाला होता है। यदि आप वनस्पती तेल का इस्तेमाल कर रही हैं तो शुद्ध, परिष्कृत तेल (रिफाइंड आॅयल) शिशु की नाजुक त्वचा के लिए बेहतर होते हैं। रिफाइंड आॅयल में हल्की खुशबू और पतला टेक्सचर होता है, साथ ही यह काफी लंबे समय तक खराब भी नहीं होता। इनमें यीस्ट, फफूंद या कवक के बीजाणुओं जैसी अशुद्धियां होने की संभावना कम होती है।

मिनरल बेबी आॅयल भी एक अच्छा विकल्प हैं। ये पेट्रोलियम से बनाए जाते हैं और लंबे समय से सुरक्षित ढंग से इस्तेमाल किए जा रहे हैं। यदि शिशु अपनी उंगलियों को मुंह में चूस भी ले, तो भी ये नुकसानदेह नहीं है। गर्म, आर्द्र मौसम में इनके खराब होने या सड़ने की संभावना भी बहुत कम होती है।
शिशु की रुखी या संवेदनशील त्वचा की मालिश के कौन से तेल इस्तेमाल करने चाहिए?
शुष्क व संवेदनशील त्वचा के लिए निम्नांकित तेल अच्छे विकल्प माने जाते हैं:

वनस्पती तेल जिनमें पॉलीअनसैचुरेटेड वसा उच्च मात्रा में हो
इन तेलों में लिनोलिएक एसिड नामक तत्व उच्च मात्रा में होता है। लिनोलिएक एसिड एक फैट्टी एसिड होता है जो स्किन बैरियर को बचाने में मदद कर सकता है। यह शिशु की संवेदनशील त्वचा के लिए काफी सौम्य माना जाता है।

जिन वेजिटेबल आॅयल में लिनोलिएक एसिड उच्च मात्रा में होता है, उनमें शामिल हैं:

सूरजमुखी के बीज (सनफ्लावर सीड) का शुद्ध रिफाइंड तेल
अंगूर के बीज से बना तेल (ग्रेपसीड आॅयल)
कुसुम के बीज से बना तेल (सैफ्लावर सीड आॅयल)

सभी वनस्पती तेलों में लिनोलिएक एसिड की उच्च मात्रा नहीं होती। कुछ में ओलिएक एसिड अधिक होता है, जो कि एक मोनोसैचुरेटेट वसा है। लिनोलिएक एसिड से भरपूर वनस्पती तेलों और बेबी मिनरल आॅयल की तुलना में ओलिएक एसिड की उच्च मात्रा वाले वनस्पति तेल शिशु की त्वचा के लिए कठोर रहते हैं।

बहरहाल, वनस्पती तेलों के लेबल पर सामान्यत: ओलिएक या लिनोलिएक एसिड तत्वों के बारे में नहीं लिखा होता। हालांकि, वे पॉलीअनसैचुरेटेड या मोनोअनसैचुरेटेड वसा के अनुपातों के बारे में जरुर बताते हैं। सामान्य नियम के तौर पर:

जिन वनस्पती तेलों में लिनोलिएक एसिड ज्यादा होता है, उनमें पॉलीअनसैचुरेटड वसा भी उच्च होती है।
जिन वनस्पती तेलों में ओलिएक एसिड अधिक होता है, उनमें मोनोअनसैचुरेटेड वसा भी उच्च होती है।

यदि आप तेल के चुनाव को लेकर चिंतित हों, तो उस तेल का इसतेमाल करें जिसमें पॉलीअनसैचुरेटड वसा उच्च मात्रा में हो। बहरहाल, कुछ वनस्पती तेलों में पॉलीअनसैचुरेट और मोनो अनसैचुरेटेड वसा, दोनों होती हैं, इसलिए हमेशा यह चुनाव आसान नहीं होता।

असुगंधित मिनरल आॅयल (बेबी आॅयल)
असुगंधित (परफ्यूम रहित) बेबी मिनरल आॅयल का इस्तेमाल रुखी या संवेदनशील त्वचा के लिए करना अच्छा विकल्प है। अगर आपके शिशु की त्वचा पहले से ही खराब या शुष्क है, तो बेहतर है कि गंध वाले उत्पादों का इस्तेाल न किया जाए।

नारियल तेल
नारियल तेल एक और ऐसा तेल है जो भारत में व्यापक तौर पर उपलब्ध है और इस्तेमाल किया जाता है। कुछ शोध दर्शाते हैं कि यह रुखी त्वचा की नमी और रूप-रंग को बेहतर बना सकता है।
शिशु की त्वचा के लिए कौन से तेल सही नहीं हैं?
यदि आपके शिशु की त्वचा रुखी, संवेदनशील है या फिर उसे एक्जिमा है या त्वचा कट-फट रही है, तो बेहतर है कि मालिश के लिए सरसों के तेल, घी या जैतून के तेल (आॅलिव आॅयल) का इस्तेमाल न किया जाए।

जैतून के तेल, घी और सरसों के तेल में ओलिएक एसिड उच्च मात्रा में होता है। यह आपके शिशु की त्वचा की कुछ परतों को भेद्य बना सकता है। इसका मतलब है कि ओलिएक एसिड युक्त तेलों को लगाने से शिशु की त्वचा और अधिक रुखी और संवेदनशील हो सकती है।

हालांकि मालिश के लिए तेल के इस्तेमाल पर और अधिक शोध की जरुरत है। वर्तमान शोध इस धारणा पर आधारित हैं कि तेल शिशु के शरीर पर लगाकर छोड़ दिया जाता है और शिशु को नहलाकर तेल धोया नहीं जाता।

यह भी संभव है कि आप पहले से शिशु की मालिश के लिए घी, जैतून के तेल या सरसों के तेल का इस्तेमाल कर रही हैं और शिशु की त्वचा पर कोई शुष्की या अन्य प्रतिक्रिया नहीं देखी है। ये मालिश के लिए काफी लोकप्रिय तेल हैं और हो सकता है कि आपके शिशु की त्वचा पर इनका बुरा असर इसलिए नहीं हुआ क्योंकि आपने शिशु को नहलाने के दौरान तेल को त्वचा से धो दिया।

ओलिएक एसिड और इसके त्वचा पर असर को लेकर हुई अधिकांश शोध इस बात पर आधारित हैं कि यह त्वचा पर ज्यादा समय तक बना रहता है।

मगर अपने शिशु की त्वचा पर शुष्की या जलन व असहजता के लक्षणों पर ध्यान दें। यदि आपको ऐसा कुछ नजर आए, तो कोई दूसरा तेल चुनें, जो शिशु की नाजुक त्वचा के लिए उचित हो।

एरोमाथैरेपी एसेंशियल आॅयल, जैसे कि टी ट्री आॅयल या बबूने के फूल का तेल (कैमोमाइल तेल) का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि ये आपके शिशु की त्वचा के लिए उचित नहीं हैं।

यदि आप यह तय नहीं कर पा रही हों कि मालिश के लिए कौन सा तेल सही रहेगा, तो डॉक्टर से बात करें। वे आपके शिशु की त्वचा के लिए उचित सुगंध रहित तेल, क्रीम या लोशन बता सकते हैं।

यदि किसी विशेष तेल के इस्तेमाल के बाद आपके शिशु की त्वचा लाल होने लगे, उसमें खुजली, दर्द हो या फिर पपड़ी बनने लगे तो तुरंत उस तेल का इस्तेमाल बंद कर दें।
शिशु की तेल मालिश नहलाने से पहले करें या बाद में?
भारत में तेल की मालिश अक्सर नहलाने से पहले की जाती है। यह एक अच्छा तरीका है, खासकर यदि आप गाढ़े तेल का इस्तेमाल करती हैं, जो कि पूरी तरह अवशोषित नहीं होते या फिर ओलिएक एसिड की उच्च मात्रा वाले तेलों का इस्तेमाल करती हैं, जैसे कि सरसों या जैतून का तेल।

बहरहाल, कुछ तरह के तेल, खासकर कि मिनरल बेबी आॅयल, मालिश के बाद त्वचा पर एक पतली परत छोड़ देते हैं। इसलिए नहलाने के बाद मिनरल आॅयल लगाने से त्वचा में नमी बनाए रखने में मदद मिल सकेगी, क्योंकि इससे पानी का वाष्पीकरण धीमा हो जाता है। यदि आपके शिशु की त्वचा रुखी है, तो यह विकल्प अच्छा है।
क्या गर्मी व आर्द्र मौसम में भी तेल की ही मालिश करनी चाहिए?
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि गर्मियों के मौसम में तेल त्वचा पर लगा रहता है, तो यह रोमछिद्रों को अवरुद्ध कर सकता है और पसीना फंसा रह सकता है। उनका मानना है कि नहलाने के बाद तेल लगाने से भी ऐसा ही होता है, यह नमी को फंसा लेता है। मगर यदि गर्म और आर्द्र मौसम में त्वचा पसीने से नम रहे तो इससे घमौरियां हो सकती हैं।

इसलिए, हालांकि इस विषय पर कोई शोध उपलब्ध नहीं है, मगर सुरक्षा के लिहाज से गर्मी के मौसम में आप शायद नहलाने से पहले ही तेल से मालिश करना चाहें और बाद में इसे अच्छी तरह धो दें।

विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि केवल उतनी मात्रा में तेल, क्रीम या लोशन का इस्तेमाल करते जितने से शिशु की त्वचा चिकनी हो जाए। तेल की मोटी परत लगाने से शिशु को गर्मी और खुजलाइट महसूस हो सकती है, विशेषकर कि गर्मी के मौसम में और इससे कपड़ों पर दाग भी लग सकते हैं।
क्या शिशु की मालिश के लिए तेल घर पर बनाना चाहिए?
शिशु की मालिश के लिए घर पर तेल बनाने की बहुत सारी विधियां उपलब्ध हैं, शायद जितने घर, उतनी विधियां। आप शिशु के लिए सुरक्षित कुछ तेलों को मिलाकर एक तेल बना सकती हैं। यदि आप प्राकृतिक तेलों को मिला रहे हैं, तो ध्यान रखें कि आप उन तेलों को चुनें जिनमें पॉलीअनसैचुरेटेड वसा उच्च मात्रा में हो।

घर पर मालिश का तेल तैयार करने की विधियों में कुछ में तेल को मसालों के साथ गर्म करने की जरुरत होती है। देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों में, उदाहरण के तौर पर सरसों के तेल को लहसुन की कुछ कलियों और मेथी दाने के साथ गर्म किया जाता है।

माना जाता है कि लहसुन में एंटीवायरल और एंटीबैक्टिरियल तत्व होते हैं। इसे रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए भी जाना जाता है।

यह भी माना जाता है मेथी शरीर को आराम पहुंचाती है। कुछ क्षेत्रों में सरसों तेल में अजवायन मिलाई जाती है। माना जाता है कि यह उदरशूल (कॉलिक) से ग्रस्त शिशुओं को आराम पहुंचाता है।

इन मसालों के लाभकारी तत्व शिशु की त्वचा पर किस तरह असर करते हैं, इस बात को लेकर कोई शोध उपलब्ध नहीं है। इसलिए यह कहना मुश्किल है कि इनका इस्तेमाल सही है या नहीं। आप शिशु की मालिश जिस तेल से करना चाहें, उसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर से बात कर लें और शिशु की सुरक्षा के लिए निम्नांकित एहतियातों को ध्यान में रखें:

मुख्य तेल के तौर पर ऐसे तेल को चुने जो शिशु की त्वचा के लिए सौम्य हो।

तेल ज्यादा गर्म तो नहीं है, यह जांचने के लिए अपनी कोहनी का अग्रभाग इसमें डुबाकर देखें, जैसा कि आप नहाने के पानी का तापमान जांचने के लिए करती हैं। मालिश करने से पहले तेल गुनगुना महसूस होना चाहिए, तेज गर्म नहीं।

तेल को तैयार करने के बाद जब पहली बार शिशु को लगाएं, तो शुरुआत में त्वचा के थोड़े से हिस्से पर इसे लगाकर देखें। 24 घंटों तक इंतजार करें और देखें कि तेल में मौजूद किसी तत्व से शिशु को प्रतिक्रिया तो नहीं हो रही है। यदि त्वचा लाल दिखे, जलन या असहजता और खुश्की दिखे तो इस तेल को शिशु की मालिश के लिए इस्तेमाल न करें। इस बारे में शिशु के डॉक्टर से बात करें।

त्वचा पर जलन पैदा करने वाले मसाले जैसे कि मिर्च या काली मिर्च का इस्तेमाल न करें।

कुछ परिवारों में तेल में मलाई, बेसन और हल्दी मिलाकर लेप बनाया जाता है। कच्चे दूध का इस्तेमाल शायद सही नहीं है, क्योंकि इससे संक्रमणों का खतरा रहता है। कच्चे दूध में ऐसे जीवाणु हो सकते हैं, जो डायरिया या टीबी पैदा कर सकते हैं। साथ ही, बेसन के दरदरेपन से शिशु की त्वचा पर खरोंच या रगड़ लग सकती है।
शिशु की तेल से मालिश करने पर मुझे कौन से अन्य एहतियात बरतने चाहिए?
मालिश के लिए आईएसआई और एगमार्क प्रमाणित प्रतिष्ठित ब्रांड के तेल चुनें। खुले में मिलने वाले या बिना ब्रांड के तेलों से त्वचा का इनफेक्शन हो सकता है। यदि आपका शिशु गलती से ऐसे तेल मुंह में निगल ले, तो इससे पेट का इनफेक्शन हो सकता है।

शिशु की नाक, आंखों, नाभि या कानों में कोई तेल न डालें। हालांकि, भारत में यह काफी प्रचलित है मगर इन जगहों में तेल डालना हानिकारक हो सकता है और संक्रमणों का कारण बन सकता है।

मालिश करते हुए हल्क हाथों से और नीचे से ऊपर की तरफ मलें। शिशु का सिर दबाने से यह गोल नहीं बनेगा और न ही अग्र जंघा को दबाने से यह सीधी होगी।

आप जो भी तेल चुने, लेबल को ध्यान से पढ़े और इसे सुरक्षित ढंग से रखें। मिनरल आॅयल में शायद इस्तेमाल करने की अंतिम तिथि दी गई होती है, वहीं वनस्पती तेलों में बेस्ट बिफोर तिथि दी हो होती है। यह तिथि बताती है कि खाना पकाने के लिए तेल का इस्तेमाल कब तक सही है, न कि त्वचा पर इस्तेमाल। मगर इससे आपको कुछ अंदाजा तो लग ही जाएगा कि इसे कब तक इस्तेमाल किया जा सकता है।

यदि आपने शिशु की मालिश के लिए मालिशवाली को रखा है, तो इन सबके बारे में उससे बात करें। कुछ मालिशवाली अपना तेल लाती हैं, और इसी के इस्तेमाल पर जोर देती हैं। मगर बेहतर है कि आप एहतियात बरतें। घर पर तैयार किए कुछ तेलों में ऐसी जड़ी-बूटियां, एडिटिव्स या तत्व हो सकते हैं, जो शायद शिशु के लिए सुरक्षित न हों।

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