क्या रोने से प्रेगनेंसी प्रभावित होती है?pregnancytips.in

Posted on Fri 14th Oct 2022 : 14:06

गर्भावस्‍था में हार्मोंस में उतार चढ़ाव आते हैं जिसकी वजह से महिलाओं को बार-बार मूड बदलने की शिकायत होती है। कभी उदास रहती हैं तो कभी रोने का मन करता है।


अक्‍सर कहते हैं कि प्रेगनेंट महिला को हंसते रहना चाहिए और इन नौ महीनों में खुश रहना चाहिए क्‍योंकि इससे शिशु स्‍वस्‍थ रहता है। लेकिन क्‍या आपने कभी ये सोचा है कि प्रेगनेंसी में रोने का बच्‍चे पर क्‍या असर पड़ता है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि गर्भावस्‍था में कई कारणों से महिलाओं का रोने का मन करता है। यहां हम आपको प्रेगनेंसी में रोने के कारण और शिशु पर इसके प्रभाव के बारे में बता रहे हैं।

गर्भावस्‍था की पहली तिमाही
हर महिला की प्रेगनेंसी अलग होती है, इसलिए कुछ महिलाओं को पूरे नौ महीने उदास रहने या रोने का मन करता है तो कुछ को सिर्फ प्रेगनेंसी की पहली तिमाही में यह समस्‍या होती है। एस्‍ट्रोजन और प्रोजेस्‍टेरोन पहली तिमाही में अपने चरम पर होते हैं और यह मूड स्विंग्‍स के लिए जिम्‍मेदार माने जाते हैं जिससे दुखी और चिड़चिड़ापन महसूस होता है।
मां और बच्‍चे के लिए खतरनाक हैं प्रेगनेंसी में मिलने वाले ये संकेत
वैसे तो प्रेगनेंसी के दौरान पेट में हल्‍की ऐंठन होना आम बात है लेकिन अगर तेज कॉन्‍ट्रैक्‍शन यानी संकुचन महसूस हो रहा है तो यह गंभीर समस्‍या हो सकती है। डिलीवरी डेट से काफी समय पहले बार बार या दर्दभरी कॉन्‍ट्रैक्‍शन होना प्रीमैच्‍योर लेबर का संकेत हो सकता है।

इस बारे में तुरंत डॉक्‍टर को बताएं। डिलीवरी से कुछ दिनों पहले ही फॉल्‍स लेबर पेन भी होने लगता है जिसे महिलाएं समझ नहीं पाती हैं। अगर ये कॉन्‍ट्रैक्‍शन बहुत ज्‍यादा हो रही है तो इसे नजरअंदाज करना मां और बच्‍चे दोनों के लिए सही नहीं है।

कुछ महिलाओं को गर्भावस्‍था के शुरुआती दिनों ब्‍लीडिंग की शिकायत होती है जोकि नॉर्मल बात है। इसे इंप्‍लांटेशन ब्‍लीडिंग भी कहा जाता है। अगर प्रेगनेंट महिला को खासतौर पर प्रेगनेंसी के आखिरी दिनों में बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो रही है तो इसे हल्‍के में न लें।

जिन महिलाओं में प्‍लेसेंटा गलत जगह पर होता है, उनमें इस तरह की ब्‍लीडिंग का खतरा अधिक होता है। ये मां और बच्‍चे दोनों के लिए खतरनाक होता है।
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गर्भावस्‍था के समय में वैजाइनल डिस्‍चार्ज होना सामान्‍य बात है लेकिन पतला फ्लूइड निकलना खतरनाक हो सकता है। आमतौर पर यह पानी की थैली फटने का संकेत हो सकता है और ऐसा डिलीवरी डेट से कुछ दिन पहले होता है। ऐसी स्थिति में प्रेगनेंसी पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।

गर्भ में शिशु के आसपास एमनिओटिक फ्लूइड होता है तो शिशु को सुरक्षा प्रदान करता है। इसी एमनिओटिक फ्लूइड को पानी की थैली कहा जाता है। शिशु के विकास के लिए यह बहुत जरूरी होता है। यदि समय से पहले पानी की थैली फट जाए तो कोई गंभीर जटिलता पैदा हो सकती है।

प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में चक्‍कर आने और आंखों से धुंधला दिखाई दे सकता है। अगर आपको फोकस करने में दिक्‍कत आ रही है या धुंधला दिखाई दे रहा है तो तुरंत डॉक्‍टर को बताएं। डायबिटीज से ग्रस्‍त प्रेगनेंट महिलाओं के लिए खासतौर पर दिक्‍कत हो सकती है।
प्रेगनेंसी के दिनों में हाथ पैरों या अन्‍य अंगों में सूजन होना आम बात है लेकिन अगर सूजन वाली जगह पर दर्द हो या उस पर लालिमा और रैशेज आ जाए तो यह चिंता की बात हो सकती है।

खून का थक्‍का जमने के कारण ऐसा हो सकता है इसलिए अपनी स्किन पर बारीकी से नजर रखें। हाथ या पैर में दर्दभरी सूजन आए तो तुरंत डॉक्‍टर को बताएं।

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प्रेगनेंसी की दूसरी और तीसरी तिमाही
गर्भावस्‍था की दूसरी तिमाही और आखिरी तीन महीनों में भी हार्मोनल असंतुलन बना रहता है, इसलिए इस समय भी रोने का मन कर सकता है। शरीर में तेजी से आ रहे बदलावों के कारण एंग्‍जायटी बढ़ जाती है। रोजमर्रा का तनाव भी रोने की इच्‍छा को मजबूत कर देाता है। जिम्‍मेदारियों का बोझ भी डरा देता है जिसके कारण महिलाएं दुखी महसूस करने लगती है।

रोने का शिशु पर प्रभाव
कभी कभी रोने का असर गर्भस्‍थ शिशु पर नहीं पड़ता है। वहीं, अगर प्रेगनेंट महिला को बहुत ज्‍यादा डिप्रेशन घेर ले तो इसका शिशु पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ सकता है। वहीं, 2016 की स्‍टडी के मुताबिक प्रेगनेंसी में एंग्‍जायटी और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्‍याएं प्रीटर्म बर्थ और लो बर्थ वेट का कारण बन सकती है। वहीं, एक अन्‍य स्‍टडी के रिव्‍यू में भी प्रीटर्म बर्थ और मानसिक तनाव के बीच संबंध पाया गया है।
प्रेगनेंसी में डिप्रेशन पोस्‍टपार्टम डिप्रेशन का जोखिम भी बढ़ा देता है जिससे जन्‍म के बाद मां को शिशु के साथ जुड़ने में दिक्‍कत हो सकती है।
मां और बच्‍चे के लिए खतरनाक हैं प्रेगनेंसी में मिलने वाले ये संकेत



वैसे तो प्रेगनेंसी के दौरान पेट में हल्‍की ऐंठन होना आम बात है लेकिन अगर तेज कॉन्‍ट्रैक्‍शन यानी संकुचन महसूस हो रहा है तो यह गंभीर समस्‍या हो सकती है। डिलीवरी डेट से काफी समय पहले बार बार या दर्दभरी कॉन्‍ट्रैक्‍शन होना प्रीमैच्‍योर लेबर का संकेत हो सकता है।

इस बारे में तुरंत डॉक्‍टर को बताएं। डिलीवरी से कुछ दिनों पहले ही फॉल्‍स लेबर पेन भी होने लगता है जिसे महिलाएं समझ नहीं पाती हैं। अगर ये कॉन्‍ट्रैक्‍शन बहुत ज्‍यादा हो रही है तो इसे नजरअंदाज करना मां और बच्‍चे दोनों के लिए सही नहीं है।

यह भी पढ़ें : गर्भावस्‍था के दौरान योनि से सफेद पानी आने का क्‍या मतलब है
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कुछ महिलाओं को गर्भावस्‍था के शुरुआती दिनों ब्‍लीडिंग की शिकायत होती है जोकि नॉर्मल बात है। इसे इंप्‍लांटेशन ब्‍लीडिंग भी कहा जाता है। अगर प्रेगनेंट महिला को खासतौर पर प्रेगनेंसी के आखिरी दिनों में बहुत ज्‍यादा ब्‍लीडिंग हो रही है तो इसे हल्‍के में न लें।

जिन महिलाओं में प्‍लेसेंटा गलत जगह पर होता है, उनमें इस तरह की ब्‍लीडिंग का खतरा अधिक होता है। ये मां और बच्‍चे दोनों के लिए खतरनाक होता है।
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गर्भावस्‍था के समय में वैजाइनल डिस्‍चार्ज होना सामान्‍य बात है लेकिन पतला फ्लूइड निकलना खतरनाक हो सकता है। आमतौर पर यह पानी की थैली फटने का संकेत हो सकता है और ऐसा डिलीवरी डेट से कुछ दिन पहले होता है। ऐसी स्थिति में प्रेगनेंसी पर गंभीर खतरा मंडरा सकता है।

गर्भ में शिशु के आसपास एमनिओटिक फ्लूइड होता है तो शिशु को सुरक्षा प्रदान करता है। इसी एमनिओटिक फ्लूइड को पानी की थैली कहा जाता है। शिशु के विकास के लिए यह बहुत जरूरी होता है। यदि समय से पहले पानी की थैली फट जाए तो कोई गंभीर जटिलता पैदा हो सकती है प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में चक्‍कर आने और आंखों से धुंधला दिखाई दे सकता है। अगर आपको फोकस करने में दिक्‍कत आ रही है या धुंधला दिखाई दे रहा है तो तुरंत डॉक्‍टर को बताएं। डायबिटीज से ग्रस्‍त प्रेगनेंट महिलाओं के लिए खासतौर पर दिक्‍कत हो सकती है।

प्रेगनेंसी के दिनों में हाथ पैरों या अन्‍य अंगों में सूजन होना आम बात है लेकिन अगर सूजन वाली जगह पर दर्द हो या उस पर लालिमा और रैशेज आ जाए तो यह चिंता की बात हो सकती है।

प्रेगनेंट महिलाएं क्‍या करें
दुर्भाग्‍यवश, गर्भावस्‍था के दौरान आप हार्मोनल उतार चढ़ाव को रोक नहीं सकते हैं, लेकिन आप कुछ तरीकों की मदद से प्रेगनेंसी में रोने का मन करना या दुख होने के एहसास को कंट्रोल कर सकती हैं।

इसके लिए आपको पर्याप्‍त नींद लेनी है। नींद की कमी के कारण स्‍ट्रेस बढ़ता है और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। रोज 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें। शारीरिक रूप से एक्टिव रहें और दिनभर पलंग पर आराम न करें। हल्‍की एक्‍सरसाइज से शरीर और दिमाग दोनों स्‍वस्‍थ रहते हैं।
खुद को डिलीवरी और आने वाले नन्‍हे मेहमान के लिए तैयार करें। शिशु के आने के बाद बढ़ने वाली जिम्‍मेदारियों की वजह से भी दुख, उदासी और चिड़चिड़ापन महसूस होता है। इससे बचने के लिए अपने पार्टनर से बात करें और जितना हो सके खुश रहने की कोशिश करें।

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wordpress 1 year ago 5 Answer
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