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डायपर विशेष तरीके के पॉलीमर मटेरियल से बने होते हैं। इनमें सेलुलोज, पॉलिप्रॉपिलीन, पॉलिस्टर, सुपर एबजॉर्बेंट पॉलिमर (एसएपी), पॉलिथिरीन शामिल हैं। इनमें डायपर में अलग-अलग लेयर में इस्तेमाल किया जाता है। अंदरूनी और ऊपर की सतह में सोखने वाली होती है, जो मल-मूत्र को सोख लेती है। थैलेट डायपर को लचीला और मजबूत बनाते हैं। हालांकि यह थैलेट पॉलीमर से बंधे नहीं होते हैं जिसके कारण यह पॉलीमर के जरिए आसानी से छोड़ दिए जाते हैं।
टॉक्सिक्स लिंक में एसोसिएट डायरेक्टर (सह-निदेशक) सतीश सिन्हा ने कहा कि थैलेट अंतःस्त्रावी तंत्र की कार्यप्रणाली को बाधित करने वाले रासायनिक तत्वों के रूप में जाने जाते हैं जो अंतःस्त्रावी तंत्रों को सीधे प्रभावित करते हैं और मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा और प्रजनन विकारों जैसे कई रोग उत्पन्न कर सकते हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हुई है कि त्वचा, डायपर से थैलेट का अवशोषण कर लेती है। उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त ये रसायन अपशिष्ट प्रवाह में जा सकते हैं और पर्यावरण में भी गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर सकते हैं,”।
डीईएचपी, बीबीपी, डीआईबीपी और डीबीपी नाम के थैलेट्स खासतौर से बच्चों के लिए अत्यधिक खतरनाक हैं। इसलिए यूरोप और अमेरिका में इनका इस्तेमाल बच्चों के खिलौनों, बच्चों के देखभाल वाले उत्पादों, मेडिकल उपकरणों में प्रतिबंधित है। जबकि भारत में डायपर की गुणवत्ता की जांच के लिए कोई तंत्र और रेग्युलेशन नहीं है।
बच्चों को मल-मूत्र के गीलेपन से बचाने के लिए और स्वच्छता की दृष्टि से डायपर की मांग और उसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। टॉक्सिक लिंक के अनुमान के मुताबिक नवजात से तीन वर्ष की उम्र पूरी होने तक एक बच्चे पर सामान्य तौर से कुल 6300 डायपर इस्तेमाल होते हैं, जिसकी कीमत 65 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक चुकानी पड़ती है। डायपर बनाने वाली कंपनियों में पीएंडजी का शेयर पचास फीसदी, यूनिचार्म का 36 फीसदी, किंबले क्लॉर्क का 8 फीसदी, नोबल हाईजीन (टेड्डी) का पांच फीसदी, अन्य का एक फीसदी है।
टॉक्सिक लिंक ने जिन 20 अलग-अलग कंपनियों के डायपर का परीक्षण किया सभी उत्पादों में कोई न कोई खतरनाक और विषैला थैलेट (2.36 पीपीएम से 302.25 पीपीएम रेंज तक) की उपस्थिति मिली है । 20 नमूनों में डीआईबीपी यानी डाई आईसोब्यूटिल थैलेट और बीबीपी यानी बेंजिल ब्यूटिल थैलेट अपने तय स्तर सीमा से नीचे या न के बराबर पाए गए। हालांकि डीईएचपी की मात्रा 2.36-264.94 पीपीएम और डीबीपी की मात्रा 2.35 से 37.31 पीपीएम तक पाई गई जो कि । डायपर में इन थैलेट्स रसायन की उपस्थिति बच्चों के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।
टॉक्सिक्स लिंक के वरिष्ठ कार्यक्रम समन्वयक पीयूष महापात्रा ने कहा कि यह भारत में अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इन थैलेट का विभिन्न उत्पादों और सबसे महत्वपूर्ण रूप से बच्चों के उत्पादों में उपयोग, चरणबद्ध रूप से समाप्त करने के लिए, विश्व स्तर पर प्रयास किए गए हैं। भारत ने बच्चों के विभिन्न उत्पादों में पांच सामान्य थैलेट (डीईएचपी, डीबीपी, बीबीपी, डीईटीपी, डीएनओपी और डीएनपी) के लिए मानक भी तय किए हैं। लेकिन, हमारे देश में डिस्पोजेबल बेबी डायपर के लिए ऐसा कोई नियमन नहीं है।
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