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प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड कब और कितनी बार करवाना चाहिए? जानें कितना जरूरी है समय पर अलट्रासाउंड
प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड कब और कितनी बार करवाना चाहिए? जानें कितना जरूरी है समय पर अलट्रासाउंड
अल्ट्रासाउंड इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि इससे डॉक्टर को ये समझने में मदद मिलती है कि मां की कोख में पल रहा बच्चे की ग्रोथ सही चल रही है या नहीं।
यूं तो प्रेगनेंसी का हर फेज बहुत ही ज्यादा देखभाल से जुड़ा होता है और इस दौरान सही जांच, डॉक्टर की सलाह और नियमित रूप से ली जाने वाली दवाओं का खास ख्याल रखना पड़ता है। प्रेगनेंसी के दौरान यूं तो हर जांच जरूरी होती है लेकिन गर्भावस्था में नियमित अल्ट्रासाउंड कराना भी हेल्दी प्रेगनेंसी का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा है। अल्ट्रासाउंड इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि इससे डॉक्टर को ये समझने में मदद मिलती है कि मां की कोख में पल रहा बच्चे की ग्रोथ सही चल रही है या नहीं। इस लेख में हम आपको प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी देने जा रहे हैं, जिन्हें एक महिला के साथ-साथ पुरुष को जानना चाहिए तो आइए जानते हैं कुछ जरूरी जानकारियां।
कितने प्रकार के होते हैं अल्ट्रासाउंड
प्रेगनेंसी के दौरान एक महिला को कई प्रकार के अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह दी जाती है, जिसमें एनोमली स्कैन, डबल मार्कर, डॉप्लर जैसे अल्ट्रासाउंड प्रमुख होते हैं।
अल्ट्रासाउंड से होते हैं नुकसान?
अगर मेडिकल साइंस की मानें तो एक्सपर्ट इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड से किसी प्रकार के नुकसान की सम्भावना बेहद ही कम होती है। इसके अलावा इससे शिशु के स्वास्थ्य पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। डॉक्टर्स, हमेशा महिला की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही अल्ट्रासाउंड की सलाह देते हैं। महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कुछ टेस्ट कराने होते हैं, जो प्रत्येक तिमाही में जरूरी होते हैं।
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कितनी बार कराना चाहिए अल्ट्रासाउंड
1-प्रेगनेंसी का पहला अल्ट्रासाउंड वायबेलिटी स्कैन के रूप में जाना जाता है, जिसे गर्भधारण के 6 से 9 सप्ताह में करवाने की सलाह दी जाती है।
2-दूसरा अल्ट्रासाउंड, जिसका नाम न्युकल ट्रांसलुसेंसी यानी NT होता है। इसे एक जरूरी जांच के रूप में माना जाता है और ये गर्भधारण के ग्याहरवें हफ्ते से लेकर तेरहवें हफ्ते के बीच में होता है।
3-इसके बाद डबल मार्कर, जिसमें शिशु की ग्रोथ का सटीक अनुमान लगाया जाता है।
4-गर्भावस्था के 5वें और 6वें महीने में डॉप्लर टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।
कुल-मिलाकर कहा जाए तो प्रेगनेंसी पीरियड के दौरान 4 से 5 अल्ट्रासाउंड करवाने में कोई हर्ज नहीं है।
अल्ट्रासाउंड के फायदेः
1-अल्ट्रासाउंड से प्रेगनेंसी की सटीक जानकारी मिलती है।
2-अल्ट्रासाउंड से इस बात की जानकारी मिलती है कि कहीं भ्रूण, गर्भाशय से बाहर तो नहीं, जिसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं।
3-शिशु की दिल की धड़कन का पता चलता है।
4-शिशु के हाथ पैर और तंत्रिका तंत्र का विकास सही है या नहीं, इसकी जानकारी मिलती है।
5-शिशु का वजन पता चलता है और यह एक्पेक्टेड डेट ऑफ़ डिलीवरी(EOD) भी बताता है।
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