बच्चों में दस्त कब तक रहना चाहिए?pregnancytips.in

Posted on Fri 21st Oct 2022 : 09:21

मुझे कैसे पता चलेगा कि मेरे शिशु को दस्त (डायरिया) है?
कभी-कभार पतला मल होना सामान्य है। मगर, यदि आपके शिशु के मलत्याग के तरीके में अचानक बदलाव आता है और वह बार-बार पानी जैसा पतला मलत्याग कर रहा है, जिसमें कोई ढेले नहीं हैं तो हो सकता है शिशु को डायरिया हुआ हो। मल विस्फोटक तरीके से बाहर आसपास छींटे मारता हुआ निकलता है।

दस्त के अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दें। इनमें शामिल हैं उल्टी, बुखार और कभी-कभार शिशु के मल में खून या श्लेम आना।

नवजात शिशु बहुत बार मलत्याग करते हैं, इसलिए आप इसे दस्त मानकर चिंतित न हों। वास्तव में उसकी उम्र के शिशु के लिए यह सामान्य है। साथ ही, आपका शिशु कितना बार मलत्याग करता है, वह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि शिशु स्तनपान करता है या फॉर्मूला दूध पीता है।

सामान्य मल के कुछ और संकेत निम्नांकित हैं:

स्तनपान करने वाले नवजात शिशुओं का मल आमतौर पर पीला और नरम या पतला होता है। शिशु रोजाना पांच बार तक अपनी लंगोट गंदी कर सकता है।

कई बार स्तनपान करने वाले शिशु हर बार स्तनपान करने के दौरान या इसके तुरंत बाद मलत्याग करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जैसे ही उसका पेट भरता है, दूध उसकी पूरी आन्त्र प्रणली को उत्तेजित कर देता है, जिससे मलत्याग करने की इच्छा होती है।

एक महीने के अंदर स्तनपान करने वाले शिशु हर दिन काफी बार मलत्याग करना जारी रखेंगे। मगर उनका वजन बढ़ना भी जारी रहेगा और उनके मल में कोई खून नहीं होना चाहिए। कई बार स्तनपान करने वाले कुछ शिशु एक सप्ताह तक मलत्याग नहीं करते। मगर, जब वे करते हैं, तो भी उनका मल नरम ही होता है।

फॉर्मूला दूध पीने वाले शिशु दिन में एक बाद मलत्याग करते हैं। इनका मल कुछ ठोस और बदबूदार होता है।
बहरहाल, हर शिशु अलग होता है और वयस्कों की तरह उनके मलत्याग की प्रक्रिया में भी बदलाव आ सकते हैं।

जब तक शिशु का मल नरम हो और उसका वजन बढ़ रहा हो, तब तक मलत्याग में आने वाले सभी बदलाव सामान्य माने जाते हैं।

शिशु के मल के बारे में क्या सामान्य है और क्या नहीं, हमारे इस लेख में जानें।
शिशुओं में दस्त (डायरिया) किस वजह से होते हैं?
इसके संभावित कारणों की सूची बहुत लंबी है। आपके शिशु को विषाणुजनित (​वायरल) या जीवाणुजनित (बैक्टीरियल) इनफेक्शन की वजह से डायरिया हो सकता है। इसके अलावा इसके कारण कोई परजीवी भी हो सकता है, शिशु ने कोई एंटीबायोटिक दवाएं ली हो या फिर कुछ खाया हो।

वायरल इनफेक्शन
बहुत से विषाणु जैसे कि रोटावायरस, एडीनोवायरस, कैलिसिवायरस, एस्ट्रोवायरस और इन्फ्लूएंजा डायरिया के साथ-साथ उल्टी, पेट दर्द, बुखार और बदन दर्द का कारण हो सकते हैं।

दस्त होने का सबसे आम कारण एक विषाणु है, जिसका नाम है रोटावायरस। यह विषाणु अंतड़ियों को संक्रमित करता है, जिससे गैस्ट्रोएंटेराइटिस होता है। यह आंत की अंदरुनी परत को क्षति पहुंचाता है। इस क्षतिग्रस्त परत से तरल पदार्थ का रिसाव होता है और पोषक तत्वों का समाहन किए बिना भोजन इसमें से निकल जाता है। कुछ मामलों में रोटावायरस गंभीर मल संक्रमण और शरीर में पानी की कमी की वजह से होता है (डिहाइड्रेशन) का कारण बन सकता है।

रोटावायरस से सुरक्षा के लिए शिशु के टीकाकारण के तहत टीका लगाया जाएगा। यह एक अनिवार्य टीका है। शिशु को कौन सी वैक्सीन लगाई जा रही है, इसे देखते हुए उसे दो या तीन खुराक मिलनी चाहिए। पहली खुराक उसे छह से आठ हफ्ते की उम्र में मिलनी ​चाहिए, दूसरी खुराक 10 से 16 हफ्तों के बीच और तीसरी खुराक करीब 14 से 24 हफ्तों के बीच लगनी चाहिए।

ध्यान रखें कि छह हफ्ते से कम उम्र और चार महीने से अधिक उम्र के शिशु को इस टीके की पहली खुराक नहीं दी जा सकती है। यदि आपने यह टीका शिशु को नहीं लगवाया है, तो शिशु के डॉक्टर से बात करें।

अधिकांश वायरल डायरिया एक हफ्ते में ठीक हो जाते हैं। चूंकि ये वायरस की वजह से होते हैं, इसलिए इनका उपचार एंटिबायोटिक्स से नहीं किया जा सकता। इस दौरान अपने शिशु को स्तनपान करवाती रहें। डॉक्टर शायद शिशु को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ, जिसमें ओआरएस का घोल भी शामिल है, पिलाने की सलाह दे सकते हैं, ताकि शिशु को जलनियोजित रखा जा सके। दस्त की अवधि को कम करने के लिए डॉक्टर जिंक अनुपूरक लेने की सलाह भी दे सकते हैं।

कई बार वायरल डायरिया गंभीर हो सकता है और इससे डिहाइड्रेशन हो सकता है। यदि ऐसा हो, तो शिशु को आईवी यानि नसों के जरिये (इंट्रावीनस) तरल लेने की जरुरत हो सकती है।

बैक्टीरियल इनफेक्शन
जीवाणु जैसे कि साल्मोनेला,​ शिगेला, स्टेफिलोकोकस, कैम्फीलोबेक्टर या ई. कोली भी दस्त पैदा कर सकते हैं। यदि आपके शिशु को बैक्टीरियल संक्रमण हो, तो उसे गंभीर डायरिया के साथ-साथ मरोड़, मल में खून और बुखार भी हो सकता है। उसे उल्टी हो भी सकती है और नहीं भी।

कुछ जीवाण्विक संक्रमण अपने आप ठीक हो जाते हैं, मगर कुछ जैसे कि ई. कोलाई से होने वाले इनफेक्शन गंभीर हो सकते हैं। ई. कोलाई अधपके मांस और भोजन के अन्य स्त्रोतो में पाया जा सकता है। इसलिए यदि आपके शिशु में ये लक्षण हों, तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। वह शिशु की जांच करेंगे और शायद बैक्टीरियल इनफेक्शन के संकेतों के लिए स्टूल कल्चर की जांच करना चाहेंगे।

कान का संक्रमण
कुछ मामलों में कान में इनफेक्शन (जो कि वायरल या बैक्टीरियल कुछ भी हो सकता है) दस्त की वजह बन सकता है। यदि आपके शिशु के साथ ऐसा हो, तो आप यह भी पाएंगी कि शिशु चिड़चिड़ा है और अपने कान खींचता रहता है। उसे उल्टी हो सकती है और उसकी भूख कम हो सकती है। हो सकता है उसे हाल ही में सर्दी-जुकाम हुआ हो। उसे बुखार भी हो सकता है।

परजीवी
परजीवी (पैरासाइट) संक्रमण भी डायरिया का कारण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर जियाडाएसिस एक अति सूक्ष्म परजीवी की वजह से होता है, जो आंत में रहता है। इसके लक्षणों में गैस, फुलावट, दस्त और चिकना मल शामिल है।

इस तरह के इनफेक्शन डे केयर या समूूहों में आसानी से फैलते हैं और इनके उपचार के लिए विशेष दवा होती है, इसलिए शिशु को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

क्रिप्टोस्पोरिडियम भी आसानी से फैलता है और वायरल संक्रमणों की तरह डायरिया पैदा कर सकता है। यह अपने आप ठीक हो जाता है, मगर शिशु की डॉक्टरी जांच की जरुरत होती।

शिशु में कीड़ों के संक्रमण के बारे में यहां और अधिक जानें।

अनुचित मात्रा में तैयार किया फॉर्मूला दूध
फॉर्मूला फीड अगर सही ढंग से तैयार न किया जाए तो दस्त का कारण बन सकता है। इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप उचित मात्रा में पानी और फॉर्मूला मिलाएं। हमेशा फिल्टर किया हुआ पीने का पानी उबाल कर दूध तैयार करने में इस्तेमाल करें।

एंटिबायोटिक्स
यदि आपके शिशु को एंटिबायोटिक दवाओं के कोर्स के दौरान या इसके बाद दस्त होता है, तो यह उस दवा की वजह से हो सकता है जो आंतों में समस्या पैदा करने वाले जीवाणुओं के साथ-साथ अच्छे ​जीवाणुओं को भी मार देती है। इन दवाओं की मात्रा कम करने से यह समस्या करीबन एक हफ्ते में ठीक हो सकती है।

बहुत ज्यादा जूस
अधिक मात्रा में फलों के रस (खासकर सॉर्बिटॉल और उच्च मात्रा में फ्रुक्टॉस वाले जूस) या बहुत ज्यादा मीठे पेय शिशु के पेट में गड़बड़ी कर सकते हैं। ध्यान रखें कि डॉक्टर शिशु को दो साल की उम्र से पहले जूस देने की सलाह नहीं देते।

भोजन एलर्जी
भोजन एलर्जी यानि फूड एलर्जी में ​शरीर की प्रतिरक्षण प्रणाली उन खाद्य प्रोटीनों के प्रति प्रतिक्रिया करती है, जो सामान्य तौर पर कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। भोजन एलर्जी होने के हल्के या गंभीर प्रभाव तुरंत या फिर एक-दो घंटों में दिखाई दे सकते हैं। इसके लक्षणों में दस्त, गैस, पेट में दर्द और मल में खून आना शामिल है। कुछ और गंभीर मामलों में एलर्जी से पित्ती (हाइव्स), चकत्ते, सूजन और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।

दूध का प्रोटीन एलर्जी पैदा करने वाला सबसे आम तत्व है। शिशु को एक साल का होने से पहले गाय का दूध नहीं पिलाना चाहिए, मगर यदि आपके शिशु को दूध के प्रोटीन से एलर्जी हो तो गाय के दूध से बना फॉर्मूला या ठोस आहार शुरु करने पर डेयरी उत्पादों से बना भोजन खाने से प्रतिक्रिया हो सकती है। कुछ मामलों में तो यदि माँ डेयरी उत्पादों का सेवन करे तो स्तनदूध से भी शिशु को यह एलर्जी हो सकती है।

एलर्जी पैदा करने वाले अन्य आम खाद्य पदार्थों (इनमें से अधिकांश अभी आपके शिशु के आहार में शामिल नहीं हुए होंगे) में शामिल है अंडे, मूंगफली, सोया, गेहूं, मेवे, मछली और सीपदार मछली। यदि आपको लगे कि आपके शिशु को शायद फूड एलर्जी है, तो डॉक्टर से बात करें।

भोजन के प्रति असहिष्णुता
भोजन एलर्जी के विपरीत भोजन असहिष्णुता (फूड इनटोलरेंस), जिसे कभी-कभी भोजन के प्रति संवेदनशीलता भी कहा जाता है। यह एक असामान्यत प्रतिक्रिया है, जिसमें आपकी प्रति​रक्षण प्रणाली शामिल नहीं होती। भोजन के प्रति संवेदनशीलता का एक उदाहरण है लैक्टॉस असहिष्णुता।

लैक्टॉस असहिष्णुता शिशुओं में होना काफी असामान्य बात है, मगर यदि यह आपके शिशु को हो तो इसका मतलब है कि उसके शरीर में पर्याप्त लैक्टेस का उत्पादन नहीं हो रहा। यह एक ऐसा एन्जाइम है, जिसकी जरुरत लैक्टॉस को पचाने में होती है। गाय के दूध और अन्य डेयरी उत्पादों में मौजूद शर्करा को लैक्टॉस कहा जाता है।

जब बिना पचा हुआ लैक्टॉस आपकी आंत में रहता है, तो इससे दस्त, पेट में मरोड़, फुलावट और गैस जैसे लक्षण हो सकते हैं। ये लक्षण आमतौर पर दूध से बने उत्पादों के सेवन के आधे घंटे से दो घंटों के बीच शुरु होते हैं।

वैसे अगर आपके शिशु की डायरिया की स्थिति बहुत गंभीर हो, तो उसे अस्थाई तौर पर लैक्टेस के उत्पादन में दिक्कत हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उसे एक या दो हफ्ते तक लैक्टॉस असहिष्णुता के लक्षण हो सकते हैं।

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