2 हफ्ते के बच्चे को कितना खाना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Sat 22nd Oct 2022 : 12:54

शिशु को दिन में कितनी बार ठोस आहार खिलाना चाहिए?
शिशु को गोद में बिठाकर खाना खिलाती माँ

यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपका शिशु कितना बड़ा है। साथ ही हर शिशु अलग होता है इसलिए आपको पहले कुछ विकल्प आजमाने होंगे और फिर तय करना होगा कि उसके लिए सबसे बेहतर भोजन दिनचर्या क्या रहेगी।

शुरुआत में जब आप शिशु को ठोस आहार खिलाना शुरु करती हैं (छह महीने की उम्र के आसपास), तो आपका शिशु दिन में केवल एक ही बार खाएगा। उसे अभी भी उसका अधिकांश पोषण स्तनदूध या फॉर्मूला दूध से मिल रहा होगा। इसलिए उसे मुख्य पेय के तौर पर नियमित स्तनपान या फॉर्मूला दूध पिलाती रहें।

शुरुआती कुछ फीडिंग्स के लिए शिशु को स्तनपान या फॉर्मूला दूध पिलाने के बाद केवल एक या दो छोटी चम्मच भोजन खिलाएं। यह किसी एक फल या सब्जी की प्यूरी या फिर इन्फेंट सीरियल हो सकता है। शिशु के लिए सबसे बेहतर शुरुआती भोजन जानने के लिए यह स्लाइडशो देखें।

आने वाले हफ्तों में धीरे-धीरे एक बार और भोजन देना शुरु करें। आप सुबह के समय फल और दोपहर में या रात के समय अर्धठोस आहार दे सकती हैं। शिशु को भूख को देखकर निर्णय लें। सात महीने का होने तक कुछ शिशु दिन में तीन बार भोजन लेना शुरु कर देते हैं।

जब आपका शिशु आठ से नौ महीनों के बीच होता है तो वह शायद दिन में तीन बार भोजन और एक बार स्नैक ले रहा होगा। शिशु भोजन चबाकर खाए इसके लिए उसे ठेलेदार और अलग-अलग बनावट के भोजन खिलाएं। धीरे-धीरे आप भोजन की मात्रा भी बढ़ाती रहें।

नौ महीने से एक साल की उम्र के बीच आपका शिशु तीन मुख्य भोजन और दो स्वस्थ स्नैक ले रहा होगा।

बहरहाल, ये केवल सामान्य मार्गदर्शक हैं। आपको अपने शिशु के संकेतों पर ध्यान देना चाहिए और देखें कि क्या उसे एक बार में कम या ज्यादा भोजन चाहिए। उसका भोजन अब बड़ों के जैसा होना चाहिए। बारीक कटा हुआ और अलग बनावट वाला भोजन शिशु को चबाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

यदि आपको शिशु के भोजन की दिनचर्या तय करने में मदद चाहिए हो तो आप छह से 12 महीने की उम्र के शिशुओं के लिए हमारा सेम्पल मील प्लान देख सकती हैं।

निम्न बातों का रखें ध्यान:

यदि आपके डॉक्टर शिशु को छह महीने का होने से पहले ठोस आहार खिलाने के लिए कहते हैं, तो खिलाने के तरीके, भोजन और उसकी मात्रा व मील प्लान के लिए उनकी सलाह का पालन करें। ऐसे कई भोजन हैं जो शिशु को छह महीने का होने से पहले नहीं दिए जाने चाहिए। इनमें ग्लूटेन (जो अनाज में पाया जाता है), गाय का दूध और अंडे शामिल हैं।

आपके शिशु की भूख एक बार ज्यादा और दूसरी बार कम भी हो सकती हैं। कुछ दिन हो सकता है शिशु अच्छे से खाए या कभी खाने में आनाकानी करे। यदि किसी बार या किसी दिन शिशु ने पर्याप्त भोजन न भी खाया हो तो भी चिंता न करें। शिशु पूरे हफ्ते में कितनी मात्रा में और कितना पौष्टिक भोजन खा रहा है, वह ज्यादा महत्व रखता है। जब तक आप शिशु को विविध, स्वस्थ आहार देती रहेंगी, आप इस बात को लेकर निश्चिंत हो सकती हैं कि उसे पूरा पोषण मिल रहा होगा।

आपके शिशु का पेट बहुत छोटा होता है और वह एक बार में इतना भोजन नहीं कर सकता कि अगले भोजन तक उसका पेट भरा रहे। भोजन के समय के अलावा यदि बीच में शिशु भूख के संकेत दिखाए तो आप उसे स्नैक दे सकती हैं। आप शिशु को फल दे सकती हैं या फिर ऐसा कुछ दें जिससे शिशु का पेट इतना ज्यादा न भरे कि उसे अगले भोजन के समय तक भूख ही न लगे। शिशु को क्या खिलाएं, इसके सुझावों के लिए आप हमारा शिशु के लिए सेहतमंद स्नैक्स का स्लाइडशो देख सकती हैं।

शिशु को कभी भी जबरदस्ती न खिलाएं। शिशु के पेट भर जाने के संकेतों को देखें। यदि वह अपना मुंह बंद ही रखता है, अपना सिर घुमा लेता है या अपने भोजन के साथ खेलने लगता है, तो ये संकेत है कि शायद उसका पेट भर गया है।

शिशु के भोजन में नमक या चीनी न डालें। एक साल की उम्र से पहले उसे शहद भी न दें क्योंकि इसमें इन्फेंट बोटुलिज्म होने का थोड़ा खतरा रहता है।


ध्यान रखें कि छह महीने से एक साल की उम्र के बीच स्तनदूध या फॉर्मूला दूध आपके शिशु के आहार में अभी भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। शिशु को गाय का दूध मुख्य पेय के तौर पर न दें। यदि आप उसे अन्य प्रकार के दूध देना चाहती हैं, तो अपने डॉक्टर से बात कर लें।

यदि आप पहले साल या इसके बाद भी स्तनपान करवाना जारी रखना चाहती हैं तो जरुरी है कि आप अपने दूध की आपूर्ति बनाए रखें। ऐसा कने का सबसे अच्छा तरीका है कि शिशु को ठोस आहार खिलाने से पहले स्तनपान करवाएं न कि बाद में। आप एक्सप्रेस किया हुआ स्तनदूध या फिर फॉर्मूला दूध शिशु के प्यूरी वाले भोजन या इन्फेंट सीरियल में डाल सकती हैं।

जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है और ज्यादा ठोस आहार खाने लगता है तो वह स्तनदूध या फॉर्मूला दूध कम मात्रा में लेता है। कुछ दिन शायद ऐसा भी हो कि शिशु कुछ खाना न चाहे और केवल दूध ही पीना चाहे।

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