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पेकिंग यूनिवर्सिटी और हावर्ड यूनिवर्सिटी की टीम के मुताबिक यदि सेहतमंद भ्रूण का पता लगाने के लिए नई स्क्रीनिंग विधि का इस्तेमाल किया जाए तो आईवीएफ को 60 फीसदी ज़्यादा सफल बनाया जा सकता है.
इस टीम का कहना है कि चीन में इस प्रक्रिया का परीक्षण किया गया है और इसके नतीजों ने ज्यादा उम्र की महिलाओं के लिए नई संभावनाएं जगाई हैं.
ब्रिटेन के प्रजनन विशेषज्ञ ने कहा है कि सेल पत्रिका में छपे इस शोध को समझने में ख़ास एहतियात बरतनी होगी.
आनुवंशिक समस्या
आईवीएफ तकनीक के जरिए अण्डाणु और शुक्राण को प्रयोगशाला में एक परखनली के भीतर मिलाया जाता है. इसके बाद बने भ्रूण को मां के गर्भ में आरोपित कर दिया जाता है.
आईवीएफ की सफलता को अधिकतम करने के लिए प्रजनन से जुड़े क्लीनिक कई तरह की स्क्रीनिंग प्रक्रिया को अपनाते हैं. ये क्लीनिक इन प्रक्रियाओं की मदद से भ्रूण आरोपित करने का सबसे सुरक्षित तरीका तलाशते हैं.
बढ़ रहे भ्रूण से कोशिकाओं को हटाने का तरीका अक्सर इन तरीकों में से एक होता है. ऐसे में यह भी संभव है कि इसमें सभी आनुवंशिक समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है.
यह नया तरीका अंडाणु दान करने वाले किसी वालंटियर से लिए गए 70 निषेचित अंडों पर किए गए अध्ययन पर आधारित है. यह नया तरीका ध्रुवीय निकाय के नाम से जाना जाने वाले कोशिका मे बचे खुचे टुकड़ों को नए नए विकसित हो रहे भ्रूण से हटाने और उनकी संपूर्ण आनुवंशिकी कोड का विश्लेषण करने पर आधारित रहा.
आईवीएफ
पेकिंग यूनिवर्सिटी के मुख्य शोधकर्ता जीई क्वीओ ने कहाः "सैद्धांतिक रुप से देखा जाए तो अगर यह तरीका सफल हुआ तो हम टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक की सफलता को 30 फीसदी से बढ़ाकर 60 फीसदी या इससे भी ज़्यादा कर सकते हैं."
अधिक उम्र की महिला
शोधकर्ताओं में से एक हावर्ड यूनिवर्सिटी के जिआओलिंग सन्नी जेई कहते हैं कि कई बार मां के डीएनए में किसी आनुवंशिकी गड़बड़ी होने के कारण आईवीएफ़ सफल नहीं होता, या गर्भपात हो जाता है. कई बार बच्चे में भी आनुवंशिक समस्या पनप जाती है. लेकिन इस नई तकनीक के ज़रिए बढ़ रहे भ्रूण में मां द्वारा दान किए गए डीएनए में आनुवंशिक असमान्यताओं के होने की जांच की जाती है.
उन्होंने कहा, "यह तरीका उन महिलाओं क लिए बेहद कारगर साबित होने वाला है जिनपर आईवीएफ़ तकनीक लगातार असफल होती है. यह तरीका ख़ासकर अधिक उम्र की महिलाओं में भ्रूण उपचार को अधिक सफल बना सकता है."
आईवीएफ
उन्होंने बीबीसी को बताया, "हमारे पास इन सिद्धांत के प्रमाण हैं. इसका चिकित्सीय परीक्षण पहले ही शुरू किया जा चुका है. इसने आईवीएफ़ की लगातार विफलता से जूझ रही महिलाओं के लिए आशा बन कर आया है."
दुनिया भर में ऐसे 15 फीसदी जोड़े ऐसे हैं जो संतान पैदा करने में शारीरिक रूप से सक्षम नहीं हैं. इसमें से कई जोड़ों ने बच्चा पाने के लिए आईवीएफ़ का सहारा लिया है.
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