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पीरियड्स और स्पॉटिंग में क्या अंतर है?
पीरियड्स और स्पॉटिंग में सबसे बड़ा अंतर वजाइना से निकलने वाले खून की मात्रा है। पीरियड्स के दौरान ब्लीडिंग ज्यादा होती है। पीरियड की अवधि कई दिनों तक होती है। पीरियड्स ब्लीडिंग को कंट्रोल करने के लिए सैनेटरी पैड्स और टैम्पोन की आवश्यकता होती है। हालांकि, स्पॉटिंग में बहुत कम खून निकता है जिसे रोकने के लिए इन प्रॉडक्ट्स की ज़रूरत नहीं पड़ती है।
जब ब्लीडिंग होती है तो इसकी मात्रा से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह पीरियड है या स्पॉटिंग। ज्यादातर लोगों को इससे एक अनुमान हो जाता है कि उनका पीरियड्स आने वाले हैं। पीरियड्स के दौरान होने वाली ब्लीडिंग का रंग स्पॉटिंग से थोड़ा गहरा होता है। स्पॉटिंग के दौरान ब्रेस्ट टेंडरनेस और पीरियड्स क्रैंप जैसे लक्षण नहीं होते हैं। पीरियड्स से पहले अमूमन इस तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं, जो सामान्य हैं।
स्पॉटिंग के कारण
स्पॉटिंग, इरेगुलर मेंस्ट्रुअल ब्लीडिंग है, जिसके होने के अनेक कारण हो सकते हैं। मोटापा, तनाव कुछ ऐसे कारण है जिनसे मेंस्ट्रुअल ब्लीडिंग में अनियमितता आ जाती है। प्रोजेस्ट्रोन एक फीमेल सेक्स हॉर्मोन है जो मेंस्ट्रुअल साइकिल को नियमित बनाता है।
बर्थ कंट्रोल
मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान स्पॉटिंग होने का प्रमुख कारण हॉर्मोनल कंट्रोसेप्टिवस का इस्तेमाल भी हो सकता है। अगर आप किसी कंट्रोसेप्टिव का इस्तेमाल कर रहे हैं तो शुरू के तीन महीने के दौरान स्पॉटिंग होना आम बात है। हॉर्मोनल कंट्रोसेप्टिव में बर्थ कंट्रोल पिल्स, बर्थ कंट्रोल पैच, वजाइनल रिंग, कंट्रोसेप्टिव इंप्लॉट और हॉर्मोनल पैच आदि का इस्तेमाल किया जाता है। यदि कोई कंट्रोल पिल्स लेना शुरू करता है तो वह पहले कुछ महीनों में पीरियड्स से पहले स्पॉटिंग का अनुभव कर सकता है। यह पिल्स का मनुष्य के शरीर के साथ एडजस्टमेंट करने का एक तरीका भी है। मेडिकल भाषा में इसे ‘ब्रेकथ्रू ब्लीडिंग’ भी कहा जाता है। इससे अलग यदि लगातार पिल्स ले रहे हैं और इसे बीच में छोड़ देते हैं तो स्पॉटिंग का सामना करना पड़ सकता है।
ओव्यूलेशन
स्पॉटिंग होने का एक कारण ओव्यूलेशन है। ओव्यूलेशन स्पॉटिंग में हल्की ब्लीडिंग उस समय होती है जब ओवरी से एग रिलीज होता है। आमतौर पर यह मेंस्ट्रुअल के 14 दिन पहले होता है। ओव्यूलेशन के दौरान स्पॉटिंग ब्लीडिंग का रंग हल्का गुलाबी और लाल हो सकता है।
प्री-मेनोपॉज
प्री-मेनोपॉज एक ऐसी स्थिति है जो तब पैदा होती है जब शरीर मेनोपॉज (हमेशा के लिए मेंस्ट्रुअल साइकिल बंद होना) के करीब होता है। प्री-मेनोपॉज के दौरान पीरियड्स अधिक अनियमित हो जाते हैं और स्पॉटिंग होने की संभावना भी अधिक हो सकती है। इस समय के दौरान कई बार पीरियड्स मिस भी हो सकते हैं।
कैंसर
रिप्रोडक्टिव सिस्टम में कैंसर भी स्पॉटिंग की वजह हो सकती है। गर्भाशय कैंसर, सर्वाइकल कैंसर, ओवरी कैंसर और वजाइनल कैंसर उन में से एक है। स्पॉटिंग कैंसर होने का कोई एक प्रमुख कारक नहीं है लेकिन अगर आप मेनोपॉज की स्थिति में हैं और स्पॉटिंग का सामना कर रहे हैं तो ऐसी स्तिथि में तुरंत डॉक्टर का परामर्श ज़रूरी हो जाता है।
पीसीओडी
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओडी) ओवरी में रुकावट का काम करता है। मेंस्ट्रुअल साइकिल में जिस तरह से एग रिलीज होने चाहिए पीसीओडी की वजह से यह क्रिया ऐसी नहीं हो पाती है। जिसकी वजह से अनियमित पीरियड्स की वजह से स्पाटिंग हो सकती है।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग
प्रेग्नेंसी की शुरुआत में स्पॉटिंग होना सामान्य हो जाता है। लगभग 15 से 25 प्रतिशत लोग प्रेगनेंसी के दौरान स्पॉटिंग का सामना करते हैं। इम्प्लांटेशन स्पॉटिंग अगले पीरियड साइकिल के शुरू होने के कुछ दिन हो सकती है। इस दौरान स्पॉटिंग का कलर गुलाबी या गहरा भूरा हो सकता है। सपॉटिंग ब्लीडिंग, पीरीयड्स साइकिल फ्लो से कम और हल्का होता है।
इम्प्लांटेशन ब्लीडिंग की वजह से प्रेगनेंसी में सिरदर्द, थकावट, मूड स्विंग, क्रैंप और हल्का कमर दर्द की शिकायत हो सकती है। इम्पलांटेश ब्लीडिंग किसी भी तरीके से भ्रूण के लिए खतरनाक नहीं है। यदि स्पॉटिंग में हैवी ब्लीडिंग का सामना करना पड़ रहा है तो डॉक्टर से तुरंत सलाह लेना ज़रूरी है।
सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़
गोनोरिया या क्लमीडिया जैसे सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज (एससीडी) से यूटरस में सूजन आ जाती है। इस वजह से पीरियड्स के पहले और सेक्स करने के बाद स्पॉटिंग होने की संभावना हो सकती है।
मेंस्ट्रुअल साइकिल पर तनाव का गहरा असर पड़ता है। जो लोग अधिक शारीरिक और मानसिक तनाव से गुजर रहे होते हैं वे वजाइनल स्पॉटिंग का अधिक सामना करते है। इसकी के साथ थॉयराइड की दवाईयां और हॉर्मोनल ड्रग्स लेने की वजह से भी वजाइनल स्पॉटिंग होने की संभावना बन जाती है।
फाइब्रॉएड या पॉलीप्स
फाइब्रॉएड या पॉलीप्स नॉन-कैंसर ट्यूमर हैं जो यूटरस में लाइनिंग और मसल्स बनाते हैं। ये फर्टिलिटी सिस्टम को प्रभावित करते हैं और प्रेग्नेंसी में बाधा पहुंचाते हैं। इसकी वजह से पीरियड्स के दौरान हेवी और लंबी ब्लीडिंग होती है। यही वजह स्पॉटिंग का भी एक कारण बनती है।
तनाव
शरीर में होनेवाले नकारात्मक बदलावों का एक बड़ा कारण तनाव होता है। मेंस्ट्रुअल साइकिल पर तनाव का गहरा असर पड़ता है। जो लोग अधिक शारीरिक और मानसिक तनाव से गुजर रहे होते हैं वे वजाइनल स्पॉटिंग का अधिक सामना करते हैं। इसकी के साथ थायराइड की दवाइयां और हॉर्मोनल ड्रग्स लेने की वजह से भी वजाइनल स्पॉटिंग होने की संभावना बन जाती है।
अगर पीरियड्स के कुछ दिन पहले या बाद में स्पॉटिंग नज़र आए तो यह सामान्य है। लेकिन यदि स्पॉटिंग में हैवी ब्लीडिंग या क्लॉटिंग की शिकायत है तो इसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। मेनोपॉज़ की अवस्था से गुजरने वाले लोग यदि स्पॉटिंग का सामना करते हैं तो उन्हें इसके लिए जल्द से जल्द डॉक्टर का परामर्श लेना होगा। यदि स्पॉटिंग के दौरान पेट के निचले हिस्से में दर्द महसूस होता है या पीरियड के दौरान बुखार होता हो तो डॉक्टर का परामर्श लेना आवश्यक है। गर्भावस्था में स्पॉटिंग पहले तीन महीने में होना सामान्य है यदि इस दौरान अधिक क्लॉटिंग होती है तो चिकित्सीय परामर्श लेना ज़रूरी है।
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