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फैलोपियन ट्यूब में गर्भ
सामान्य प्रेग्नेंसी (गर्भधारण) में भ्रूण का विकास गर्भाशय में होता है। महिला के शरीर में गर्भाशय के दोनों तरफ ओवरी रहती है जो गर्भाशय से फैलोपियन ट्यूब द्वारा जुड़ी होती है। प्रतिमाह ओव्यूलेशन द्वारा ओवरी से ओवम निकलता है तथा ट्यूब में आ जाता है। गर्भधारण की स्थिति में यह भ्रूण के रूप में यहां से गर्भाशय में पहुंचकर विकसित होता है, लेकिन जब ये अपने नियत स्थान गर्भाशय से बाहर और कहीं विकसित होने लगे तो यह अवस्था एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहलाती है। यह असामान्य जगह फैलोपियन ट्यूब (अण्डवाहिनी), ओवरी (अण्डदानी), सरविक्स (गर्भाशय का मुंह) और कई बार पेट की पेरीटोनियल कैवेटी हो सकती है।
यदि गर्भाशय के बाहर प्रेग्नेंसी के 10 मामले हैं, तो उसमें से 9 में यह जगह फैलोपियन ट्यूब होती है, जिसे ट्यूबल प्रेग्नेंसी भी कहते हैं। कई बार सामान्य व एक्टोपिक प्रेग्नेंसी साथ-साथ चलती हैं जिसे हिटरोटॉपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं। इसमें एक भ्रूण गर्भाशय में व दूसरा और कहीं होता है। जहां सामान्य प्रेग्नेंसी में गर्भाशय में पलता शिशु का आकार ले लेता है। वहीं एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में प्रायः ऐसा नहीं हो पाता तथा कई बार मां के लिए जटिल स्थिति हो सकती है। एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की अवस्था 1 से 2 फीसदी में होती है। इससे 4 फीसदी महिलाएं मौत का शिकार हो जाती हैं। यह गर्भावस्था के शुरुआती दिनों में होने वाली मातृ मृत्युदर का प्रमुख कारण है।
कारणः- यह अवस्था उन महिलाओं में ज्यादा पाई जाती है, जिन्होंने गर्भधारण कृत्रिम संसाधनों से किया हो, जैसे इन्ट्रायूटराईन इनसेमिनेशन (कृत्रिम रूप से गर्भाशय में शुक्राणु पहुंचाना)। इनमें यह 4 फीसदी में होता है। जेनिटल ट्रैक्ट में संक्रमण, ट्यूबरक्युलोसिस भी इसका कारण बन सकते हैं। यह नसबंदी या पेट के अन्य ऑपरेशन करा चुकी महिलाओं में भी हो सकता है। इन स्थितियों में फैलोपियन ट्यूब अवरुद्ध हो जाती है। इस कारण भ्रूण गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाता व अन्य जगह विकसित होने लगता है। गर्भाशय में विकृति होने पर भी ऐसा हो सकता है। वैसे कई बार यह सामान्य महिलाओं में भी हो सकता है।
लक्षणः- शुरुआत में इसके लक्षण सामान्य प्रेग्नेंसी जैसे ही होते हैं। माहवारी आना बन्द हो जाती है और प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजीटिव आता है। पेट में हल्का या तेज दर्द हो सकता है। चक्कर आते हैं, जिससे महिला गिर भी सकती है। शरीर में रक्त की कमी हो जाती है। दरअसल, इन जगहों पर बच्चे को बढ़ने के लिए गर्भाशय जैसा लचीला व पर्याप्त स्थान नहीं होता है, जिससे भ्रूण के बड़े आकार को ट्यूब सहन नहीं कर पाती व सातवें हफ्ते तक कई बार फट जाती है व भारी मात्रा में रक्त पेट में इकट्ठा हो जाता है। इससे महिला को सदमा पहुंच सकता है, जिसे कोलैप्स होना भी कहते हैं। कई बार यह खून एक बड़ा-सा थक्का बनाकर यूरिनरी ब्लैडर व आंतों से चिपक जाता है, जिससे महिला को हमेशा पेट में हल्का सा दर्द व बुखार बना रहता है। इसे क्रॉनिक एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं।
पैरीटोनियल कैवेटी में भ्रूण पूरे नौ माह तक पल सकता है। यहां इसको पोषण अन्य भागों जैसे आंत या यूरिनरी ब्लैडर (मूत्राशय) से मिलता है, जिसकी वजह से इन अंगों पर भी विपरीत असर पड़ सकता है।
जांच व उपचारः- एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता सोनोग्राफी से चल सकता है, जिसमें विकसित होता भ्रूण गर्भाशय के बाहर दिखाई देता है। पांच हफ्ते तक कई बार भ्रूण कहीं भी दिखाई नहीं देता, लेकिन प्रेग्नेंसी टेस्ट पॉजीटिव आता है। इस अवस्था को प्रेग्नेंसी ऑफ अननोन लोकेशन कहते हैं। इस अवस्था में रक्त से बीटा-एचसीजी नामक हारमोन के स्तर की जांच की जाती है। यह हारमोन जहां सामान्य प्रेग्नेंसी में हर 48 घंटों में लगभग दोगुना हो जाता है, वहीं एक्टोपिक में इसका स्तर इतना नहीं बढ़ता। एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता लगने पर इसका एकमात्र इलाज भ्रूण को बाहर निकालना होता है भले वह दवा से हो या सर्जरी से। दवाओं से इसकी कोशिश तब की जाती है जब ट्यूब फटी न हो और न ही भ्रूण में दिल की धड़कन आई हो। सर्जरी तब होती है जब ट्यूब फट जाती है या अत्यधिक मात्रा में रक्त निकल चुका होता है या भ्रूण बहुत बड़ा आकार ले चुका होता है। यह दूरबीन से लेप्रोस्कोपिक तकनीक से भी की जा सकती है।
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