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गर्भावस्था में हार्मोंस में उतार चढ़ाव आते हैं जिसकी वजह से महिलाओं को बार-बार मूड बदलने की शिकायत होती है। कभी उदास रहती हैं तो कभी रोने का मन करता है।
अक्सर कहते हैं कि प्रेगनेंट महिला को हंसते रहना चाहिए और इन नौ महीनों में खुश रहना चाहिए क्योंकि इससे शिशु स्वस्थ रहता है। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि प्रेगनेंसी में रोने का बच्चे पर क्या असर पड़ता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि गर्भावस्था में कई कारणों से महिलाओं का रोने का मन करता है। यहां हम आपको प्रेगनेंसी में रोने के कारण और शिशु पर इसके प्रभाव के बारे में बता रहे हैं।
गर्भावस्था की पहली तिमाही
हर महिला की प्रेगनेंसी अलग होती है, इसलिए कुछ महिलाओं को पूरे नौ महीने उदास रहने या रोने का मन करता है तो कुछ को सिर्फ प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में यह समस्या होती है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन पहली तिमाही में अपने चरम पर होते हैं और यह मूड स्विंग्स के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं जिससे दुखी और चिड़चिड़ापन महसूस होता है।
प्रेगनेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही
गर्भावस्था की दूसरी तिमाही और आखिरी तीन महीनों में भी हार्मोनल असंतुलन बना रहता है, इसलिए इस समय भी रोने का मन कर सकता है। शरीर में तेजी से आ रहे बदलावों के कारण एंग्जायटी बढ़ जाती है। रोजमर्रा का तनाव भी रोने की इच्छा को मजबूत कर देाता है। जिम्मेदारियों का बोझ भी डरा देता है जिसके कारण महिलाएं दुखी महसूस करने लगती है।
रोने का शिशु पर प्रभाव
कभी कभी रोने का असर गर्भस्थ शिशु पर नहीं पड़ता है। वहीं, अगर प्रेगनेंट महिला को बहुत ज्यादा डिप्रेशन घेर ले तो इसका शिशु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वहीं, 2016 की स्टडी के मुताबिक प्रेगनेंसी में एंग्जायटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएं प्रीटर्म बर्थ और लो बर्थ वेट का कारण बन सकती है। वहीं, एक अन्य स्टडी के रिव्यू में भी प्रीटर्म बर्थ और मानसिक तनाव के बीच संबंध पाया गया है।
प्रेगनेंसी में डिप्रेशन पोस्टपार्टम डिप्रेशन का जोखिम भी बढ़ा देता है जिससे जन्म के बाद मां को शिशु के साथ जुड़ने में दिक्कत हो सकती है।
प्रेगनेंट महिलाएं क्या करें
दुर्भाग्यवश, गर्भावस्था के दौरान आप हार्मोनल उतार चढ़ाव को रोक नहीं सकते हैं, लेकिन आप कुछ तरीकों की मदद से प्रेगनेंसी में रोने का मन करना या दुख होने के एहसास को कंट्रोल कर सकती हैं।
इसके लिए आपको पर्याप्त नींद लेनी है। नींद की कमी के कारण स्ट्रेस बढ़ता है और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। रोज 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें। शारीरिक रूप से एक्टिव रहें और दिनभर पलंग पर आराम न करें। हल्की एक्सरसाइज से शरीर और दिमाग दोनों स्वस्थ रहते हैं।
खुद को डिलीवरी और आने वाले नन्हे मेहमान के लिए तैयार करें। शिशु के आने के बाद बढ़ने वाली जिम्मेदारियों की वजह से भी दुख, उदासी और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। इससे बचने के लिए अपने पार्टनर से बात करें और जितना हो सके खुश रहने की कोशिश करें।
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