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छोटे बच्चों में सांस की समस्या
बच्चों में सांस लेने में समस्या होना बहुत आम है और यह जन्म के तुरंत बाद भी बच्चे को हो सकती है और कुछ घंटों तक लगातार रहती है। पर कुछ बच्चों में सांस लेने की समस्या गंभीर रूप से होती है और लंबे समय तक रहती है। सांस लेने की कई समस्याएं हैं जो बच्चे को प्रभावित करती हैं। इस आर्टिकल में हमने बच्चों में सांस लेने की समस्या के प्रकार, कारण, लक्षण और उपचारों के बारे में विस्तार से चर्चा की है, जानने के लिए आगे पढ़ें।
बच्चों में सांस लेने की समस्या के कारण
यदि जन्म के बाद बच्चे के लंग्स पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं तो उसे सांस लेने में समस्याएं हो सकती हैं। यद्यपि यह प्रीमैच्योरिटी की वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है पर नवजात शिशुओं में यह समस्या होने के अनेक कारण हैं, आइए जानें;
1. सांस लेने में समस्याएं
प्रीमैच्योर बच्चों में जन्म से ही रेस्पिरेटरी समस्याओं के खतरे होते हैं। रेस्पिरेटरी से संबंधित समस्याओं में सांस लेने में दिक्क्त, फेफड़ों में क्रोनिक रोग या रेस्पिरेटरी ऑर्गन में इन्फेक्शन शामिल हैं।
2. ट्रांसिएंट टैकिप्निया
ट्रांसिएंट टैकिप्निया एक ऐसी समस्या है जिसमें बच्चा जन्म के तुरंत बाद से ही तेज-तेज सांस लेता है। इससे सांस लेते और छोड़ते समय सीने में रिट्रैक्शन होता है।
3. एसफिक्सिया
शरीर में ऑक्सीजन बाधित होने की वजह से एसफिक्सिया होता है। यह तब होता है जब डिलीवरी के दौरान, लेबर के समय में और जन्म के तुरंत बाद शरीर में सांस लेने की क्षमता न हो जिसकी वजह से खून में ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती है। यदि बच्चे में ऑक्सीजन की कमी होती है तो उसकी सांसें तेज हो जाएंगी और ऐसा लगातार होने पर दिल की धड़कन धीमी हो जाती है।
4. निमोनिया
निमोनिया एक इन्फेक्शन है जो वायरस, बैक्टीरिया या फंगाइ से लंग्स में होता है। यह लंग्स में जाकर सांस लेने की नली में सूजन पैदा करता है। बच्चों में निमोनिया होने का कारण डिलीवरी का टाइप, डिलीवरी के दौरान माँ का स्वास्थ्य और डिलीवरी के दौरान कुछ चीजें हो सकती हैं।
5. कॉग्निटिव लंग इन्फेक्शन
नवजात शिशुओं में कॉग्निटिव लंग इन्फेक्शन बहुत कम होता है। हालांकि जन्म के दौरान बच्चे के लंग्स में इन्फेक्शन हो सकता है जिससे आगे चलकर सांस लेने में कठिनाई होती है।
बच्चों में सांस लेने की समस्या होने के लक्षण और संकेत
जन्म के बाद बच्चे में यह समस्या होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं, आइए जानें;
1. खांसी की आवाज या कर्कश रोना
सांस लेते समय खराश की आवाज होने का अर्थ कि सांस की नली या ब्रोन्कियल ट्यूब्स में इन्फेक्शन हुआ है। लैरिंक्स में ब्लॉकेज होने की वजह से नाक के भीतर और सांस की नली में म्यूकस जम जाता है।
2. अस्थमेटिक घरघराहट
यदि बच्चे को सांस लेने में तकलीफ होने के साथ घरघराहट की आवाज आती है और सांस छोड़ते समय चीं-चीं जैसी आवाज आती तो यह अस्थमा के लक्षण भी हो सकते हैं।
3. गहरी सांस लेना
ऊपरी-ऊपरी सांस लेना यानी सांस लेते और छोड़ते समय सीने में गहराई महसूस होती है और यह श्वसन की एक गंभीर समस्या का लक्षण है। ऐसे मामलों में उचित रूप से एंटीबायोटिक्स लेना और मेडिकल ट्रीटमेंट कराना बेहतर होगा।
4. सांस छोड़ते समय सीटी की आवाज आना और सांस लेने में कठिनाई होना
यदि नवजात शिशु की सांसें तेज चल रही हैं तो यह निमोनिया का कारण हो सकता है। निमोनिया अक्सर बैक्टीरियल इन्फेक्शन की वजह से होता है। इसके परिणामस्वरूप सांस तेज चलती है, थोड़ी बहुत खांसी होती है और खराश की आवाज आती है।
5. नाक, माथे, गले और मुँह में नीलापन होना
यदि बच्चे के मुँह व नाक के आसपास की त्वचा का रंग फीका या नीला पड़ रहा है तो इसका अर्थ है कि इन क्षेत्रों में ऑक्सीजन नहीं पहुँच रही है और सांस लेने में समस्या का अनुभव हो रहा है।
6. कर्कश आवाज के साथ सांस लेने में कठिनाई होना
यदि बच्चे को सांस लेने में काफी जोर लगाना पड़ रहा है तो यह रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन या बुखार की वजह से भी हो सकता है।
7. नॉस्ट्रिल फूलना
सांस लेते समय यदि नॉस्ट्रिल फूलती है तो इसका अर्थ है कि बच्चे को सांस लेने में कठिनाई हो रही है। यद्यपि यह किसी गंभीर समस्या के कारण नहीं होता है पर फिर भी डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।
बच्चों में सांस लेने की आम समस्याएं
यदि बच्चे को सांस लेने में दिक्क्त होती है तो इसके निम्नलिखित आम कारण भी हो सकते हैं, आइए जानें;
1. आवाज कर्कश होना
ऐसी तेज आवाज हानिकारक नहीं होती है और यह बच्चे के लैरिंक्स के पास बहुत ज्यादा टिश्यू होने से होता है। इस समय आपको चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह एक साल के भीतर खत्म हो जाएगा।
2. सांस लेने के साथ सीटी की आवाज आना
सीटी की आवाज तब आती है जब नाक की नली म्यूकस या दूध जमने की वजह से ब्लॉक हो जाती है। म्यूकस और सूखा हुआ दूध सांस लेने की नली को छोटा कर देता है जिसकी वजह से बच्चे को सांस लेने में दिक्क्त होती है।
3. तेज सांस लेना या हांफना
बच्चों में सांस लेने का पैटर्न नियमित नहीं होता है और वे तेज-तेज सांसें लेते हैं (हांफते भी हैं)। यह आमतौर पर होता है और यदि बीमार होने के कोई भी लक्षण नहीं है तो चिंता न करें।
4. सीने में कंजेशन होना
बच्चों में दूध का पाचन ठीक से न होने पर यह होना आम है। बच्चे को सही पोजीशन में रखने और आराम से उसकी पीठ थपथपाने से उसे आसानी होगी और ब्रीदिंग पैटर्न फिर से नॉर्मल हो जाएगा।
5. नाक ब्लॉक होना या नेजल कंजेशन होना
बच्चों में रात को सोते या दूध पीते समय नेजल कंजेशन की समस्या होना बहुत आम है। यह नाक में म्यूकस जमने की वजह से होता है जिससे सोते समय और दूध पीते समय कठिनाई भी हो सकती है पर यह गंभीर समस्या नहीं है। बल्ब सीरिंज की मदद से म्यूकस को निकाला जा सकता है ताकि बच्चा ठीक से सांस ले सके।
6. ट्रांसिएंट टैकिप्निया होना
यह बच्चों में जन्म के बाद तुरंत होता है। कभी-कभी फेफड़ों में फ्लूइड बढ़ता जाता है और इसकी वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है। इन समस्याओं में बच्चे को अलग से ऑक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है और कुछ दिनों में ही पूरी तरह से रिकवरी भी हो जाती है।
बच्चों में सांस लेने की समस्याओं को कैसे ठीक करें
अजीब आवाजों और नकारत्मक लक्षणों के मामले में आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर को डाइग्नोसिस के लिए कुछ टेस्ट और अन्य लक्षण काफी मदद करते हैं और इसके बाद ही डॉक्टर इस समस्या के लिए दवा या एंटीबायोटिक लेने की सलाह देते हैं। कभी-कभी वह लंग्स में गंभीर समस्याओं की जांच करने के लिए एक्स-रे कराने की सलाह दे सकते हैं। पर तुरंत इलाज, एंटीबायोटिक और दवा की मदद से बच्चे में सांस लेने की समस्या ठीक हो सकती है।
चिंतित पेरेंट्स के लिए टिप्स
पेरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है कि वे अपने बच्चे के सांस लेने के नॉर्मल पैटर्न को समझें ताकि यदि उसे सांस लेने में समस्या होती है तो इसका अंतर आसानी से समझ आ जाएगा। पेरेंट्स को नियमित रूप से बच्चे की सांसों को महसूस करना चाहिए और समझना चाहिए कि वह एक मिनट में कितनी सांसें ले रहा है।
नवजात शिशुओं में सांस लेने की समस्या बहुत आम है पर इसे ठीक किया जा सकता है। यह बच्चे की रेस्पिरेटरी सिस्टम की गंभीर समस्या हो सकती है और नहीं भी हो सकती है। पर यदि पेरेंट्स इसका पूरा ध्यान रखते हैं और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करते हैं तो सांस लेने की इस समस्या को नॉर्मल ब्रीदिंग पैटर्न में बदला जा सकता है।
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