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अच्छा पोषण अस्तित्व, स्वास्थ्य और विकास के लिए आधारशिला है। खैर-मनुष्य के बच्चों को अपने बच्चों के जीवन में एक बेहतर शुरुआत दे स्वस्थ वयस्कों में हो जाना और बदले में, स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। खैर-मनुष्य महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कम जोखिम का सामना है, और अपने बच्चों को दोनों शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत विकास के पथ पर बंद सेट। विश्व स्तर पर, बच्चे की मौत का एक तिहाई से अधिक कुपोषण के कारण कर रहे हैं। 5 साल की उम्र के तहत बच्चों के बीच होने वाली मौतों की वैश्विक वितरण , कारण से, बाल कुपोषण-एक साइलेंट किलर कुपोषण सब बचपन से होने वाली मौतों में से लगभग आधे से जुड़ा हुआ है। चावल, मक्का, गेहूं, तेल, चीनी और नमक जैसी बुनियादी भोजन के लिए कीमतों में खाद्य सुरक्षा की धमकी, आसमान छू, और गंभीर कुपोषण और भुखमरी में दुनिया के सबसे गरीब बच्चों के लाखों लोगों के लिए मजबूर कर रहे हैं। दुनिया के बहुत में, पूर्ण पेट के साथ बच्चों को अभी भी कमी कर रहे हैं पोषक तत्वों और विटामिन वे अपनी पूरी क्षमता विकसित करने की जरूरत है। एक कुपोषित बच्चे को स्कूली शिक्षा का सबसे बाहर निकलने की संभावना कम होती है, बीमारी से लड़ने के लिए कम करने में सक्षम है, और अक्सर शारीरिक और मानसिक रूप से अवरुद्ध हो जाता है। कुपोषण की क्षमता के साथ सभी निवारक उपायों के बच्चों की उत्तरजीविता पर सबसे बड़ा संभावित प्रभाव, 800,000 लोगों की मृत्यु पर रोकने के लिए किया गया है उम्र के दो वर्ष से कम बच्चों की उत्तरजीविता और शिशुओं की वैश्विक स्थिति इष्टतम स्तनपान पर गरीबी। प्रभाव के चक्र में फंस बच्चों रहता है (13 प्रति विकासशील दुनिया में पांच वर्ष से कम बच्चों में सभी मौतों) ( नुकीला) का प्रतिशत। स्तनपान बच्चों को गैर-स्तनपान बच्चों की तुलना में शुरुआती महीनों में जीवित रहने के लिए कम से कम छह बार बड़ा मौका है। एक विशेष रूप से स्तनपान बच्चे को एक गैर-स्तनपान बच्चे की तुलना में पहले छह महीनों में मरने के लिए 14 गुना कम होने की संभावना है, और स्तनपान काफी तीव्र श्वसन संक्रमण और दस्त से होने वाली मौतों को कम कर देता है, दो प्रमुख बच्चे हत्यारों । इष्टतम स्तनपान प्रथाओं के संभावित प्रभाव की बीमारी और साफ पानी और स्वच्छता के लिए कम उपयोग का एक उच्च बोझ के साथ देश की स्थितियों के विकास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। लेकिन औद्योगिक देशों में गैर-स्तनपान बच्चों के मरने की अधिक से अधिक जोखिम पर भी रहे हैं - संयुक्त राज्य अमेरिका में पोस्ट-नवजात मृत्यु दर के हाल के एक अध्ययन गैर स्तनपान शिशुओं में मृत्यु दर में 25% की वृद्धि पाया। ब्रिटेन मिलेनियम पलटन सर्वेक्षण में, विशेष रूप से स्तनपान के छह महीने के दस्त के लिए अस्पताल दाखिले में एक 53% कमी और श्वसन तंत्र के संक्रमण में 27% की कमी के साथ जुड़े थे। स्तनपान दरों में नहीं रह गया है कि वैश्विक स्तर पर गिरते हुए, कई देशों के साथ पिछले एक दशक में उल्लेखनीय वृद्धि का सामना कर रहा है, विकासशील दुनिया में उम्र के छह महीने से भी कम के बच्चों की केवल 39 फीसदी विशेष रूप से स्तनपान कर रहे हैं और सिर्फ 58 20-23 माह के बच्चों का प्रतिशत जारी रखा स्तनपान के अभ्यास से लाभ होता है। देशों की बढ़ती संख्या महत्वपूर्ण और तेजी से प्रगति 25 देशों दस्त, निमोनिया, मलेरिया के साथ जुड़े बच्चे की मौत का एक मुख्य कारण के रूप में पाया गया है|
पोषण की आवश्यकता
पोषण कितना जरूरी है इसे देश की मौजूदा परिस्थितियों से समझा जा सकता है। जितनी ताकत अन्न ग्रहण करने में है, उतनी ही ताकत अन्न त्यागने में भी है। अन्न त्यागने की ताकत से पूरे देश में हलचल पैदा हो सकती है। बहरहाल अन्न का मानव संस्कृति सभ्यता की शुरूआत से ही नाता है। जैसे-जैसे संस्कृति पुष्ट होती रही है वैसे-वैसे ही अन्न, भोजन, पोषण में भी कई स्तरों पर बेहतर होते जाने की कवायद चलती रही है। पोषण सुरक्षा को मानव सभ्यता की शुरूआत से ही देखा जाता रहा है। किसी भी प्राणी के लिए पोषण जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि संतुलित पोषण कैसे हो ?
कितना पोषण है जरूरी
इंडियन कांउसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने एक व्यक्ति के लिए कितना पोषण जरूरी है उसे कैलोरी के अनुसार मापदंड तय किया है। आईसीएमआर के मुताबिक एक औसत भारतीय के लिए भारी काम करने वालों के लिए रोजाना 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और कम शारीरिक श्रम करने वाले लोगों के लिए 2100 कैलोरी पोषण जरूरी है। पोषण सुरक्षा का मतलब यह भी है कि किसी भी व्यक्ति की अपने जीवन चक्र में ऐसे विविधता पूर्ण पर्याप्त मात्रा मेपहुंच सुनि6चित होना जिसमें जरूरी कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, वसा, सूक्ष्म पोषण तत्व की उपलब्धता हो। इन तत्वों की आपूर्ति अलग-अलग तरह के अनाजों, दालों, तेल, दूध, अण्डे, सब्जियों और फलों से होती है, इसलिए इनकी उपलब्धता और वहन करने की परिस्थितियां बननती चाहिये। इसी तारतम्य में पीने के साफ पानी की उपलब्धता भी जरूरी है।
पोषण सुरक्षा पर राज्य की संवैधानिक बाध्यताएं
भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हर एक के लिए जीवन और स्वातंत्र्यता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। इस अनुच्छेद के तहत उपलब्ध जीवन और स्वातं.त्र्यता के अधिकार में भोजन का अधिकार सम्मिलित है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 47 कहता है कि लोगों के पोषण और जीवन के स्तर को उठाने के साथ ही जनस्वास्थ्य को बेहतर बनाना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
मानव अधिकारों पर जारी अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र की धारा-25 हर व्यक्ति के लिये पर्याप्त भोजन के अधिकार को मान्यता देती है।
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय सहमति दस्तावेज की धारा-11 और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की समिति हर व्यक्ति को भूख से मुक्त रखने के संदर्भ में राज्य की जिम्मेदारियों की विस्तार से व्याख्या करती है।
इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल अधिकार समझौते महिलाओं के खिलाफ होने वाले हर तरह के भेदभाव की सामाप्ति के लिये सम्मेलन (सीडा) के घोषणा पत्र (धारा-12) महिलाओं और बच्चों की खाद्य-पोषण सुरक्षा के बारे में राज्य की जिम्मेदारी को स्पष्ट करते हैं।
राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही आईसीडीएस और मिड डे मील के जरिए बच्चों को पोषण सुरक्षा प्रदान की जा रही है। मध्यप्रदेश में अलग अलग समुदाय अपनी संस्कृतियों के साथ विविधता के साथ बसर करते हैं। कमोबेश पोषण के नजरिए से भी देखें तो मध्यप्रदेश में बहुत विविधता पाई जाती है। बावजूद इसके प्रदेश में स्वास्थ्य मानकों के नजरिए से स्वास्थ्य की तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है। खासकर बच्चों के संदर्भ में देखें तो यहां साठ प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
कुपोषण क्यों है
इसे पोषण की उपलब्धता और उसके वितरण के नजरिये से देखा जाना चाहिए में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 153 क़िलोग्राम अनाज को उपभोग होता था, अब वह 1222 क़िग्रा प्रतिमाह आ गया है में एक सदस्य औसतन उपभोग 11920 क़िग्रा था जो में औसत भोजन का उपभोग घटकर मात्र 11685 किग्रा प्रति व्यक्ति रह गया। नि6चित ही यह एक अच्छा संकेत नहीं है। यही कारण है कि यहां 5 वर्ष से कम उम्र के 70 फीसदी बच्चों में खून की कमी है। 19 में से 11 राज्यों में 75 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे एनीमिया के शिकार हैं।
बीमारी के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर जो दुनिया भर में हर साल विशेष रूप से कुपोषण, कुपोषण के लिए जिम्मेदार हैं सब बच्चे की मौत का एक तिहाई से अधिक,।
एक महिला को गर्भावस्था के दौरान कुपोषण के शिकार या जाता है तो उसके बच्चे के जीवन के पहले दो वर्षों के दौरान कुपोषण के शिकार है, तो बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास और विकास धीमा हो जाएगा। बच्चे बड़े होने पर यह सही नहीं किया जा सकता है - यह उसके जीवन के आराम के लिए बच्चे को प्रभावित करेगा।
शरीर को स्वस्थ और अच्छी तरह से कार्य अंगों और ऊतकों रखने के लिए आवश्यक उचित ऊर्जा की मात्रा (कैलोरी), प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्व प्राप्त नहीं होता है जब कुपोषण विकसित करता है। एक बच्चे या वयस्क कुपोषित द्वारा की जा रही कुपोषित जा सकता है।
लोग कुपोषित हैं जब दुनिया कुपोषण के अधिकांश भागों में होता है। विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं के आधे पेट के लिए प्राथमिक कारण, गरीबी, भोजन की कमी, दोहराया बीमारियों, अनुचित खिला प्रथाओं, देखभाल और गरीब स्वच्छता की कमी कर रहे हैं। आधे पेट खाना कुपोषण के जोखिम उठाती है। जोखिम जीवन के पहले दो वर्षों में सबसे बड़ी है। दस्त और अन्य बीमारियों को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक प्रोटीन, खनिज और पोषक तत्वों की शरीर सार जोखिम जब आगे बढ़ जाती है।
एक घर का पर्याप्त भोजन और दस्त और अन्य बीमारियों आम है कि बनाने की स्थिति है नहीं करता है, बच्चों के कुपोषण के शिकार बनने के लिए सबसे कमजोर कर रहे हैं। बच्चे बीमार हो जाते हैं, वे वयस्कों की तुलना में तेजी से खतरे में उनके जीवन डालता है, जो जल्दी से ऊर्जा और पोषक तत्वों खो देते हैं।
यह बचपन और हृदय रोग और वयस्कता में अन्य रोगों में मधुमेह का कारण बन सकता है। कभी-कभी बच्चों को ऊर्जा के क्षेत्र में उच्च लेकिन इस तरह मीठा पेय या तला हुआ, स्टार्च भोजन के रूप में अन्य आवश्यक पोषक तत्वों में अमीर नहीं हैं कि खाद्य पदार्थों की बड़ी मात्रा में खाते हैं। बच्चे के आहार की गुणवत्ता में सुधार लाने के ऐसे मामलों में शारीरिक गतिविधि के अपने या अपने स्तर में वृद्धि के साथ साथ महत्वपूर्ण है।
एचआईवी जैसे पुराने रोगों, के साथ बच्चे भी अधिक अतिसंवेदनशील कुपोषण के लिए कर रहे हैं। उनके शरीर विटामिन, लोहा और अन्य पोषक तत्वों को अवशोषित एक कठिन समय है। विकलांग बच्चों वे की जरूरत है वे पोषण मिलता है सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत हो सकती है।
सभी लड़कियों और लड़कों को वे अच्छी तरह से एक स्वस्थ आहार के साथ मनुष्य हैं सुनिश्चित करते हुए माता, पिता या अन्य देखभाल करने वालों के साथ एक देखभाल और सुरक्षा के माहौल का अधिकार है|
बच्चों में पोषण का महत्व
पोषण से बच्चों की बढ़त अच्छी होती है। और दिमाग का विकास होता हैं। सही पोषण से बीमारियों से लड़ने की शक्ति मिलती है और बार-बार बीमार नहीं पड़ते। पोषण से ही बार-बार बीमार होने से बचा जा सकता है और कुपोषण के दायरे से मुक्ति भी पाई जा सकती है। सही पोषण से बीमारी नहीं होती, इसका असर एक व्यक्ति के जीवन पर देखने को मिलता है, उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती है, बच्चों की एकाग्रता बढ़ जाती है और पढ़ाई में मन लगता है। देश का बेहतर भविष्य सुनिश्चित होता है।
महिलाओं और किशोरियों में खून की कमी बड़ी चुनौती
भारत में खून की कमी या एनीमिया बहुत आम बीमारी है। देश में 6 से 59 माह की आयु वर्ग में हर दस में सात बच्चे 695 प्रतिशत खून की कमी का शिकार हैं। इनमें से चालीस प्रतिशत बच्चे मामूली तौर पर और तीन प्रतिशत बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं, युवतियां व बच्चे एनीमिया से ज्यादा पीड़ित हैं। एनएफएचएस के दूसरे सर्वे से तीसरे सर्वे में एनीमिया 74 प्रतिशत से बढ़कर 79 प्रतिशत पाया गया था। मध्यप्रदेश की तस्वीर इस मामले में और भी बदतर है। प्रदेश में 74 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं। प्रत्येक दस में से आठ गर्भवती मांएं खून की कमी से संघर्ष करती हैं। मां में खून की कमी का प्रभाव उनकी संतान पर सीधे रूप से पड़ता है। सर्वे में पाया गया है कि जिन मांओं को एनीमिया था उनमें से 544 प्रतिशत शिशुओं में भी खून की कमी थी। मध्यप्रदेश बिहार के बाद दूसरा राज्य है जहां बच्चों में सबसे ज्यादा एनीमिया है। किशोरी युवतियों में भी यह एक गंभीर बीमारी है, यहां हर दस में से छह युवतियां एनीमिया का शिकार हैं।
बच्चों में कुपोषण
देश में बच्चों की आधी आबादी कुपोषण का शिकार है। 24 प्रतिशत बच्चे गंभीर कुपोषण का शिकार हैं। मध्यप्रदेश में हाल ही में राष्ट्रीय पोषण संस्थान हैदराबाद ने अध्ययन किया है। इस अध्ययन में पाया गया है कि मध्यप्रदेश में ग्रामीण क्षेत्र में 519 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। एनएफएचएस के तीसरे सर्वे के मुकाबले यहां लगभग दस प्रतिशत कुपोषण कम पाया गया हैं। यह एक सुखद संकेत हो सकता है, लेकिन एक चुनौती भी है, क्योंकि प्रदेश में आधे से ज्यादा बच्चे अब भी कुपोषण के संकट में अपनी जिंदगी से संघर्ष कर रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि उनके पोषण और सुरक्षा पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाए।
कुपोषण की पहचान
कुपोषण के प्रकार और मप्र में हालात कुपोषण की तीन तरीकों से पहचान हो सकती है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान के ताजा अध्ययन के मुताबिक मध्यप्रदेश में 519 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट, 489 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग और 258 प्रतिशत बच्चे वास्टिंग श्रेणी में आ रहे हैं।
मानव अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की सर्वव्यापी घोषणा कहती है, ''हरेक को अपने व अपने परिवार की भलाई व स्वास्थ्य हेतु ऐसे पर्याप्त जीवन-स्तर का अधिकार है जिसमें रोटी, कपड़ा, मकान व स्वास्थ्य सेवा व आवश्यक सामाजिक सुविधाएं शामिल हैं
बाल-अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र प्रतिज्ञा-पत्र का अधिनियम 24 पोषण-सम्बंधी बच्चों के अधिकार की साफ तौर पर व्याख्या करता है। यह प्रतिज्ञा-पत्र कहता है, ''सारे गवाह राज्य इस अधिकार के पूर्ण क्रियान्वयन हेतु जतनऔर खास तौर पर इस बाबत उपयुक्त कदम उठाएं , रोग एवं कुपोषण से निपटने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे के तहत अन्य बातों के साथ-साथ तुरन्त उपलब्ध टेक्नोलॉजी का प्रयोग व पर्याप्त पौष्टिक आहार व पीने का साफ पानी कराना ।
अंडरवेट ( कम वजन )
इसको आयु के हिसाब से कम वजन होने के नजरिए से देखा जाता है। यह सबसे ज्यादा पाया जाने वाला कुपोषण है। उम्र के हिसाब से वजन कुपोषण मापने का एक सामान्य मापदंड है, लेकिन इसमें उंचाई को शामिल नहीं किया जाता है।
स्टंटिंग ( उंचाई के अनुपात में कम वजन )
इसे उम्र के हिसाब से उंचाई के मान से परिभाषित किया जाता है। यह मानक किसी भी शिशु के पूर्व में पोषण को प्रतिबिम्बित करता है।
वास्टिंग ( उंचाई के अनुपात में कम वजन )
इस मानक का मतलब यह है कि उंचाई के मुताबिक वजन कितना है। वास्टिंग को बच्चे की उम्र जाने बिना उसके वजन के मान से समझा जाता है।
शिशुओं की जरूरतें क्या है ?
स्तनपान शिशु का सर्वोत्तम पोषण है। विशेषज्ञों का मानना है कि जन्म के 1 घंटे के भीतर स्तनपान की शुरूआत शिशु के पूरे जीवन के लिए बुनियाद का काम करती है। इसी तरह छह माह की उम्र तक एक्सक्लूसिव स्तनपान बच्चे को कई बीमारियों से बचाने का काम करता है। बहरहाल इस दिशा में काम करने की बेहद जरूरत है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान के सर्वे में भी प्रदेश में संस्थागत प्रसव को बढ़ाने की दिशा में उल्लेखनीय काम हुआ है और अब यहां लगभग 78 प्रतिशत प्रसव स्वास्थ्य संस्थाओं में हो रहे हैं, लेकिन जन्म के पहले घंटे में स्तनपान का प्रतिशत केवल 264 है। यह अब भी चुनौती बना हुआ है। इस दिशा में व्यापक जनचेतना की आवश्यकता है।
शिशुओं की पोषण सुरक्षा के क्या मायने हैं?
1 शिशु और छोटे बच्चों के भोजन के संदर्भ में कौशलपूर्ण सहायता और सलाह का दिया जाना।
2 बच्चे के जन्म के 6 माह बाद तक माता को आर्थिक और पोषण सहायता दिया जाना।
3 समुदाय और कार्यस्थल पर समस्त सेवाओं और सामग्री सहित झूलाघर ।
पोषण सुरक्षा के लिए नीतिगत व्यवस्थाएं
यदि ऊपरी आहार ज्यादा तरल एवं कम पोषकता वाले होते हैं, तो बच्चा कमजोर हो सकता है।
बच्चे को बीमारी का खतरा बढ़ जाएगा। समय के पूर्व ऊपरी आहार कम सुरक्षित एवं पचने में आसान नहीं होता है।
माता के पुन: गर्भवती होने के अवसर बढ़ जाते हैं।
ऊपरी आहार क्यों ?
6 माह की उम्र तक मां के दूध से आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है।
6 माह के बाद मां के दूध के अलावा अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता बच्चे को होती है।
इस तरह 6 महीने के बाद बच्चों को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना आवश्यक होता है। इस उम्र में बच्चे की पाचन संस्थान भोजन पचाने के लिए भी तैयार हो जाता है।
ऊपरी आहार कैसा हो ?
बच्चे को दिया जाने वाला ऊपरी आहार स्थानीय उपलब्ध खाद्य सामग्री में से होना चाहिए। इसमें कम से कम निम्नानुसार भोजन शामिल करने की कोशिश की जानी चाहिए –
अनाज जैसे चावल, गेहूं, मक्का, बाजरा।
स्टार्च युक्त सब्जी जैसे आलू, शकरकंद आदि और स्टार्च युक्त फल जैसे केला आदि।
ऊपरी आहार सफाई से पकाया, परोसा एवं खिलाया जाना चाहिए।
इसमें एक चम्मच घी या तेल अवश्य मिलना चाहिए।
प्राय: ऊपरी आहार तरल करके बच्चे को दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि गाढ़ा भोजन बच्चे के गले में फसेगा तथा अपच करेगा, इससे उसमें पानी आदि मिलाकर उसे पतला कर दिया जाता है। यह जरूरी है कि बच्चे की मां को उसे देने वाले भोजन के गाढ़ेपन की जानकारी दी जाए। भोज्य पदार्थ इतना गाढ़ा होना चाहिए, जो की चम्मच तिरछी करने पर धीरे-धीरे टपके। इतना पतला न हो कि तुरन्त ही बह जाए या इतना गाढ़ा न हो की चम्मच तिरछी करने पर गिरे ही न।
बच्चे को खाना देने की मात्रा
7 वें माह से की अवधि में
नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी मसलकर अर्ध ठोस (चम्मच से गिराने पर सरके, बहे नही), खूब मसले साग एवं फल, प्रतिदिन दो बार तथा मात्रा। 2 - 3 भरे हुए चाय के चम्मच दें। स्तनपान जारी रखें। वनस्पतियाँ, अनाज, दालें एवं फलों के साथ मांस, मछली एवं अण्डा यदि खाते हैं तो अव6य शामिल करें तथा नियमित स्तनपान भी जारी रखें।
8-9 वें माह से की अवधि में
नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी, प्रतिदिन धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते हुए नियमित स्तनपान के साथ 2-3 बार चम्मच से 250 मिली0 या प्रत्येक भोजन में 35 कप अव6य शामिल करें एवं टुकडों में फल भी अवश्य दें।दूध, दूध से बने पदार्थ, अनाज, दालें एवं फलों के साथ मांस, मछली एवं अण्डा यदि खाते हैं तो अवश्य शामिल करें तथा नियमित स्तनपान भी जारी रखें।
9-11 माह से की अवधि में
नरम दाल - दलिया, दाल - चावल, दाल - रोटी, प्रतिदिन धीरे - धीरे मात्रा बढ़ाते हुए अच्छी तरह कटे हुए फल एवं बिना मसला आहार हुआ दिन में तीन बार दें तथा नियमित स्तनपान जारी रखें। एक बार में 250 मिली0 का कप भरकर आहार बच्चा प्रत्येक भोजन में ग्रहण करें।
12 माह - 5 वर्ष की अवधि में
घर पर पका पूरा खाना, धुले एवं कटे फल, 3 भोजन तथा 2 नाश्ते के रूप में दें, एक बार में 250 मिली0 का कप भरकर आहार बच्चा प्रत्येक भोजन में ग्रहण करें। स्तनपान के बीच में आहार देना चाहिए, नियमित स्तनपान जारी रखें।
6 माह तक जब बच्चा सिर्फ मॉ का दूध पीता है, तब कि उसे किसी भी भोज्य पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती है, परन्तु जब उसे ऊपरी आहार दिया जाता है, तब पेय पदार्थ देना आवश्यक होता है।
पेय पदार्थ की मात्रा बच्चे को दिए गए भोजन के गाढ़ेपन एवं मां के दूध पर निर्भर करेगी।
यदि बच्चा बार-बार हल्के पीले रंग की पेशाब करता है, तो उसे पर्याप्त पेय पदार्थ दिए जा रहे हैं। यदि कम तथा गहरे रंग की पेशाब करता है, तब उसे अधिक पेय पदार्थ देने की आवश्यकता है।
बच्चे को दस्त लगने या बुखार आने पर उसे अधिक बार पेय पदार्थ देने चाहिए।
पानी के अलावा फलों के रस भी बच्चों को दिए जा सकते हैं, परन्तु बच्चे के दांतों की सुरक्षा के लिए यह रस पानी मिलाकर पतले दिए जाने चाहिए। रस इतना नहीं देना चाहिए बच्चा अन्य भोज्य पदार्थ न खा सके।
चाय या कॉफी बच्चे के आयरन के अवशोषण को कम करता है।
कोई भी पेय पदार्थ शुद्ध और साफ होना चाहिए। पानी उबला हुआ तथा ढककर साफ बर्तन में रखना चाहिए। पानी निकालते वक्त उसमें हाथ नहीं डालना चाहिए।
एनीमिया क्या है?
नई रक्त कोशिकाओं के निर्माण हेतु जरूरी एक या एक से अधिक पोषक तत्वों की कमी से रक्त में हीमोग्लोबिन का स्तर सामान्य से कम होना। किशोरी बालिकाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 ग्राम100 एमएल से कम होने पर एनीमिया कहलाता है।
एनीमिया के लक्षण
जो व्यक्ति एनीमिया से पीड़ित होता है उसकी जीभ, आंखों व नाखुनों का रंग फीका दिखाई देने लगता है। उसके पैरों में सूजन होती है। साँस फूलना और थकान महसूस होने लगती है। सा काम करने पर कमजोरी महसूस होती है।
एनीमिया के कारण
एनीमिया मुख्यत: भोजन में आयरन या लौह तत्व की कमी होने के कारण होता है। किसी व्यक्ति को बार-बार मलेरिया हो तब भी व्यक्ति एनीमिया का शिकार हो सकता है। युवतियों और महिलाओं में माहवारी के दौरान अधिक खून बहना भी एनीमिया का एक कारण है। परजीविक कारण और काम के हिसाब से पोषण की कमी भी एनीमिया के रूप में सामने आती है। बच्चों में एनीमिया मुख्यत: मां से ही मिलता है।
किशोरावस्था में एनीमिया के दुष्प्रभाव
किशोरावस्था में एनीमिया होने के दुष्प्रभाव एक व्यक्ति के पूरे जीवन में दिखाई पड़ता है। इससे कार्यक्षमता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। भूख कम होने लगती है और सही पोषण नहीं मिलने से आयु के अनुसार शारीरिक वृद्धि नहीं हो पाती है। युवतियों में एनीमिया आगे जाकर उनकी गर्भावस्था को भी प्रभावित करता है और वह असुरक्षित मातृत्व के दौर से गुजरती है। यही कारण है कि यहां पर उच्च मातृत्व मृत्यु दर है। उनके बच्चे भी कम वनज के पैदा होते है, और कुपोषण का शिकार हो जाते हैं।
आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया के नियंत्रण के तरीके
एनीमिया से बचने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका यह है कि भोजन में संतुलित आहार की मात्रा बढ़ाई जाए। आहार की गुणवत्ता और पौष्टिकता को बढ़ाकर ही एनीमिया से स्थायी रूप से मुक्ति पाई जा सकती है। इसके साथ ही मलेरिया से बचाव करके और सप्ताह में एक बार आयरन की गोली लेना भी फायदेमंद साबित हो सकता हैं कई चीजें ऐसी भी होती है जो भोजन में लौहतत्व के अभिशोषण को अवरूद्ध कर देती हैं। ऐसे पदार्थों से बचने की जरूरत है। आयरन युक्त आहार जैसे बाजारा, खजूर, गुड़, अंकुरित दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां (जैसे पालक, मैथी, बथुआ) अण्डा, माँस, मछली इत्यादि ज्यादा से ज्यादा करना होगा। विटामिन ''सी'' युक्त खाद्य पदार्थ जैस- नींबू, आंवला, संतरा, अमरूद आदि लेने से आयरन के अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है। लोहे की कढ़ाई में खाना बनाने की सलाह भी विशेष ज्ञों द्वारा दी जाती है। आयरन टेबलेट लेने के कुछ समय बाद कुछ मिचली अथवा काले रंग के दस्त होने की शिकायत हो सकती है। लेकिन ऐसी स्थिति में भी इन गोलियों का उपयोग बंद नहीं करना चाहिए।
इस के सर्वें के मुताबिक प्रदेश में 78 प्रतिशत किशोरियों को आयरन फोलिक एसिड की टेबलेट मिल पा रही है। यानी लगभग 22 प्रतिशत महिला और किशोरियोें को यह किसी भी रूप में नहीं मिल रही है। बड़ी चुनौती यह है कि कैसे हम सभी लोगों तक आयएफए टेबलेट पहुंचा सकें।
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