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एक इंजेक्शन और तीन साल नहीं बनेंगी मां
नसबंदी के लिए महिलाओं को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं होगी। हाथ में इंजेक्शन से नसबंदी हो सकेगी। इसके लिए इम्प्लेनाल विधि आई है। यह विधि विदेशों में लोकप्रिय हो रही है। यह जानकारी फाग्सी की...
एक इंजेक्शन और तीन साल नहीं बनेंगी मां
नसबंदी के लिए महिलाओं को अब ऑपरेशन कराने की जरूरत नहीं होगी। हाथ में इंजेक्शन से नसबंदी हो सकेगी। इसके लिए इम्प्लेनाल विधि आई है। यह विधि विदेशों में लोकप्रिय हो रही है। यह जानकारी फाग्सी की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. नंदिता पल्शेतकर ने दी।
वे रेडिसन ब्लू होटल में | मातृत्व सुरक्षा' विषय पर चल रही दक्षिण एशिया फाग्सी सेमिनार के दूसरे दिन बतौर विशेषज्ञ मौजूद रहीं। उन्होंने बताया कि आमतौर पर नसबंदी में बच्चेदानी से जुड़ी फिलोपिन ट्यूब को बंद कर दिया है। इसके कारण वह मां नहीं बन सकती। कई बार जीवन में परिस्थितियां तब्दील होती हैं। ऐसे में अगर नसबंदी के बाद महिला दोबारा मां बनना चाहे तो उसे काफी परेशानी होती है। 80 फीसदी मामलों में महिला मां नहीं बन पाती।
नई तकनीक से महिला जब चाहे तब मां बन सकती है। इसमें एक बार इंजेक्शन से महिला के हाथों में इम्प्लेनाल लगाया जाता है। इस इम्प्लेनाल से रसायन का स्राव होता है। इससे महिला गर्भधारण नहीं करती।
फाग्सी सेमिनार आयोजन गोरखपुर ऑब्स एवं गाइनी सोसायटी ने किया है। सेमिनार में देश विदेश के प्रख्यात स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों ने चर्चा की। दूसरे दिन के कार्यक्रम का उद्घाटन लन्दन के डॉ. अरुल कुमारन एवं फॉग्सी अध्यक्ष डॉ. नंदिता पाल्शेतकर ने किया। इस दौरान डॉ.साधना गुप्ता, डॉ. सुरहीता करीम, डॉ.रीना श्रीवास्तव, डॉ.अमृता जयपुरियार, डॉ.बबिता शुक्ला और डॉ.राधा जीना मौजूद रहीं।
बच्चेदानी सिकुड़ने से रक्तस्रात का खतरा : डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा, डॉ. प्रतिभा गुप्ता और डॉ. अरुणा छापड़िया ने कहा कि प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव से मरीज की जान को खतरा हो सकता है। इसकी वजह से बच्चेदानी का ट्रामा हो सकता है। बच्चेदानी के सिकुड़ने की कमी से भी रक्तस्राव ज्यादा हो सकता है। इसके अलावा मधुमेह, उच्च रक्तचाप , ट्विन प्रेगनेंसी , खून की कमी, इनफेक्शन से भी रक्तस्राव हो सकता हैं। ऑपरेशन करके बच्चेदानी निकालने की नौबत भी आ सकती है।
शुरू का पहला मिनट अहम : बीआरडी मेडिकल कॉलेज की बालरोग की विभागाध्यक्ष डॉ. महिमा मित्तल ने हाई रिस्क प्रेगनेंसी से पैदा होने वाले बच्चों में होने वाली परेशानियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जन्म के बाद कभी-कभी नवजात को सांस लेने में दिक्कत होती है। कुछ बच्चे जन्म के फौरन बाद नहीं रोते। ऐसे बच्चों का शुरू का पहला मिनट अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान अगर बच्चे सही से इलाज हो जाए वह आगे चलकर स्वस्थ रहते हैं। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था में महिला के खान पान और पोषण का पूरा ध्यान नहीं रखने से गर्भस्थ शिशु का विकास नहीं होता।
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. रीना श्रीवास्तव का कहना है कि गर्भावस्था का इन्फेक्शन मां और बच्चे के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। संक्रमण के कारण प्लेसेंटा बच्चेदानी के मुंह पर आ जाती है और रक्तस्राव होने लगता है। इसकी वजह से मां और बच्चे की मृत्यु कभी भी हो सकती है। समय रहते इसका पता सामान्य अल्ट्रासाउंड से हो सकता है। दवाईयों या ऑपरेशन के द्वारा मां-बच्चे की जान बचाई जा सकती है।
पटना की डॉ. अल्का पाण्डेय ने बताया कि आमतौर पर गर्भावस्था काल 40 हफ्ते का होता है। इसके बाद से मां के गर्भ में प्लेसेंटा सूखने लगता है। इससे गर्भ में शिशु की जान जा सकती है। ऐसे में गर्भावस्था का नौवां महीना पूरा होने पर महिला को जरूर डॉक्टर से जांच करानी चाहिए। करीब 10 फीसदी महिलाओं में प्रसव पीड़ा नहीं होती। किसी भी सूरत में 42वां हफ्ता नहीं होना चाहिए।
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