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Posted on Fri 17th Jun 2022 : 02:39


गर्भ गीता: Garbh Geeta | किन कारणों से आता है जीव गर्भ में ?
धर्म आस्था / By Sugam Verma
गर्भ गीता: Garbh Geeta | किन कारणों से आता है जीव गर्भ में ?

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Garbh Geeta: किन कारणों से आता है जीव गर्भ में ?

Garbh Geeta स्तुत संवाद गर्भ गीता से लिया गया है जिसमें भगवान श्रीकृष्ण तथा उनके प्रिय भक्त एवं सखा अर्जुन के मध्य संवाद किया गया है। इसमें भगवान मधुसूदन अर्जुन के द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं।

एक समय की बात है अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि भगवन क्या कारण है कि किसी जीव को मां के गर्भ में आना पड़ता है तथा भांति-भांति के कष्ट भोगने पड़ते हैं? ऐसा जीव के किन गुण तथा दोषों के कारण होता है? प्राणी अपने जन्म से पूर्व तो कष्ट पाता ही है जन्म लेते समय भी उसे कष्टों से छुटकारा नहीं मिलता।

उसके बाद आजीवन मृत्यु काल तक उसे रोग कष्ट आदि का सामना करना पड़ता है (Garbh Geeta in hindi)। यह सुनकर भगवान मधुसूदन मुस्कराते हुये बोले कि -‘‘ हे श्रेष्ठ धनुर्धारी अर्जुन! मृत्यु लोक में जन्म लेने के पश्चात प्रत्येक जीवात्मा इस संसार की माया से प्रेरित होकर भौतिक संसाधनों के बंधनों में बंध जाती है।

वह अपना मुख्य उद्देश्य जो कि मात्र ईश्वर की प्राप्ति है उसे भूलकर परिवार, पुत्र-पुत्रियों सगे-सम्बन्धियों, आदि के मोह में फंसकर ही रह जाती है। मृत्युपर्यन्त तक इन सभी में फंसे होने के बाद जब जीव का अन्तिम समय आता है तो वह अपनी अधूरी इच्छाओं के बारे में ही सोचते हुये प्राण त्यागता है (Garbh Geeta) ।

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ऐसा इस कारण होता है कि मानव जाति कभी संतुष्ट नहीं होती उसे सदैव कुछ और की चाहत बनी ही रहती है यही कारण है कि मनुष्य बार-बार जन्म लेता तथा मरता रहता है तथा यह चक्र निरंतर चलता ही रहता है।

अर्जुन पूछते हैं कि –‘‘ हे प्रभु! इस माया से पार पाना तो बड़ा कठिन कार्य है। बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इससे पार नहीं पा सके तो साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार ये पांच ऐसे शत्रु हैं जिनसे मानव दिन-रात जूझता रहता है कृपया यह बताइये कि साधारण मनुष्य इनसे छुटकारा पाकर अपना मन किस प्रकार प्रभु भक्ति की ओर मोड़े।

क्योंकि यह मन तो मदमस्त हाथी की भांति है जो कभी टिककर नहीं रहता इसकी गति वायु के वेग से भी अधिक तीव्र है। इस मन रूपी मस्त हाथी को किस प्रकार नियंत्रित किया जा सकता है?‘‘
Garbh Geeta

(Garbh Geeta in Hindi)

श्रीकृष्ण कहते हैं कि: मन रूपी हाथी को नियंत्रित करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश की आवश्यकता होती है, भक्ति और ज्ञान को अभ्यास के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। अहंकार करने से मानव का जीवन नर्क के समान हो जाता है उसका मन सदैव व्याकुल ही रहता है तथा कभी शांत नहीं रहता।

अर्जुन पूछते हैं –‘‘ क्या कारण है कि किसी की पत्नि की मृत्यु अल्प आयु में ही हो जाती है तथा पिता के रहते पुत्र की मृत्यु हो जाती है।‘‘ श्री कृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति कर्ज लेकर उसे नहीं चुकाता उसके दण्ड स्वरूप उसकी पत्नि की मृत्यु हो जाती है तथा जो किसी व्यक्ति की अमानत लेकर उसे नहीं लौटाता उसके बच्चे मर जाते हैं। ये बड़े भयंकर पाप हैं।

मनुष्य किस कारण से आजीवन रोगी रहता है? तथा किस कारण पशु योनी को प्राप्त होता है ?

श्री कृष्ण उत्तर देते हुए कहते हैं: ‘‘पार्थ जो मनुष्य कन्याओं तथा महिलाओं आदि को बेचने का व्यापार करता है वह भयंकर रोगों से पीड़ित रहता है तथा जो अभक्ष्य पदार्थाें का सेवन करता है तथा मदिरा पान कर दूसरों को प्रताड़ित करता है वह गधे का जन्म प्राप्त करता है। इसी प्रकार झूठी गवाही देने वाले अगले जन्म में स्त्री बनते हैं।

जो भोजन का भोग भगवान को न लगाकर पहले स्वयं ग्रहण कर लेते हैं वे शूकर आदि की योनी में जन्म लेते हैं।

अर्जुन पूछते हैं – किन कारणों से इस जन्म में धनी तथा वाहन आदि के स्वामी बनते हैं?

श्री कृष्ण उत्तर देते हुए- जो मनुष्य उचित रीति-नीति से स्वर्ण दान करते तथा कन्या दान करते हैं वे इस जन्म में धनी हैं। वे व्यक्ति जिन्होंने कभी अन्नदान किया है वे रूपवान होते हैं तथा विद्या का दान करने वाले व्यक्ति विद्वान होते हैं। इसी प्रकार संतों की सेवा करने वाले धनवान तथा पुत्रवान होते हैं (गर्भ गीता)।

अर्जुन पूछते हैं – मनुष्य धन तथा सांसारिक मोह-माया में क्यों फंसा रहता है?

श्री कृष्ण कहते हैं कि- जब प्राणी मेरी कृपा से वंचित हो जाता है तब वह सांसारिक बंधनों के मोह में आसक्त हो जाता है। संसार के समस्त बंधन नाशवान हैं यही जानकर विवेकीजन इन बंधनों में फंसते नहीं हैं तथा दूर रहा करते हैं।

वे जानते हैं कि लाभ-हानि, जीवन-मरण, यश-अपयश तथा मान-सम्मान सभी कुछ ईश्वर के आधीन हैं संसार में घटने वाली प्रत्येक घटना परमात्मा की ईच्छा से ही घटती है।

यही कारण है कि विवेकीजन दुःख-सुख चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, समान भाव से रहते हैं। जो मनुष्य इन सांसारिक बंधनों से दूर रहकर धार्मिक स्थलों में जाकर प्रेम तथा भक्ति-भाव से मेरा दर्शन करता है उसका नाश नहीं होता।

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(Garbh Geeta) श्री कृष्ण अर्जुन को आगे समझाते हुए कहते हैं कि ऐसा ब्रह्मचारी तथा संयमी पुरुष जो सदैव ईश्वर की भक्ति तथा परोपकार में लगा हो उसे ही अपना गुरु बनाना चाहिये। गुरु के माध्यम से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है अन्यथा नहीं।

गुरु का निरादर करने वाला मनुष्य कभी ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर सकता तथा आजीवन मृत्युलोक में भटकता रहता है ऐसे व्यक्ति का तो मुख भी नहीं देखना चाहिए।

समस्त संसार के गुरु जगन्नाथ हैं, विद्या का गुरु काशी है तथा ब्राह्मण का गुरु संन्यासी है। संन्यासी उसे कहते हैं जो कि सब कुछ त्यागकर मुझमें रम गया हो तथा अपना सर्वस्व ही मुझे समर्पित कर दे। गुरु से विमुख व्यक्ति का तो भजन भी अपवित्र होता है उसके सभी कर्म निष्फल होते हैं।

गुरू की सेवा करने वाले को सैकड़ों अश्वमेध यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।

अर्जुन जो भी गर्भ गीता (Garbh Geeta) में अंकित हम दोनों के इस संवाद को सुनता या सुनाता तथा पढ़ता है वे गर्भ के दुःख से छुटकारा पा लेता है तथा नर्क की चौरासी योनियों के चक्र से मुक्त होकर जन्म तथा मरण से मुक्त हो जाता है।

अतः प्रत्येक मनुष्य को इसे पढ़ना तथा सुनना चाहिए ऐसा करने से (Garbh Geeta) भगवान श्रीकृष्ण की अनुकम्पा भक्त पर सदैव बनी रहती है तथा सभी मनोकमाना पूर्ण होने के साथ-साथ इस जन्म तथा पिछले जन्मों में किये गये पापों से भी छुटकारा मिलता है।

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