बच्चों को पहला खाना क्या होना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Fri 11th Nov 2022 : 09:30

शिशु को 6 महीने के होने के बाद ठोस आहार देना शुरू किया जाता है। बच्‍चे के लिए खाना एकदम नया होता है और उसके पेट को इसे पचाने में समय लग सकता है इसलिए आपको इस बात का बहुत ध्‍यान रखना पड़ेगा कि ठोस आहार शुरू करने पर बच्‍चे को सबसे पहले क्‍या खिलाना चाहिए।

यहां हम आपको कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों के बारे में बता रहे हैं जो शिशु को ठोस आहार शुरू करने पर जरूर देने चाहिए या इन्‍हीं से ठोस आहार की शुरुआत करनी चाहिए।

पहली बार बच्‍चे को कैसे खिलाएं ठोस आहार
आप ब्रेस्‍ट मिल्‍क और ठोस आहार को मिलाकर बच्‍चे को दे सकते हैं। इससे उसे एक दम से नया बदलाव नहीं लगेगा। पहले हमेशा थोड़ी मात्रा में ही खिलाना चाहिए। एक निवाले में एक छोटी चम्‍मच से ज्‍यादा न खिलाएं। जब शिशु को ठोस आहार खाने की आदत हो जाए तब आप उसे दही और सेब आदि मिलाकर खिला सकते हैं।

ब्रेस्‍ट मिल्‍क में शिशु के विकास के लिए जरूरी कई पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं लेकिन बोतल में फॉर्मूला मिल्‍क भरकर देने से बच्‍चों में आगे चलकर मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।
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बोतल को साफ करना सबसे मुश्किल और जरूरी काम होता है। बच्‍चे को देने से पहले बोतल को अच्‍छी तरह से धोना बहुत जरूरी होता है। इसके बाद दूध को गर्म कर के बोतल में भरना और फिर बच्‍चे को पिलाना काफी लंबा और मेहनत का काम हो जाता है।

अगर बोतल ठीक तरह से साफ न हो तो इसकी वजह से शिशु की सेहत को खतरा रहता है।


मां के दूध में शिशु की इम्‍युनिटी को मजबूत करने वाले पोषक तत्‍व होते हैं। वहीं बोतल में दिया जाने वाला फॉर्मूला मिल्‍क इम्‍युनटी बढ़ाने वाले गुणों से युक्‍त नहीं होता है। इससे दस्‍त, छाती में इंफेक्‍शन या यूरीन इंफेक्‍श हो सकता है।


स्‍तनपान बंद करवाने के बाद बोतल से दूध पिलाना शुरू करने पर आपको एहसास होगा कि ये काम मुश्किल ही नहीं बल्कि महंगा भी है। बोतल, दूध, निप्‍पल और ब्रेस्‍ट पंप पर काफी पैसे खर्च होते हैं और समय-समय पर बोतल और निप्‍पल को बदलना भी पड़ता है।

स्‍तनपान करवाने से मां और बच्‍चे के बीच एक अनोखा रिश्‍ता पनपता है लेकिन बोतल से दूध पिलाने पर इस तामयी रिश्‍ते में दूरियां आ सकती हैं। इसके अलावा बोतल से दूध पिलाना थोड़ा असुविधाजनक होता है।

अगर बच्‍चे को आधी रात को दूध पीना हुआ तो मां की नींद तो खराब होती ही है साथ ही दूध तैयार करने के लिए उठना भी पड़ता है।


ऐसा नहीं है कि बच्‍चे को बोतल से दूध पिलाने के सिर्फ नुकसान ही होते हैं बल्कि इससे कुछ फायदे भी मिलते हैं, जैसे कि :
शिशु को जब भी भूख लगी, घर का कोई भी सदस्‍य दूध पिला सकता है। मां के आसपास न होने पर बोतल का दूध बहुत काम आता है। आप ये जान सकती हैं कि हर बार दूध पीने पर बच्‍चा कितनी मात्रा में दूध पी रहा है।बोतल से दूध पिलाने पर पिता, भाई-बहन या परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को भी शिशु के करीब जाने का मौका मिलता है। मां को अपनी डायट पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत नहीं पड़ती है।शिशु के लिए 6 माह का होने तक मां का दूध आवश्‍यक होता है। इसके बाद स्‍तनपान की जगह बोतल से दूध पिलाना शुरू किया जा सकता है। बोतल से दूध पिलाने पर मां को काफी आसानी रहती है।

सेब
बच्‍चों को सेब का मीठा और खट्टा स्‍वाद पसंद आएगा। आप ठोस आहार की शुरुआत सेब से कर सकते हैं। वहीं, सेब में फाइबर अधिक और फैट की मात्रा कम होती है इसलिए यह फल शिशु के लिए बहुत लाभदायक होता है। आप सेब का छिलका उतारकर उसकी प्‍यूरी बनाकर बच्‍चे को दे सकती हैं।

चुकंदर
चुकंदर को उबालकर खिलाने से शिशु को अनेक पोषक तत्‍व मिल जाते हैं। चुकंदर में फोलिक एसिड होता है जो शिशु के मस्तिष्‍क के विकास में मदद करता है। कई बच्‍चे बड़े आराम से चुकंदर खा लेते हैं।
Bottle feeding Disadvantages : बच्‍चों को बोतल से दूध पिलाने के नुकसान

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ब्रेस्‍ट मिल्‍क में शिशु के विकास के लिए जरूरी कई पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं लेकिन बोतल में फॉर्मूला मिल्‍क भरकर देने से बच्‍चों में आगे चलकर मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।
बोतल को साफ करना सबसे मुश्किल और जरूरी काम होता है। बच्‍चे को देने से पहले बोतल को अच्‍छी तरह से धोना बहुत जरूरी होता है। इसके बाद दूध को गर्म कर के बोतल में भरना और फिर बच्‍चे को पिलाना काफी लंबा और मेहनत का काम हो जाता है।

अगर बोतल ठीक तरह से साफ न हो तो इसकी वजह से शिशु की सेहत को खतरा रहता है।


मां के दूध में शिशु की इम्‍युनिटी को मजबूत करने वाले पोषक तत्‍व होते हैं। वहीं बोतल में दिया जाने वाला फॉर्मूला मिल्‍क इम्‍युनटी बढ़ाने वाले गुणों से युक्‍त नहीं होता है। इससे दस्‍त, छाती में इंफेक्‍शन या यूरीन इंफेक्‍श हो सकता है।


स्‍तनपान बंद करवाने के बाद बोतल से दूध पिलाना शुरू करने पर आपको एहसास होगा कि ये काम मुश्किल ही नहीं बल्कि महंगा भी है। बोतल, दूध, निप्‍पल और ब्रेस्‍ट पंप पर काफी पैसे खर्च होते हैं और समय-समय पर बोतल और निप्‍पल को बदलना भी पड़ता है।


- स्‍तनपान करवाने से मां और बच्‍चे के बीच एक अनोखा रिश्‍ता पनपता है लेकिन बोतल से दूध पिलाने पर इस ममतामयी रिश्‍ते में दूरियां आ सकती हैं। इसके अलावा बोतल से दूध पिलाना थोड़ा असुविधाजनक होता है।

अगर बच्‍चे को आधी रात को दूध पीना हुआ तो मां की नींद तो खराब होती ही है साथ ही दूध तैयार करने के लिए उठना भी पड़ता है।


ऐसा नहीं है कि बच्‍चे को बोतल से दूध पिलाने के सिर्फ नुकसान ही होते हैं बल्कि इससे कुछ फायदे भी मिलते हैं, जैसे कि :
शिशु को जब भी भूख लगी, घर का कोई भी सदस्‍य दूध पिला सकता है। मां के आसपास न होने पर बोतल का दूध बहुत काम आता है। आप ये जान सकती हैं कि हर बार दूध पीने पर बच्‍चा कितनी मात्रा में दूध पी रहा है।बोतल से दूध पिलाने पर पिता, भाई-बहन या परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को भी शिशु के करीब जाने का मौका मिलता है। मां को अपनी डायट पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत नहीं पड़ती है।शिशु के लिए 6 माह का होने तक मां का दूध आवश्‍यक होता है। इसके बाद स्‍तनपान की जगह बोतल से दूध पिलाना शुरू किया जा सकता है। बोतल से दूध पिलाने पर मां को काफी आसानी रहती है।

नाशपाती

नाशपाती से बच्‍चों का पाचन ठीक रहता है। नाशपाती में प्रचुर मात्रा में फास्‍फोरस और कैल्शियम होता है जाे शिशु की हड्डियों को मजबूत बनाने की प्रक्रिया को बढ़ावा देता है। नाशपाती का छिलका उतार कर, उसके बीज निकालने के बाद प्‍यूरी के रूप में शिशु को खिलाएं।

दही
7 से 8 महीने के बच्‍चे को दही खिला सकते हैं। दही बहुत नरम होती है इसलिए शुरुआती ठोस आहार के रूप में दही खिला सकते हैं। ये कैल्शियम का अच्‍छा स्रोत होता है और इससे शिशु का पाचन भी दुरुस्‍त रहता है।

ब्रेस्‍ट मिल्‍क में शिशु के विकास के लिए जरूरी कई पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं लेकिन बोतल में फॉर्मूला मिल्‍क भरकर देने से बच्‍चों में आगे चलकर मोटापे का खतरा बढ़ जाता है।
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बोतल को साफ करना सबसे मुश्किल और जरूरी काम होता है। बच्‍चे को देने से पहले बोतल को अच्‍छी तरह से धोना बहुत जरूरी होता है। इसके बाद दूध को गर्म कर के बोतल में भरना और फिर बच्‍चे को पिलाना काफी लंबा और मेहनत का काम हो जाता है।

अगर बोतल ठीक तरह से साफ न हो तो इसकी वजह से शिशु की सेहत को खतरा रहता है।

मां के दूध में शिशु की इम्‍युनिटी को मजबूत करने वाले पोषक तत्‍व होते हैं। वहीं बोतल में दिया जाने वाला फॉर्मूला मिल्‍क इम्‍युनटी बढ़ाने वाले गुणों से युक्‍त नहीं होता है। इससे दस्‍त, छाती में इंफेक्‍शन या यूरीन इंफेक्‍श हो सकता है।


स्‍तनपान बंद करवाने के बाद बोतल से दूध पिलाना शुरू करने पर आपको एहसास होगा कि ये काम मुश्किल ही नहीं बल्कि महंगा भी है। बोतल, दूध, निप्‍पल और ब्रेस्‍ट पंप पर काफी पैसे खर्च होते हैं और समय-समय पर बोतल और निप्‍पल को बदलना भी पड़ता है।


स्‍तनपान करवाने से मां और बच्‍चे के बीच एक अनोखा रिश्‍ता पनपता है लेकिन बोतल से दूध पिलाने पर इस ममतामयी रिश्‍ते में दूरियां आ सकती हैं। इसके अलावा बोतल से दूध पिलाना थोड़ा असुविधाजनक होता है।

अगर बच्‍चे को आधी रात को दूध पीना हुआ तो मां की नींद तो खराब होती ही है साथ ही दूध तैयार करने के लिए उठना भी पड़ता है
ऐसा नहीं है कि बच्‍चे को बोतल से दूध पिलाने के सिर्फ नुकसान ही होते हैं बल्कि इससे कुछ फायदे भी मिलते हैं, जैसे कि :
शिशु को जब भी भूख लगी, घर का कोई भी सदस्‍य दूध पिला सकता है। मां के आसपास न होने पर बोतल का दूध बहुत काम आता है। आप ये जान सकती हैं कि हर बार दूध पीने पर बच्‍चा कितनी मात्रा में दूध पी रहा है।बोतल से दूध पिलाने पर पिता, भाई-बहन या परिवार के अन्‍य सदस्‍यों को भी शिशु के करीब जाने का मौका मिलता है। मां को अपनी डायट पर ज्‍यादा ध्‍यान देने की जरूरत नहीं पड़ती है।शिशु के लिए 6 माह का होने तक मां का दूध आवश्‍यक होता है। इसके बाद स्‍तनपान की जगह बोतल से दूध पिलाना शुरू किया जा सकता है। बोतल से दूध पिलाने पर मां को काफी आसानी रहती है।

केला और शकरकंद
बच्‍चों के लिए केला सुपरफूड का काम करता है। इसमें फोलेट की उच्‍च मात्रा होती है जो बच्‍चे के दिमाग को एक्टिव रखने में मदद करता है। इसके अलावा शिशु को ठोस आहार की शुरुआत शकरकंद से भी करवाई जा सकती है। इसमें बीटा-कैरोटीन होता है जो आंखों को तेज करता है और इम्‍युनिटी बढ़ाता है।


ठोस आहार देने में इन बातों का रखें ध्‍यान
बच्‍चे आसानी से खाना नहीं खाते हैं। आपको उन्‍हें खेल-खेल में खाना खिलाना पड़ता है।
ठोस आहार शुरू करने से पहले ब्रेस्‍ट मिल्‍क या फॉर्मूला मिल्‍क को चम्‍मच और कटोरी से पिलाना शुरू करें।
बच्‍चे के खाने में चीनी और नमक का इस्‍तेमाल न या कम करें।
खाना ज्‍यादा गर्म या ठंडा नहीं होना चाहिए। बच्‍चे को खिलाने से पहले खाने का तापमान चैक जरूर कर लें।
शिशु के बीमार या खराब मूड में होने पर ठोस आहार देने से बचें। इससे हो सकता है कि उनमें ठोस आहार के प्रति गलत धारण बन जाए।

solved 5
wordpress 1 year ago 5 Answer
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