सिजेरियन डिलीवरी के नुकसान?pregnancytips.in

Posted on Sat 26th Sep 2020 : 00:05

सिजेरियन डिलीवरी के वक्त क्या-क्या होता है, पढ़िए इसके फायदे और नुकसान
Arunima Soni
अरुणिमा सोनी
harms and benefits of Cesarean section & C-section

सिजेरियन डिलीवरी को सिजेरियन सेक्शन और सी-सेक्शन (Cesarean section & C-section) भी कहते हैं। एक प्रेगनेंट महिला जब बच्चे को नॉर्मल डिलीवर करने में असमर्थ होती है, तब डाॅक्टरों को सी-सेक्शन का विकल्प चुनना पड़ता है। हालांकि इसमें किसी तरह का कोई खतरा नहीं रहता लेकिन फिर भी सी-सेक्शन को लेकर महिलाओं के दिलों में आज भी झिझक बाकी है। तो चलिए समझते हैं इस सिजेरियन डिलीवरी के बारे में सबकुछ जैसे की क्या है सिजेरियन डिलीवरी के फायदे और नुकसान, सिजेरियन डिलीवरी में कितना समय लगता है आदि ...

Cesarean Delivery freepik

Table of Contents

क्या होता है सी-सेक्शन? (What is C-section?)
क्यों पड़ती है सी- सेक्शन की जरूरत? (Why C-section Needed?)
सिजेरियन डिलीवरी के कारण (Reason Of Cesarean Delivery)
ऑपरेशन से पहले
सी-सेक्शन का तरीका
सिजेरियन के बाद, After The Surgery
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे-नुकसान (Pros And Cons Of C-section)
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे (C-Section benefits in Hindi )
सी-सेक्शन नुकसान या जोखिम (C-Section delivery side effects in Hindi)

क्या होता है सी-सेक्शन? (What is C-section?)

उस सिजेरियन ऑपरेशन को सी-सेक्शन कहते हैं जिसमें डिलीवरी के दौरान गर्भवती के पेट और गर्भाशय पर चीरा लगाकर शिशु को बाहर निकाला जाता है। इसके बाद डाॅक्टर पेट और गर्भाशय को टांका लगाकर बंद कर देते हैं, जो समय के साथ ही शरीर में घुल जाते हैं।
क्यों पड़ती है सी- सेक्शन की जरूरत? (Why C-section Needed?)

बच्चे के जन्म के लिए सी-सेक्शन करना है या नहीं, यह कई मामलों या कहें पूरी तरह से डाॅक्टर पर निर्भर करता है। कहने का अर्थ यह है आम तौर पर सी-सेक्शन का निर्णय डाॅक्टर तब लेते हैं, जब उन्हें यह पता चल जाता है कि नाॅर्मल डिलीवरी से मां या शिशु या दोनों की ही जान को खतरा हो सकता है। या जब प्रसव के पारंपरिक तरीके में कठिनाई हो रही हो।
सिजेरियन डिलीवरी के कारण (Reason Of Cesarean Delivery)

Reason Of Cesarean Delivery shutterstock

शिशु के दिल की धड़कन असामान्य हो।
पेट में बच्चा उल्टा या तिरछा हो गया हो।
बच्चे के गले में ‘काॅर्ड’ यानि नाल फंस गया हो।
शिशु को विकास संबंधी कोई समस्या हो।
मां के पेट में जुड़वा यानि दो या उससे ज्यादा बच्चे हों।
पहला बच्चा ‘सी सेक्शन’ से हुआ हो। या पेट का कोई दूसरा ऑपरेशन हो चुका हो।
बच्चे को पेट में पूरी ऑक्सीजन ना मिल रही हो।
‘स्टाॅल्ड लेबर’ यानि जब महिला सक्रिय लेबर में हो और लेबर पेन धीमा या बंद हो जाए।
बच्चे का सिर जन्म नली यानि ‘बर्थ कैनाल’ से बड़ा हो।
बच्चे ने पेट में पाॅटी कर ली हो, जिससे उसे इंफेक्शन का खतरा हो।
मां को स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी हो, जैसे थायराॅयड, ब्लड प्रेशर या हृदय से संबंधित कुछ।
‘एक्टोपिक प्रेगनेंसी’ यानि भ्रूण गर्भाशय के अलावा कहीं और स्थित हो।
प्रि-मैच्योर डिलीवरी यानि बच्चा सातवें या आठवें महीने में हो जाए तब।

ऑपरेशन से पहले

Before The Surgery shutterstock

मेरी पहली डिलीवरी में ऐसा ही कुछ हुआ था। हाॅस्पिटल में जब एडमिट हुई तो कंडीशन नाॅर्मल डिलीवरी वाली थी, लेकिन आखिरी समय में डाॅक्टर्स ने सी-सेक्शन करने का निर्णय लिया, क्योंकि ‘लेबर पेन’ नहीं हो रहा था। यहां यह बात बताने की मंशा केवल इतनी थी कि कई बार डाॅक्टर्स ‘प्रेजेंट सिचुएशन’ के हिसाब से एक्शन लेते हैं। इसलिए घबराना नहीं चाहिए।

डाॅक्टर आपको ऑपरेशन की पूरी प्रक्रिया समझाएंगे। अगर प्लानिंग के साथ सी-सेक्शन किया जाएगा तो 8 घंटे पहले खाने-पीने को डाॅक्टर मना करेंगे, लेकिन एक्सट्रीम कंडिशन में एनिमा भी दिया जाता है। पेट में एसिड कम करने के लिए डाॅक्टर्स कुछ दवाइयां दे सकते हैं। साथ ही सर्जरी से पहले कई प्रकार के टेस्ट भी करवाते हैं। जिनमें ब्लड, थायराॅयड, शुगर टेस्ट आदि प्रमुख हैं।
सी-सेक्शन का तरीका

सारी तैयारियां करने के बाद गर्भवती स्त्री के पेट के नीचे का हिस्सा एनेस्थीसिया देकर सुन्न कर दिया जाता है। एनेस्थीसिया रीढ़ की हड्डी में दिया जाता है। उसके बाद डाॅक्टर जननांग से ऊपर और पेट के निचले हिस्से में चीरा लगाते हैं। यानि ‘प्यूबिक हेयरलाइन’ के पास, इसे ‘बिकिनी कट’ भी कहते हैं। आमतौर पर यह चीरा आड़ा (होरिजेंटल) ही होता है, कुछ आपातकालीन स्थितियों में चीरा खड़ा (वर्टिकल) भी लगाया जा सकता है।
इसके बाद गर्भाशय में चीरा लगाया जाता है और शिशु को गर्भाशय से बाहर निकाला जाता है। सबसे पहले डाॅक्टर शिशु के मुंह व नाक को साफ करते हैं, फिर गर्भनाल काटते हैं। साथ ही प्लेसेंटा को गर्भाशय से अलग किया जाता है और कट को टांके लगाकर बंद कर दिया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया के दौरान आपकी आंखों को एक कपड़े से ढक दिया जाता है, ताकि सब देखकर घबराहट ना हो। लेकिन फिर भी चीजें महसूस होती हैं। कम से कम मुझे तो हुई थीं!

सिजेरियन के बाद, After The Surgery

After The Surgery Pexels.Com

सबसे जरूरी समय शुरू होता है सर्जरी के बाद।
सिजेरियन ऑपरेशन के बाद आपको हाॅस्पिटल से तुरंत छुट्टी नहीं मिलती। बल्कि 4 दिन के लिए अस्पताल में ही रखा जाता है। सर्जरी की हीलिंग और पेशेंट के ठीक होने के लिये।
जब एनेस्थीसिया का असर खत्म हो जाता है, तो कुछ समय बाद डाॅक्टर चाय पीने को बोलते हैं, एक दिन बाद रोटी खाने और हल्का चलने के लिए भी कहते हैं। यह सब कब्ज और गैस चेक करने के लिए करते हैं, साथ ही डाॅक्टर ‘टांके’ को चेक करने के लिए भी यह सब करते हैं। यदि उठने या चलने में पेशेंट को कोई समस्या हो रही हो तो उसे तुरंत देख लिया जाए। साथ ही यह भी देखने के लिए कि टांकों में कहीं संक्रमण तो नहीं फैल रहा।
ऑपरेशन के कुछ समय बाद जब आप पहले से थोड़ा बेहतर महसूस करने लगती हैं तो नर्स आपको सहारा देकर उठाने के बाद शिशु को स्तनपान कराने के लिए भी कहती है।
घर जाने से पहले डाॅक्टर आपको कुछ सावधानियां बरतने को कहेंगे, जिनका पालन आपको सख्ती से करना पड़ेगा ताकि आपका ‘पोस्टपार्टम’ यानि सर्जरी के बाद का समय आसानी से गुज़रे।
सिजेरियन डिलीवरी के बाद वैसे तो 8 दिन बाद आप चलने फिरने और हल्का-फुल्का काम करने लायक हो जाती हैं, लेकिन भारी काम करना या भारी सामान उठाना अब भी मना ही होता है, क्योंकि इससे टांकों के खुलने या पकने का डर रहता है।
सर्जरी के बाद खान-पान का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। यानि सर्जरी के बाद हल्का, आसानी से पचने वाला लेकिन पौष्टिक भोजन करना चाहिए, ताकि जल्दी से जल्दी स्वस्थ हो सकें। कुछ दिनों के लिए घी खाना छोड़ दें, इससे टांके जल्दी सूखने में मदद मिलती है।
ऑपरेशन के बाद 8 दिन तक डाॅक्टर नहाने के लिए मना करते हैं। घर आ जाने के बाद भी यह ‘रूल फाॅलो’ करें। पानी पड़ने से टांके पकने या खुलने का डर रहता है।
जितना हो सके ‘बेड-रेस्ट’ करें। तनाव कम से कम लें और अपना पूरा ध्यान अपने बच्चे और खुद के स्वास्थ्य पर लगाएं।
बार-बार उठने-बैठने और ज्यादा शारीरिक श्रम वाले कामों को बिलकुल ना करें।
डिलीवरी के बाद शरीर कमजोर हो जाता है। इसलिए ठंडा पानी पीना, बेवजह पानी के काम करना या पानी में ज्यादा देर रहने, तेज पंखे या एसी में सोने से परहेज करें। क्योंकि खांसी-जुकाम से आपके टांकों में दर्द होगा, जो कि आपकी सेहत के लिए जरा भी अच्छा नहीं रहेगा, ना ही बच्चे के लिए।

सिजेरियन डिलीवरी के फायदे-नुकसान (Pros And Cons Of C-section)

Pros And Cons Of C-section shutterstock

यह तो सर्वमान्य सत्य है कि नाॅर्मल डिलीवरी, सिजेरियन से बेहतर होती है। डाॅक्टर्स भी अंतिम समय तक नाॅर्मल डिलीवरी के लिए ही प्रयासरत रहते हैं। पर स्वास्थ्य के जोखिमों के चलते वे सी-सेक्शन का निर्णय भी लेते हैं। आइए जानते हैं सी-सेक्शन के फायदे-नुकसान।
सिजेरियन डिलीवरी के फायदे (C-Section benefits in Hindi )

अगर मां और बच्चे को जान का खतरा हो तो, सी सेक्शन से बेहतर कुछ नहीं होता।
प्रि-मैच्योर डिलीवरी के लिए सी-सेक्शन वरदान माना जाता है।
किसी तरह की स्वास्थ्य समस्या में सिजेरियन ही बेहतर माना जाता है। मसलन ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी या थायराॅयड।
अब तो वैसे भी सी-सेक्शन का फैशन सा चल निकला है। यदि खुद को पता हो कि हमें सी-सेक्शन डिलीवरी ही करवानी है तो दिन-समय वगैरह पहले से तय किया जा सकता है, और अब लोग ऐसा करते भी हैं।

सी-सेक्शन नुकसान या जोखिम (C-Section delivery side effects in Hindi)

सी-सेक्शन के बाद रिकवरी में समय लगता है।
महिलाओं में खून की कमी हो सकती है।
स्तनपान करा पाने की अवस्था में आने में समय लग सकता है। क्योंकि खुद से उठने-बैठने में दिक्कत होती है।
नाॅर्मल डिलीवरी की अपेक्षा सिजेरियन का खर्चा बहुत अधिक रहता है।
अगर पहली प्रेग्नेंसी सिजेरियन हो तो दूसरी बार भी सिजेरियन का ही खतरा रहता है।
सिजेरियन के बाद कभी-कभी शिशु को ‘जाॅन्डिस’ यानि पीलिया का खतरा हो सकता है।
लेकिन यह तय बात है कि ‘सी सेक्शन’ का चुनाव डाॅक्टर्स इमरजेंसी में यानि ‘लास्ट मूमेंट’ पर ही करते हैं।

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