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खानपान के जानकार कहते हैं कि लोग अक्सर वसा से बचने और कम कीमत में मिलने के चलते स्किम्ड अर्थात क्रीम निकले टोंड या फिर डबल टोंड दूध का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन ये दूध स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं। ऐसे ही कुछ और कम वसा वाले डेयरी उत्पाद हैं, जिनका सेवन सेहत के लिए अच्छा नहीं है।
लखनऊ के ‘संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस’ में किए गए एक शोध के दौरान अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि चार में से तीन लोग डेयरी उत्पादों को लेकर असहज थे। इसमें 82 प्रतिशत दक्षिण भारतीय दूध को अच्छी तरह पचाने में अक्षम थे, वहीं 66 प्रतिशत उत्तर भारतीय इस समस्या से पीड़ित थे। इसके अलावा डेयरी उत्पादों के सेवन से उनमें सिर दर्द, खांसी, तनाव और आयरन के स्तर में कमी देखी गई। हालांकि, सोनीपत के ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी इंटरप्रेन्योर एंड मैनेजमेंट’ में सीनियर फेलो डॉ. भारत भूषण इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, ''जिन लोगों को दूध न पचा पाने की समस्या है, तो उन्हें लैक्टोज इंटॉलरेंस की समस्या है।
दरअसल, दूध को पचाने की हमारी एक सीमा होती है। एक बच्चा जब तक खाद्य पदार्थों के संपर्क में नहीं आता है, तब तक वह मां के दूध या बाहरी दूध पर निर्भर रहता है, लेकिन जैसे ही बच्चा खाद्य पदार्थों के संपर्क में आता है, उसे ‘लैक्टोज इंटॉलरेंस’ की समस्या होने लगती है। यही कारण है कि अमूल ने ‘लैक्टोज फ्री’ दूध बेचना शुरू किया था।' इसके अलावा न्यूजीलैंड की ए2 मिल्क कंपनी का दावा है कि ए2 दूध को आसानी से पचाया जा सकता है।
भारत में भी डेयरी उत्पादक इसी तरह के दावे कर रहे हैं। वैसे सालों से दूध को कैल्शियम का अच्छा स्रोत माना जाता रहा है, लेकिन हड्डियों के मजबूत होने और टूटने के खतरे से जुड़े शोध के कई विरोधाभासी नतीजे सामने आए हैं।
स्वीडन में वैज्ञानिकों की एक टीम ने 61,400 महिलाओं और 45,300 पुरुषों की आहार संबंधी आदतों का परीक्षण किया था और उसके बाद कुछ सालों तक उनके स्वास्थ्य की निगरानी की। पाया गया कि जो महिलाएं एक दिन में तीन गिलास से ज्यादा दूध पीती थीं, उनकी हड्डियों के टूटने की संभावना अधिक थी।
हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके शोध से महज एक रुझान का अंदाजा मिलता है और इसे सबूत नहीं माना जाना चाहिए। कई डॉक्टर यह भी कहते हैं कि दूध में कई प्रकार के हार्मोन मिले होते हैं, जो अब खतरनाक साबित हो रहे हैं। कई बार लोग गाय और भैंस को जल्दी बड़ा करने के लिए हार्मोन के इंजेक्शन लगाते हैं। जब कोई उनका दूध पीता है, तो शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है। इसलिए इस प्रकार के डेयरी उत्पादों का सेवन करने से बचना चाहिए और सही दूध का सेवन करना चाहिए। लेकिन कैसे? महानगरीय और शहरी जिंदगी में क्या यह संभव है कि जो दूध हम पी रहे हैं, उसकी गुणवत्ता को हम पहले परखें। पता लगाएं। अगर ऐसा हो पाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं।
कॉलेज ऑफ वेटरनरी साइंस एंड एनिमल हसबेंडरी, पंतनगर (उत्तराखंड) के डीन डॉ जी. के. सिंह कहते हैं दूध को ‘पार्ट ऑफ बैलेंस फूड’ कहा जाता है। इसे फर्स्ट फूड के रूप में ग्लोबल फूड की संज्ञा भी दी जाती है। जहां तक दूध से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की बात है, तो इसका कारण आजकल भारी मात्रा में हो रहे दूध उत्पादन में मिलावट है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या दूध को स्वच्छ रखने और सही जगह रखने की है। एक सवाल यह भी है कि हमें जितनी मात्रा में दूध की जरूरत है, वह उतनी मात्रा में है नहीं। इसके बावजूद भी दूध की आपूर्ति हो रही है, तो कहां से हो रही है। इसलिए यह पता कर पाना मुश्किल है कि मौजूद दूध में कितना मिलावटी दूध है।
पहले जब दूध को अमृत माना जाता था, तो उस दौर में यह भी ध्यान रखा जाता था कि पशुओं को कहां रखा गया है। उनका चारा और पानी साफ है कि नहीं। दूध निकालने वाला साफ-सफाई का ध्यान रख रहा है कि नहीं और जो दूध का एक जगह से दूसरे जगह आदान प्रदान कर रहा है, उस दौरान स्वच्छता का कितना ध्यान रखा जाता है। जहां तक पचाने की बात है, तो लैक्टोज के अलावा दूध में प्रोटीन अच्छी मात्रा में पाई जाती है, जिसके कारण कुछ लोग इसे पचा नहीं पाते हैं। अक्सर हम जरूरत से ज्यादा मात्रा में भी दूध का सेवन कर लेते हैं, जिसके कारण नुकसान होता है।
विज्
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