पेट में बच्चा उल्टा होने के लक्षण?pregnancytips.in

Posted on Mon 7th Sep 2020 : 17:34

पेट में बच्चा उल्टा हो जाए तो क्या करें, ये सावधानियां जरूर बरतें

प्रेगनेंसी के दौरान गर्भाशय में शिशु की स्थिति में कई बदलाव आते हैं जिनमें से एक गर्भ में बच्‍चे का घूमना या उल्‍टा होना भी शामिल है। गर्भावस्‍था में कुछ स्थितियों में बच्‍चा उल्‍टा हो जाता है जिसकी वजह से डिलीवरी में दिक्‍कत आती है।

breech pregnancy
गर्भावस्‍था एक बहुत ही मुश्किल और महत्‍वपूर्ण समय होता है। इस दौरान कई तरह की परेशानियां आने की संभावना रहती है, जिसमें से एक गर्भ में बच्‍चा उल्‍टा होना भी शामिल है। लगभग 3 से 4 फीसदी महिलाओं में प्रेगनेंसी (Pregnancy) के दौरान गर्भ में बच्‍चा उल्‍टा होने की समस्‍या देखी जाती है।

इस स्थिति में गर्भाशय के अंदर शिशु का सिर ऊपर की तरफ और पैर नीचे बर्थ कैनाल की ओर आ जाते हैं। नॉर्मल प्रेगनेंसी में डिलीवरी से पहले अपने आप ही शिशु का सिर नीचे की ओर आ जाता है। नॉर्मल डिलीवरी के लिए इस स्थिति को सबसे सही माना जाता है। वहीं जब शिशु का सिर ऊपर और पैर नीचे आते हैं तो इस स्थिति को 'ब्रीच बर्थ' कहा जाता है।

गर्भ में बच्चा उल्टा होने के प्रकार
ब्रीच प्रेग्‍नेंसी के तीन प्रकार होते हैं (Type Of Pregnancy) - फ्रैंक, कंप्‍लीट और फुटलिंग ब्रीच। फ्रैंक बीच में शिशु का सिर और पैर ऊपर की ओर जबकि कूल्‍हे नीचे की ओर आ जाते हैं। वहीं, कंप्‍लीट ब्रीच में शिशु के पैर और कूल्‍हे नीचे की ओर रहते हैं और दोनों घुटने मुड़े रहते हैं। फुटलिंग ब्रीच में शिशु क्रॉस कर के बैठा होता है।
30 के बाद मां बनने पर प्रेग्नेंसी में हो सकते हैं ये 5 कॉमन कॉम्प्लिकेशन्स

-

30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होना नामुमकिन नहीं है लेकिन 20 से 30 की उम्र में प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं की तुलना में 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इस दौरान आपको घबराने या पैनिक होने की जरूरत नहीं है। बस पहले से खुद को तैयार रखने की जरूरत है ताकि आपकी प्रेग्नेंसी पूरी तरह से स्मूथ रहे और आपको किसी तरह का कॉम्प्लिकेशन ना हो।
1-

प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले अगर किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे प्रीमच्योर डिलिवरी या प्री-टर्म लेबर की कैटिगरी में रखा जाता है। ये एक गंभीर जटिलता है क्योंकि बच्चे का अगर समय से पहले जन्म हो जाए तो उसे सेहत से जुड़ी मुश्किलें हो सकती हैं क्योंकि गर्भ में रहने के दौरान उसका जितना और जिस तरह से विकास होता है, वह समय से पहले डिलिवरी होने की वजह से नहीं हो पाएगा। लिहाजा आपको अपने शरीर में दिखने वाले कुछ संकेतों पर समय रहते ध्यान देना चाहिए ताकि प्री-टर्म लेबर के खतरे को रोका जा सके। अगर ड्यू डेट से पहले ही ये लक्षण जैसे- क्रैम्प्स, फ्लूइड डिस्चार्ज, वजाइना से ब्लड का फ्लो, पीठ में दर्द आदि नजर आए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
2-

30 से 40 साल के बीच प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं में जेस्टेशनल डायबीटीज यानी प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबीटीज का खतरा बढ़ जाता है और करीब 5 प्रतिशत मामलों में इसका खतरा रहता है। अगर किसी महिला को डायबीटीज नहीं भी है तब भी प्रेग्नेंसी के दौरान उनका ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। ऐसे में अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान बार-बार बहुत ज्यादा प्यास या भूख लगे, या बार-बार यूरिन पास करने के लिए टॉइलट जाना पड़े तो आपको अपना शुगर टेस्ट करवाना चाहिए। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान डायबीटीज के खतरे का पता न चले तो होने वाले बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है, जन्म के वक्त बच्चे का वजन अधिक हो सकता है या फिर होने वाले बच्चे को टाइप 2 डायबीटीज होने का भी खतरा रहता है।
3-

प्रेग्नेंसी के दौरान अगर हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो जाए तो यह गंभीर खतरा हो सकता है और इससे शरीर के बाकी अंगों को भी नुकसान का खतरा रहता है और इस परिस्थिति को ही प्रीक्लैम्प्सिया कहते हैं। अगर आपको शरीर में ये लक्षण दिखें जैसे- हाथ और पैर में ज्यादा सूजन, वॉटर रिटेंशन, जी मिचलाना और सिरदर्द, देखने में परेशानी, सांस लेने में दिक्कत आदि तो इन्हें गंभीरता से लें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 30 से 40 की उम्र में प्रेग्नेंट होने पर प्रीक्लैम्प्सिया का रिस्क बढ़ जाता है जिससे होने वाली मां के साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह का खतरा हो सकता है।
4-

अगर जन्म के वक्त बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से कम है तो उस बच्चे को लो-बर्थ वेट बेबी यानी कम वजन वाला बच्चा माना जाता है। आमतौर पर जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है उनमें यह दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है। 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने पर होने वाले बच्चे में यह दिक्कत हो सकती है। लिहाजा अपनी गाइनैकॉलजिस्ट से बात करें और वह जैसा सुझाव दें उसके अनुसार ही काम करें।
5-

अगर 35 साल की उम्र के बाद कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो उनमें एक्टोपिक यानी अस्थानिक प्रेग्नेंसी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस समस्या में फर्टिलाइज्ड एग, यूट्रस यानी गर्भाशय के अंदर नहीं बल्कि बाहर अटैच हो जाता है और इस वजह से वह भ्रूण पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता और आखिरकार मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में अगर प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में आपको हद से ज्यादा कमजोरी, चक्कर आना, सिर घूमना, शरीर के एक तरफ तेज दर्द महसूस हो और थोड़ा बहुत वजाइनल ब्लीडिंग नजर आए तो इन लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाए एक बार अपना चेकअप जरूर करवा लें।

गर्भ में बच्चा उल्टा हो तो सीधा कैसे करें
अगर प्रेग्‍नेंसी के दौरान बच्‍चा उल्‍टा हो गया है तो बच्‍चे की स्थिति को ठीक किया जा सकता है। अब यह कोशिश कितनी सफल होगी, ये इस बात पर निर्भर करती है कि ब्रीच प्रेग्‍नेंसी का कारण क्‍या है। गर्भ में बच्‍चा उल्‍टा होने की स्थिति में अगर आप ऑपरेशन नहीं करवाना चाहती हैं तो एक बार डॉक्‍टर से सलाह जरूर लें और इस मामले में किसी भी तरह की जिद करना सही बात नहीं है।
हालांकि, कुछ माओं ने यह दावा किया है कि एसेंशियल ऑयल जैसे कि पुदीने के तेल से पेट की मालिश करने से बच्‍चा खुद ही गर्भ में घूमकर सही स्थिति में आ जाता है। एसेंशियल ऑयल के इस्‍तेमाल से पहले गर्भवती महिला को डॉक्‍टर से परामर्श जरूर लेना चाहिए क्‍योंकि सभी एसेंशियल ऑयल प्रेग्‍नेंसी में सुरक्षित नहीं होते हैं।
इसके अलावा ब्रीच प्रेग्‍नेंसी में कुछ व्‍यायाम और पोजीशन भी बच्‍चे को सही स्थिति में लाने में मदद करते हैं। इसमें लिफ्ट की जगह सीढियों का इस्‍तेमाल करने से भी फायदा हो सकता है।

solved 5
wordpress 3 years ago 5 Answer
--------------------------- ---------------------------
+22

Author -> Poster Name

Short info