प्रेगनेंसी के शुरुआत में कमर दर्द?pregnancytips.in

Posted on Thu 19th Dec 2019 : 23:19

प्रेगनेंसी में अब नहीं सताएगा कमर दर्द, अपनाएं ये तरीके

प्रेगनेंसी में कमर दर्द होना एक आम बात है लेकिन कुछ घरेलू तरीकों की मदद से आप इस परेशानी से निजात पा सकती हैं। प्रेगनेंसी के शुरुआती चरण में जी मितली, उल्‍टी या मॉर्निंग सिकनेस होती है जो कि दूसरी तिमाही तक कम भी हो जाती हैं लेकिन गर्भावस्‍था में पीठ दर्द की समस्‍या डिलीवरी तक बनी रहती है। ऐसे में घरेलू तरीकों से इसे कम करना आपके लिए आरामदायक साबित हो सकता है।

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गर्भावस्‍था में आमतौर पर महिलाओं को कमर दर्द की शिकायत रहती है। हालांकि, ऐसा होना सामान्‍य बात है। हर महिला को गर्भावस्‍था के दौरान थोड़ा या ज्‍यादा कमर दर्द होता ही है। वैसे तो ये समस्‍या गर्भावस्‍था के किसी भी चरण में हो सकती है, लेकिन प्रेगनेंसी के आखिरी चरणों में ऐसा ज्‍यादा देखा जाता है।



रिपोर्ट की मानें तो गर्भावस्‍था के दौरान 50 से 70 फीसदी महिलाओं को कमर दर्द महसूस होता है। प्रेग्नेंसी में कई कारणों से पीठ दर्द हो सकता है। अधिक वजन या गर्भावस्‍था से पहले कमर दर्द से ग्रस्‍त महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान पीठ दर्द का खतरा ज्‍यादा रहता है।

कमर दर्द की वजह से रोजमर्रा के काम करने और अच्‍छी नींद लेने में भी दिक्‍कत हो सकती है। अगर आप भी प्रेग्‍नेंट हैं और कमर दर्द आपको परेशान कर रहा है तो ज्‍यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। कुछ आसान से तरीकों की मदद से इससे निजात पा सकती हैं।

30 के बाद मां बनने पर प्रेग्नेंसी में हो सकते हैं ये 5 कॉमन कॉम्प्लिकेशन्स

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30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होना नामुमकिन नहीं है लेकिन 20 से 30 की उम्र में प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं की तुलना में 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इस दौरान आपको घबराने या पैनिक होने की जरूरत नहीं है। बस पहले से खुद को तैयार रखने की जरूरत है ताकि आपकी प्रेग्नेंसी पूरी तरह से स्मूथ रहे और आपको किसी तरह का कॉम्प्लिकेशन ना हो।
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प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले अगर किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे प्रीमच्योर डिलिवरी या प्री-टर्म लेबर की कैटिगरी में रखा जाता है। ये एक गंभीर जटिलता है क्योंकि बच्चे का अगर समय से पहले जन्म हो जाए तो उसे सेहत से जुड़ी मुश्किलें हो सकती हैं क्योंकि गर्भ में रहने के दौरान उसका जितना और जिस तरह से विकास होता है, वह समय से पहले डिलिवरी होने की वजह से नहीं हो पाएगा। लिहाजा आपको अपने शरीर में दिखने वाले कुछ संकेतों पर समय रहते ध्यान देना चाहिए ताकि प्री-टर्म लेबर के खतरे को रोका जा सके। अगर ड्यू डेट से पहले ही ये लक्षण जैसे- क्रैम्प्स, फ्लूइड डिस्चार्ज, वजाइना से ब्लड का फ्लो, पीठ में दर्द आदि नजर आए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
2-

30 से 40 साल के बीच प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं में जेस्टेशनल डायबीटीज यानी प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबीटीज का खतरा बढ़ जाता है और करीब 5 प्रतिशत मामलों में इसका खतरा रहता है। अगर किसी महिला को डायबीटीज नहीं भी है तब भी प्रेग्नेंसी के दौरान उनका ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। ऐसे में अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान बार-बार बहुत ज्यादा प्यास या भूख लगे, या बार-बार यूरिन पास करने के लिए टॉइलट जाना पड़े तो आपको अपना शुगर टेस्ट करवाना चाहिए। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान डायबीटीज के खतरे का पता न चले तो होने वाले बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है, जन्म के वक्त बच्चे का वजन अधिक हो सकता है या फिर होने वाले बच्चे को टाइप 2 डायबीटीज होने का भी खतरा रहता है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान अगर हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो जाए तो यह गंभीर खतरा हो सकता है और इससे शरीर के बाकी अंगों को भी नुकसान का खतरा रहता है और इस परिस्थिति को ही प्रीक्लैम्प्सिया कहते हैं। अगर आपको शरीर में ये लक्षण दिखें जैसे- हाथ और पैर में ज्यादा सूजन, वॉटर रिटेंशन, जी मिचलाना और सिरदर्द, देखने में परेशानी, सांस लेने में दिक्कत आदि तो इन्हें गंभीरता से लें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 30 से 40 की उम्र में प्रेग्नेंट होने पर प्रीक्लैम्प्सिया का रिस्क बढ़ जाता है जिससे होने वाली मां के साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह का खतरा हो सकता है।
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अगर जन्म के वक्त बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से कम है तो उस बच्चे को लो-बर्थ वेट बेबी यानी कम वजन वाला बच्चा माना जाता है। आमतौर पर जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है उनमें यह दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है। 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने पर होने वाले बच्चे में यह दिक्कत हो सकती है। लिहाजा अपनी गाइनैकॉलजिस्ट से बात करें और वह जैसा सुझाव दें उसके अनुसार ही काम करें।
5-

अगर 35 साल की उम्र के बाद कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो उनमें एक्टोपिक यानी अस्थानिक प्रेग्नेंसी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस समस्या में फर्टिलाइज्ड एग, यूट्रस यानी गर्भाशय के अंदर नहीं बल्कि बाहर अटैच हो जाता है और इस वजह से वह भ्रूण पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता और आखिरकार मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में अगर प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में आपको हद से ज्यादा कमजोरी, चक्कर आना, सिर घूमना, शरीर के एक तरफ तेज दर्द महसूस हो और थोड़ा बहुत वजाइनल ब्लीडिंग नजर आए तो इन लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाए एक बार अपना चेकअप जरूर करवा लें।



एक्‍सरसाइज

प्रेग्नेंसी में नियमित एक्‍सरसाइज करने से पीठ दर्द कम हो सकता है। आप ब्रिस्‍क वॉक, तरौकी या हल्‍के व्‍यायाम कर सकती हैं। शुरुआत में आपको हल्‍की एक्‍सरसाइज ही करनी चाहिए। पहले 10 मिनट एक्‍सरसाइज करें और फिर धीरे-धीरे इस समय को बढ़ाते रहें। इस समय योग, पिलाटेस, ताई ची या रिलैक्‍सेशन क्‍लासेस से भी मदद मिलेगी। योग और पिलाटेस से मांसपेशियां मजबूत होती हैं, जिससे की कमर को सहारा मिलता है।

मालिश

मालिश से मांसपेशियों को राहत मिलती है जिससे पीठ दर्द से राहत पाने में मदद मिल सकती है। हल्‍के हाथों से मालिश करने के अलावा ठंडी या गर्म सिकाई भी इसमें फायदेमंद साबित हो सकती है।
30 के बाद मां बनने पर प्रेग्नेंसी में हो सकते हैं ये 5 कॉमन कॉम्प्लिकेशन्स

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30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होना नामुमकिन नहीं है लेकिन 20 से 30 की उम्र में प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं की तुलना में 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं को कुछ मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इस दौरान आपको घबराने या पैनिक होने की जरूरत नहीं है। बस पहले से खुद को तैयार रखने की जरूरत है ताकि आपकी प्रेग्नेंसी पूरी तरह से स्मूथ रहे और आपको किसी तरह का कॉम्प्लिकेशन ना हो।
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प्रेग्नेंसी के 37वें हफ्ते से पहले अगर किसी बच्चे का जन्म होता है तो उसे प्रीमच्योर डिलिवरी या प्री-टर्म लेबर की कैटिगरी में रखा जाता है। ये एक गंभीर जटिलता है क्योंकि बच्चे का अगर समय से पहले जन्म हो जाए तो उसे सेहत से जुड़ी मुश्किलें हो सकती हैं क्योंकि गर्भ में रहने के दौरान उसका जितना और जिस तरह से विकास होता है, वह समय से पहले डिलिवरी होने की वजह से नहीं हो पाएगा। लिहाजा आपको अपने शरीर में दिखने वाले कुछ संकेतों पर समय रहते ध्यान देना चाहिए ताकि प्री-टर्म लेबर के खतरे को रोका जा सके। अगर ड्यू डेट से पहले ही ये लक्षण जैसे- क्रैम्प्स, फ्लूइड डिस्चार्ज, वजाइना से ब्लड का फ्लो, पीठ में दर्द आदि नजर आए तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
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30 से 40 साल के बीच प्रेग्नेंट होने वाली महिलाओं में जेस्टेशनल डायबीटीज यानी प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली डायबीटीज का खतरा बढ़ जाता है और करीब 5 प्रतिशत मामलों में इसका खतरा रहता है। अगर किसी महिला को डायबीटीज नहीं भी है तब भी प्रेग्नेंसी के दौरान उनका ब्लड शुगर लेवल बढ़ सकता है। ऐसे में अगर आपको प्रेग्नेंसी के दौरान बार-बार बहुत ज्यादा प्यास या भूख लगे, या बार-बार यूरिन पास करने के लिए टॉइलट जाना पड़े तो आपको अपना शुगर टेस्ट करवाना चाहिए। अगर प्रेग्नेंसी के दौरान डायबीटीज के खतरे का पता न चले तो होने वाले बच्चे का जन्म समय से पहले हो सकता है, जन्म के वक्त बच्चे का वजन अधिक हो सकता है या फिर होने वाले बच्चे को टाइप 2 डायबीटीज होने का भी खतरा रहता है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान अगर हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कत हो जाए तो यह गंभीर खतरा हो सकता है और इससे शरीर के बाकी अंगों को भी नुकसान का खतरा रहता है और इस परिस्थिति को ही प्रीक्लैम्प्सिया कहते हैं। अगर आपको शरीर में ये लक्षण दिखें जैसे- हाथ और पैर में ज्यादा सूजन, वॉटर रिटेंशन, जी मिचलाना और सिरदर्द, देखने में परेशानी, सांस लेने में दिक्कत आदि तो इन्हें गंभीरता से लें और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। 30 से 40 की उम्र में प्रेग्नेंट होने पर प्रीक्लैम्प्सिया का रिस्क बढ़ जाता है जिससे होने वाली मां के साथ-साथ बच्चे को भी कई तरह का खतरा हो सकता है।
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अगर जन्म के वक्त बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से कम है तो उस बच्चे को लो-बर्थ वेट बेबी यानी कम वजन वाला बच्चा माना जाता है। आमतौर पर जिन बच्चों का जन्म समय से पहले हो जाता है उनमें यह दिक्कत ज्यादा देखने को मिलती है। 30 की उम्र के बाद प्रेग्नेंट होने पर होने वाले बच्चे में यह दिक्कत हो सकती है। लिहाजा अपनी गाइनैकॉलजिस्ट से बात करें और वह जैसा सुझाव दें उसके अनुसार ही काम करें।
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अगर 35 साल की उम्र के बाद कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो उनमें एक्टोपिक यानी अस्थानिक प्रेग्नेंसी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इस समस्या में फर्टिलाइज्ड एग, यूट्रस यानी गर्भाशय के अंदर नहीं बल्कि बाहर अटैच हो जाता है और इस वजह से वह भ्रूण पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता और आखिरकार मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में अगर प्रेग्नेंसी के शुरुआती दिनों में आपको हद से ज्यादा कमजोरी, चक्कर आना, सिर घूमना, शरीर के एक तरफ तेज दर्द महसूस हो और थोड़ा बहुत वजाइनल ब्लीडिंग नजर आए तो इन लक्षणों को नजरअंदाज करने की बजाए एक बार अपना चेकअप जरूर करवा लें।



सही मुद्रा या पोजीशन अपनाएं

आपके बैठने और उठने का तरीका भी पीठ दर्द को कम कर सकता है। प्रेग्नेंसी में सही पोजीशन में बैठने और लेटने की कोशिश करें। बैठने पर पीठ के पीछे एक नरम तकिया लगाएं और लेटते समय बाईं करवट लेकर लेटें। लेटते समय दोनों पैरों के बीच तकिया लगाने से भी आराम मिलता है।

एरोमाथेरेपी

आप लैवेंडर ऑयल से एरोमाथेरेपी बाथ ले सकती हैं। प्रेग्नेंसी में यह सुरक्षित होता है और इससे मांसपेशियों में दर्द से राहत पाने में भी मदद मिल सकती है। अपने नहाने के पानी में अंगूर के बीज के तेल में लैवेंडर ऑयल की दो से तीन बूंदें डालकर नहाएं। इसके अलावा लैवेंडर ऑयल की दो से तीन बूंद मिले गुनगुने पानी में एक कपड़े को भिगोकर सिकाई करने से भी पीठ दर्द से राहत मिलती है।
इन बातों का भी ध्‍यान रखें

प्रेग्नेंसी के दौरान ज्‍यादा तंग कपड़े पहनने से बचें और अधिक भारी सामान न उठाएं।
लेटी या बैठी हैं तो एक दम से झटके से न उठें।
गर्भावस्‍था में पैरों पर ज्‍यादा वजन न पड़ने दें और ज्‍यादा देर तक खड़े रहने की भी गलती न करें।
पीठ के बल झुके नहीं और आरामदायक जूते व चप्‍पल पहनें।
प्रेग्नेंसी में पीठ दर्द से राहत पाने के लिए आप मेटरनिटी बेल्‍ट पहन सकती हैं। यह बेल्‍ट प्रेगनेंसी में बढ़े पेट का भार आसानी से संभाल लेती है जिससे आपको पीठ दर्द में कमी महसूस होती है।


प्रेग्नेंसी में पीठ दर्द होना आम बात है, लेकिन कुछ बातों का ध्‍यान रखकर आप इस परेशानी को कम या खत्‍म कर सकती हैं। अगर आपको प्रेग्नेंसी के आखिरी चरण में कमर में बहुत तेज दर्द महसूस हो रहा है तो यह समय से पहले डिलीवरी का संकेत हो सकता है। ऐसे में तुरंत डॉक्‍टर से संपर्क करें। यदि आपको ऊपर बताए गए तरीकों से भी कमर दर्द से राहत नहीं मिल रही है तो इस स्थि‍ति में भी चिकित्‍सक से परामर्श लेना जरूरी है।

solved 5
wordpress 4 years ago 5 Answer
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