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कुपोषण : बच्चों को संतुलित आहार खिलाएं, फास्ट फूड से बचाएं
संतुलित आहर ही कुपोषण से बचने का रामबाण।
बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास उसकी डाइट पर भी निर्भर करता है। विटामिन, मिनरल, कैल्सियम, प्रोटीन, फाइबर आदि भरपूर डाइट से बच्चे का विकास सही ढंग से होगा ही, वह तंदुरुस्त भी रहेगा। हकीकत ये है कि ज्यादातर माताएं संतुलित आहार व डाइट क्या है? जानती तक नहीं। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भावस्था से लेकर किशोरावस्था की उम्र तक बच्चों की डाइट में परिवर्तन होता रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों व मलिन बस्तियों के बच्चों को उचित डाइट नहीं मिल पाती, नतीजतन वे कम वजन व लंबाई और बार-बार बीमारी से जूझते हैं। कई बार कुपोषण की चपेट में भी आ जाते हैं। 'राष्ट्रीय सुपोषण सप्ताह' के अंतर्गत 'दैनिक जागरण' कुपोषण व बच्चों के आहार-विहार पर जागरूकता अभियान चला रहा है।
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कुपोषण के लिए माता पिता जिम्मेदार
भारतीय बच्चों में कुपोषण की समस्या चुनौती बन गई है। मिड-डे-मील व पोषाहार जैसी योजनाएं संचालित होने के बाद भी मासूम कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो बच्चों में कुपोषण के लिए माता-पिता भी कम जिम्मेदार नहीं, उन्हें पता ही नहीं कि किस उम्र में क्या खिलाना है और क्या नहीं। कामकाजी माताओं के बच्चों के कुपोषित होने की आशंका सर्वाधिक रहती है। वजह, वे बच्चों के खानपान पर ध्यान ही नहीं दे पातीं।
भ्रूणावस्था से ही शुरुआत
जेएन मेडिकल कॉलेज की डाइटीशियन मुमताज फातिमा बताती हैं कि बढ़ते बच्चों का डाइट चार्ट के अनुसार खानपान जरूरी है। शुरुआत भ्रूणावस्था से हो जाती है। इसके लिए गर्भवती को आयरन, कैल्शियम व फॉलिक एसिड लेना चाहिए। खजूर, गुड़, चना, दूध व दूध से बनी चीजें, चिकन-अंडा, मुरमुरे, अनार, सेब, चीकू, अमरूद, पनीर व दाल का सेवन करें। खूब पानी पीएं। दो घंटे के अंतराल से कुछ न कुछ खाती रहें। इससे बच्चे को भी भरपूर पोषक तत्व मिलेंगे और वह स्वस्थ होगा। जन्म के छह माह तक सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए।
छह माह के बाद
मुमताज फातिमा के अनुसार छह माह के बाद बच्चे को दूध के अलावा पतले चावल, दाल का पानी, अंडे की सफेदी देना शुरू कर दें। मीठा ही नहीं, नमकीन खाने की आदत भी डालें। बोतल का दूध न पिलाएं। एक से डेढ़ साल तक 1000 कैलोरी की जरूरत बच्चे को होती है।
दो साल के बाद
इस उम्र में शिशु को चावल की खीर, दूध में साबूदाना, पिसे हुए पनीर को दलिया मिलाकर खिलाएं। खजूर भी अच्छा है, इसमें मैग्नीशियन, आयरन, फास्फोरस व अन्य पोषक तत्व होते हैं। उम्र बढ़ने के साथ रोटी व हरी सब्जियां भी शुरू कर दें।
छह साल के बाद
यह बढ़ती उम्र है, बच्चे को कैल्शियम की ज्यादा जरूरत होती है, इसलिए दूध ज्यादा दें। अंडा-पनीर भी कैल्शियम के अच्छे स्रोत हैं। हरी सब्जियां, मौसम के फल व अन्य भोजन खिलाएं। 12 से 13 साल तक बच्चे के भोजन में हर चीज शामिल कर लें।
माता-पिता रखें बच्चों का ख्याल
मुमताज फातिमा बताती हैं कि गरीब परिवारों में खर्च चलाने के लिए महिलाएं मजदूरी करने चली जाती हैं तो नौकरी पेशा वर्ग की महिलाएं भी पूरे दिन बच्चों से दूर रहती हैं। ऐसे में उन्हें पता ही नहीं होता कि बच्चे ने क्या खाया और क्या नहीं। कई बार छोटी-छोटी बीमारियां बड़ा रूप धारण कर लेती हैं। मेरी ही एक स्टूडेंट के बेटे को कुछ माह पूर्व चोट लग गई, बाद में उसे सप्टीसीमिया हो गया। इसलिए बच्चों को प्रॉपर डाइट के साथ उचित देखभाल भी जरूरी है।
बच्चों के जीवन में जहर घोल रहे फास्ट फूड
पहले तली-भुनी चीजें तीज-त्योहार पर ही बनती थीं। अब फूड्स प्वॉइंट्स, रेस्तरा, पिज्जा हाउस आदि बन गए हैं, जहा ऐसी चीजें हर समय घटे मिल जाती हैं। इनसे सेहत तो नहीं बनती, फाइबर, विटामिन, मिनरल की कमी से बीमारिया जरूर चपेट में ले लेती हैं। फिर भी लोग फास्ट फूड पर पोषक तत्वों से ज्यादा खर्च कर रहे हैं।
सासनी गेट के परचून विक्रेता जॉनी ने बताया कि मेरी एक माह की आमदनी करीब 20 हजार रुपये है। पोषित भोजन पर यदि वह चार से पाच हजार रुपये महीने खर्च करते हैं तो फास्टफूड पर भी एक हजार खर्च करना पड़ता है। ताला निर्माता कंपनी में अकाउंटेंट सुधीर ने बताया कि हर महीने आठ हजार रुपये कमाते हैं। पोषित भोजन पर तीन से चार हजार रुपये व 500 रुपये फास्टफूड पर खर्च हो जाता है। ज्ञान सरोवर कॉलोनी के आलोक वात्सल्य ने बताया कि पोषक तत्वों पर यदि एक हजार खर्च होता है तो फास्ट फूट पर ढाई-तीन हजार का खर्च हो जाता है।
हाई कैलोरी नुकसानदायक
मसूदाबाद स्थित बंसल नर्सिग होम के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रदीप बंसल बताते हैं कि दिनभर ऐसी हाई कैलोरी, तेज नमक, शक्कर वाली चीजों को जमकर खाया जाएगा तो नुकसान तो होगा ही। बच्चों के प्रति लापरवाही भी उन्हें फास्ट फूड खाने को मजबूर कर रही हैं। फास्ट फूड ने लगभग हर घर में अपनी जगह बना ली है। एक साल की उम्र से बच्चे फास्ट फूड खाने लगे हैं। जागरूकता के अभाव में लोग फास्ट फूड के चंगुल से नहीं निकल पा रहे।
पोषक तत्वों का अभाव
किड्स केयर हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विभव वाष्र्णेय बताते हैं कि फास्ट फूड में फाइबर, विटामिन, मिनरल, प्रोटीन आदि पोषक तत्वों का अभाव होता है। ये तत्व शरीर के अंगों के सुचारू कार्य करने के लिए जरूरी हैं। विटामिन ए,बी व सी आदि की कमी से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। पांच से छह वर्ष के बच्चे ही कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।
बीमारियों का साया
- केक, चाकलेट, पेटीज में वसा, शुगर, मैदा, मक्खन से मोटापा, आलस्य, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदयरोग, चिड़चिड़ापन, एनीमिया जैसी बीमारियों बढ़ती हैं।
- कोल्ड ड्रिंक में कार्बन एसिड, शुगर व प्रिजर्वेटिव होते हैं। हड्डियों में कैल्शियम व फास्फोरस को कम करते हैं। ओस्टियोपोरोसिस नामक बीमारी पैदा करते हैं।
- नूडल्स, चिप्स, बर्गर-पिच्जा में अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट व मसाले होते हैं। इनके अधिक सेवन से सेप्टिक, अल्सर, डायरिया जैसे रोग हो जाते हैं।
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