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ब्रीच शिशु की नॉर्मल डिलीवरी के दौरान
ब्रीच अवस्था वाले शिशु की नॉर्मल डिलीवरी करवाने में सबसे बड़ा खतरा तब होता है जब शिशु का शरीर बाहर आ जाता है, मगर सिर अंदर ग्रीवा में फंसा रहता है। इससे खरोंच लगने, जन्म के समय चोट लगने या मृत्यु होने का भी खतरा बढ़ जाता है। शिशु को जल्दी जन्म दिलवाने के लिए डॉक्टर शायद फोरसेप्स डिलीवरी या कोई अन्य आपातकालीन तरीके अपनाएंगी।
प्रोलेप्स्ड गर्भनाल भी एक अन्य समस्या है, जिसमें गर्भनाल शिशु की डिलीवरी से पहले ही प्रसव नलिका से बाहर खिसक जाती है। यदि गर्भनाल पर दबाव हो या यह दब ही जाए तो शिशु तक ऑक्सीजन और खून का प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है। इससे वह के भ्रूण संकट में आ सकता है।
ऑक्सीजन की कमी या डिलीवरी में किसी भी तरह की देरी का असर शिशु के मस्तिष्क पर पड़ सकता है। गंभीर मामलों में इससे मस्तिष्क स्थाई तौर पर क्षतिग्रस्त हो सकता है या यह जानलेवा भी हो सकता है।
यदि नॉर्मल डिलीवरी के दौरान ऐसी कोई भी स्थिति उत्पन्न हो तो आपके शिशु का जन्म आपातकालीन सिजेरियन ऑपरेशन के जरिये करवाया जाएगा।
जन्म के बाद
36 सप्ताह की गर्भावस्था पर या इसके बाद भी शिशु ब्रीच अवस्था में हों या 36 सप्ताह से पहले ही जिन शिशुओं का जन्म ब्रीच अवस्था में हुआ हो, उनकी अल्ट्रासाउंड जांच की जानी चाहिए। इससे कूल्हों से जुड़ी स्थिति यानि डवलपमेंट डिस्प्लेसिया ऑफ द हिप (डीडीएच) की जांच हो जाती है। इस स्थिति में कूल्हे के बॉल और सॉकेट जोड़ पूरी तरह से विकसित नहीं होते।
यदि आपके गर्भ में एक से ज्यादा शिशु थे, तो सभी शिशुओं को अल्ट्रासाउंड जांच होनी चाहिए, फिर चाहे उनमें से केवल एक शिशु ही ब्रीच स्थिति में हो, तो भी।
यदि डॉक्टर को लगे कि आपके बच्चे के कुल्हे में कोई समस्या है, तो वे आपको बच्चों के हड्डी के डॉक्टर के पास भेज सकती हैं। वहां उसकी और विस्तृत जांच हो सकेंगी।
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