3 महीने के बच्चे को कब बिस्तर पर जाना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Mon 17th Oct 2022 : 11:41

क्या करें कि शिशु रात भर पूरी नींद ले सके
शिशु रात में बहुत से कारणों की वजह से उठ सकते हैं जैसे कि भूख लगने पर, आराम पाने के लिए, तबियत खराब होने पर, विकास का कोई नया माइल्सटोन हासिल करने पर या फिर विकास में वृद्धि (ग्रोथ स्पर्ट) के दौरान। आपका शिशु कितनी जल्दी सो जाता है यह काफी हद तक उसकी उम्र पर निर्भर करता है। साथ ही आपको
उसके विकास के चरण के अनुसार भी चलना पड़ता है। शिशु रात भर पूरी नींद ले सके इसके लिए आप दिन में पूर्वानुमानित, एक समान दिनचर्या रखें और रात में सोने की आरामदेह दिनचर्या रखें। जैसे-जैसे शिशु बड़ा होता है, वह रात को लगातार लंबे समय तक सोने लगेगा।
मेरा शिशु पूरी रात कब सोने लगेगा?
यह आपके शिशु पर निर्भर करता है। आमतौर पर पूरी रात सोने का मतलब है कि शिशु कम से कम छह घंटे बिना किसी व्यवधान के लगातार सो सके।

हर शिशु अलग होते हैं और आपके शिशु की नींद को प्रभावित करने वाले कुछ कारण निम्नलिखित हैं:

आपके शिशु की उम्र
क्या वह समय से पहले जन्मा है (प्रीमैच्योर)
वह स्तनपान करता है या फॉर्मूला दूध पीता है
आपके शिशु की झपकी लेने और सोने की दिनचर्या
आपके शिशु की रात में दूध पीने की दिनचर्या

जब शिशु छह से आठ हफ्ते का होता है तो उसका सोने-जागने का प्राकृतिक चक्र (सर्केडियन रिदम) विकसित होना शुरु होता है। इसका मतलब है कि वह रात में ज्यादा सोना शुरु करेगा और दिन में कम सोएगा।
जब शिशु करीब छह महीने का होता है तो उसकी सर्केडियन रिदम आपके जैसी हो जाएगी। वह रात मे सोएगा और दिन में अधिकांश समय जगा रहेगा। कुछ शिशु तो कई बार लगातार आठ घंटे तक सोते हैं।

बहरहाल, अगर आपका शिशु रातभर नहीं सोता है, तो कुछ महीनों में आपको उसकी नींद के तरीके का पूर्वनुमान लग जाएगा। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह रात में ज्यादा समय तक सोना शुरु कर देगा। हालांकि, ध्यान रखें कि अधिकांश शिशु एक साल का होने से पहले हर रात पूरे समय सोएं, ऐसा मुश्किल ही है।
मेरे शिशु की रात की नींद बार-बार क्यों टूटती है?
शिशु के रात में जागने के बहुत से कारण होते हैं, उदाहरण के तौर पर:

हो सकता है वह भूखा हो। नवजात और छोटे शिशुओं का पेट बहुत छोटा होता है, जिसमें ज्यादा दूूध इकट्ठा नहीं हो सकता। नवजात शिशु का दूध पीकर सोने के बाद दो या तीन घंटे में फिर से भूख लगने पर उठना सामान्य है। कुछ शिशु छह महीने का होने पर रातभर बिना दूध पीए सोना शुरु कर सकते हैं। वहीं कुछ अन्य कई महीनों तक रात में दूध पीने के लिए उठते हैं।
हो सकता है उसकी नैपी या लंगोट बदलने की जरुरत है।
उसे सोने के लिए कुछ मदद की जरुरत है। हर रात सोने की एक समान दिनचर्या होना अच्छा रहता है।

हो सकता है वह बीमार हो, उसके दांत आ रहे हों, वह विकास का नया कौशल सीख रहा हो या विकास में तेजी (ग्रोथ स्पर्ट) पकड़ रहा हो।
मौसम में बदलाव की वजह से शिशु के कमरे का तापमान प्रभावित हो सकता है, जिससे शिशु को रात में असहजता महसूस हो सकती है।

और वयस्कों की ही तरह बच्चे के लिए भी रात को स्ट्रेचिंग या गहरी सांस लेने के लिए कई बार थोड़ी देर के लिए उठना सामान्य है।
कौन से उपाय शिशु को रात भर पूरी नींद लेने में मदद कर सकते हैं?
यहां दिए गए उपाय शिशु को आराम से सोने और आंख खुलने पर खुद दोबारा सोने में मदद करेंगे। शिशु को अकेले रोकर सोने देने से लेकर उसके साथ सोने तक बहुत अलग-अलग तरह की रणनीतियां हैं। यह आपको देखना है कि कौन सी रणनीति आपके और आपके परिवार के हिसाब से सही है।

शुरुआत से ही शिशु की नींद का एक नियमित पैटर्न बनाना और उसे शुरु से ही सोने की अच्छी आदतें सिखाना फायदेमंद है। निम्नांकित उपाय शिशु को छह हफ्ते से ही आरामदायक नींद पाने में मदद कर सकते हैं। हालांकि ध्यान रखें कि आप कोई भी तरीका अपनाएं, यह सफल तभी होगा जब आप लगातार इसका पालन करें:

दैनिक दिनचर्या बनाएं: अगर आप सारे दिन शिशु की दिनचर्या एक समान रखें तो रात को शिशु के सोने का समय तय करने और उसे सुलाने में ज्यादा मुश्किल नहीं होगी। वह आराम से सो जाएगा। अगर शिशु हर दिन समान समय पर सोए, खाए-पीए, खेले और रात में भी उसे समान समय पर सुलाया जाए, तो पूरी संभावना रहती है कि शिशु बिना किसी परेशानी के आसानी से सो जाएगा।

शिशु के बेडटाइम का सही समय चुनें। ध्यान रखें कि शिशु को सुलाने का सही समय रात को 7.30 बजे से 9 बजे के बीच होता है, इसलिए कोशिश करें कि आप शिशु की नींद की दिनचर्या इसी हिसाब से बनाएं। अक्सर कामकाजी माता-पिता दफ्तर से आने के बाद अपने शिशु के साथ समय बिताने के लिए उसके सोने के समय में देरी कर देते हैं। कुछ परिवारों में तो शिशु को रात 11 बजे तक सुलाया जाता है। हो सकता है कि आपको शिशु चुस्त और खेलने के लिए तैयार लगे मगर यह संकेत है कि उसका सोने का समय निकल गया है। इसके बाद जब आप उसे सुलाना चाहें, तो शायद वह उस समय सोना न चाहे और आपको परेशानी हो।

आराम देने वाला बेडटाइम रुटीन बनाएं। जब शिशु करीब तीन महीने का हो, तो आप उसके लिए आराम देने वाला बेडटाइम रुटीन शुरु कर सकती हैं। जिस समय आप शिशु को सुलाना चाहे, उससे एक घंटा पहले से उसका बेडटाइम रुटीन शुरु कर दें। टीवी या कोई अन्य उपकरण बंद कर दें, क्योंकि इनसे शिशु की सोने की दिनचर्या प्रभावित हो सकती है। कमरे में रोशनी कम कर दें और शिशु को आरामदायक स्नान कराएं या उसकी मालिश करें। उसे लोरी सुनाएं, कहानी पढ़कर सुनाएं और खूब प्यार-दुलार करें। इन सभी से शिशु को आराम पाने और नींद आने में मदद मिल सकती है।

शिशु को नींद में ही दूध पिलाएं। यदि आपके शिशु बहुत मुश्किल से सोता है, तो उसे देर रात जगाकर दूध पिलाने से वह और लंबे समय तक सोता रहेगा। कमरे की रोशनी को कम ही रखें और अपने सोते हुए शिशु को गोद में उठाएं। उसे स्तनपान करवाएं या बोतल से दूध पिलाएं। शिशु नींद से हल्का सा जागकर दूध पीना शुरु कर सकता है, मगर यदि ऐसा न हो तो निप्पल को हल्के से उसके होंठो पर तब तक फिराएं जब तक वह इसे मुंह में न ले ले। जब शिशु दूध पी ले, तो उसे फिर से बिस्तर पर लिटा दें।

शिशु को अपने आप सोने दें। जब शिशु ​तीन महीने का हो जाए, तो आप उसे खुद से सोने के लिए प्रोत्साहित करना शुरु कर सकती हैं, हालांकि सभी बच्चे खुद से नहीं सोते है। शिशु को दूध पिलाने के बाद जब वह उनींदा सा हो मगर सोया न हो, तब आप उसे पीठ के बल बिस्तर पर लेटा दें और देखें कि आपके पास होने से अपने आप सोता है या नहीं। उसे सुलाने के लिए आप कोई आवाज या शब्द भी बोल सकती हैं। जब शिशु को नींद आए तो यही दोहराएं, ताकि शिशु इसे सोने के समय और उनींदा होने से जोड़ सके। नींद के कुछ विशेषज्ञ शिशु को गोद में हिलोरे देते हुए या फिर दूध पिलाते हुए सुलाना सही नहीं समझते। बहरहाल, बहुत से लोग इस बात को नहीं मानते, इसलिए आपके परिवार के लिए जो सही हो आप वह करें।

नींद का प्रशिक्षण दें। बहुत से शिशुओं को रात में जागने के बाद फिर से सुलाना मुश्किल हो जाता है। अगर आपका बच्चा छह महीने का है तो आप उसे अपने आप फिर से सोना सिखा सकती हैं। इसे नींद का प्रशिक्षण (स्लीप ट्रेनिंग) कहा जाता है। इसके बहुत से तरीके हैं, और कई तरीकों में शिशु को अपने आप रोते हुए सोने नहीं दिया जाता।

याद रखें कि शिशु कितनी जल्दी सोता है यह काफी हद तक उसकी उम्र पर भी निर्भर करता है। आपको भी उसके विकास के चरण के अनुसार चलना होगा।
मेरा शिशु रात को जागता है और दिन में सोता है। उसकी दिनचर्या में बदलाव कैसे करूं?
बहुत सारे शिशुओं को रात में खेलना और​ क्रियाशील रहना अच्छा लगता है, और दिन मे वे सोते हैं। अगर आपका शिशु अन्य परिवारजनों की तरह रात में सोता और दिन मे जागता नहीं है तो काफी मुश्किल हो सकता है, मगर आप धैर्य रखें।

अधिकांश शिशु करीब एक महीने में परिवार के अन्य सदस्यों की तरह ही सोना व जागना शुरु कर देते हैं। बहरहाल, जब आपका शिशु कुछ हफ्ते का ही हो, तो आप उसका नींद की दिनचर्या शुरु कर सकती हैं।

दिन के समय
जब शिशु क्रियाशील हो तो आप उसके साथ खेलें और बातचीत करें। दिन के समय दूध पिलाते समय शिशु से बातें करें और माहौल को उत्साहपूर्ण बनाए रखें।
पर्दे खोल दें और घर और शिशु के कमरे में रोशनी आने दें।
दिन में घर और बाहर से आने वाले शोर को दबाए न। संगीत बजाएं, फोन को बजने दें और घर में होने वाले आम शोर व आवाजों को बंद न करेंं।
शिशु को रोशनी में बाहर ले जाएं, खासकर सुबह के समय। इससे नवजात शिशु को पूर्वानुमानित दिनचर्या को समझने में मदद मिलेगी।

रात के समय

शिशु से ज्यादा बात न करें और धीमे बोलें।
रोशनी और शोर का स्तर कम रखें।
दूध पिलाने या डायपर या लंगोट बदलने के लिए नाइटबल्ब या कम रोशनी का इस्तेमाल करेंं।
शिशु का ध्यान न बांटें और उसे सोने के लिए प्रोत्साहित करें।

धीरे-धीरे आपका शिशु समझने लगेगा कि दिन का समय मस्ती के लिए और रात का समय सोने के लिए होता है।
ध्यान रखें कि हो सकता है आपका शिशु ​एक रात बहुत अच्छे से सोए और अगली रात नींद से जागे। कुछ समय तक ऐसा ही रहेगा। मगर जब आपके शिशु का मस्तिष्क और केंद्रिय तंत्रिका तंत्र और विकसित होगा, तो उसके सोने का चक्र भी लंबा होगा और वह रात में ज्यादा देर तक सोएगा।

यदि आप संयुक्त परिवार में रहती हैं और परिवार के अन्य सदस्य शिशु की देखभाल में मदद करते हैं, तो उनसे भी आप शिशु की नींद की रणनीतियों पर चर्चा करें। यदि परिवार के सभी लोग शिशु को सुलाने का एक ही तरीका अपनाएंगे तो शिशु और आपके लिए यह आसान रहेगा।
मेरा शिशु अच्छी तरह सोने लगा था लेकिन अब फिर से उसकी नींद टूट रही है। इसका क्या कारण है?

कई बार आपके शिशु की नींद का पैटर्न बदल सकता है। हो सकता है वह अच्छी तरह सोने लगा हो मगर अब फिर से उसकी नींद कम हो सकती है, वह नींद से ज्यादा बार जागने लगा हो या रात मे उठने के बाद फिर से सोने में मुश्किल हो रही हो। इसे अंग्रेजी में 'स्लीप रिग्रेशन' कहा जाता है। हालांकि, शिशु की नींद में बदलाव उसके सामान्य विकास का हिस्सा है।

बदलाव के ये चरण अस्थाई होते हैं और कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों तक चल सकते हैं। हालांकि, यदि आप पहली बार माता​-पिता बने हैं और बहुत थकान हो रही हो तो आपको यह चरण काफी लंबा लग सकता है।

बहुत से माता-पिता का मानना है कि पहले साल में शिशु की नींद में बदलाव आम चरणों पर आते हैं। इस तरह का पहला बदलाव करीब चार महीने की उम्र में देखा जाता है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि अब आपके शिशु की नींद का पैटर्न आपकी तरह होना शुरु हो रहा होता है। जब आपका शिशु बहुत छोटा होता है और उसे नींद आती है तो वह सीधा सपनों वाली नींद में जाता है, जिसे अंग्रेजी में एक्टिव स्लीप या रैपिड आई मूवमेंट स्लीप (आरईएम) कहा जाता है। जब वह थोड़ा बड़ा होता है आरईएम स्लीप अब रात में होने लगती है। अगर आपके शिशु ने अभी तक रात में जागने के बाद खुद से दोबारा सोना नहीं सीखा है तो वह नींद के एक चरण से दूसरे चरण में जाते हुए ज्यादा बार उठ सकता है।

नौ महीने की उम्र के आसपास शिशुओं का ज्यादा बार उठना भी आम है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय तक बच्चे पहली बार जुदाई की चिंता (सैपरेशन एंग्जायटी) महसूस करने लगते हैं, जिससे उनकी नींद में खलल पड़ सकता है। नए कौशल जैसे कि घुटनों के बल चलना, सोने से पहले खेलना और दोपहर बाद झपकी लेना भी शिशु के नींद के पैटर्न को प्रभावित कर सकता है।

यदि आपका शिशु पहले अच्छे से सोता था, मगर अब अचानक से रात में जागने लगा है, तो आपको चिंता हो सकती है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है। इसलिए यह पता होना अच्छा है कि अच्छी तरह सोना शुरु करने के बाद भी अचानक से शिशु का नींद से जागने लगना सामान्य है।

इस समय पर आपको फिर से वही दिनचर्या शुरु करनी होगी: दिन में पूर्वानुमानित, एक समान दिनचर्या रखें और शाम को आरामदायक बेडटाइम रूटीन का पालन करें। यदि आपका शिशु थोड़ा बड़ा हो तो आप नींद के प्रशिक्षण की कोई रणनीति एक हफ्ते तक आजमा सकती हैं। यदि आपको कोई फायदा न दिखे तो दोबारा विचार करें और नया तरीका अपनाएं।
अगर मेरा शिशु पूरी नींद नहीं ले पाता तो क्या यह चिंता की बात है?
शुरुआत के कुछ सालों में शिशु के नींद के पैटर्न में बदलाव आना पूरी तरह सामान्य है। साथ ही, यदि किसी और का बच्चा जल्दी रात भर सोना शुरु कर देता है तो जरुरी नहीं है कि आपका शिशु भी ऐसा करेगा। कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में आसानी से जाग जाते हैं या सोने व जागने का नियमित चक्र स्थापित करने में उन्हें मुश्किल होती है।

हालांकि, कई बार नींद से जुड़ी परेशानियां किसी अंतर्निहित स्वास्थ्य समस्या की वजह से हो सकती हैं। यदि आपका बच्चा नियमित तौर पर रात में कई बार जाग रहा है, तो इस बारे में डॉक्टर से बात करें। डॉक्टर यह सुनिश्चित कर सकेंगे कि कोई चिंता की बात नहीं है और जरुरी हुआ तो वे शिशु की नींद के बारे में आपको सलाह भी दे सकेंगे।

शिशु की नींद को प्रभावित करने वाली स्वास्थ्य समस्याओं मे शामिल हैं:
बीमारी। यदि शिशु को कान में संक्रमण, पेट में गड़बड़ हो या किसी और स्वास्थ्य स्थिति के कारण बुखार या दर्द हो तो संभव है रात भर उसे नींद न आए।
निद्रा अश्वसन (स्लीप एपनिया)। यदि शिशु को सोते हुए सांस लेने में मुश्किल हो रही हो, तो यह निद्रा अश्वसन (स्लीप एपनिया) का संकेत हो सकता है। छह महीने से कम उम्र के शिशुओं मे अनियमित श्वसन क्रिया होना सामानय है और कई बार उनकी सांसों में कुछ सैकंड का ठहराव भी आ सकता है। मगर यदि शिशु बहुत तेज आवाज में सांस ले रहा है या खर्राटे भर रहा है, 20 सैकंड या इससे ज्यादा के लिए सांस लेना बंद कर देता है या फिर गला घुटने जैसे अहसास के साथ जागता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
गैस्ट्रोईसोफेगल रिफ्लक्स। अगर आपका बच्चा बार-बार उल्टी करता है या बहुत अधिक मात्रा में दूध निकालता है या फिर दर्द में रोता हुआ उठता है तो हो सकता है उसको गैस्ट्रोईसोफेगल रिफ्लक्स की समस्या हो। ऐसा तब होता है जब भोजन नलिका (ईसोफेगस) को पेट से जोड़ने वाला वैल्व सही से काम न करे और शिशु के पेट के अम्लीय तत्वों को उसके मुंह में वापिस भेजे। इसके लिए उसे चिकित्सकीय उपचार की जरुरत पड़ सकती है।

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wordpress 1 year ago 5 Answer
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