जुड़वाँ डिलेवरी कितनी दिन मे हो जाता है?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:34

जुड़वा बच्चों की चाह रखने वाले माता-पिता के लिए डिलिवरी का सही समय जानना बेहद जरूरी होता है। एक महिला के लिए एक साथ दो बच्चों को जन्म देना किसी चुनौती से कम नहीं होता है। यहां हम आपको बताएंगे कि जुड़वा बच्चों की डिलिवरी के लिए सही समय कौन सा होता है? और इसमें क्या परेशानियां आ सकती हैं।


37 हफ्तों की डिलिवरी क्यों है सुरक्षित?


जुड़वा बच्चों की डिलिवरी मुश्किल मानी जाती है। गर्भाशय में बच्चों की मौत और जन्म के बाद मृत्यु को रोकने के लिए 37 हफ्तों की डिलिवरी को सबसे सुरक्षित माना जाता है। हालांकि जिन मामलों में गर्भवती में एक ही गर्भनाल हो वहां 36 हफ्तों की डिलिवरी पर विचार किया जाता है।


ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) में प्रकाशित एक अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि 36 हफ्तों के प्रेग्नेंसी पीरियड के समर्थन में स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। हालांकि सिंगल बच्चे की डिलिवरी के मुकाबले जुड़वा बच्चों में मृत्यु का सबसे ज्यादा खतरा रहता है। इस प्रकार के खतरों को कम करने के लिए अक्सर डिलिवरी पहले कराई जाती है।
जुड़वा बच्चों की डिलिवरी का सही समय


ऐसे वैज्ञानिक सुबूत कम हैं कि जुड़वा बच्चों की डिलिवरी के लिए प्रेग्नेंसी पीरियड का कौन सा समय उचित है। मौजूदा सुझावों में अंतर है। इसमें जुड़वा बच्चों की डिलिवरी का समय 34-37 हफ्ते है। जो एक ही गर्भनाल से लिपटे रहते हैं। वहीं 37-39 हफ्ते का समय उन जुड़वा बच्चों के लिए बताया गया है जो अलग-अलग गर्भनाल से लिपटे होते हैं।


इस अंतर को समझने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने जुड़वा बच्चों वाली 32 प्रेग्नेंसी के अध्ययनों की समीक्षा की। इन्हें पिछले 10 सालों में प्रकाशित और विश्लेषित किया गया। इस विश्लेषण में 35,171 जुड़वा बच्चों की प्रेग्नेंसी (29,685 दो गर्भनाल वाले और 5,486 एक गर्भनाल वाले) को शामिल किया गया।


इस अध्ययन में गर्भाशय में बच्चों की मौत और जन्म के बाद शिशुओं की मौत के खतरों की तुलना की गई। जिसमें 34 हफ्तों के बाद अलग-अलग प्रेग्नेंसी पीरियड के समय में गर्भाशय में बच्चों की मौत और नवजात शिशुओं की मृत्यु (जन्म के 28 दिन के बाद तक) के मामले सामने आए। समूह ने पहले के परसेप्शन को ध्यान रखते हुए अध्ययन के तरीके और गुणवत्ता का भी ध्यान रखा।

अध्ययन में भी 37 हफ्तों को बताया उचित


विश्लेषण के आधार पर शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि जुड़वा बच्चों की डिलिवरी 37 हफ्ते के पीरियड में करवाई जानी चाहिए। जिनमें दो गर्भनाल हैं। ताकि स्टिल बर्थ (जन्म के बाद 20-30 वीक में शिुश की मौत हो जाना) के जोखिम के मुकाबले प्रीमैच्योर बर्थ के बाद होने वाली शिशु मृत्यु दर को रोका जा सके।


वहीं, शोधकर्ताओं ने कहा कि एक गर्भनाल वाली जुड़वा बच्चों की प्रग्नेंसी में 36 हफ्तों के पीरियड से पहले डिलिवरी कराने को लेकर स्पष्ट साक्ष्य नहीं मिले। इस पर दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनेकॉलोजिस्ट डॉक्टर एस के सपरा ने कहा, ‘जुड़वा बच्चों की डिलिवरी के मामले में 37 हफ्तों का समय इसलिए बेहतर माना जाता है क्योंकि इस अवधि में बच्चों को संपूर्ण विकास हो जाता है।’

37 हफ्तों के बाद का समय मां के लिए मुश्किल


डॉक्टर सपरा का कहना है कि 37 हफ्तों तक बच्चों का संपूर्ण विकास तो होता ही है, साथ ही उनमें हेल्थ से जुड़ी परेशानियां होने के चांसेस कम हो जाते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यह अवधि एकदम उचित है लेकिन, उन्होंने माना कि यह समय अलग-अलग महिलाओं के लिए अलग-अलग हो सकता है। उनके मुताबिक, कुछ बच्चों का समय के साथ वजन बढ़ने लगता है। गर्भवती महिला को अपने वेट के साथ ही दो बच्चों के वेट को भी मैनेज करना होता है। ऐसे में शिशुओं का बढ़ता वजन उनकी सहन क्षमता से बाहर होता है। वजन में इजाफा होना महिला के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

जुड़वा बच्चे समय से पहले हो जाते हैं मैच्योर


दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित रेडिक्स हेल्थकेयर सेंटर की सीनियर गायनेकॉलोजिस्ट डॉक्टर रेनु मलिक ने कहा, ‘जुड़वा बच्चे समय से पहले मैच्योर हो जाते हैं। ऐसे में 37 हफ्तों तक वे उस अवधि से ज्यादा मैच्योर हो जाते हैं।’ उन्होंने यह भी कहा कि डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं में जुड़वा बच्चों की मैच्योरिटी पीछे चलती है।


इसके अतिरिक्त जिन महिलाओं को स्वास्थ्य से संबंधित कोई समस्या नहीं होती या गर्भाशय में दोनों बच्चे सीधे रहते हैं साथ ही कलर डॉप्लर में भी कोई दिक्कत नजर नहीं आती तो ऐसे मामलों में दर्द उठने पर ही डिलिवरी कराई जानी चाहिए।

जुड़वा बच्चों का कैसे रखें ख्याल


जुड़वा बच्चों की प्रसव की प्रक्रिया की तरह उनकी देखभाल करने की जरूरतें भी सामान्य बच्चों से अलग होती हैं। जुड़वां बच्चों के साथ दोगुना खुशी तो आती ही पर साथ ही जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं।


दोनों बच्चों के शेड्यूल को एक जैसा बनाए रखने की कोशिश करें। उन्हें साथ में खाना खिलाएं और साथ में ही डायपर चेंज करें।
इसके आलावा जुड़वा बच्चों को अलग-अलग कमरों में सुलाने की बजाए एक साथ सुलाएं। ऐसा करने से दोनों बच्चों की बॉन्डिंग पर असर पड़ता है। बड़े होकर हो सकता है कि आपके दोनों ही बच्चों की आदतें और पर्सनैलिटी विपरीत हो, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप उन्हें एक जैसा बनाए रखने की कोशिश करें।
दोनों बच्चों की रूचि अलग हो सकती है ऐसे में उनकी परेशानियों को भी अलग तरह से समझने की कोशिश करें।
कभी भी एक बच्चे को अकेला या कम पसंद होने का एहसास न होने दें। जुड़वा बच्चों की उम्र एक होती है इसलिए उनमें माता-पिता के भेदभाव के विचार जल्दी आने लगते हैं। दोनों ही बच्चों को एक सामान प्यार करें और उन्हें इस बात का एहसास न होने दें की आपका कोई फेवरेट बच्चा है।



हम आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में जुड़वा बच्चों के प्रसव से लेकर उनकी देखभाल को लेकर हर जरूरी जानकारी देने की कोशिश की है। यदि आप जुड़वा बच्चों की डिलिवरी से जुड़ी अन्य कोई जानकारी चाहते हैं तो आप हमसे कमेंट सेक्शन में अपना सवाल पूछ सकते हैं। इसके अलावा आपको हमारा यह लेख कैसा लगा यह भी आप हमें कमेंट कर बता सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह लें।

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