36 सप्ताह की गर्भवती होने पर मुझे क्या करना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Fri 14th Oct 2022 : 10:50

36 सप्ताह गर्भवती होने पर क्या जानना जरुरी है
प्रसव की नियत तिथि के आसपास, 36 से 40 सप्ताह के बीच एक अन्य ग्रोथ स्कैन और रंगीन डॉप्लर अध्ययन करवाया जा सकता है, जिसमें गर्भनाल की स्थिति पता लगाना, एमनियोटिक द्रव की मात्रा मापना, शिशु की सेहत और रक्तसंचार, अपरा की अवस्था, शिशु की अवस्था और वजन को जानना आदि को शामिल है।


मेकोनियम एक चिपचिपा, काला गाढ़ा पदार्थ होता है, जो शिशु का पहला मल त्याग होता है। कुछ शिशु गर्भाशय में रहने के दौरान ही मेकोनियम त्याग देते हैं और यह इस बात का संकेत हो सकता है कि वे परेशान हैं। यदि ऐसा होता है, तो ऐम्नियॉटिक द्रव धब्बेदार हो सकता है और साफ और पनीले रूप से बदलकर कुछ-कुछ हरे रंग का हो जाता है। यदि आपके पानी की थैली फट जाती है और आपको इसका पता चल जाता है, तो यह अहम होगा कि आप अपनी दाई या डॉक्टर से जल्द से जल्द जाँच करवाएं।

आपके शिशु की खोपड़ी एक जटिल ढांचा होती है और इसके अंदर की हड्डियाँ इसके बड़े होने तक साथ नहीं जुड़ेंगी।जन्म के दौरान, यह अहम होता है कि शिशु की खोपड़ी माँ के बर्थ कैनाल के अनुसार आकार ले ले और अनुकूलित हो जाए। यदि यह आपका पहला गर्भ है, तो आपके शिशु का सिर इस हफ्ते आपके पेड़ू में आने या खिसकने लगता है। अब उसके यहाँ-वहाँ मुड़ने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं बचता है और उसकी गतिविधियाँ अब सीमित हो जाती हैं। यदि आपका शिशु सिर नीचे वाली पोज़िशन के अलावा किसी अन्य पोज़िशन में है, तो आपको अपनी दाई या डॉक्टर से प्रसव के विकल्पों पर चर्चा करनी होगी।

इस हफ्ते आपके शरीर में होने वाले बदलाव

अपनी पीठ के बल लेटने की सलाह नहीं दी जाती है, इसलिए करवट लेकर सोना ही एकमात्र विकल्प होता है। समस्या यह होती है कि आपके पास बदलने के लिए केवल दो करवटें ही होती हैं, इसलिए आपको अपने कूल्हों या जांघों के आसपास थोड़े दर्द का अनुभव हो सकता है। रात में कुछ बार टॉयलेट जाने की आदत डाल लें। आपका गर्भाशय इतना बड़ा हो जाता है कि आपके ब्लैडर को अधिक मूत्र भरने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे आपको लगे आपको टॉयलेट जाना ही होगा।

लेटी हुई अवस्था से सीधा बैठने में जल्दबाजी करने से बचें और अपने रक्त चाप को अनुकूलित होने दें। आपके डॉक्टर शायद अब से लेकर शिशु जन्म तक आपको साप्ताहिक रूप से ऐंटी-नेटल अप्वाइंटमेंट के लिए प्रेरित करेंगे। सामान्य जांचों में आपके मूत्र, रक्त चाप, वज़न और गर्भाशय के आकार की जाँच शामिल होगी। आपकी फंडल ऊँचाई को मापा जाएगा ताकि देखा जा सके कि क्या यह आपकी तिथियों से मेल खाती है या नहीं।यदि कोई अंतर होता है, तो आपको एक अल्ट्रासाउंड के लिए भेजा जा सकता है जिसमें आपके शिशु के आकार, ऐम्नॉटिक द्रव की मात्रा और प्लैसेंटल आकार की जाँच की जाएगी। यदि आप शिशु की उन गतिविधियों के जवाब में अपनी उंगुलियों से धीरे से कोचती हैं, तो आप पाएंगी कि आपका शिशु भी वापस से कोंचेगा। इन आखिरी के कुछ हफ्तों में आपके पेड़ू की हड्डियां अलग और ढीली हो रही होती हैं, जिसके कारण आपको घाव और दर्द का अनुभव हो सकता है।

गर्म पानी से नहाना या शॉवर लेना, मसाज करना, आराम करना और खुद का ख्याल रखना इन अंतिम हफ्तों में आगे बढ़ने के अच्छे तरीके होते है। यदि इस हफ्ते आपके शिशु का सिर पेड़ू में आ जाता है, तो आप पाएंगी कि आप अधिक आसानी से सांस ले पा रही हैं। आपके फेफड़े और डायफ़्राम थोड़ा अधिक फैल सकते हैं और अपनी सामान्य पोज़िशन में जा सकते हैं। हां, तकरीबन।

इस हफ्ते के सुझाव

यह अहम है कि आप दिन में कम से कम दो बार ब्रश करें, फ़्लॉस करें और नियमित रूप से अपने डेंटिस्ट से जांच करवाएं। दांतों में सड़न पैदा करने वाले बैक्टीरिया काफी संक्रामक होते हैं और माँएं आसानी से अपने मौखिक बैक्टीरिया को अपनी लार और सांसों के जरिए अपने शिशु के रोगाणुमुक्त मुँह में हस्तांतरित कर सकती हैं।

दोपहर में एक घंटे की झपकी लेना अच्छा रहेगा। दोपहर में काफी अधिक सोने से रात की नींद पर असर पड़ सकता है, इसलिए दोपहर के खाने के बाद आप कितने समय तक आराम करती हैं, इसे लेकर सावधान रहें।अपने शिशु के बिस्तर को तैयार करने पर सोच-विचार और खोज करें। खुद को SUDI (नवजात-शिशुओं में अचानक होने वाली अस्पष्ट मृत्यु) के खतरे को कम से कम करने के लिए तैयार करें। जानकारी होना हमेशा अच्छा होता है, है न?

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