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प्रेग्नेंसी में क्यों होती है ब्लीडिंग
प्रेग्नेंसी के दौरान ब्लीडिंग होने की संभावना कभी भी हो सकती है. ब्लीडिंग के चांसेज और कारण प्रेग्नेंसी की तिमाही में अलग-अलग होते हैं. किसी को पहले तीन महीने में ब्लीडिंग होती है, तो उसका मतलब है कि इंटरनल कोई ब्लड क्लॉटिंग हो रही है, प्रेग्नेंसी कमजोर हो या फिर नाल अच्छी तरह से बच्चेदानी के साथ ना जुड़ी या चिपकी हो, जिसके कारण कोई जमाव होने के कारण शुरुआत में ब्लीडिंग हो सकती है. इसे थ्रेटेंड अबॉर्शन (threatened abortion) कहा जाता है. फिर मिड ट्राइमेस्टर (4-6 महीना) में भी ब्लीडिंग होने के अलग कारण हो सकते हैं. पहली तिमाही में जो क्लॉटिंग हुई, वो सही नहीं हुई या बढ़ गई है, तो इससे दूसरी तिमाही में भी ब्लीडिंग हो सकती है. यदि किसी को हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, ट्विन प्रेग्नेंसी है, तो ऐसे मामलों में भी ब्लीडिंग किसी भी दौरान हो सकती है. ऐसे में प्रेग्नेंट महिलाओं का अपना खास ध्यान रखना चाहिए.
यदि 6-7 महीने में ब्लीडिंग हो रही है, तो हो सकता है प्लेसेंटा या नाल बहुत नीचे (Low line) हो. ऐसे मामलों में मरीज की जान भी जा सकती है. प्लेसेंटा लो है, तो काफी सर्तक रहना होगा. डॉक्टर के बताए दिशानिर्देशों का पालन करना होगा. प्रेग्नेंसी के आखिरी तीन महीने में यदि नाल सेपरेट हो जाए, तो भी रक्तस्राव हो सकता है. इसे अब्रप्शियो प्लेसेंटा (abruptio placenta) कहा जाता है. यह गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरनाक हो सकता है, इससे शिशु की जान भी जा सकती है. कुछ मरीजों में हल्की-फुल्की ब्लीडिंग, डिस्चार्ज होना नॉर्मल है, लेकिन डॉक्टर से एक बार कंसल्ट जरूर कर लें, ताकि आगे कोई खतरा ना बढ़ जाए.
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