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मर्दों की गर्भनिरोधक गोली
यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा गया था। इस लेख का मूल संस्करण यहां देखा जा सकता है।
अगर पुरुषों के गर्भनिरोधकों की बाजार में मौजूद महिला गर्भनिरोधकों के विकल्पों की श्रेणी से तुलना करें तो बीते 50 सालों में पुरुषों के गर्भनिरोधकों में बहुत कम बदलाव आए हैं।
फिलहाल मर्दों के लिए केवल तीन प्रकार के गर्भनिरोधक उपलब्ध है। ये निम्नलिखित हैं:
बाहर स्खलित होना - जहां वीर्य के स्खलन होने से पहले लिंग को योनि से हटा लिया जाता है।
कंडोम - एक ऐसा गर्भनिरोधक है जो शुक्राणुओं को अंडे तक पहुंचने और उसके प्रजनन को रोकता है।
पुरुष नसबंदी - एक छोटी सी शल्य चिकित्सा है जो यौन संबंध के दौरान लिंग से शुक्राणुओं को स्खलित होने से रोकता है (यह आमतौर पर स्थाई होता है)।
मर्दों के गर्भनिरोध और इसके तरीकों पर अभी भी कई शोध किए जा रहे हैं।
शोधकर्ता इस बारे में काफी आशान्वित हैं कि पुरुषों के लिए सुरक्षित, प्रभावशाली और दोबारा प्रयोग में लायी जा सकने वाली गर्भनिरोधक प्रणाली जल्दी ही इस्तेमाल योग्य हो जाएगी, हालांकि अभी इसमें कई साल बाकी हैं।
शोध के प्रकार
मर्दों के गर्भनिरोध के शोध के दो मुख्य विषय हैं:
हार्मोनल गर्भनिरोधक - जहां स्वस्थ शुक्राणुओं के निर्माण को रोकने के लिए अस्थाई कृत्रिम हारमोंस का प्रयोग किया जाता है।
गैर हार्मोनल पद्धति - यहां पर स्वस्थ शुक्राणुओं को महिलाओं की योनि में पहुंचने से रोकने के लिए अन्य प्रकार की तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
इन्हें नीचे स्पष्ट किया गया है।
हार्मोनल गर्भनिरोधक क्या है?
प्रजनन में सक्षम आदमियों के अंडकोष में नई शुक्राणु कोशिकाएं लगातार बनती रहती हैं। यह क्रिया हार्मोन टेस्टोस्टेरोन के द्वारा शुरू होती है।
मर्दों के गर्भनिरोधक के शोध का लक्ष्य टेस्टोस्टेरोन के प्रभाव को अस्थाई रूप से रोकने के लिए रास्ता ढूंढना है ताकि अंडकोष स्वस्थ शुक्राणु कोशिकाएं बनाना बंद कर दें। हालांकि इस जरूरत को टेस्टोस्टेरोन के स्तर को उस सीमा तक कम किए बिना प्राप्त है करना होता है कि यह दुष्परिणामों को शुरु ना कर दे, मसलन काम क्रियाओं में इच्छा का कम होना।
कृत्रिम टेस्टोस्टेरोन और अन्य स्टेरॉयड का मिश्रण
इसके एक तरीके में पुरुषों को कृत्रिम टेस्टोस्टेरोन के प्रारूप के साथ प्रोजेस्टोजन नाम का हार्मोन दिया जाता है। प्रोजेस्टोजन (Progestogens) महिलाओं के यौन हार्मोन का एक कृत्रिम प्रारूप है जो अक्सर महिलाओं के हार्मोनल गर्भनिरोधक में पाया जाता है जैसे कि प्रोजेस्टोजन की गोली।
यह तरीका वीर्यकोश को टेस्टोस्टेरोन का निर्माण करने से रोकता है , जो ज्यादातर मामलों में सामान्य शुक्राणुओं को बनने से रोकता है। हालांकि ठीक उसी वक्त यह खून में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को सामान्य रखने में मदद करता है और दुष्प्रभावों को भी रोकता है।
यह बहुत प्रभावशाली तरीक़ा है लेकिन इसके बावजूद कुछ पुरुष इतने शुक्राणु शरीर में बना लेते हैं कि फिर भी गर्भ्धारण हो सकता है I ऐसा क्यों होता है इसके कारणों को नहीं जाना जा सका है। शायद ऐसा इसलिए होता है कि कुछ पुरुष पर्याप्त टेस्टोस्टेरोन बनाना जारी रखते हैं जिसकी वजह से शरीर में कुछ शुक्राणु बनते रहते हैं।
शोधकर्ता अब कृत्रिम टेस्टोस्टेरोन और प्रोजेस्टोजन के विभिन्न मिश्रण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। विभिन्न देशों में बहुत से प्रयोग आदमियों के हारमोंनल गर्भनिरोधक की प्रभावशीलता और दीर्घकालिक सुरक्षा के बारे में हो रहे हैं है इसमें कुछ तीसरे चरण तक पंहुच चुके हैं। तीसरे चरण का परीक्षण एक अंतिम क्लिनिकल ट्रायल होता है जिसे दवाई को मार्कटिंग लाइसेंस देने से पहले किया जाता है।
कृत्रिम टेस्टोस्टेरोन के प्रयोग करने का एक मुख्य नुकसान यह है, कि विभिन्न एथिनिक वर्ग के पुरुषों में शुक्राणु का बनना अलग अलग दर कम होता है।
यह मतभेद जेनेटिक, आहार संबंधी और वातावरणीय कारकों की वजह से हो सकता है लेकिन इसके सही कारण का पता नहीं लगाया जा सका है। इसके कारणों को जानकर विविध जातिय पृष्ठभूमि के पुरुषों को प्रभावशाली गर्भ निरोधक उपलब्ध कराया जा सकता है ।
नॉन हार्मोनल गर्भनिरोधकक क्या है?
बहुत से गर्भनिरोधक की गैर हार्मोनल पद्धति के बारे में फिलहाल के अध्ययनों में शुक्रवाहिकाएं (vas deferens) शामिल हैं। शुक्रवाहिकाएं एक प्रकार की नली हैं जो शुक्राणुओं को लिंग तक पहुंचातीं हैं। इस नली को नसबंदी के दौरान काट दिया जाता है।
आरआईएसयूजी(RISUG) और आईवीडी(IVD)
रिवर्सिबल इनहिबिशन ऑफ स्पर्म अंडर गाइडेंस (आरआईएसयूजी) नाम की तकनीक एक आशाजनक मार्ग है। इस तकनीक के अंतर्गत एक गैर जहरीले कृत्रिम रसायन को सुई के द्वारा शुक्रवाहिकाओं में डाला जाता है। यह रसायन शुक्रवाहिकाओं को अवरुद्ध करता है। और जब शुक्राणु इसके संपर्क में आते हैं तो यह शुक्राणु को भी मारता है। यह रसायन सुई के द्वारा शरीर में पहुंचने के साथ ही तुरंत प्रभाव दिखाता है।
यह रसायन अपनी जगह पर तब तक रहता है जब तक पुरुष यह निर्णय ना ले कि अब उसे बच्चे चाहिएI तब यह रसायन अन्य सुई के द्वारा उस जगह से बाहर कर दिया जाता है जिस से यह घुल कर शुक्रवाहिकाओं द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।
इस तकनीक के ही एक अन्य तरीके को इंट्रा -वास डिवाइस (आईवीडी) कहते हैं। इस तकनीक में सुई द्वारा एक | प्लग | को शुक्र वाहिकाओं में इंजेक्ट किया जाता है जिसे बाद में हटाया भी जा सकता है। आईवीडी शुक्राणुओं को शुक्रवाहिकाओं से निकलते समय फ़िल्टर कर देता है।
आरआईएसयूजी और आईवीडी के प्रारंभिक परिणाम आशाजनक हैं लेकिन लंबे समय तक असरदार और सुरक्षित होने के लिए इन दोनों तकनीकों को अभी और अनुसंधान की जरूरत है।
अधिवृषण (Epididymis)
अन्य अनुसंधान अधिवृषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह अंडकोष के पीछे एक लंबी, लच्छेदार नली होती है जो शुक्राणुओं को सामान्य रूप से विकसित होने देती है जो एक सामान्य प्रजनन के लिए बहुत आवश्यक है।
अधिवृषण के अंदर शुक्राणुओं के विकसित होने के तरीके में और अधिवृषण के काम करने के तरीके में दखल देने की कोशिश की गई है। हालांकि इसका कोई भी प्रयास अब तक सफल नहीं हो पाया है।
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