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स्वस्थ होना परमात्मा का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। हम सभी परम पिता परमात्मा से हमें अच्छा स्वास्थ्य देने की प्रार्थना करते हैं क्योंकि जब भी कोई किसी पीड़ा में या बीमारी से पीड़ित होता है तो उसे तब तक चैन नहीं पड़ता जब तक उसे उससे राहत नहीं मिल जाती। कोई भी किसी डाक्टर अथवा वैद्य या फिर किसी ज्योतिषी अथवा तांत्रिक से सलाह लेने में कितनी भी धन राशि खर्च करने को तैयार रहता है ताकि आराम मिल सके।
बिल्कुल सही कहा गया है कि स्वर्ण बिस्तर अच्छी नींद सुनिश्चित नहीं कर सकता। कोई भी अपने स्वास्थ्य की कीमत पर धन कमा सकता है लेकिन अपनी कमाई दौलत के बल पर स्वास्थ्य वापस प्राप्त नहीं कर सकता। जब किसी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं होता तो उसके लिए जीवन एक बोझ बन जाता है और यदि राहत मिलती नहीं नजर आती तो कई बार वह परमात्मा से मौत की दुआ भी मांगने लगता है।
हम सभी जानते हैं कि डाक्टर, वैद्य केवल रोगी का उपचार कर सकते हैं लेकिन यह सुनिश्चित नहीं कर सकते कि रोगी पूरी तरह स्वस्थ हो जाएगा। केवल परमात्मा ही किसी को भला-चंगा कर सकते हैं। यही कारण है कि हम अच्छे स्वास्थ्य के लिए परमात्मा से प्रार्थना करते हैं लेकिन परमात्मा केवल उन लोगों की मदद करते हैं जो स्वस्थ रहने के लिए अपनी ओर से कर्मों द्वारा बेहतरीन प्रयास करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए अपनी ओर से कर्म करने पड़ते हैं तो फिर हमारा कर्म क्या है? हमें क्या कर्म करना है, यह एक बच्चे से सीखना चाहिए।
कोई यह प्रश्र पूछ सकता है कि बच्चे से ही क्यों? बच्चा जो भी गतिविधियां करता है उन्हीं के अनुरूप अपने आकार, वजन तथा स्वास्थ्य के साथ विकसित होता है। जहां तक हमारी गतिविधियों की बात है, वे हमें बीमार बनाती हैं। हमें एक बच्चे की तरह जीवन जीना सीखना चाहिए ताकि हम भी स्वस्थ विकसित हो सकें और अपनी सेहत को बनाए रख सकें। अब जरा नजर डालते हैं कि बच्चे में कौन से गुण तथा विशेषताएं होती हैं, जो उसे स्वस्थ बनाए रखती और विकसित करती हैं।
बच्चे की विशेषताएं
जब कोई बच्चा जन्म लेता है, वह अपने साथ पिछले जन्मों के संस्कारों की एक कम्पैक्ट डिस्क साथ लेकर आता है। वह एक पवित्र आत्मा (दैवीय रोशनी) के तौर पर इस धरती पर कदम रखता है जिसे पृथ्वी के रचनाकार तथा सभी आत्माओं के मालिक द्वारा पवित्र किया गया होता है। वह पवित्र, मासूम, मस्तीखोर व खुश है और इसके साथ ही उसे अपने खुद पर और अपने आसपास की दुनिया पर विश्वास होता है। वह भावुक भी होता है तथा अपने प्राकृतिक व्यवहार के अनुसार अपने कर्म करता है।
जब हम बड़े होते हैं तब हमारा मूल स्वभाव अप्राकृतिक कार्रवाइयों तथा व्यवहार से विचलित हो जाता है जिससे हमारी आत्मा को चोट पहुंचती है और हमारी शारीरिक प्रणाली में भी गड़बडिय़ां आ जाती हैं। उदाहरण के लिए जब कोई झूठ बोलता है, जोकि आत्मा की प्राकृतिक प्रणाली के खिलाफ है तो वह डरना शुरू कर देता है तथा उसे अपनी गलती को छिपाने की चिंता होने लगती है। इससे हमारे शरीर में तनाव पैदा हो जाता है।
अत: किसी भी अप्राकृतिक व्यवहार का परिणाम चिंता, डर अथवा ग्लानि के रूप में निकलता है, जो हमारे दिमाग पर बिना किराए के कब्जा कर लेता है। इससे हमारे मन में जो तनाव पैदा होता है, वह हमारी शारीरिक प्रणाली पर भी असर डालता है। इसके अतिरिक्त जब कोई चीज हमारी आशाओं के अनुरूप नहीं घटित होती उससे भी हमारी शारीरिक प्रणाली में तनाव तथा गड़बड़ी पैदा हो जाती है। अब हम किसी बच्चे में पाई जाने वाली विशेषताओं पर नजर डालते हैं, जो उसे प्राकृतिक तथा शुद्ध अर्थात तनावमुक्त बनाती हैं जो हमें भी स्वस्थ रहने में मदद कर सकती हैं :
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