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अगर आप प्रेगनेंट हैं तो आप भी इंतजार कर रही होंगी कि कब आपको अपने बच्चे की पहली किक महसूस हो। अमूमन हर बच्चा किक मारता है और अगर बच्चा किक ना मारे तो इसे किसी समस्या का संकेत माना जाता है।
यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि बच्चा किक क्यों और कब मारता है और इसके क्या फायदे होते हैं।
हड्डियां होती हैं मजबूत
भ्रूण के विकास में किक मारना एक अहम हिस्सा होता है। गर्भ में ट्विस्टिंग, टर्निंग, रोलिंग करने से शिशु की विकसित हो रही हड्डियों को शेप में आने में मदद मिलती है।
आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 20वें से 30वें सप्ताह के बीच बच्चे की किक ज्यादा तेज होती है। इस समय शिशु की हड्डियां और जोड़ शेप में आना शुरू ही करते हैं। गर्भावस्था के 35वें सप्ताह के बाद से किक में कमी आने लगती है।
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अगर आपको बार-बार दर्दभरे कॉन्ट्रैक्शन 30 सेकंड से ज्यादा समय के लिए उठ रहे हैं तो हो सकता है कि आपको लेबर पेन शुरू होने वाला है।
जब गर्भाशय टाइट होने लगे और गर्भाशय ग्रीवा नरम और पतली हो जाए और बच्चे को बाहर निकालने के लिए खुलने लगे तो यह लेबर शुरू होने का संकेत होता है।
यदि आपके गर्भ में जुड़वा या तीन बच्चे हैं, यौन संचारित संक्रमण या मूत्रमार्ग में संक्रमण होने, दीर्घकालिक स्थितियों जैसे कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर, ओवरवेट और मोटापे से ग्रस्त होने, पहली प्रेग्नेंसी में प्रीटर्म डिलीवरी होने, गर्भाशय, सर्विक्स या योनि में कोई दिक्कत होने, धूम्रपान करने, गर्भावस्था के दौरान अच्छी देखभाल ना लेने, प्रेग्नेंसी में शराब पीने, शिशु में कोई जन्म विकार होने, आईवीएफ से कंसीव करने, एक डिलीवरी के बाद जल्दी कंसीव करने और 20 साल से कम या 35 साल से अधिक उम्र में मां बनने पर पर प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा रहता है।
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अगर आप प्रीटर्म डिलीवरी से बचना चाहती हैं तो गर्भावस्था के दौरान अच्छी डाइट लें और अपना पूरा ध्यान रखें। ब्लड प्रेशर या डायबिटीज है तो उसे कंट्रोल में रखें।
सिगरेट और शराब आदि से दूर रहें। अपने खाने में खूब फल और सब्जियों, साबुत अनाज को शामिल करें। डायबिटीज और प्री-क्लैंप्सिया के खतरे को दूर करने के लिए एक्सरसाइज करें। आप चाहें तो रोजाना वॉक कर के भी इस समय में हेल्दी और एक्टिव रह सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान अपना वजन ज्यादा ना बढ़ने दें।
प्रेग्नेंसी के दौरान वायरस और इंफेक्शन से दूर रखें। साफ-सफाई का ध्यान रखें और हाथों को बार-बार धोती रहें। कच्चा मांस या मछली ना खाएं।
सेक्स करते समय कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें। तनाव से दूर रहें क्योंकि प्रेग्नेंसी में स्ट्रेस लेने वाली महिलाओं को प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा ज्यादा रहता है।
क्या कहती है स्टडी
कुछ अध्ययनों का मानना है कि बच्चे की किक न्यूरोलॉजिकल यानी नसों के विकास में मदद करती है। हालांकि, ये बात स्पष्ट नहीं है कि कम मूवमेंट या किक मारने वाले बच्चों की नसों का विकास खराब होता है। अगर आपको अपने बच्चे की किक बहुत तेज महसूस हो रही है तो चिंता करने की जरूरत नहीं है।
बच्चा कब मारता है किक
पहली बार मां बनने पर आपको बच्चे की किक प्रेग्नेंसी के 16वें हफ्ते से 25वें हफ्ते के बीच महसूस हो सकती है। यह प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही होती है। इस समय शिशु के किक मारने पर आपको पेट में गुदगुदी जैसा अजीब सा फील हो सकता है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब महिलाओं को बच्चे की किक महसूस ही नहीं होती है। ऐसे में चिंता ना करें, एक बार अपने डॉक्टर से बात कर लें।
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अगर आपको बार-बार दर्दभरे कॉन्ट्रैक्शन 30 सेकंड से ज्यादा समय के लिए उठ रहे हैं तो हो सकता है कि आपको लेबर पेन शुरू होने वाला है।
जब गर्भाशय टाइट होने लगे और गर्भाशय ग्रीवा नरम और पतली हो जाए और बच्चे को बाहर निकालने के लिए खुलने लगे तो यह लेबर शुरू होने का संकेत होता है।
यदि आपके गर्भ में जुड़वा या तीन बच्चे हैं, यौन संचारित संक्रमण या मूत्रमार्ग में संक्रमण होने, दीर्घकालिक स्थितियों जैसे कि डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर, ओवरवेट और मोटापे से ग्रस्त होने, पहली प्रेग्नेंसी में प्रीटर्म डिलीवरी होने, गर्भाशय, सर्विक्स या योनि में कोई दिक्कत होने, धूम्रपान करने, गर्भावस्था के दौरान अच्छी देखभाल ना लेने, प्रेग्नेंसी में शराब पीने, शिशु में कोई जन्म विकार होने, आईवीएफ से कंसीव करने, एक डिलीवरी के बाद जल्दी कंसीव करने और 20 साल से कम या 35 साल से अधिक उम्र में मां बनने पर पर प्रीटर्म डिलीवरी का खतरा रहता है।
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अगर आप प्रीटर्म डिलीवरी से बचना चाहती हैं तो गर्भावस्था के दौरान अच्छी डाइट लें और अपना पूरा ध्यान रखें। ब्लड प्रेशर या डायबिटीज है तो उसे कंट्रोल में रखें।
सिगरेट और शराब आदि से दूर रहें। अपने खाने में खूब फल और सब्जियों, साबुत अनाज को शामिल करें। डायबिटीज और प्री-क्लैंप्सिया के खतरे को दूर करने के लिए एक्सरसाइज करें। आप चाहें तो रोजाना वॉक कर के भी इस समय में हेल्दी और एक्टिव रह सकती हैं। गर्भावस्था के दौरान अपना वजन ज्यादा ना बढ़ने दें।
प्रेग्नेंसी के दौरान वायरस और इंफेक्शन से दूर रखें। साफ-सफाई का ध्यान रखें और हाथों को बार-बार धोती रहें। कच्चा मांस या मछली ना खाएं।
सेक्स करते समय कंडोम का इस्तेमाल जरूर करें। तनाव से दूर रहें क्योंकि प्रेग्नेंसी में स्ट्रेस लेने वाली महिलाओं को प्रीमैच्योर डिलीवरी का खतरा ज्यादा रहता है।
हिचकी भी होती है महसूस
गर्भवती मां को अपने बच्चे की किक के साथ हिचकियां भी महसूस होती हैं। प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में आने पर आपको बच्चे की मूवमेंट ज्यादा और नियमित रूप से महसूस होने लगती है।
अब पेट में महसूस हो रही फड़फड़ाहट साफ तौर पर किक के रूप में महसूस होने लगती है। वहीं, इस समय आपको बच्चे की हिचकियां भी फील होने लगेंगी। प्रेग्नेंसी के 36वें हफ्ते के आसपास बच्चे की किक में धीरे-धीरे कमी आ सकती है क्योंकि उसे गर्भ में अब जगह कम पड़ रही होती है।
बेबी की किक को करें मॉनिटर
डॉक्टरों की राय है कि प्रेग्नेंसी के 28वें हफ्ते में और तीसरी तिमाही की शुरुआत में बच्चे की रोजाना की किक को गिनना शुरू कर देना चाहिए। अगर एक घंटे में बच्चा 10 से कम बार किक मारता है तो तुरंत डॉक्टर को बताएं।
आमतौर पर बच्चा सुबह और शाम के समय ज्यादा एक्टिव होता है। बैठने या लेटने पर आपको सबसे ज्यादा किक महसूस हो सकती है। कुछ बच्चे नैचुरली कम या ज्यादा एक्टिव होते हैं। इसलिए डॉक्टर से बात करके यह सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे की कितनी मवूमेंट सुरक्षित है। अगर आपका बच्चा हमेशा सुबह के समय किक मारता है और तीसरी तिमाही में एक सुबह उसकी कोई मूवमेंट महसूस नहीं होती है तो तुरंत डॉक्टर को बताएं।
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