मुझे महीने में 2 पीरियड्स क्यों हो रहे हैं?pregnancytips.in

Posted on Tue 18th Oct 2022 : 14:50

पीरियड एक महीने में दो बार क्यों होते हैं, एक्सपर्ट बता रहे हैं इसकी 15 वजहें

वैसे तो पीरियड्स का आना अपने आप में ही किसी मुसीबत से कम नहीं लगता। अपने डेली रूटीन वर्क के बीच, महीने के वो तीन-चार दिन हम जैसे तैसे निकालते हैं और पीरियड्स जाने के बाद हम खुश होते है कि चलो, अब महीने भर की छुट्टी। लेकिन कई बार अगर कोई प्रॉब्लम हो तो यह पीरियड महीने में दो बार भी आ जाते हैं और तब सोचिए कि इन्हें मैनेज करना कितना मुश्किल होता होगा।
क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है कि एक ही महीने में आपको दो बार पीरियड हो गए। माने 15 दिन में? है ना! मेरी एक फ्रेंड के साथ भी ऐसा ही हुआ था। पहले इग्नोर किया। फिर अल्ट्रासाउंड कराया। कोई डरने की बात नहीं थी, बस हॉर्मोन इधर-उधर हो गए थे। इलाज हो गया।

दरअसल, दो पीरियड के बीच की औसत अवधि 28 दिनों की होती है, लेकिन ये 21 से 35 दिनों के बीच बदल सकती है। हर महिला की पीरियड साइकल में फर्क होता है। लेकिन जब किसी महिला को एक या दो महीने में केवल एक बार पीरियड्स होने लगें या फिर एक महीने में दो-तीन बार हों, तो उसे इररेगुलर पीरियड कहा जाता है। यह उस महिला के लिये बहुत ही सीरियस समस्या है। इस समस्या से आगे चल कर नई शादीशुदा लड़कियां आसानी से मां नहीं बन पाती। इसके अलावा कई और भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं सामने आ सकती हैं। जितनी जल्दी हो सके इस समस्या से छुटकारा पाना चाहिए। कुछ महिलाओं में नियमित रूप से दो सप्ताह का मासिक चक्र होता है, जबकि कुछ महिलाओं के लिए ये एक अस्थाई समस्या है। अगर आप अपने पीरियड्स में आकस्मिक बदलाव का अनुभव कर रहे हैं, तो जितना जल्दी संभव हो सकें अपनी डॉक्टर यानि गाइनोलॉजिस्ट से मिलें।

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15 दिन में पीरियड आने का क्या कारण है? -

ऐसे में आपको यह समस्या क्यों हुई, इसका पता लगाना भी जरूरी है। इररेगुलर पीरियड्स के कई कारण हो सकते हैं जिन्हें हम आपको यहां बता रहे हैं। अगर आपके साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं -
1. बर्थ कंट्रोल पिल्स में होने वाला बदलाव -

बर्थ कंट्रोल पिल्स लेने की वजह से महिला की बॉडी में बहुत सारे हार्मोनल बदलाव आते हैं जैसे कि अगर आप गर्भनिरोधक गोली ले रही हैं और आप ने उसमें कोई बदलाव किया है, तो आप ब्लीडिंग का अनुभव कर सकती हैं। इसके अलावा यदि आप ने इन गोलियों को अभी कुछ ही समय पहले लेना शुरू किया है, तो आपके हार्मोन चेंज होने के कारण एक्स्ट्रा ब्लीडिंग भी हो सकती है। अगर आप कभी इन पिल्स को लेना छोड़ देती हैं, तो एडिशनल ब्लीडिंग होना शुरू हो जाता है। यह ब्लीडिंग लास्ट पीरियड की अवधि के दो सप्ताह बाद होने लगती है और यदि यह भारी मात्रा में हो रही हो एवं एक-दो दिन तक रहती हो तो आप स्पष्ट रूप से सोचेंगी कि एक बार फिर से आपके पीरियड्स आ गए हैं। लेकिन यह एक अस्थायी समस्या है जो कि हार्मोन में बदलाव के कारण हो रही है अतः जब आपका हार्मोन लेवल फिर से सही ट्रेक पर आ जाएगा तो आपका मासिक चक्र भी फिर से नियमित हो जाएगा। इसलिए इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।
2. अल्सर भी हो सकता है कारण -
पीरियड्स के दौरान अल्सर की समस्या भारी ब्लीडिंग का कारण बन सकती है। इस ब्लीडिंग को अक्सर गलती से मासिक चक्र की ब्लीडिंग समझा जाता है क्योंकि ये एक नियमित अवधि तक हो सकती है और इसमें रक्त के थक्के भी निकल सकते है।
3. प्रेगनेंट तो नहीं हैं -
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हमें लगता है प्रेगनेंसी का अर्थ है पीरियड का रुक जाना। मगर प्रेगनेंट होने के बाद बीच-बीच में ब्लीडिंग होती रहना आम बात है। खासकर शुरुआत के तीन महीनों में। ये सेक्स या कसरत करने के बाद हो जाता है।
4. एक्टोपिक प्रेगनेंसी भी है गलत -
50 में से 1 प्रेगनेंसी एक्टोपिक होती है। दरअसल, सामान्यतः गर्भाधारण में भ्रूण का विकास गर्भाशय के अंदर होता है लेकिन कई बार एक्टोपिक प्रेगनेंसी भी हो जाती है, जिसमें भूर्ण का विकास फैलोपियन ट्यूब, अंडेदानी और कई बार तो गर्भ के बाहर पेट में कहीं भी होता है। इन जगहों पर भूर्ण पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाता है। धीरे धीरे जब उसका आकार बढ़ने लगता है तो यह जगह फट जाती है और ज्यादा ब्लीडिंग होती है जिससे कई बार स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है लेकिन हम ब्लीडिंग को पीरियड्स से रिलेटिड ब्लीडिंग समझने की गलती कर देते हैं। ऐसे में तुरंत डाक्टर के पास जाएं। अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन के मुताबिक 50 में से 1 प्रेगनेंसी एक्टोपिक होती है।
5. मिसकैरेज तो नहीं हो गया -
गर्भाशय में किसी कारण भ्रूण का अपने आप अंत हो जाना ही गर्भपात कहलाता है। लगभग 15 से 18 प्रतिशत गर्भावस्था गर्भपात में समाप्त होती है। गर्भावस्था के पहले त्रिमास में वैजाइनल ब्लीडिंग का अनुभव होना आम है मगर ये गर्भपात का एक संकेत भी हो सकता है। ऐसे में ज़रूरी है कि आप अपने डाक्टर से परामर्श लें। ऐसे संकेत को नज़रअंदाज़ करना आपके और आपके अजन्मे शिशु के लिए हानिकारक हो सकता है।
6. गर्भाशय में फाइब्रॉयड होना -
महिलाओं में फाइब्रॉयड की समस्या बहुत कॉमन है। अधिकतर 35 से 50 वर्ष की उम्र में यह परेशानी सामने आती है। गर्भाशय फाइब्रॉयड एक नॉन-कैंसर ट्यूमर हैं जिसे यूटेराइन फाइब्रॉयड या गर्भाशय की गांठ के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, यह फाइब्रॉयड रक्तस्राव का बड़ा कारण बन सकते हैं और पीरियड के समय में बहुत ज्यादा रक्तस्राव और पीड़ा दे सकते हैं। इस तरह की समस्या की वजह से भी एक महीने में दो या अधिक बार माहवारी या पीरियड्स की परेशानी हो सकती है।
7. कैंसर के सेल -

अगर आपके अंडाशय या वैजाइना के रास्ते में कैंसर है, तो इससे ब्लीडिंग पर फर्क पड़ता है। कैंसर के कारण भी महीने में दो बार ब्लीडिंग हो सकती है इसलिए इसे अनदेखा ना करें।
8. पीसीओएस एक हार्मोनल बीमारी
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पीसीओएस मतलब पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम। यह एक हार्मोनल बीमारी है जिसमे अंडाशय में छोटे छोटे फोलिकल्स जमा हो जाते है और यह नियमित रूप से अंडे देने में विफल हो जाते हैं। इसलिए जब आपका ओवुलेशन यानी अंडाशय से अंडा निकलने की प्रक्रिया नहीं होती या लेट होती है, तो आपके हॉर्मोन उलट-पुलट हो जाते हैं। जिसका नतीजा सीधे ब्लीडिंग पर दिखता है। इस वजह से भी महीने में दो बार पीरियड्स हो जाते हैं।
9. एंडोमीट्रियोसिस से पीरियड्स की समस्या -
यह सिस्ट ओवरी में बनती है और उसके अंदर ब्लीडिंग होती है। खून अंदर होने की वजह से यह सिस्ट काले रंग की दिखती है। यह सिस्ट धीरे-धीरे अंडे की क्वालिटी को खराब करती है और बाद में ओवरी और ट्यूब को भी खराब करती है। इंटरनल ब्लीडिंग होने की वजह से आसपास के ऑर्गन एकदूसरे से चिपक जाते हैं। इसी वजह से मासिक धर्म के दौरान बहुत पीड़ा सहनी पड़ती है और अनियमित पीरियड्स की समस्या भी होती है। कई लड़कियों में एंडोमेट्रियोसिस की वजह से महीने में दो बार पीरियड आ जाते हैं। ऐसे रोगी को इन्फर्टिलिटी हो सकती है। इस में माइल्ड, मॉडरेट और सीवियर क्वालिटी होती है। उसी के हिसाब से इलाज किया जाता है।
10. एसटीआई से गर्भाशय में सूजन -


कुछ मामलों में, एसटीआईएस यानि सेक्सुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन से गर्भाशय में सूजन आ सकती है। इसके कारण मासिक धर्म की अवधि असामान्य रूप से और साथ ही अधिक दर्दनाक हो सकती है।
11. थायरॉइड की समस्या होने पर -

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लो थायरॉइड फंक्शन भी पीरियड्स के दौरान वैजाइनल ब्लीडिंग से संबंधित है। प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन ये दो हार्मोन मिलकर आपके मासिक चक्र को कंट्रोल करते हैं। ये हार्मोन थायरॉइड ग्रंथि से उत्पादित होते हैं, यही वजह है कि अक्सर थायरॉइड की समस्याओं को मासिक चक्र की अनियमितताओं से जोड़ा जाता है। अधिकतर मामलों में, हाइपरथायरॉइडिज्म मासिक चक्र में विलंब का कारण बनता है, जबकि हाइपोथायरॉइडिज्म मासिक चक्र के दौरान अत्यधिक रक्त स्राव का कारण बनता है। इस वजह से पीरियड का बार बार आने की समस्या हो सकती हैं इसलिए अपने थायरॉइड को कंट्रोल में रखकर भी इस समस्या को रोका जा सकता है।
12. अर्ली मेनोपॉज के दौरान -

यदि 45-50 वर्ष उम्र की किसी महिला को लगातार 12 महीनों तक पीरियड्स नहीं आये हैं तब उस स्थिति को मेनोपॉज कहते हैं। यह सामान्य है, परन्तु यदि यह समय से पहले ही हो जाए तो इसे अर्ली मेनोपॉज कहते हैं। इस दौरान महिला का मासिक धर्म खुलकर नहीं आता है और उसे इररेगुलर मासिक धर्म की समस्या होती है। अक्सर मेनोपॉज नजदीक आने से पहले महिलाओं को महीने में दो बार पीरियड होने की शिकायत होती है। मीनोपॉज की स्थिति में भी रक्तस्राव हो सकता है जिसे ज़्यादातर महिलाएं दूसरी बार का पीरियड समझती हैं। ऐसी स्थिति होने पर डॉक्टर से ज़रूर सलाह लें।
13. ज्यादा स्ट्रेस लेना -

यदि कोई महिला अधिक तनाव में हो, तब भी इसका सीधा पीरियड पर पड़ता है। तनाव की वजह से खून में स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाता है और इस कारण या तो पीरियड बहुत लंबे या बहुत छोटे हो सकते हैं। सन् 2015 में मेडिकल स्टूडेंट्स ने 100 महिलाओं पर एक रिसर्च की थी और जिसमें पाया कि हाई स्ट्रेस लेवल इररेगुलर पीरियड्स से सीधे तौर पर जुड़ा है। यदि आप स्टेस में हैं, तो आपको हेवी ब्लीडिंग हो सकती है, आप अपने पीरियड्स मिस कर सकती हैं या पीरियड का बार बार आना भी सकते हैं।
14. वेट लॉस और वेट गेन से -
किसी महिला का अचानक से वजन बढ़ रहा है या अचानक से वजन घट रहा है, तो उस महिला को इररेगुलर पीरियड्स की समस्या हो सकती है क्योंकि इस दौरान हार्मोन्स में भी बदलाव आता है। रिसर्च के अनुसार शरीर का वजन नियंत्रित करने से लंबे समय तक पीरियड्स की अवधि इररेगुलर हो सकती है।
15. वैजाइना इंफेक्शन भी करता है प्रॉब्लम -

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कई बार महीने में दो बार पीरियड्स आने की वजह वैजाइना इंफेक्शन भी हो सकते है। जैसे वैजाइना में सुजन आने से, रूखापन रहने से या हमेशा गीलापन रहने से भी पीरियड्स के समय बहुत ज्यादा रक्तस्राव हो सकता है। इसी इन्फेक्शन के कारण उन्हें महीने में दो बार पीरियड्स भी हो सकते हैं। इसके इसलिए अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।
महीने में दो बार पीरियड आने से बचने के टिप्स -

एक्सरसाइज उतनी ही करें जितनी कि आपका शरीर सह सके। खुद को थका कर ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करना चाहिए इससे भी पीरियड इररेगुलर हो जाते हैं।
चाहे बॉडी में कोई भी दिक्कत हो, पानी पीना एक अच्छा इलाज है। इसलिए जितना हो सके, उतना पानी पीएं। दिनभर में कम से कम 4-5 लीटर पानी पी लें।
इससे शरीर के टॉक्सिन्स निकल जाते हैं और आपकी सेहत सही रहती है।
अगर आपको पीरियड्स के समय अधिक दर्द होता है, तो आप योग का भी सहारा ले सकती हैं। इसके लिए सबसे अच्छा योगासन है चक्रासन। इसे नियमित रूप से करने से आपको दर्द के साथ-साथ अनियमित पीरियड्स से भी निजात मिल जाएगी।
अपनी लाइफ में तनाव को जितना हो सके कम कर दें।
आपकी डॉक्टर आपको ये बता देगी कि महीने में दो बार आपके पीरियड्स क्यों आते हैं। वो आपको ब्लड टेस्ट और अन्य जरूरी सुझाव दे सकती है ताकि इस समस्या के मूल कारण को पहचाना जा सके।
किसी भी तरह के शारीरिक और मानसिक तनाव से दूर रहें।

क्या खाएं कि पीरियड सही रहें -
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- मसालेदार, खट्टा और भारी भोजन के सेवन से बचें। हल्का खाना खाएं। चाय, कॉफी और ठंडे पेय पदार्थों से दूर रहें।

- अदरक को शहद के साथ खाएं या आधा कप में पानी थोड़ा अदरक मिलाकर 5-7 मिनट के लिए उबाल लें। इसके बाद थोड़ा शहद मिलाएं और खाना खाने के बाद इस मिश्रण का दिन में तीन बार सेवन करें। अदरक की तासीर गर्म होती है, जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म तेज होता है। यह खासतौर से उन महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद है, जिनके पीरियड्स देर से हो रहे हैं या बेहद कम समय के लिए हो रहे हैं।

- कुछ महीनों तक रोज कच्चे पपीते का जूस पीने से पीरियड्स नॉर्मल हो जाते हैं और इससे दर्द भी कम होता है। हरा, कच्चा पपीता गर्भाशय ग्रीवा में हड्डियों के फाइबर से जुड़कर पीरियड्स को नियमित रखता है।

- सौंफ भी इसके लिए अच्छा होता है, इसमें एंटीस्पास्मोडिक तत्व होते हैं, जो पीरियड्स को नियमित करने में मददगार होते हैं।

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